Saturday, December 6, 2014

एक थी सिंगरौली-12
कहा जाता है रिहंद बांध परियोजना उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत का ड्रीम प्रोजेक्ट था।वह चाहते थे कि पंजाब,हरियाणा की तर्ज पर पूर्वी उत्तर प्रदेश का अौद्योगीकरण हो जिसके लिए जरुरी थी बड़े मात्रा में बिजली अौर यह काम रिहंद बांध के जरिये जल विद्युत पैदा कर किया जाना था।इसीलिए यह बांध पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला में पिपरी नामक स्थान पर सोन की सहायक रेंण नदी पर बनाया गया।आज कल के बांधों की तरह यह बहुउद्देशीय बांध नहीं था।सिंचाई,पेयजल आपूर्ति आदि के लिए न होकर यह सिर्फ बिजली उत्पादन के लिए बनाया गया था।300मेगावाट विद्युत उत्पादन इसका लक्ष्य था।आज तो सिंगरौली में4000मेगावाट अौर 6000मेगावाट की विद्युत उत्पादन क्षमता वाले सुपर थर्मल पावर स्टेशन बन गये हैं लेकिन सन् 1960में 300मेगावाट भी बिजली की बड़ी मात्रा थी।रिहंद बांध से बिजली तो पैदा होने लगी थी किन्तु उस समय तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में अौद्योगीकरण के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट न होने के कारण इस बिजली का कोई उपयोग नहीं था।बाद में नेहरू जी की प्ररणा से उद्योगपती बिड़ला ने इस क्षेत्र में अल्युमिनियम का कारखाना हिंडालको लगाया।हिंडालको को बहुत सस्ती दर पर बिजली दी जाती थी।बाद में यहां पर कोयले की भारी उपलब्धि को देखते हुए हिंडालको के लिए रेणू सागर में ताप बिजलीघर बना लिया गया जिसकी उत्पादन क्षमता में बाद के दिनों में काफी वृद्धि की गई।
अक्सर जल विद्युत की जगह ताप विद्युत को ज्यादा पसंद किया जाता रहा जिसका एक बड़ा कारण तो यह था कि जल विद्युत का उत्पादन वर्ष भर एक सा नहीं होता है। गर्मी के दिनों में बांध में पानी का जलस्तर काफी कम हो जाता है इससे विद्युत उत्पादन प्रभावित होता है जबकी ताप विद्युत के साथ एेसी कोई समस्या नहीं होती,पूरे वर्ष एक सा उत्पादन रहता है हालांकि ताप विद्युत की सबसे बड़ी समस्या इससे पैदा होने वाला भारी प्रदूषण  है।रिहंद बांध से भी बरसात के मौसम को छोड़कर विद्युत उत्पादन क्षमता से कम होता रहा।कोयला खदानों के कारण बड़ुी मात्रा में जंगलों की कटाई से जल्द ही रिहंद के जलाशय में काफी गाद भर गई जिससे इसकी जल ग्रहण क्षमता बहुत कम हो गई है।अब तो विद्युत उत्पादन ठप्प पड़ा है।इतनी बड़ी परियोजना इतनी जल्दी बेकार हो गई,है ना आश्चर्य की बात।
      कहते हैं एक अंग्रेज अफसर जब शिकार खेलते हुए उस जगह पहुंचा जहां रेंण नदी दो ऊंची पहाड़ियों के बीच से होकर बहती है तब पहली बार उसके मन में इस स्थान पर नदी को रोक कर एक सुन्दर झील बनाने का विचार आया था उसने इंग्लैंड में इस तरह की मानव निर्मित झील देखी थी पर यह विचार अंग्रजों के समय तक क्रियान्वित नहीं हुआ शायद उन्हें इस परियोजना में खर्च के मुकाबले लाभ ज्यादा न दिखाई पड़ा हो।जनपद सोनभद्र में ही मुख्यालय राबर्ट्सगंज से कुछ दूर धंधरौल नामक स्थान पर एक छोटी सी नदी घाघर पर अंग्रेजों के समय का छोटा सा बांध बना है।एक साल गर्मियों में विजयगढ़ किले पर होने वाले सालाना उर्स में जाते हुए वह बांध देखने का अवसर मिला था।छोटा सा यह खूबसूरत बांध सन् 1913 में बनाया गया था।इस बांध के आसपास का इलाका समतल जमीन वाला है जिसकी सिंचाई इस बांध से निकाली गई नहर से आज भी हो रही है।अंग्रजों ने इस बांध को सिचाई के उद्देश्य से ही बनाया था ताकि ज्यादा भू राजस्व प्राप्त किया जा सके।देखिये एक अोर है सन्1913का बना छोटा सा धंधरौल बंधा जो आज भी खेतों की प्यास बूझा रहा है दूसरी अोर है विशाल जलराशि वाला रिहंद बांध जो खुद एक समस्या बन गया है पूरे इलाके के लिए।रिहंद का प्रदूषित जल सिंगरौली क्षेत्र के भूगर्भीय जल को प्रदूषित कर रहा है।यह बात तो सन् 1990 में ही एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आ गई थी।
          अजय
bhonpooo.blogspot.in

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