Friday, June 25, 2010

उसे आज भी अपनी नादिया का इंतज़ार है

लुडदू मोहम्मद को आज भी नादिया का इंतज़ार है । उसकी नज़रें ट्रैफिक सिग्नल पे आज भी उसे तलाशती हैं। उस ट्रैफिक सिग्नल से उसका बहुत पुराना नाता है उस सिग्नल ने उसे बहुत कुछ - दिया चूल्हा जलने की उम्मीद और साथ ही उस चूल्हे को जलाए रखने वाली भी। यहीं तो मिली थी नादिया उसे। शादी को अभी साल भर भी ना बीते थे की उसकी ख़ुशी को ग्रहण लग गया। नादिया उसे छोड़ के चली गयी क्यूंकि दिन ब दिन उसका चेहरा ना जाने क्यूँ विकृत होता जा रहा था। ऐसा लगता था ना जाने कितनी मधुमखियों का छत्ता होगा उसका मुंह अब अंदाजा लगा लो की चेहरा कितना सूजा होगा और वो कैसा दिखता होगा? पर कहते हैं न उम्मीद पे दुनिया टिकी है। लुडदू मोहम्मद ने अब तक उम्मीद का दामन थामे रखा है, वो ज़िन्दगी से निराश नहीं हुआ। रोज़ आईने में अपने चेहरे को देखता है और इस उम्मीद के साथ उसी सिग्नल पे भीख मांगने निकल पड़ता है जिस सिग्नल पे नादिया उसे मिली थी। वो कहता है की मैं पैसे बचा रहा हूँ ताकि एक दिन अपना इलाज करा सकूं। मुझे विश्वास है की जब मैं ठीक हो जाऊँगा तो मेरे नादिया भी मेरे पास लौट आएगी। उसकी आँखों में आंसू नहीं उम्मीद की किरण दिखाई देती है। लुडदू मोहम्मद पकिस्तान के रहने वाले हैं। इनकी कहानी को डिस्कवरी के - माई शौकिंग स्टोरीज़ में देखने के बाद बड़ी देर तक मैं यही सोचती रही की हम प्यार के कितने ही बड़े वादे क्यूँ न करते रहे पर अगर हमारा हमसफ़र लड्डू जैसा विकृत हो जाए तो हमें से कितने लोग उसका साथ देंगे, शायद नादिया की तरह हम भी उसे छोड़ के आगे बढ़ जायेंगे। हम प्यार को आत्मा का मिलन कहते हैं तो फिर शरीर से इतना मोह क्यूँ और क्यूँ शरीर की खातिर आत्मा को तकलीफ देते हैं ? क्या प्यार सिर्फ बड़ी बड़ी हवाई बातें करने का ही नाम है? जब प्यार दो दिलों का मेल है तो फिर नादिया लुडदू को छोड़ के क्यूँ चली गयी। उसका सिर्फ चेहरा ही तो विकृत हुआ था न दिल तो वैसा ही था। हमें फक्र होना चाहिए लुडदू मोहमाद जैसे लोगों पर जो शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद भी मानसिक रूप से बहुत मज़बूत हैं। हमें भी ऐसे लोगों पे तरस खाने की जगह उनकी हर संभव मदद करने की कोशिश करनी चाहिए।
साभार डिस्कवरी - माई शौकिंग स्टोरीज़
भावना के
"दिल की कलम से "

1 comment:

  1. comment on what.....?
    life moves on by referring loss making concerns to BIFR !
    sympathy n empathy .... both seem wastage ....!
    i cdn't get moved at all...
    shayad dil ki kalam se nahi nikal paye shabd

    ReplyDelete