इतवार था, दफ्तर जाने की हड़बड़ी से
मुक्त, आलस की हल्की डोज का मजा ले रहा था। पर इस नश्वर संसार के तमाम सुखों की तरह यह सुख भी
क्षण भंगुर साबित हुआ जब एक चिर परिचित खटखटाहट दरवाजे पर हुई। जानता था कि उठ कर
दरवाजा खोलने और बत्तीसी दिखाकर स्वागत करने के अलावा कोई विकल्प है नहीं, इसलिए
आज्ञाकारी बच्चे की तरह दो कुर्सियां ले कर बाहर आया, साथ ही श्रीमती जी से दो चाय
बाहर भिजवाने का विनम्र निवेदन भी कर दिया।
बाहर पर्यावरण प्रेमी महेन्द्र पाल
साहब खड़े थे। आमतौर पर मार्निंग वाक के बाद उनका चेहरा हमेशा खिला खिला रहता था।
आज चिंतित दिख रहे थे। कुर्सी पर बैठते ही उनके मुंह से निकला, टेस्ट में गंगा फेल
हो गई। मैं जानता था उनकी दोनो बेटियां गंगा, सरस्वती हमेशा ही अव्वल आती थीं
पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद में भी। इसलिए मैने सहानुभूति का मल्हम लगाते हुए कहा कोई
बात नहीं पाल साहब कभी कभी ऐसा हो जाता है। हर बार परफारमेंस अच्छी ही हो जरूरी तो
नहीं। हो सकता है अगले टेस्ट में अच्छा करे। हां अगर लगातार प्रदर्शन खराब हो तब
जरूर चिंता की बात है। लेकिन अब इसका भी हल निकल आया है, अपने शहर में भी अच्छे
कोचिंग सेन्टर खुल गये हैं, किसी में डाल दीजिए। मैं कुछ और कहता कि पाल जी तैश
में आकर बोले क्या बकवास करते हैं आप भी। मैं बेटी गंगा की बात नहीं कर रहा वह तो
अभी भी अव्वल ही आ रही है, मैं तो अपनी, आपकी बल्की हम सभी की गंगा मइया की बात कर रहा हूं जो अब इतनी प्रदूषित हो चुकी
है कि हाल ही में सात शहरों में गंगा के पानी के लिए गये सभी नमूने जांच में फेल
पाए गए। कहीं पर भी गंगा का पानी न पीने लायक है, न नहाने लायक और ना ही खेती में
इस्तेमाल के लायक रह गया है। बताइये सौ मिली ग्राम पानी में कहीं कहीं तो एक लाख
से अधिक बैक्टीरिया मिले हैं, मोक्षदायिनी गंगा अब रोगदायिनी बन कर रह गई है। पहले
यही गंगाजल सालोंसाल रखने पर भी स्वच्छ रहता था, मजाल था कि उसमें कीड़े पड़ जांय।
गंगा मइया की इन्ही खूबियों के कारण उन्हें पूजनीय माना गया।
मेरे पास सिवाय पाल जी का लंबा
लेक्चर सिर झुका कर सुनने के अलावा कोई चारा न था क्योंकी चूक तो मुझसे हो ही गई
थी। अचानक मेरी नजर निगम जी पर पड़ी जो नजदीक ही खड़े होकर मंद मंद मुस्करा रहे
थे, पता नहीं वे कितनी देर से चर्चा सुन रहे थे। मैं अंदर से एक कुर्सी और ले आया।
आज तो निगम जी मेरे लिए संकटमोचन बनकर आए थे। कुर्सी पर आसीन होते ही बोले वाह पाल
जी कैसी बातें कर रहे हैं आप भी। टेस्ट में गंगा फेल नहीं हुई, फेल तो हुए हैं हम
और आप, फेल हुई हैं सरकारें, फेल हुआ है यह सिस्टम, फेल हुआ है विकास का यह आयातित
माडल जिसे तमाम नुकसान के बावजूद छाती से चिपकाये हुए हैं। अब तक कितनी बड़ी बड़ी
कार्य योजनाएं बनीं, कितना धन झोंका गया गंगा सफाई अभियानों पर, लेकिन परिणाम क्या
निकला सिफर। गंगा की सफाई पूरे सिस्टम की सफाई से जुड़ी हुई है। गोद में बेटी को
लेकर सेल्फी खींचना और फेसबुक पर पोस्ट करना आसान है लोग धड़ाधड़ ऐसा करने लगे लेकिन
घर की महिलाओं को बराबरी का अधिकार देना, निर्णय लेने में उनकी भागीदारी सुनिश्चित
करना कठिन होता है, इसके लिए लोग उतावलापन नहीं दिखाते वरना महिलाओं के प्रति होने
वाली हिंसा गुलामी प्रथा, सती प्रथा की तरह इतिहास की बात होती।
इतना कह कर निगम जी तो चले गये लेकिन
हम सभी के लिए बड़ी चुनौती छोड़ गये। अब कहने के लिए कुछ शेष न था अतएव पाल जी ने
भी विदा ली।
--- अजय
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