Monday, November 3, 2014

एक थी सिंगरौली(भाग-9)
अब लगे हाथ यह भी जान लें कि सिंगरौली को लेकर वाशिंगटन में क्यों अौर कैसे इतना हो हल्ला मचा कि बाद में विश्वबैंक की हिन्दुस्तान आने वाली टीमों के लिए तो जैसे चिलकाडांड तीर्थ बन गया था।हुआ यह कि लोकायन-लोकहित की पहल पर सन् 1987 में एनवायर्नमेंट डिफेंस फंड(ईडीएफ) अमेरिका,के सामाजिक कार्यकर्ता ब्रुश रिच ने सिंगरौली की यात्रा की,विस्थापित बस्तियों में गये,वहां की दुर्दशा देखी।सिंगरौली से वापसी के समय ब्रुश रिच विस्थापन अौर पुनर्वास पर चित्रकूट में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में भी शामिल हुए।इस कार्यशाला में गुजरात,झारखंड़,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र आदि से विस्थापित प्रतिनिधियों के अलावा प्रो.रजनी कोठारी प्रो.धीरू भाई सेठ,डा.बी.डी.शर्मा,मेधा पाटकर,डा.वंन्दना शिवा,स्मितु कोठारी,सुरेश शर्मा आदि प्रमुख लोगों ने भाग लिया था। विस्थापन पर लम्बे विचार विमर्श के बाद यह आम राय थी कि देश में विकास के नाम पर बड़ी बड़ी परियोजनाअों अब विस्थापन बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है इसलिए जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए कानून हो।
     वापस जाकर ब्रुश रिच ने सिंगरौली के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट अमेरिकी सीनेट की एक समिति को दी तब जा कर हंगामा हुआ।इस रिपोर्ट से विश्व बैंक विरोधियों को बल मिल गया कि विश्व बैंक की मदद से चलने वाली परियोजनायें स्थानीय लोगों का जीवन कष्टमय बना रहीं हैं,अब बहुत हो चुका इसे बंद किया जाना चाहिये।इतना धमाल मचने के बाद विश्वबैंक की कुंभकर्णी नींद टूटी तब कहीं जाकर विश्वबैंक की टीम पहली बार सन् 1988में, यानी परियोजना शुरू होने के दस सालों बाद सिंगरैाली आई अौर विस्थापित बस्ती चिल्काडांड गई तब सब कुछ अपनी अांखों से देखा।
     दरअसल चिल्काडांड सिंगरौली में विस्थापन की त्रासदी का प्रतीक बन गया।हमेशा विस्थापितों को कूड़ा करकट के ढ़ेर की तरह जहां मन चाहा उठा कर फेंक दिया गया, कोई उनकी सुनने वाला नहीं,न  प्रशासन,न ही परियोजना अधिकारी।जिम्मेदार अधिकारियों की घोर उपेक्षाअौर लापरवाही का जीता जागता उदाहरण रही है यह विस्थापित बस्ती।एनटीपीसी के बिजलीघर से विस्थापित होने से पहले ये सभी लोग रिहंंद बांध से उजाड़े गये थे।जिसेे जहां जगह मिली जंगल झाड़ी साफ कर बस गया।वर्षों कष्ट सहकर जमीनों को खेती लायक बनाया।रिहंद की त्रासदी से अभी उबर भी नहीं पाये थे कि विस्थापन की गाज फिर आ गिरी उन पर।इस बार तो उन्हेंं रेलवे लाइन अौर कोयला खदान के दो पाटों के बीच पिसने के लिए ला पटका गया।
  जह चिल्का डांड की बात उठी है तो यह भी जानना रोचक होगा कि सारांश,मंथन,निशात,अंकुर जैसी सार्थक फील्में देने वाले संवेदनशील प्रसिद्ध निर्देशक श्याम बेनेगल ने सिंगरौली के अपने प्रशंसकों को निराश ही किया जब उन्होंने सिंगरौली अा कर एनटीपीसी के लिए एक फिल्म बनाई थी जिसमें एनटीपीसी की कार्य-संस्कृति की जादुई तस्वीर तो पेश की लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू की जरा सी झलक भी नहीं दिखाई।जिस मोती ढ़ाबा के आस पास वे अ्पनी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे वहीं से कुछ सौ मीटर की ही दूरी पर चिल्काडांड विस्थापित बस्ती थी लेकिन उनके कैमरे ने एक बार भी उधर का रुख ही नही किया।

No comments:

Post a Comment