Wednesday, June 17, 2015

बाजार



देखता हूं जिस तरफ दिखता उधर बाजार है
करती जिसकी बंदगी दुनिया की हर सरकार है

बिक रहा इंसान खुद होकर खड़ा बाजार में
जैसे जिंदा रहने का आधार ही बाजार है

कह रहे हैं देश विकसित छोड़ सब बाजार पर
दुनिया के हर मर्ज की इक ही दवा बाजार है

बज रही बंशी उदारीकरण की देखो जिधर
अपनी धुन पर अब नचाता सभी को बाजार है

पैदा करता ख्वाहिशें यह नित नई और बेहिसाब
कैद करता ख्वाहिशों के जाल में बाजार है

Bhonpooo.blogspot.in

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