Wednesday, June 30, 2010

इस दिल में जो है उसे खबर ही नहीं

इस दिल में जो है उसे खबर ही नहीं
और अपना उसके बिन गुज़र बसर ही नहीं
बेशक ज़िन्दगी तू खाबों सी खूबसूरत हो
पर उसके बिन हम भी तेरे रहगुज़र ही नहीं

भावना के
"दिल की कलम से "

Friday, June 25, 2010

उसे आज भी अपनी नादिया का इंतज़ार है

लुडदू मोहम्मद को आज भी नादिया का इंतज़ार है । उसकी नज़रें ट्रैफिक सिग्नल पे आज भी उसे तलाशती हैं। उस ट्रैफिक सिग्नल से उसका बहुत पुराना नाता है उस सिग्नल ने उसे बहुत कुछ - दिया चूल्हा जलने की उम्मीद और साथ ही उस चूल्हे को जलाए रखने वाली भी। यहीं तो मिली थी नादिया उसे। शादी को अभी साल भर भी ना बीते थे की उसकी ख़ुशी को ग्रहण लग गया। नादिया उसे छोड़ के चली गयी क्यूंकि दिन ब दिन उसका चेहरा ना जाने क्यूँ विकृत होता जा रहा था। ऐसा लगता था ना जाने कितनी मधुमखियों का छत्ता होगा उसका मुंह अब अंदाजा लगा लो की चेहरा कितना सूजा होगा और वो कैसा दिखता होगा? पर कहते हैं न उम्मीद पे दुनिया टिकी है। लुडदू मोहम्मद ने अब तक उम्मीद का दामन थामे रखा है, वो ज़िन्दगी से निराश नहीं हुआ। रोज़ आईने में अपने चेहरे को देखता है और इस उम्मीद के साथ उसी सिग्नल पे भीख मांगने निकल पड़ता है जिस सिग्नल पे नादिया उसे मिली थी। वो कहता है की मैं पैसे बचा रहा हूँ ताकि एक दिन अपना इलाज करा सकूं। मुझे विश्वास है की जब मैं ठीक हो जाऊँगा तो मेरे नादिया भी मेरे पास लौट आएगी। उसकी आँखों में आंसू नहीं उम्मीद की किरण दिखाई देती है। लुडदू मोहम्मद पकिस्तान के रहने वाले हैं। इनकी कहानी को डिस्कवरी के - माई शौकिंग स्टोरीज़ में देखने के बाद बड़ी देर तक मैं यही सोचती रही की हम प्यार के कितने ही बड़े वादे क्यूँ न करते रहे पर अगर हमारा हमसफ़र लड्डू जैसा विकृत हो जाए तो हमें से कितने लोग उसका साथ देंगे, शायद नादिया की तरह हम भी उसे छोड़ के आगे बढ़ जायेंगे। हम प्यार को आत्मा का मिलन कहते हैं तो फिर शरीर से इतना मोह क्यूँ और क्यूँ शरीर की खातिर आत्मा को तकलीफ देते हैं ? क्या प्यार सिर्फ बड़ी बड़ी हवाई बातें करने का ही नाम है? जब प्यार दो दिलों का मेल है तो फिर नादिया लुडदू को छोड़ के क्यूँ चली गयी। उसका सिर्फ चेहरा ही तो विकृत हुआ था न दिल तो वैसा ही था। हमें फक्र होना चाहिए लुडदू मोहमाद जैसे लोगों पर जो शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद भी मानसिक रूप से बहुत मज़बूत हैं। हमें भी ऐसे लोगों पे तरस खाने की जगह उनकी हर संभव मदद करने की कोशिश करनी चाहिए।
साभार डिस्कवरी - माई शौकिंग स्टोरीज़
भावना के
"दिल की कलम से "

Thursday, June 24, 2010

आईना हैं तेरी आँखें

आईना हैं तेरी आँखें, सब खुद बयाँ कर देती हैं
तू लाख छुपा कुछ मुझसे, ये तो सच कह देती हैं
दिल का दर्द बता देती हैं, खुशियाँ भी छलका देती हैं
तेरी आँखें आंसुओं से भी तस्वीर बना देती हैं

भावना के
"दिल की कलम से"

Wednesday, June 23, 2010

क्या से क्या हो गयी मोहब्बत

कहीं सुना था -
"कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता"
सुना तो ये भी है -
लेके मजबूरी का सहारा
कर लो धीरे से किनारा
अब कहाँ हीर कहाँ राँझा है
मोहब्बत का उलझा सा मांझा है
प्यार करने वाले अब मरते नहीं
एक दिल में जियादा ठहरते नहीं
प्यार है एक खेल , हम तुम खिलाड़ी हैं
जो मारा नहीं दाव तो समझो अनाडी हैं

भावना के
" दिल की कलम से "

दुनिया को बदलते देखा है

वक़्त के साथ दुनिया को बदलते देखा है
मौका आने पे अच्छे अच्छों को पलटते देखा है
किये वादों से अपनों को मुकरते देखा है
हमराही को हमने अपनी राह बदलते देखा है

Tuesday, June 22, 2010

जिसकी खातिर

जिसकी खातिर हम ये सारी दुनिया छोड़ के आये हैं
उन्होंने ही अब मुह मोड़ा है हमसे हुए पराये हैं

क्यूँ देखती हैं आँखें वो सपना

क्यूँ देखती हैं आँखें वो सपना
जिसे कभी नहीं होना अपना
क्यूँ कांच की तरह टूट जाते हैं खाब
दो ना इसका जवाब
क्यूँ आ जाते हैं अश्क बिन बुलाये
अरे कोई तो हमें समझाए
क्यूँ कोई एक आस पे जिंदा रहता है
उस उम्मीद की खातिर दर्द वो सारे सहता है
मेरे भीतर है इस क्यूँ की टीस
जवाब मिले तो मुझे भी देना प्लीज़

भावना

दिल से तो मिल

हस्ते हुए चेहरे रोते हुए दिल
गाहे-बगाहे ही सही दिल से तो मिल
जानता है तू भी
झूट छुपाये नहीं छुपता
सच दबाये नहीं दबता
कमबख्त आईना होता है दिल

तारीफों के पुल तो बांध लेता है हर कोई
जगाये वो प्रतिभा जो तेरे भीतर है सोई
झूठी वाह वाही तो जायेगी बहुत मिल
गाहे बगाहे ही सही दिल से तो मिल

भावना

तुमसा ही सताती है

तुम आओ न आओ वो तो आ ही जाती है
तुम्हारी याद क़सम से तुम सा ही सताती है

ऐसा है मेरा हमराज़

सरे बाज़ार मेरे सारे राज़ खोल रहा हिया
उसे गुमान है फिर भी मेरे हमराज़ होने का

वक़्त हमें ना आजमा

ए वक़्त हमें न आजमा
हवा नहीं
जो रुख बदल लेंगे हम
पीछे क्या देखता है
बाजू देख
तेरे साथ चल रहे हैं हम


भावना

आईना क्यूँ देखूं

आईना क्यूँ देखूं जब तेरी आँखों में खुद को देखती हूँ
तेरे साथ बिठाये लम्हों को बड़े प्यार से सहेजती हूँ
अब न किसी रास्ते किसी मंजिल की तलाश है
अब तो बस मैं राह तेरी देखती हूँ

उसके बिन चुप चुप सा रहना अच्छा लगता है

उसके बिन चुप चुप सा रहना अच्छा लगता है
आने के दिन उसके गिनना अच्छा लगता है

दूर रहे तो प्यार से बातें, पास रहे तो रहो मनाते
बच्चों का सा उसका मचलना अच्छा लगता है

रात रात भर फ़ोन पे बातें, सपनो में उससे मुलाकातें
उसकी याद में खुद को भुलाना अच्छा लगता है

खफा अगर जो वो हो जाए, मेरी तो साँसे रुक जाएँ
ऐसे जीने से तो मरना अच्छा लगता है

कोई रंज हो कोई शिकायत कह देना मुझसे चुप चाप
मुझपे लोगों का हँसना क्या अच्छा लगता है ?