माफी मांगना कला है या विज्ञान या दोनो है इस पर विद्वानों के बीच लम्बी बहस की काफी गुंजाइस है लेकिन इस बारे में दो राय नहीं हो सकती है कि माफी का रिश्ता मानव सभ्यता से बहुत गहरा है।माफी का आविष्कार सबसे पहले किसने ,कब, कहां किया यह रिसर्च का अच्छा टापिक हो सकता है।यह इतनी उपयोगी कला है, माफ कीजियेगा आप चाहें तो इसे विज्ञान भी कह सकते हैं, कि दुनिया की हर भाषा में इसके लिये शब्द मिल जायेंगे। माफी का समानार्थी शब्द है क्षमा और दोनो के साथ याचना का भाव है क्योंकी माफी मांगी जाती है, क्षमा याचना की जाती।आप इसके लिये अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते क्योंकी यह आपका मौलिक अधिकार नहीं है। यह पूरी तरह से दाता की मर्जी पर होता है कि वह माफी दे या साफ इंकार कर दे। जी हां यहीं पर तो इसका कला का स्वरूप सामने आता है।यहीं पर तो आपको अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है कि किस तरह से आप सामने वाले को अपने आंसुओं, अपनी मीठी मीठी चिकनी चुपड़ी बातों से प्रभावित कर सकते हैं। वैसे माफी मांगने की आदर्श स्थिति यह है जब गल्ती पर सच्चे हृदय से पश्चाताप हो। इसमें उम्र, पद, धनी-निर्धन किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता है कोई भी किसी से माफी मांग सकता है।
माफी का दूसरा रूप भी है जो, दूसरे देशों का तो मुझे ज्यादा पता नहीं पर अपने भारत महान में खूब प्रचलित है। मुझे विश्वास है कि कभी न कभी आपका भी पाला इससे जरूर पड़ा होगा। इसमें बिना हृदय में किसी तरह की पश्चाताप की भावना उठे और कभी कभी तो बिना किसी गल्ती के सामने वाले से हाथ जोड़कर,रोते-गिड़गिड़ाते माफी मांगनी पड़ती है। इसमें माफी मांगना विवशता होती है जबकी माफी मंगवाना अपना अधिकार समझा जाता है। बचपन में इस स्थिति से मुझे बहुत बार गुजरना पड़ा है। पिताश्री के गुस्से से हम सभी लोग थर थर कांपते थे, लंबे समय तक वे एक आदर्श तानाशाह रहे। हम सभी भाई बहन इस पर एकमत थे कि हिटलर हमारे पिताश्री की तरह ही तानाशाह रहा होगा। लिहाजा जब कभी वे जोर से डांटते तो मैं रोते रोते माफी मांगने में ही अपनी खैरियत समझता था। इसी तरह स्कूल में भी सीधा होने के कारण शरारत अगल बगल के सहपाठी करते मास्टर जी की छड़ी मुझ पर पड़ती,माफी भी मांगनी पड़ती सो अलग।
माफी की एक और भी किस्म है जिसमें माफी देने वाले के पास माफी देने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं होता चाहे हस कर दे या रोकर यानी जिसे गांव की भाषा में कहा जाय तो गुड़वा खाए परी कनवा छेदाए परी। इसे और स्पष्ट करने के लिए यह उदाहरण काफी होगा। पुरानी बात है जाड़े के दिन थे मुहल्ले में दो-तीन लोग एक जगह बैठकर धूप ले रहे थे, ट्रांजिस्टर पर गाना बज रहा था- सैंया ले गई जिया तेरी पहली नजर.....।अचानक गाना बंद हो गया। जिसका ट्रांजिस्टर था उसने तुरंत उसे उठा कर अलग अलग दिशा में घुमाया फिर उसे ठोंका-पीटा पर बेमतलब। थोड़ी ही देर बाद उदघोषक की आवाज सुनाई पड़ी कि प्रसारण में आई गड़बड़ी के कारण आप थोड़ी देर तक हमारा प्रसारण नहीं सुन सके प्रसारण में आई रुकावट के लिए हमें खेद है। इस पर जब एक से न रहा गया तो बोल ही पड़ा- जा जा माफ कीन्हा, अब आपन ट्रांजिस्टर तो पटकब ना। सामने आय के माफी मंगते तो समझ म आवत कि माफी किन तरह की होथि। पहिले तो देतेंव एक हांथ तोरे कनटाप पर फिर य बंड़वा डंडा है न डेढ़ हाथ का जमउतेंव तोरे पोंद पर,मरतेंव दस गिनतेंव एक। तब बतउतेंव कि एका कहा जात है माफी। इसी तरह भारतीय रेल से यात्रा के दौरान भी जब यह सुनना पड़ता है कि फलां ट्रेन की 12 या 13 घंटे देरी से आने की संभावना है यात्रियों को होने वाली असुविधा के लिए खेद है, तो घर से निकल कर रेलवे प्लेटफार्म पर ट्रेन का इंतजार कर रहे आम यात्री के पास भारतीय रेल को माफ करने अलावा और चारा ही क्या है।
माफी मांगना विज्ञान भी है इस बात का ज्वलंत उदाहरण केजरीवाल साहब की माफी से बढ़कर और कहां मिलेगा। आमतौर पर विज्ञान में प्रयोगशाला में किसी प्रयोग को दोहरा कर निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। दिल्ली की प्रयोगशाला में उन्होंने भी अपना प्रयोग दोहराया कि पहले जो मन में आये सो करो जब खूब छीछालेदर होने लगे तब बालक नादान बन कर जनता से माफी मांग लो। अब देखिये आने वाले समय में इस विज्ञान में और क्या क्या तरक्की देखने को मिलती है।
....... अजय
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