Monday, December 29, 2014

एक थी सिंगरौली-15
दरअसल रिहंद बांध की स्थिति गरीब की लुगाई जैसी हो कर रह गई है कि हर कोई उसके साथ मनमानी करता है,जैसा जी चाहता है इस्तेमाल करता है इस मानसिकता के साथ कि बेकार ही तो पड़ा है,जिस तरह से जितना भी इस्तेमाल किया जा सके उतना ही सही।यही वजह रही है कि रिहंद के सभी गुनहगार,खास कर बड़े-एनटीपीसी,एनसीएल,हि्डालको,कनोड़िया केमिकल एक दूसरे पर रिहंद जलाशय को प्रदूषित करने का आरोप लगाकर अपनी जवाबदेही से बचते रहे हैं।यही कारण है कि रिहंद के प्रदूषण की रोकथाम  के लिये एक साझा कार्यक्रम बनाकर सहयोग करने से अब तक ये सभी कतराते रहे हैं।सिंगरौली क्षेत्र का दो अलग अलग राज्यों (उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश)में बंटा होना भी समस्या को अौर भी बढ़ाता है। चर्चा तो बहुत होती रही पूरे क्षेत्र को एक ही प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत लाने की परन्तु राजनीतिक कारणों से यह मामला अब तक खटाई में ही पड़ा  रहा।इसी प्रकार से इस इलाके में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये रिहंद जलाशय को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के सुझाव भी आये पर अमल आज तक नहीं हुआ।
           दिल्ली में विश्व बांध आयोग की एक बैठक चल रही थी।चर्चा के दौरान यह बात भी उठी कि कुछ एेसे बांधों की भी केस स्ट्डीज तैयार की जाय जिनका बहुत कमजोर प्रदर्शन रहा हो अौर जिन्हें असफल बांध कहा जा सकता हैजिससे लोगों को यह स्पष्ट हो कि कैसे डैम बिल्डर्स की लाबीइंग के कारण एेसे बांध बनाने के निर्णय लिये जाते हैं जिनसे न केवल देश के संसाधनों की बरबादी होती है बल्कि तमाम लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ता है,पर्यावरणीय क्षति होती है वह अलग।उस बैठक में  मैने रिहंद बांध पर एक छोटा प्रस्तुतीकरण रखा जिसे सुनकर वहां उपस्थित साथियों को आश्चर्य हुआ।बाद में शायद समय कि कमी,संसाधन की कमी या किसी अन्य किसी कारण से इस प्रकार की केस स्टडीज का विचार त्याग दिया गया था अौर रिहंद बांध का पूरा सच दुनिया के सामने आने से रह गया।
            जनपद सोनभद्र अौर जनपद सिंगरौली अपने अपने राज्यों (उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश) को प्रति वर्ष बाकी अन्य सभी जनपदों के मुकाबले सबसे अधिक राजस्व उपलब्ध कराते हैं।खदानों आदि से प्राप्त होने वाली रायल्टी की रकम काफी बड़ी होती है।दोनो जनपदों के स्थानीय निकायों की गिद्ध दृष्टि हमेशा ही बड़ी बड़ी परियोजना्अों (एनटीपीसी,एनलीएल आदि) से प्राप्त होने वाली आर्थिक सहायता पर ही रहती है जिसका उपयोग नागरिक सुविधाअों,पर्यावरण सुरक्षा आदि के लिये कम ही हो पाता है,ज्यादातर तो दुरूपयोग ही होते दिखता है।यह सही है कि अगर ईमानदारी से इस क्षेत्र से प्राप्त होने वाले राजस्व का छोटा सा भाग भी इस क्षेत्र की दशा सुधारने में खर्च किया गया होता तो रिहंद का पानी जहरीला नहीं होता अौर इस क्षेत्र में गांव के गांव विकलांग नहीं होते ।
                  एक सवाल जेहन में यह भी उठता है कि जो हश्र  रिहंद बांध का हुआ है क्या वही हश्र उन परियोजनाअों का भी तो नहीं होगा जो भेड़चाल से सिंगरौली क्षेत्र में आ रही हैं,कोई लेटेस्ट सुपर क्रिटिकल टेक्नालाजी के नाम पर आ रही हैं तो कोई किसी अौर टेक्नालाजी का राग अलापते हुए।ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते हुए खतरे के कारण कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने की बातें अब हवा हवाइ नहीं रह गईँ।अमेरिका अौर चीन के बीच कार्बन उत्सर्जन में कटौती का एेसा समझौता हो भी चुका है और अब भारत की बारी है। एेसे में कोयला आधारित ऊर्जा के पीछे इस तरह से हांथ धोकर पीछे पड़ना कहां तक उचित है।
       --- अजय
bhonpooo.blogspot.in  

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