हमारे लिए ही क्यूँ ?
हर ज़ोर आज़माइश दिखाते हमहीं पे क्यूँ
दुनियां की हर नसीहतें देते हमहीं को क्यूँ
हर ख़ौफ़ के साये में क्यूँ जीना पड़े हमें
रिवाज़ों की बेड़ियों में गया जकड़ा हमें क्यूँ
चुप्पी के सारे ताले हमारे लबों पे क्यूँ
शर्मों हया के परदे हमारे लिए ही क्यूँ
सुर्खाब के पर ऐसे लगे तुममें क्या जनाब
आज़ादियों का जश्न तुम्हारे लिए ही क्यूँ ?
भावना की कलम से
http://dilkeekalamse.blogspot.in/
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