सामयिक
दोहे----
लोकसभा
की चुनावी चोट ने जनता परिवार को एकता की डगर पकड़ाई पर अभी तमाम किन्तु परन्तु
पीछे पड़े हुए हैं। इसी संदर्भ में पेश हैं चंद दोहे
जनता
ने इनको दिया मौका कई कई बार
ठेंगे
पर जनता रही करती चीख पुकार
जायेगी
जनता कहां आयेगी झखमार
इसी
आस पर आ जुटा यह जनता परिवार
परिवर्तन
की हवा से इनको चढ़े बुखार
राग
वही ढ़पली वही वही बजावनहार
जनता
की चिंता नहीं ये सत्ता के यार
इक
पल में हो प्यार तो अगले पल तकरार
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