Friday, June 26, 2015

सामयिक दोहे------ ललित भंवर

         ललित मोदी के एक के बाद एक खुलासों ने राजनीतिक गलियारे में भूचाल  ला दिया है। मंचों पर आदर्शों की दुहाई देने वाले नेतागण पर्दे के पीछे अपराधियों से गले मिलते और उनकी मदद करते दिखते हैं। इसी संदर्भ में हैं ये चंद लाइनें

ललित भंवर में फंसे हैं कैसे कैसे लोग
भूल चूक है यह नहीं ना केवल संयोग

एक एक कर खुल रही धीरे धीरे पोल
लगे वे बगलें झांकने कभी थे ऊंचे बोल

नेतानगरी एक सी भले जुदा हो नाम
बगल छिपी रहती छुरी मुंह से जपते राम

ईंधन भ्रष्टाचार का कर कर इस्तेमाल
आगे रहते रेस में होते मालामाल

ललित जाल में फंसी हैं बड़ी मछलियां आज
दस्तावेजों से खुले अब तक थे जो राज
bhonpooo.blogspot.in

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