सामयिक दोहे----
लीजिए साहब,लंबी छुट्टी से ताजा दम होकर लौटते ही राहुल बाबा किसानों के झंडाबरदार बन बैठे, वहीं प्रधानमंत्री जी किसानों के हमदर्द बन उसकी भलाई के लिये भूमि अधिग्रहण बिल पास कराने पर आमादा हैं और किसान है कि उसे किसी पर भरोसा ही नहीं हो रहा है,बस आत्महत्या पर आत्महत्या किये जा रहा है।इसी संदर्भ में कुछ दोहे पेश हैं
दोनो ही दल कूटते छाती हाय किसान
दोनो ने ही कृषी का किया बड़ा नुकसान
खेती ही जब ना बचे कैसे बचे किसान
इस विकास के ब्यूह में फंसा खड़ा हैरान
खेती घाटे में रहे लाभ में कृषि व्यापार
जिम्मेदारी से नहीं बच सकती सरकार
कितनी फांकों में रहा अब तक बटा किसान
इसीलिये ठगना उसे रहा सदा आसान
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