अवधी
रचना......
भैंसिया
पानी मा
फिर
कूद भैंसिया पानी मा औंधे मुंह गिरा किसानी मा
तुम
लेव मजा रजधानी मा बप्पा तुम्हार परधानी मा
मौसम
की गाज गिरी हम पर आंधी पानी ओला बन कर
अच्छे
दिन की जउन आस रही पल भर मा होइगै छूमंतर
सूझै
न डगर एकौ हमका फंस गयेन जउन परेशानी मा
फिर
कूद भैंसिया पानी मा औंधे मुंह गिरा किसानी मा
पकराय
दिहिन चेक सत्तर का मारिन मुंह पर जइसे मुक्का
आफत
तो बरसी ऊपर से नीचे से दिहिस शासन धक्का
मूड़े
पर कर्जा है भारी कुछ बचा न अब जिनगानी मा
फिर
कूद भैंसिया पानी मा औंधे मुंह गिरा किसानी मा
सबकी
है नजर जमिनियै पर उद्योगपती होय या बिल्डर
सरकार
का अउरौ जल्दी है लै अध्यादेश ठाढ़ सिर पर
सत्ता
विपक्ष हैं एकै रंग सब धरे गोड़ बेइमानी मा
फिर
कूद भैंसिया पानी मा औंधे मुंह गिरा किसानी मा
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