Tuesday, July 7, 2015

सामयिक दोहे--- आम

माझम बारिश हो रही हो और सामने आम हों तो क्या कहने। सर्वसुलभ होने के कारण ही इसका ऩाम आम पड़ा होगा। मौसम आते ही अलग अलग स्वाद, रंग, रूप वाले आम गली चौराहों पर ठेलों, दूकानों पर सज जाते हैं। इसी संदर्भ में हैं ये पंक्तियां

पीले पीले रस भरे ललचाते हैं आम
कुदरत के उपहार को लाखों लाख सलाम

लंगड़ा दशहरी केसर जाने कितने नाम
रूप रंग और स्वाद में जुदा ये पर हैं आम

कैसे भूलूं खाए जो अमराई में आम
ना अब वो अमराइयां ना दिखते वे आम

भरी दुपहरी लू चले पेड़ से टपकें आम
दौड़ दौड़ सीकल बिनें कौन करे आराम

शब्दों में करना कठिन आमों का गुंणगान
गूंगा गुड़ के स्वाद का जैसे करे बखान

Bhonpooo.blogspot.in

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