Thursday, April 30, 2020

फ़िल्म #Karwaan की समीक्षा (यादों में इरफ़ान सीरीज ...01)

फ़िल्म #Karwaan की समीक्षा (यादों में इरफ़ान... 01)

मिशन #Sendiblecinema के तहत कल (29/04/2020) इरफ़ान खान की फ़िल्म कारवां देखी। फ़िल्म का निर्देशन किया है आकर्ष खुराना ने। ज़िन्दगी एक कारवां एक सफ़र ही तो है, वो सफ़र जो कई सरप्राइजेज से भरा है, वो सफ़र जिसकी खट्टी मीठी यादें हमारे ज़हन के बक्से में ताउम्र के लिए महफूज़ हो जाती हैं अमिट कहानी सी और हमारे साथ ही जाती हैं। ज़िन्दगी का कैलकुलेशन हमेशा दो दूनी चार हो ज़रूरी नहीं, सब कुछ हमारे हिसाब से ही चले ये भी ज़रूरी नहीं। ज़िन्दगी का कारवां खूबसूरत तब ही बनता है जब हम हर लम्हे को आत्मसात करें, सफ़र का भरपूर आनंद लें, अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में तटस्थ बने रहें और सम भाव से उन परिस्थितियों के अनुरूप ख़ुद को ढाल लें। ज़िन्दगी के इस कारवां में हमें किसम किसम के किरदार मिलते हैं, कुछ अपने से लगते हैं कुछ अंजाने से, कुछ दिल के करीब मालूम पड़ते हैं तो कुछ मीलों दूर पर हमें कुछ ना कुछ सीखता हर किरदार है, कुछ हमारा हाथ थामे हमराही बनकर तो कुछ चोट और ज़खम देकर। 
इस फ़िल्म की कहानी दो दोस्तों की कहानी है जिनका सोशल स्टेटस के हिसाब से तो कोई मैच नहीं लेकिन जिनके दिल के तार एक दूसरे की फीलिंग्स के सिग्नल को बख़ूबी कैच करते हैं इसलिए एक दूसरे से बिल्कुल जुदा होने के बावजूद भी शौकत (इरफ़ान खान) और अविनाश (दुलकुयर सलमान) एक दूसरे के अच्छे दोस्त होते हैं। अविनाश बैंगलोर में एक आईटी कंपनी में काम करता है और शौकत एक वैन मालिक है और उसका गुज़ारा इस वैन के ज़रिए ही होता है। अविनाश के पास एक ट्रैवल एजेंसी से फोन आता है कि उसके पिता का एक बस एक्सिडेंट में निधन हो गया वो पास के ही एक कार्गो कंपनी से अपने पिता का पार्थिव शरीर हासिल कर सकता है। अविनाश शौकत के पास जाता है और कहता है उसे अपने पापा की बॉडी लाने के लिए शौकत की वैन चाहिए। शौकत भी अविनाश के साथ उस कार्गो कंपनी बॉडी लेने जाता है पर बॉडी गलती से एक्सचेंज हो जाती है, उनके पास किसी महिला की बॉडी पहुंच जाती है और उसके पिता की बॉडी कोच्चि उस महिला के घर। कंपनी वाले कोच्चि उस महिला के घर का नंबर देते हैं। अविनाश उस नंबर पर कॉल करता है तो वो महिला अकेले होने के कारण बैंगलोर आने में असमर्थता दिखाती है तो अविनाश स्वयं उसकी मां की बॉडी लेकर कोच्चि जाने को तैयार हो जाता है। इरफ़ान अविनाश के इस फैसले पर गुस्सा होता है कहता है रोती हुई औरत और दूध वाले पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए वो तुझे मूर्ख बना रही है और वहां बुला रही है पर दोस्त के कारण वो बॉडी लेकर कोच्चि जाने के लिए तैयार हो जाता है। वो लोग रास्ते में होते हैं कि उस महिला का फिर फोन आता है वो बीच रास्ते से अविनाश को अपनी बेटी तान्या (मिथिला पलकर) को भी साथ लाने की रिक्वेस्ट करती है। इरफ़ान भड़क उठता है और अविनाश से कहता है यार मैय्यत पर रोमांस मत कर जल्द से जल्द बॉडी पहुंचा कर वापस आएं अपन। अविनाश इरफ़ान को मानकर उसकी बेटी को उसके कॉलेज हॉस्टल लेने पहुंचता है और फिर यहां से शुरू होता है तीन लोगों का सफ़र जो एक दूसरे से बिल्कुल जुदा है। उन्हें और कहां रुकना पड़ता है और किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है जानने के लिए इन तीन लोगों की ज़िंदगी के इस कारवां को ज़रूर देखिए आपको बड़ा मज़ा आएगा। इरफ़ान की कॉमेडी ज़बरदस्त है। इरफ़ान एक्टिंग के एक चलते फिरते स्कूल थे ये कहना अतिशयोक्ति ना होगी। चाहे कोई गंभीर किरदार हो, रुमानी, खलनायक का या फिर कॉमिक कैरेक्टर इरफ़ान हर किरदार को बड़ी सादगी से आसानी से निभा ले जाते थे। इरफ़ान जैसे कोहिनूर को खोने की टीस दिल से कभी ना जाएगी। दुल्कुयर सलमान और मिथिला पलकर ने भी अच्छा अभिनय किया है। इस कारवां में ऐसा लगेगा मानो आप अविनाश, तान्या और शौकत के साथ आप भी उस सफ़र में हैं।

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