Monday, December 29, 2014

एक थी सिंगरौली-15
दरअसल रिहंद बांध की स्थिति गरीब की लुगाई जैसी हो कर रह गई है कि हर कोई उसके साथ मनमानी करता है,जैसा जी चाहता है इस्तेमाल करता है इस मानसिकता के साथ कि बेकार ही तो पड़ा है,जिस तरह से जितना भी इस्तेमाल किया जा सके उतना ही सही।यही वजह रही है कि रिहंद के सभी गुनहगार,खास कर बड़े-एनटीपीसी,एनसीएल,हि्डालको,कनोड़िया केमिकल एक दूसरे पर रिहंद जलाशय को प्रदूषित करने का आरोप लगाकर अपनी जवाबदेही से बचते रहे हैं।यही कारण है कि रिहंद के प्रदूषण की रोकथाम  के लिये एक साझा कार्यक्रम बनाकर सहयोग करने से अब तक ये सभी कतराते रहे हैं।सिंगरौली क्षेत्र का दो अलग अलग राज्यों (उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश)में बंटा होना भी समस्या को अौर भी बढ़ाता है। चर्चा तो बहुत होती रही पूरे क्षेत्र को एक ही प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत लाने की परन्तु राजनीतिक कारणों से यह मामला अब तक खटाई में ही पड़ा  रहा।इसी प्रकार से इस इलाके में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये रिहंद जलाशय को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के सुझाव भी आये पर अमल आज तक नहीं हुआ।
           दिल्ली में विश्व बांध आयोग की एक बैठक चल रही थी।चर्चा के दौरान यह बात भी उठी कि कुछ एेसे बांधों की भी केस स्ट्डीज तैयार की जाय जिनका बहुत कमजोर प्रदर्शन रहा हो अौर जिन्हें असफल बांध कहा जा सकता हैजिससे लोगों को यह स्पष्ट हो कि कैसे डैम बिल्डर्स की लाबीइंग के कारण एेसे बांध बनाने के निर्णय लिये जाते हैं जिनसे न केवल देश के संसाधनों की बरबादी होती है बल्कि तमाम लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ता है,पर्यावरणीय क्षति होती है वह अलग।उस बैठक में  मैने रिहंद बांध पर एक छोटा प्रस्तुतीकरण रखा जिसे सुनकर वहां उपस्थित साथियों को आश्चर्य हुआ।बाद में शायद समय कि कमी,संसाधन की कमी या किसी अन्य किसी कारण से इस प्रकार की केस स्टडीज का विचार त्याग दिया गया था अौर रिहंद बांध का पूरा सच दुनिया के सामने आने से रह गया।
            जनपद सोनभद्र अौर जनपद सिंगरौली अपने अपने राज्यों (उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश) को प्रति वर्ष बाकी अन्य सभी जनपदों के मुकाबले सबसे अधिक राजस्व उपलब्ध कराते हैं।खदानों आदि से प्राप्त होने वाली रायल्टी की रकम काफी बड़ी होती है।दोनो जनपदों के स्थानीय निकायों की गिद्ध दृष्टि हमेशा ही बड़ी बड़ी परियोजना्अों (एनटीपीसी,एनलीएल आदि) से प्राप्त होने वाली आर्थिक सहायता पर ही रहती है जिसका उपयोग नागरिक सुविधाअों,पर्यावरण सुरक्षा आदि के लिये कम ही हो पाता है,ज्यादातर तो दुरूपयोग ही होते दिखता है।यह सही है कि अगर ईमानदारी से इस क्षेत्र से प्राप्त होने वाले राजस्व का छोटा सा भाग भी इस क्षेत्र की दशा सुधारने में खर्च किया गया होता तो रिहंद का पानी जहरीला नहीं होता अौर इस क्षेत्र में गांव के गांव विकलांग नहीं होते ।
                  एक सवाल जेहन में यह भी उठता है कि जो हश्र  रिहंद बांध का हुआ है क्या वही हश्र उन परियोजनाअों का भी तो नहीं होगा जो भेड़चाल से सिंगरौली क्षेत्र में आ रही हैं,कोई लेटेस्ट सुपर क्रिटिकल टेक्नालाजी के नाम पर आ रही हैं तो कोई किसी अौर टेक्नालाजी का राग अलापते हुए।ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते हुए खतरे के कारण कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने की बातें अब हवा हवाइ नहीं रह गईँ।अमेरिका अौर चीन के बीच कार्बन उत्सर्जन में कटौती का एेसा समझौता हो भी चुका है और अब भारत की बारी है। एेसे में कोयला आधारित ऊर्जा के पीछे इस तरह से हांथ धोकर पीछे पड़ना कहां तक उचित है।
       --- अजय
bhonpooo.blogspot.in  

Sunday, December 28, 2014

यह रचना कई वर्ष पुरानी है,जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी ने सिंगरौली को सिंगापुर बना देने की घोषणा की थी।नेहरू जी ने भी रिहंद बांध के शिलान्यास के समय कहा था कि यह क्षेत्र स्विटजरलैन्ड बनेगा।अभी तक तो एेसा कुछ नहीं हो पाया लेकिन सिंगरौली प्रदूषण के मामले में जरूर नंबर वन हो गया है।इसी संदर्भ में प्रस्तुत है
अवधी रचना----
सिंगरौली से सिंगापुर
होई सिंगरौली सिंगापुर अब देखौ खेल नसीबों का
बिना टिकट घर बइठे बइठे लेव मजा सिंगापुर का

बहुत होइ गवा रोना धोना का है बीती बातन मा
कहां पहुंचिहौ य तो सोचौ घूमौ राजा ख्वाबन मा

बड़ी सोच का जादू देखौ नहीं खेल य बच्चन का
सांय सांय अब उड़ौ कार मा लेव मजा सिंगापुर का

ब्लास्टिंग से दरकी दीवारें छत देखौ न फिर फिर के
सूखे नलके हैंडपम्प सब अोट करो इन नजरों से

बहै देव गंदी नाली अौ रहै देव ढ़ेर कचरों का
काकू बस तुम करौ तैयारी लेव मजा सिंगापुर का

राख धुंआ अौ धूल देखके जी न करौ आपन छोटा
काम आय गा देश के हित म रहा तो य सिक्का खोटा

घी के दिया जलाअो घर घर चमका तारा किस्मत का
चिल्का डांड म टांग पसारे लेव मजा सिंगापुर का

हुआ प्रदूषित डैम तो का कुछ कीमत तो देइन क परी
छुइहौ जो विकास की चोटी दिक्कत कुछ तो होबै करी

आएव न बहकाये म कउनो के राखेव मन पक्का
नाव नेवरिया डैम म खेलौ मजा लेव सिंगापुर का
bhonpooo.blogspot.in


Friday, December 26, 2014

आज कल धर्मांतरण पर बहुत हो हल्ला मचा हुआ है,लगता है देश का सबसे बड़ा मुद्दा यही बन गया है अौर देश के हर मर्ज की दवा यही है।तो लीजिये प्रस्तुत है
अवधी रचना---
धर्मांतरण----
बदले से धरम का का होई
बतलाय देव हमका कोई
          चच्चा समझाय देव हमका
           तनी भेद बताय देव हमका
           रहमान से बनके रामानंद
           का बदल देब हम दुनिया का।
का चैन की बंशी बजी सदा
का भेदभाव फिर ना होई
बदले से धरम का का होई
बतलाय देव हमका कोई
             का घूंस न लागी आफिस मा
              गुंडई न होई गांवन मा
              महिलाअों के संग छेड़छाड़
              खुलेआम न होई सड़कन मा
का जल्दी कोर्ट से न्याय मिली
सुनवाई गरिबवन की होई
बदले से धरम का का  होई
बतलाय देव हमका कोई
              का जात पांत अब मिट जाई
                का भूख कुपोषण मिट पाई
              कालाबाजारी लूटपाट से
               मुक्ती का अब मिल पाई
जब एतनौ ना बदली समाज
तो धरमै बदले का होई
बतलाय देव हमका कोई
बदले से धरम का का होई
bhonpooo.blogspot.in

Friday, December 19, 2014

पेशावर में स्कूली बच्चों पर आतंकियों द्वारा किये गये वहशियाना हमले पर

जाते जाते दे गया घाव बड़ा यह साल
मासूमों के खून से पेशावर हुआ लाल

यह कैसा बदला लिया बच्चों को यूं मार
दहशतगर्दी कभी भी होगी ना स्वीकार

कीमत बड़ी चुका रहा अब तो पाकिस्तान
दहशतगर्दी झेलता आया हिन्दुस्तान
bhonpooo.blogspot.in

Tuesday, December 16, 2014

बचपन पर चंद दोहे---

बचपन के संग ही गया बयपन का वो प्यार
बड़े हुए तो मिल रही डांट डपट फटकार

पल पल होती थी सदा खुशियों की बरसात
खुशियों को हैं दे रही चिंतायें अब मात

यादें बचपन की अभी भी हैं मेरे साथ
ले जाती उस दौर में पकड़े मेरा हाथ

अक्सर याद आता मुझे अपना बिछड़ा गांव
बारिश में जब छोड़ते थे कागज की नाव

बदल गया मेरी तरह अब बचपन का गांव
जाता हूं अजनबी सा आता उल्टे पांव
bhonpooo.blogspot.in

Monday, December 15, 2014

अवधी  रचना
बिकाऊ वोट
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
लिख के कागद म धरे जाव
जब जितिहौ तब तुम करिहौ का
         मीडिया क साधेव तुम अच्छा
          पहिराय दिहेव सब का कच्छा
           वादा तुमहू तो किहेव खूब
            जनता देई तुमका सिच्छा
अब लफ्फाजी न काम करी
न लटका झटका पहिले का
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
                 अब जून जमाना बदल गवा
                  होइगा है सब कुछ नवा नवा
                   मैगी अौ कोलगेट शैम्पू
                    गांवन गांवन म पहुंच गवा
अब उल्लू न बनिहैं हरखू
जुग आवा है इंटरनेट का
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
                        केतनौ करिहौ न छिपा रही
                         पानी क हगा उतराय परी
                          हौ ठाढ़ कांच के घर म तुम
                           हरकत हर एक देखाय रही
अब चली न कउनो हथकंडा
अब मूड़ न पइ हौ जनता का
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
bhonpooo.blogspot.in

Sunday, December 14, 2014

एक थी सिंगरौली-14
पर्यावरण सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर वर्षों से की जा रही लापरवाही का भयानक परिणाम भी सामने  आया है।न केवल रिहंद जलाशय का जल प्रदूषित हुआ है बल्कि आस पास के तमाम गांवों का पानी भी जहरीला हो गया है।गांवों में कुअों के पानी में फ्लोराइड की काफी अधिक मात्रा पाई गई जिसके कारण हड्डियों के रोग से बच्चे,बूढ़े सभी पीड़ित हैं।इतना ही नहीं बल्कि पानी में मरकरी की घातक मात्रा पाई गई ।नब्बे के दशक में ही कराये गये अध्यन में यह तथ्य सामने आया था कि रिहंद के पानी में मरकरी की उपस्थिति सामान्य स्तर से काफी ज्यादा है।इसीलिये रिहंद जलाशय की मछलियों  न खाने की सलाह भी दी गई थी।लेकिन हर तरह की चेतावनियों की अनदेखी ही की गई।अधिक से अधिक उत्पादन करने की धु्न में पर्यावरणीय अौर सामाजिक सरोकारों को हमेशा ताक पर रक्खा गया जिसका नतीजा सामने है।
         सिंगरौली क्षेत्र(उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश)के गावों में प्रदूषित पानी के चलते होनेवाली विकलांगता के मुद्दे को मीड़िया,खासकर प्रिट मीड़िया तो वर्षों से बारबार उठाता आ रहा है,इलेक्ट्रानिक मीड़िया ने भी इस मुद्दे पर फोकस किया है।संसद में भी इस पर चर्चा हुई क्योंकी यह कोई छोटी मोटी फौरी समस्या नहीं है।दर्जनों गांवों में बच्चे बूढ़े विकलांगता के शिकार हुए हैें।स्थिति तो यहां तक पहुंच गई है की इन गांवों में दूसरे गांवों के  लोग शादी संबंध करने से कतराते हैं।स्थानीय डाक्टरों का कहना है कि इसका इलाज दवा से नहीं हो सकता क्योंकी पानी ही प्रदूषित है।इन गांवों के लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे अब अपना गांव,यह इलाका छोड़ कर कहां जांय।इनमें से तमाम गांव एक बार पहले ही रिहंद से उजड़ चुके हैं। किसी तरह से जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर आ रही थी कि यह जानलेवा मुसीबत गले आ पड़ी जिससे छुटकारा पाने की फिलहाल तो कोई उम्मीद नजर नहीं आती।क्या विकास के पीछे लट्ठ लेकर पड़े हमारे योजनाकार कभी सिंगरौली का दर्द महसूस कर पायेंगे।सवाल फिर यह भी उठता है कि यह किसका विकास है अौर कौन इसकी कीमत चुका रहा है।विकास की चर्चा चलने पर लोग झट से यह कह देते हैं कि किसी न किसी को तो इसकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी ही ।अरे भाई, हर बार विकास की कीमत लोक विद्याधरसमाज(किसान,कारीगर,आदिवासी,महिला,छोटा दूकानदार ) ही क्यों चुकाये।एेसा विकास थोपने से पहले क्या कभी कीमत चुकाने वालों की राय भी ली जाती है।
             एक ही भोपाल गैस त्रासदी आंख खोल देने के लिये काफी है।सीधा सा सबक है कि अौद्योगिक विकास के जरिये समाज में खुशहाली लाने का रास्ता कितना जोखिम भरा है।एेसे देशों के लिये तो यह डगर अौर भी कठिन है जहां पर्यावरण कानू्न बहुत कमजोर हैं,उससे भी लचर उनका क्रियान्वयन है।इसके उलट विकसित देशों में न केवल पर्यावरण कानून कड़े हैं,वहां सुुरक्षा के मानक भी ऊंचे हैं,उन पर अमल भी सख्ती से होता है।इसके अलावा नागरिक भी अपेक्षाकृत सतर्क रहते हैं,प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों(डर्टी इंडस्ट्री) को अपने यहां लगने ही नहीं देते। यह भी अनजाने ही नहीं हो रहा है कि प्रदूषण फैलानेवाले उद्योग विकसित देशों से स्थानान्तरित होकर विकासशील देशों में आ रहे हैं,वहां की पुरानी ,बेकार पड़ी टेक्नालाजी आ रही है।नागरिकों के विरोध के चलते यूरोप में कोयला आधारित बिजलीघर लगाना संभव नहीं है लेकिन विकासशील देशों में धड़ाधड़ एेसे बिजलीघर लगाये जा रहे हैं।यही कारण था कि यूनियन कार्बाइड  कारखाना भारत में लगा अौर भीषण लापरवाहियों के चलते इतना बड़ा हादसा हुआ।
               सिंगरौली क्षेत्र की त्रासदी भी भोपाल गैस त्रासदी की तरह ही इस अौद्योगिक सभ्यता की देन है।दोनो ही सुरक्षा मानकों की अनदेखी अौर घोर लापरवाही के कारण हुईं, फर्क बस यही है कि भोपाल त्रासदी अचानक एक रात जहरीली गैस के रिसाव से हुई,आनन फानन में हजारों लोग मरे अौर उससे कई गुना ज्यादा विभिन्न रोगों से पीड़ित हुए।प्रदेश की राजधानी में इतना बड़ा हादसा होने के कारण तुरंत ही मीड़िया,स्वयंसेवी संस्थाओँ के सक्रिय होने से प्रशासन भी हरकत में आया ,जबकी सिंगरौली की त्रासदी धीरे धीरे वर्षों में घटित हुई साथ ही दूर दराज में स्थित होने के कारण काफी समय तक नेशनल मीड़िया  की नजरों से लगभग अोझल ही रहा।इसी वजह से स्थानीय प्रशासन हमेशा कुंभकर्णी नींद में सोता रहा सिवाय बलियरी ब्लास्ट जैसी चंद बड़ी दुर्घटनाअों को छोड़ कर।सिंगरौली क्षेत्र में इससे बड़ी लापरवाही अौर क्या हो सकती है कि कई दशकों से चल रहे अनवरत अौद्योगीकरण के बावजूद कभी भी पूरे इलाके में घर घर जा कर स्वास्थ्य सर्वेक्षण नहीं करवाया गया जबकी सिंगरौली में व्यापक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की मांग स्थानीय जनसंगठन लोकहित समिति सन् 1984 से ही करता रहा जिस पर अगर ध्यान दिया जाता तो समय रहते तमाम लोगों को विकलांगता तथा दूसरे घातक रोगों से बचाया जा सकता था। इसी प्रकार अगर सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन कराया जाता तो रिहंद के पानी को जहरीला होने से बचाया जा सकता था।
           -अजय
bhonpooo.blogspot.in

Friday, December 12, 2014

अवधी रचना-
     बलैक  मनी
जय ब्लैक मनी जय ब्लैक मवी
तुम हौ गुलाब हम नागफनी
चिरकुट के पास कहां रइहौ
तुमका पसंद हैं धनी मनी
जय ब्लैक मनी जय ब्लैक मनी
           हल्ला गुल्ला तो खूब सुना
            लउटी कालाधन देश सुना
            है रकम बहुत भारी भइया
             चमकी किस्मत हां एहू सुना
लइ लीना कर्जा हमहू फिर
अब तो बिगरी हर बात बनी
जय ब्लैक मनी जय ब्लैक मनी
तुम हौ गुलाब हम नाग फनी
                बिन बरसेन बादर निकर गये
                  मुंह बाएन हम तो ठाढ़ रहे
                  बहसा बहसी तो खूब भई
                  दिल के अरमां सब धरेन रहे
अब दिल की चोट कही केसे
हमरी गोहार अब कौन सुनी
जय. ब्लैक मनी जय ब्लैकमनी
तुम हौ गुलाब हम नागफनी           
bhonpooo.blogspot.in

Wednesday, December 10, 2014

भोपाल गैस त्रासदी को 30 वर्ष हो गये,न तो पीड़ितों को अब तक न्याय मिला न ही जिम्मेदार को सजा।अब तो एण्डरसन इस दुनिया से कूच भी कर गया।इसी संदर्भ में पेश हैं चंद दोहे
1
अब तो हम पर हंस रहा एण्डरसन का भूत
सजा न उसको मिली कुछ रह गये धरे सबूत
2
ताकतवर को मिली है सभी तरह की छूट
एण्डरसन आया गया धर छाती पर बूट
3
गैस त्रासदी से सबक यही मिला है खास
कुर्बानी कमजोर की मांगे सदा विकास
4
सोनभद्र का दर्द भी बहरे सुन ना पांय
बड़ी बड़ी परिययोजना बस लगती ही जांय
bhonpooo.blogspot.in

Tuesday, December 9, 2014

एक थी सिंगरौली-- 13
वर्तमान समय में रिहंद बांध का जो उपयोग हो रहा है उसे देख कर समझ में नहीं आता कि हंसा जाये या रोया जाये।दुनिया में शायद ही एेसी कोई दूसरी मिसाल मिलेगी जहां इतने बड़े जलाशय के पानी का इस्तेमाल  सिर्फ कुछ बिजलीघरों की मशीनों को ठंढ़ा करने के लिए किया जाता हो।अब तो जलाशय में पानी का स्तर कम न हो जाय इसकी वजह से बांध की टरबाइनें चालू ही नहीं की जाती हैं इसलिये जल विद्युत बनाई ही नही जाती।अब आइये इसका दुरूपयोग भी देख लिया जाय।इस लिहाज से सबसे पहले नजर जाती है जलाशय के किनारे किनारे बने विशाल राख बांधों पर जिसमें लाखों टन कोयला प्रति दिन जलने पर निकलने वाली राख को इकट्ठा किया जाता है।ताप बिजलीघरों से निकलने वाली राख में पानी मिलाकर बड़े फोर्स से मोटे मोटे लोहे के पाइपों के जरिये राख बांध में बहाया  जाता है।राख बांध में राख सूख जाने पर हवा के साथ उड़े न इसलिये इसमें राख के लेवल से ऊपर हरदम पानी भरा रहना चाहिये।कोयले की राख में तमाम जहरीले तत्व होते हैं।राख बांध का यह बड़ी मात्रा में प्रदूषित पानी रिसाव के जरिये  रिहंद जलाशय में जाता है अौर उसे भी निरंतर प्रदूषित करता रहता है।एनटीपीसी के तीन बिजलीघरों-सिंगरौली सुपर थर्मल पावरस्टेशन शक्तीनगर    विंध्याचल सुपर थर्मल पावर स्टेशन विंध्यनगर,रिहंद सुपर थर्मल पावर स्टेशन बीजपुर तथा उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड के अनपरा सुपर थर्मल पावर स्टेशन,बिड़ला के रेंणू सागर थर्मल पावर स्टेशन के राखबांध रिहंद जलाशय के किनारे ही बने हैं।कई बार राखबांध के टूटने से बहुत बड़ी मात्रा में राख सीधे बह कर रिहंद में जाती है।इसके अलावा चोरी छिपे भी राख रिहंद में बहाई जाती रही है।कुछ वर्ष पूर्व सोनभद्र आई तहलका की टीम ने इस तरह चोरी चोरी रिहंद में राख बहाए जाने की घटना की रिपोर्टिंग की थी।
      रिहंद बांध को प्रदूषित करने की होड़ में एनसीेएल की कोयला खदानें भी किसी से पीछे नहीं हैं।ये बारह कोयला खदानें भी रिहंद के इर्द गिर्द ही हैं  तथा ये सभी खुली खदानें हैं।इन खदानों से निकलने वाला  मलबा(अोवर बर्डेन),कोयले की धूल,वर्कशापों का कचरा एवं कालोनियों का जलमल रिहंद को प्रदूषित करता है।रिहंद के प्रदूषण की कहानी यहीं नहीं खत्म होती है बल्कि ताप बिजलीगरों,कोयला खदानोॆ के साथ साथ हिन्डालको अल्यूमिनियम कारखाना,कनोडिया केमिकल,हाई टेक कार्बन,इंडस्ट्रियल गैसेज जैसे कारखानों का भी रिहंद के पानी को  जहरीला बनाने में बड़ा हाथ है।
       चुर्क अौर डाला की सीमेन्ट फैक्ट्रियां,हिन्डालको,अोबरा बिजलीघर आदि बनने के साथ साथ इस इलाके की आबादी बढ़ने लगी थी।अस्सी के दशक के बाद देश के दूसरे हिस्सों  से रोजी रोटी की तलाश में इधर आने वालों की रफ्तार काफी तेज हो गई।उतनी ही तेजी से नई नई बसाहटें बसीं,पुरानी छोटी बस्तियां बड़े कस्बों में तब्दील हो गईं।अलग अलग परियोजना की अलग अलग कालोनियां,शापिंग काम्प्लेक्स बने।इस बढ़ी हुई आबादी का भी दबाव बढ़ा,छोटे बड़े उद्योग धंधे लगे।इनका कचरा भी बढ़ता गया।
   अब स्थिति यह है कि तमाम छोटे बड़े नाले-बलियरी,सौरा(सूर्या),चटका आदि तथा रेंण की सहायक नदियां-बरन,बिजुल,काचन ,मयार आदि बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं अौर निरंतर अपना जहर रिहंद में डाल रही हैं।यह सब वर्षों से चल रहा है लेकिन सभी अपने अपने में मस्त हैं ,व्यस्त हैं-परियोजना अधिकारी,स्थानीय प्रशासन,प्रदेश सरकार अौर केन्द्र सरकार भी।हां,कागज पर जरूर घोड़े दौड़ाये चाते होंगे,पर्यावरण दिवस,पर्यावरण सप्ताह बहुत धूमधाम से मनाया जाता होगा अगले दिन अखबारों में बड़े बड़े बयान छपते हैं,वृक्षा रोपण करते हुए अधिकारियों की फोटो छपती हैं। बस हो गई  पर्यावरण सुरक्षा।
      - अजय
bhonpooo.blogspot in

Sunday, December 7, 2014

पेंडारी ग्राम(बिलासपुर) के नसबंदी शिविर में हुई 19 महिलाअों का मौत ने परिवार नियोजन कार्यक्रम में बरती जा रही घोर लापरवाही को उजागर कर दिया है जिससे नसबंदी शिविर यातना शिविर बन जाते हैं।इसी पर चंद पंक्तियां पेश हैं
1
प्राइवेट मंहगा बहुत सरकारी बदहाल
शिक्षा स्वास्थ्य मिले उन्हें जो हैं मालामाल
2
महिला अौर गरीब की किसे पड़ी परवाह
पूरा हो बस टारगेट रहती हरदम चाह
3
लापरवाही की नई कायम करें मिसाल
महिला नसबंदी शिविर का है एेसा हाल
bhonpooo.blogspot.in

Saturday, December 6, 2014

एक थी सिंगरौली-12
कहा जाता है रिहंद बांध परियोजना उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत का ड्रीम प्रोजेक्ट था।वह चाहते थे कि पंजाब,हरियाणा की तर्ज पर पूर्वी उत्तर प्रदेश का अौद्योगीकरण हो जिसके लिए जरुरी थी बड़े मात्रा में बिजली अौर यह काम रिहंद बांध के जरिये जल विद्युत पैदा कर किया जाना था।इसीलिए यह बांध पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला में पिपरी नामक स्थान पर सोन की सहायक रेंण नदी पर बनाया गया।आज कल के बांधों की तरह यह बहुउद्देशीय बांध नहीं था।सिंचाई,पेयजल आपूर्ति आदि के लिए न होकर यह सिर्फ बिजली उत्पादन के लिए बनाया गया था।300मेगावाट विद्युत उत्पादन इसका लक्ष्य था।आज तो सिंगरौली में4000मेगावाट अौर 6000मेगावाट की विद्युत उत्पादन क्षमता वाले सुपर थर्मल पावर स्टेशन बन गये हैं लेकिन सन् 1960में 300मेगावाट भी बिजली की बड़ी मात्रा थी।रिहंद बांध से बिजली तो पैदा होने लगी थी किन्तु उस समय तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में अौद्योगीकरण के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट न होने के कारण इस बिजली का कोई उपयोग नहीं था।बाद में नेहरू जी की प्ररणा से उद्योगपती बिड़ला ने इस क्षेत्र में अल्युमिनियम का कारखाना हिंडालको लगाया।हिंडालको को बहुत सस्ती दर पर बिजली दी जाती थी।बाद में यहां पर कोयले की भारी उपलब्धि को देखते हुए हिंडालको के लिए रेणू सागर में ताप बिजलीघर बना लिया गया जिसकी उत्पादन क्षमता में बाद के दिनों में काफी वृद्धि की गई।
अक्सर जल विद्युत की जगह ताप विद्युत को ज्यादा पसंद किया जाता रहा जिसका एक बड़ा कारण तो यह था कि जल विद्युत का उत्पादन वर्ष भर एक सा नहीं होता है। गर्मी के दिनों में बांध में पानी का जलस्तर काफी कम हो जाता है इससे विद्युत उत्पादन प्रभावित होता है जबकी ताप विद्युत के साथ एेसी कोई समस्या नहीं होती,पूरे वर्ष एक सा उत्पादन रहता है हालांकि ताप विद्युत की सबसे बड़ी समस्या इससे पैदा होने वाला भारी प्रदूषण  है।रिहंद बांध से भी बरसात के मौसम को छोड़कर विद्युत उत्पादन क्षमता से कम होता रहा।कोयला खदानों के कारण बड़ुी मात्रा में जंगलों की कटाई से जल्द ही रिहंद के जलाशय में काफी गाद भर गई जिससे इसकी जल ग्रहण क्षमता बहुत कम हो गई है।अब तो विद्युत उत्पादन ठप्प पड़ा है।इतनी बड़ी परियोजना इतनी जल्दी बेकार हो गई,है ना आश्चर्य की बात।
      कहते हैं एक अंग्रेज अफसर जब शिकार खेलते हुए उस जगह पहुंचा जहां रेंण नदी दो ऊंची पहाड़ियों के बीच से होकर बहती है तब पहली बार उसके मन में इस स्थान पर नदी को रोक कर एक सुन्दर झील बनाने का विचार आया था उसने इंग्लैंड में इस तरह की मानव निर्मित झील देखी थी पर यह विचार अंग्रजों के समय तक क्रियान्वित नहीं हुआ शायद उन्हें इस परियोजना में खर्च के मुकाबले लाभ ज्यादा न दिखाई पड़ा हो।जनपद सोनभद्र में ही मुख्यालय राबर्ट्सगंज से कुछ दूर धंधरौल नामक स्थान पर एक छोटी सी नदी घाघर पर अंग्रेजों के समय का छोटा सा बांध बना है।एक साल गर्मियों में विजयगढ़ किले पर होने वाले सालाना उर्स में जाते हुए वह बांध देखने का अवसर मिला था।छोटा सा यह खूबसूरत बांध सन् 1913 में बनाया गया था।इस बांध के आसपास का इलाका समतल जमीन वाला है जिसकी सिंचाई इस बांध से निकाली गई नहर से आज भी हो रही है।अंग्रजों ने इस बांध को सिचाई के उद्देश्य से ही बनाया था ताकि ज्यादा भू राजस्व प्राप्त किया जा सके।देखिये एक अोर है सन्1913का बना छोटा सा धंधरौल बंधा जो आज भी खेतों की प्यास बूझा रहा है दूसरी अोर है विशाल जलराशि वाला रिहंद बांध जो खुद एक समस्या बन गया है पूरे इलाके के लिए।रिहंद का प्रदूषित जल सिंगरौली क्षेत्र के भूगर्भीय जल को प्रदूषित कर रहा है।यह बात तो सन् 1990 में ही एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आ गई थी।
          अजय
bhonpooo.blogspot.in

नेपाल में हो रहे सार्क सम्मेलन में दोनो प्रधानमंत्रियों-भारत,पाक के बीच अनबोला ही रहा,न दुआ न सलाम।इस पर चंद दोहे पेश हैं
1
कभी मिले थे लपक कर अच्छा था आगाज
दूर दूर ही अब रहें देखो नमो नवाज
2
सार्क अखाड़ा बन गया हिन्द पाक के बीच
ठुकरायें प्रस्ताव हर वे तो आंखें मीच
3
हिन्द विरोधी लहर पर रहता पाक सवार
आतंकी को हर मदद देती हर सरकार
4
जनता दोनो अोर की चाहे शान्ति विकास
सरकारों को कभी भी आया ना यह रास
bhonpooo.blogsppot.in

Wednesday, December 3, 2014

जिस तेजी से चमत्कार को नमस्कार का चलन बढ़ा है उसी रफ्तार से बाबाअों की दूकानदारी चटकी है।धर्म की जगह आडम्बर बढ़ रहा है,उसे बेनकाब होना ही है।आसाराम,रामपाल आदि तो कुछ उदाहरण भर हैं।इसी पर पेश हैं चंद दोहे
1
सरल ह्रदय वे संत हैं छल प्रपंच से दूर
प्रेम दया सेवा सदा हो जिनमे भरपूर
2
काम क्रोध मद लोध से रहे जो हरदम चूर
एेसे ढ़ोंगी से सदा रहना प्यारे दूर
3
नेता- बाबा का बना है कैसा गठजोड़
मिलजुल दोनो लूटते लाज शरम सब छोड़
4
हम भी पाना चाहते जल्दी सबकुछ आज
अपनाने से शार्टकट कब आते हैं बाज
bhonpooo.blogspot.in

Monday, December 1, 2014

एक थी सिंगरौली--11
आपने मजमेबाजों को देखा होगा किस तरह वे अपनी लच्छेदार बातों से दर्शकों को प्रभावित कर लेते हैं अौर मंजन,तेल,दवाइयां आदि बेंच कर चले जाते हैं।उनके जाने के बाद या फिर घर पहुंच कर हकीकत से दो चार होने पर पता चलता है कि हम तो ठग लिये गये।यही खेल थोड़ा अौर नफासत के साथ विकास परियोजनाअों में खेला जाता है।विकास परियोजना की प्रोजक्ट रिपोर्ट विशेषज्ञ  लोग तैयार करते हैं।प्रोजेक्ट रिपोर्ट मंजूर कर ली जाय इसके लिये लागत अौर लाभ के अनुपात को दुरुस्त रखने के लिये परियोजना से होने वाले फायदों को बढ़ा चढा कर दिखाया जाता है।एेसे एेसे सब्जबाग दिखाये जाते हैं जो कभी पूरे नहीं होते बल्कि बाद में तो येशेखचिल्लियों के सपने लगते हैं।सुनहरे भविष्य का एेसा खाका खींचा जाता है कि मानो देश की बेहतरी के लिये यह परियोजना बहुत जरुरी है वरना देश विकास की दौड़ में बहुत पीछे हो जायेगा।एक अोर तो परियोजना के फायदे बढ़ा चढ़ा कर गिनाये जाते हैं वहीं दूसरी अोर परियोजना की लागत कम कर के दिखाई जाती है।लागत के मद में कई खर्चों को जोड़ा ही नहीं जाता जबकी वे कीमतें तो किसी को चुकानी ही पड़ती हैं।अक्सर देखने में आता है कि परियोजना में पुनर्वास के मद में काफी किफायत से काम लिया जाता है।इसी प्रकार परियोजनाअों की पर्यावरणीयअौर सामाजिक कीमतें स्थानीय लोगों को ही चुकानी पड़ती हैं।
         गरज यह कि परियोजना को लाभदायक दिखाने के लिये पर्दे के पीछे बहुत सारी कवायदें की जाती हैं।इन सारी कवायदों का एक ही उद्देश्य होता है कि परियोजना मंजूर हो जाय जिससे तमाम लोगों के हित सीधे सीधे जुड़े रहते हैं।इनमें वैश्विक वित्तीय संस्थान जो परियोजना को धन उपलब्धकरातेहैं,बड़ेबड़ेकंसलटेंट,रिसर्च इंस्टीट्यूट,बड़ी कंपनियां जो टेक्नोलाजी अौर मशीनरी उपलब्ध कराती हैं,सभी शामिल हैं।इसीलिए विकास परियोजनाअों की तगड़ी लाबीइंग की जाती है जिनमें देशी अौर विदेशी ताकतों की मिली भगत रहती है।परियोजना की मंजूरी के समय गिनाये गये लाभों की असलियत का पता तो तब लगता है जब ये पूरी होकर काम करने लगती हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।अक्सर देखने में अाता रहा कि ये भारी भरकम परियोजनायें घोषित क्षमता से काफी कम पर कार्य करती हैं,कभी कभी तो 40 प्रतिशत या उससे भी कम।इस खराब प्रदर्शन के लिए भी बाद में सफाई के तमाम तर्क गढ़ लिये  जाते हैं।इस तरह की विकास परियोजनाअों से होने वाली देश के संसाधनों की बरबादी,पर्यावरणीय क्षति,विस्थापन की त्रासदी के लिए आखिर कौन जिम्मेदार होगा क्योंकी परियोजना के निर्माण से जिनको मलाई काटनी थी वे तो मलाई काट कर काम पूरा होते ही बंजारों कीतरह कहीं अौर डेरा डालने चले जाते हैं।
           इस तरह की परियोजनाओं का एक उदाहरण सिंगरौली से ही देना चाहूंगा,वह है रिहंद बांध का जो गोविंद वल्लभ पंत सागर के नाम से भी जाना जाता है।सिंगरौली क्षेत्र के अौद्योगीकरण के इतिहास में रिहंद बांध एक मील के पत्थर की तरह है।सन् 1960 में रिहंद बांध के निर्माण के बाद ही यहां एक के बाद एक परियोजनायें आती गईं।उस समयदेश के लिये यह कितनी महत्वपूर्ण परियोजना थी इसका अंदाजा सिर्फ इस घटना से लगाया जा सकता है जिसे इस इलाके के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता,दुद्धी क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक ग्रामवासी जी ने एक मुलाकात के दौरान सुनाया था।बात उस समय की है जब रिहंद बांध के शिलान्यास के लिये प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु यहां आ रहे थे,उनके साथ कांग्रेस के अौर भी दिग्गज नेता थे।ग्रामवासी जी ने बताया कि मैं पं.कमलापति त्रिपाठी जी के बगल में बैठा था उन्होंने मुझसे कहा अरे ग्रामवासी तुम्हारी तो चांदी ही चांदी है,इतनी बड़ी परियोजना तुम्हारे क्षेत्र में लग रही है,अब तुम्हें कौन हरा सकता है,तुम्हारी सीट तो अजर अमर हो गई।पं.नेहरु जी इस इलाके के प्राकृतिक सौंदर्य से इतने प्रभावित हुए थे कि शिलान्यास के अवसर पर भाषण में उन्होंने कहा था कि आगे चलकर यह स्विटजरलैंड बनेगा।उस दौर में एेसी परियोजना के विरोध के बारे में कोई सोच भी कैसे सकता था।
         राजस्व कर्मचारियों द्वारा मुआवजा निर्धारण,वितरण,पुनर्वास-व्यवस्था आदि में की जा रही धांधलियों को लेकर लोगों में काफी असंतोष था जिसने बाद में आंदोलन का रुप भी लिया।सिंगरौली क्षेत्र(म.प्र.)के भूतपूर्व विधायक अौर समाजवादी नेता पं,श्याम कार्तिक जी ने बताया कि उस दौरान डा. राममनोहर लोहिया मिर्जापुर आये हुए थे,उन्हें जब इस बाबत जानकारी मिली तो वे यहां आये अौर आंदोलन का नेतृत्व किया।पर वह दौर पं. नेहरु का था,रिहंद का विरोध नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गया।
bhonpooo.blogspot.in

भले ही हमने विज्ञान के क्षेत्र में सफल मंगल अभियान द्वारा सफलता के झंडे गाड़ दिये हों पर समाज विज्ञान के क्षेत्र में अभी भी बहुत पीछे हैं,छुआछूत का कलंक अभी भी माथे पर लगा है।हाल ही में हुए एक राष्ट्रीय अध्ययन ने आइना दिखाया है।इसी संदर्भ में कुछ पंक्तियां प्रस्तुत हैं
1
छुआछूत  की अभी भी है बाकी दीवार
मुंह में कुछ मन अौर कुछ गहरी बहुत दरार
2
कहते छाती ठोंक कर हम हैं सभ्य समाज
छुआछूत का दाग फिक क्यों माथे पर आज
3
फैशन अपनाया मगर बदले नहीं विचार
लाख छिपाये ना छिपे अंदर भरा विकार
4
छुआछूत अपराध है संविधान रहा टेर
अब भी जिंदा यह प्रथा हुई बहुत ही देर
bhonpooo.blogspot.in

Thursday, November 13, 2014

बरसों पहले सिंगरौली में छोटे छोटे होटलों,चाय की दूकानों में काम करते 8-10 साल के बच्चों को देखकर ये चंद लाइनें लिखी थी लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं,कहने को बाल श्रम के खिलाफ कानून तो हैं।
       
          बाल श्रलिक 
आजादी का दिवस आज पर
हम कितने लाचार हैं
मांज रहे होटल में बरतन
सहते अत्याचार हैं
देखो चाचा नेहरु अपने
ख्वाबों की ताबीर को
खून टपकता उंगली से
बुनते बुनते कालीन को
बाप बना बंधुआ भट्ठे पर
मां घर में बीमार है
     मांज रहे होटल में बरतन
       सहते अत्याचार हैं
दाग दिया मालिक ने चिमटे से
चुनुआ की पीठ को
आंखों में आंसू फिर भी हंसता है
देखो ढ़ीठ को
किसे दिखायें किसे सुनायें
मन में भरा गुबार है
       मांज रहे होटल में बरतन
        सहते अत्याचार है
bhonpooo.blogspot.in

Monday, November 10, 2014

इस समय दामाद कथायें सुर्खियों में है।एक दामाद जमीन घोटाले के कारण तो दूसरे दामाद जी अपने मुख्यमंत्री ससुर के पीए बनने के कारण खबरों में रहे।इसी संदर्भ में प्रस्तुत है कविता
        दामाद जी
हाथी घोड़ा पालकी
जय बोलो दामाद की
   चारागाह देश जब सारा
    चिंता फिर किस बात की
जिधर नजर फिर जाय तुम्हारी
दौड़ पड़ा अमला सरकारी
दिन को रात आम को इमली
      कहते सुर में आपकी
       जय बोलो दामाद की
रहे सभी कानून से ऊपर
किया बंदगी सबने झुक कर
पद से दूर रहे फिरभी थी
        धाक तुम्हारे नाम की
         जय बोलो दामाद की
सत्ता का सुख खूब है लूटा
बिल्ली के भागों छींका टूटा
किसमें दम रोके टोके जो
            मनमानी श्रीमान की
             जय बोलो दामाद की
समय रहा कब सदा एक सा
समय बदलते सब कुछ बदला
घिरी घटायें चली हवायें
         तूफानी रफ्तार की
         जय बोलो दामाद की
bhonpooo.blogspot.in

Saturday, November 8, 2014

वाह वाह क्या बात है,पहले थर्ड फ्रंट का राग अलापते थे अब वही महामोर्चा का जाप कर रहे हैं।इसी पर चंद दोहे पेश हैं
1
टूट टूट कर फिर जुड़ें जुड़ते ही छितरांय
पता नहीं अागे अभी कितनी ठोकर खांय
2
थर्ड फ्रंटकी रागनी जब ना आई काम
महामोर्चा जाप से वे चाहें परिणाम
3
महामोर्चा के लिये लगता महा प्रयास
जनता कब से देखती बदला ना कुछ खास
bhonpooo.blogspot.in 
एक थी सिंगरौली(भाग-10)
इस तरह हम पाते हैं कि सिंगरौली की ही तरह दुनिया के दूसरे भागों से भी विश्वबैंक समर्थित परियोजनाअों का विरोध अस्सी के दशक के उत्तरार्ध अौर नब्बे के दशक के शुरुआत से ही होने लगा था जिसे अब अौर नजर
अंदाज करना विश्व बैंक के लिए मुश्किल होता जा रहा था क्योंकी विश्व बैंक विरोधियों ने इसके  खिलाफ जोर शोर से अभियान छेड़ रक्खा था। दुनिया  के सामने अपनी अच्छी छवि बनाये रखने अौर आलोचनाअों का मुंह बंद करनेके लियेविश्वबैंक ने कुछ परियोजनाअों में जाांच दल भेजा अौर उनकी सिफारिशों के आधार पर उन परियोजनाअों की आर्थिक मदद से पीछे हटा।भारत में इस तरह का उदाहरण सरदार सरोवर परियोजना थी जिससे मोर्स कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद विश्व बैंक ने हाथ खीचे।
   विश्व बैंक समर्थित परियोजनाअों से आने वाली शिकायतों की जांच के लिए विश्व बैंक की अोर से बाद में एक इंस्पेक्शन पैनेल का ही गठन कर दिया गया।लेकिन यह पैनेल स्वतंत्र न होकर विश्व बैंक के आधीन था अौर इसे शिकायत की जांच कर विश्व बैंक को ही अपने निष्कर्ष,सुझाव देने थे।वास्तव में तो यह एक सेफ्टी वाल्व भर था।फिर भी इसे एक सकारात्मक कदम माना जा रहा था।एक राय यह बन रही थी कि इसे भी आजमाया जाना चाहिए।
    सिंगरौली स्थित,विश्वबैंक द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त एनटीपीसी के रिहंदनगर बिजलीघर के विस्थापित परिवारों की अोर से सामाजिक कार्यकर्ता मधु कोहली ने वाशिंगटन स्थित इस इंश्पेक्शन पैनेल में याचिका दायर की।इसके पूर्व बैंक के अधिकारियों से इन विस्थापितों की समस्याअों को लेकर कई बार वार्तायें हुईं,काफी लिखा पढ़ी की गई पर कोई नतीजा न निकलते देखकर पैनेल का दरवाजा खटखटाया गया था।
प्रारम्भिक जांच में पैनेल ने पाया कि बैंक की गाइड लाइन के उल्लंघन का प्रथम दृष्टया मामला बनता है।पैनेल ने अपनी रिपोर्ट में भारत जाकर विस्तार से मामले की जांच किये जाने की सिफारिश की।विश्व बैंक की सबसे ताकतवर संस्था बोर्ड आफ डायरेक्टर ने पैनेल की भारत जाकर जांच करने की सिफारिश को नामंजूर करते हुए वाशिंगटन में रह कर विश्व बैंक कार्यालय में उपलब्ध दस्तावेजों के अधार पर जांच करने को कहा।मजेदार बात तो यह हुई कि इस सीमित जांच में भी पैनेल ने विश्वबैंक को अपने ही बनाये गये गये नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया।
 विश्वबैंक के लिये यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति थी।अमेरिका के एक प्रमुख अखबार ने चुटकी लेते हुए लिखा था कि-वर्ड बैंक अक्यूजेज इटसेल्फ ।अब यहां से शुरू होता है ड्रामे का दूसरा पार्ट।इस छीछालेदर से बचने के लिये बैंक अधिकारियों को बहुत पापड़ बेलने पड़े जिसकी अलग ही लम्बी दास्तान है।संक्षेप में बैंक के बोर्ड आफ डायरेक्टर ने सिंगरौली में पुनर्वास की समस्या की बात को स्वीकार किया अौरआनन फानन में समस्या के निराकरण के लिये एक एेक्शन प्लान बनाने की घोषणा की डाली। यह सब कुछ एकतरफा मामला था यानी विश्व बैंक की मनमानी क्योंकी एक्शन प्लान बनाने में न तो इंस्पेक्शन पैनेल जिसने पूरे मामले की जांच पड़ताल की थी उसे शामिल किया गया अौर ना ही शिकायत कर्ता विस्थापितों या उनके प्रतिनिधियों को ही।
इस तरह यह डैमेज कंट्रोल की एक चाल भर थी इससे अधिक कुछ नहीं।
     इसी एक्शन प्लान के अंतर्गत सिंगरौली स्थित एनटीपीसी के बिजलीघों के लिये स्वतंत्र मानीटरिंग पैनेल का गठन किया गया था।इस पैनेल के भी हाथ पहले ही बांध दिये गये थे क्योंकी यह भी कोई निर्णय नहीं ले सकता था सिर्फ एनटीपीसी ,विश्वबैंक के समक्ष अपनी सिफारिशें रख सकता था निर्णय तो विश्वबैंक का ही चलना था।एनटीपीसी ने स्वतंत्र मानीटरिंग पैनेल की राय-एक ही परियोजना के विस्थापितों को स्टेज1 अौर स्टेज2 में विभाजन कृत्रिम व असंवैधानिक है तथा सभी विस्थापितों को एक सा पैकेज दिया जाना चाहिये,का विरोध किया।इसीलिये स्वतंत्र मानीटरिंह पैनेल ने बाद में पहले के विस्थापतों(स्टेज1) के संबंध में अपनी रिपोर्ट सीधे भारत सरकार को दी थी जिससे उनके साथ न्याय हो सके लेकिन दुखद सत्य यही है कि वह रिपोर्ट आज भी सरकार के पास धूल खा रही है।
       - अजय
bhonpooo.blogspot.in

Thursday, November 6, 2014

लीजिये साहब सेंसेक्स अट्ठाइस हजार पार कर गया।इस उछाल पर लोग खुश हैं,अगर सेंसेक्स लुढ़कता है तो हाय तौबा मच जाती है।इसी पर चंद दोहे पेश हैं
1
मत खुश हो मन देख कर यह सेंसेक्स उछाल
बीमारी से भूख की जूझें अब भी लाल
2
अौसत समृद्धी दिखा खुश होते हैं आप
सच पर पर्दा डालने का करते हैं पाप
3
खांई गैर बराबरी की बढ़ती ही जाय
देश तरक्की कर रहा वे रट रहे लगाय
bhonpooo.blogspot.in

Monday, November 3, 2014

एक थी सिंगरौली(भाग-9)
अब लगे हाथ यह भी जान लें कि सिंगरौली को लेकर वाशिंगटन में क्यों अौर कैसे इतना हो हल्ला मचा कि बाद में विश्वबैंक की हिन्दुस्तान आने वाली टीमों के लिए तो जैसे चिलकाडांड तीर्थ बन गया था।हुआ यह कि लोकायन-लोकहित की पहल पर सन् 1987 में एनवायर्नमेंट डिफेंस फंड(ईडीएफ) अमेरिका,के सामाजिक कार्यकर्ता ब्रुश रिच ने सिंगरौली की यात्रा की,विस्थापित बस्तियों में गये,वहां की दुर्दशा देखी।सिंगरौली से वापसी के समय ब्रुश रिच विस्थापन अौर पुनर्वास पर चित्रकूट में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में भी शामिल हुए।इस कार्यशाला में गुजरात,झारखंड़,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र आदि से विस्थापित प्रतिनिधियों के अलावा प्रो.रजनी कोठारी प्रो.धीरू भाई सेठ,डा.बी.डी.शर्मा,मेधा पाटकर,डा.वंन्दना शिवा,स्मितु कोठारी,सुरेश शर्मा आदि प्रमुख लोगों ने भाग लिया था। विस्थापन पर लम्बे विचार विमर्श के बाद यह आम राय थी कि देश में विकास के नाम पर बड़ी बड़ी परियोजनाअों अब विस्थापन बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है इसलिए जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए कानून हो।
     वापस जाकर ब्रुश रिच ने सिंगरौली के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट अमेरिकी सीनेट की एक समिति को दी तब जा कर हंगामा हुआ।इस रिपोर्ट से विश्व बैंक विरोधियों को बल मिल गया कि विश्व बैंक की मदद से चलने वाली परियोजनायें स्थानीय लोगों का जीवन कष्टमय बना रहीं हैं,अब बहुत हो चुका इसे बंद किया जाना चाहिये।इतना धमाल मचने के बाद विश्वबैंक की कुंभकर्णी नींद टूटी तब कहीं जाकर विश्वबैंक की टीम पहली बार सन् 1988में, यानी परियोजना शुरू होने के दस सालों बाद सिंगरैाली आई अौर विस्थापित बस्ती चिल्काडांड गई तब सब कुछ अपनी अांखों से देखा।
     दरअसल चिल्काडांड सिंगरौली में विस्थापन की त्रासदी का प्रतीक बन गया।हमेशा विस्थापितों को कूड़ा करकट के ढ़ेर की तरह जहां मन चाहा उठा कर फेंक दिया गया, कोई उनकी सुनने वाला नहीं,न  प्रशासन,न ही परियोजना अधिकारी।जिम्मेदार अधिकारियों की घोर उपेक्षाअौर लापरवाही का जीता जागता उदाहरण रही है यह विस्थापित बस्ती।एनटीपीसी के बिजलीघर से विस्थापित होने से पहले ये सभी लोग रिहंंद बांध से उजाड़े गये थे।जिसेे जहां जगह मिली जंगल झाड़ी साफ कर बस गया।वर्षों कष्ट सहकर जमीनों को खेती लायक बनाया।रिहंद की त्रासदी से अभी उबर भी नहीं पाये थे कि विस्थापन की गाज फिर आ गिरी उन पर।इस बार तो उन्हेंं रेलवे लाइन अौर कोयला खदान के दो पाटों के बीच पिसने के लिए ला पटका गया।
  जह चिल्का डांड की बात उठी है तो यह भी जानना रोचक होगा कि सारांश,मंथन,निशात,अंकुर जैसी सार्थक फील्में देने वाले संवेदनशील प्रसिद्ध निर्देशक श्याम बेनेगल ने सिंगरौली के अपने प्रशंसकों को निराश ही किया जब उन्होंने सिंगरौली अा कर एनटीपीसी के लिए एक फिल्म बनाई थी जिसमें एनटीपीसी की कार्य-संस्कृति की जादुई तस्वीर तो पेश की लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू की जरा सी झलक भी नहीं दिखाई।जिस मोती ढ़ाबा के आस पास वे अ्पनी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे वहीं से कुछ सौ मीटर की ही दूरी पर चिल्काडांड विस्थापित बस्ती थी लेकिन उनके कैमरे ने एक बार भी उधर का रुख ही नही किया।

Friday, October 31, 2014

एक थी सिंगरौली- भाग-8
स्वतंत्र मानीटरिग पैनेल के गठन का किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है।इसे बनाया तो गया था मुसीबत से गला छुड़ाने के लिए लेकिन उल्टे यह विश्वबैंक अौर एनटीपीसी के गले की फांस बन गया था।आइये देखें कि यह पूरा माजरा क्या था।
  वैसे तो ब्रेटनवुड-ट्विन्स के नाम विख्यात इन वैश्विक संस्थाअों-विश्व बैंक अौर आई एम एफ  का जन्म दूसरे विश्व युद्ध से जर्जर यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए हुआ था पर ये यूरोप के बाहर दूसरे देशों को भारी पूंजी आधारित विकास के लिए आर्थिक सहायता देती रही हैं।विश्व बैंक ने ऊर्जा परियोजनाअों-विशोषकर बड़े बांधों, बिजलीघरों,कोयला खदानों के लिए लैटिन अमेरिका,एशिया,अफ्रीका महाद्वीप के देशों में कर्जे दिये। यह भी दिलचस्प बात है कि भारत में विद्युत उत्पादन क्षेत्र की अग्रणी संस्था एनटीपीसी का जन्म भी विश्व बैंक की पहल पर हुआ था।एक समय तो एनटीपीसी विश्वबैंक का इकलौता चहेता संस्थान था जिसे उसने दुनिया में सबसे अधिक आर्थिक सहायता दी थी।
  विश्वबैंक ने कर्ज देने के लिए लम्बी चौड़ी गाइड लाइन्स बना रक्खी है।कर्ज देने के पहले ही संबंधित परियोजना का पर्यावरणीय,सामाजिक आर्थिक आदि कई प्रकार का सर्वेक्षण करवाया जाता है।इन गाइड लाइनों का पालन करते हुए तमाम शर्तों के साथ किस्तों में रिण दिया जाता है।पहली किस्त के साथ ही निगरानी भी शुरू हो जाती है,सबकुछ ठीक ठाक होने पर ही परियोजना को अगली किस्त दी जाती है।यानी गड़बड़ी की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं दिखती,सबकुछ चाक चोबन्द।अगर आप एेसा सोच रहे हैं तो माफ करियेगा आप गल्ती पर हैं।आपने सुना तो होगा ही कि हाथी के दांत खाने के अौर,दिखाने केअौर होते हैं,जी हां,यह कहावत विश्वबैंक पर बिलकुल फिट बैठती है।विश्वबैंक की कलई तब खुली जब सिंगरौली के विस्थापितों की अोर से विश्वबैंक के खिलफ वाशिंगटन में पिटीशन दायर की गई उन्हीं के द्वारा बनाये गये इंस्पेक्शन पैनेल में।है न मजेदार कहानी।बालीवुड फिल्मों की तरह इसमें भी कम ट्विस्ट अौर टर्न नहीं हैं,बस,देकते चलिये।
    आपने देखा होगा जिस तरह दूकानों में लिखा रहता है-एक दाम-उधार मांग कर शर्मिन्दा ना करें आदि पर मोल भाव भी चलता है अौर उधारी भी।कई दूकानों में नीति वचन या संतों के अनमोल वचन के स्टिकर लगे तो रहते हैं पर उनका पालन ना तो खुद कभी दूकानदार करता है अौर ना ही आने वाले ग्रहक से एेसी कोई अपेक्षा रखता है।बस समझ लीजिये एेसा ही कुछ हाल विश्वबैंक का भी हैं।यहां भी रिण मंजूर करने की आपाधापी में बहुत सी बातों की अनदेखी की जाती है। रिण मंजूर होने के बाद फिर भला कौन देखता हैं कि शर्तों का पालन हो रहा है या नहीं।कर्ज देनेवाला भी मस्त अौर लेनेवाला भी क्योंकी पिसना तो स्थानीय लोगों को पड़ता है जिनका विकास के नाम पर सब कुछ छिन जाता है।अब इस बात का अच्छा उदाहरण सिंगरौली बढ़कर अौर कहां मिलेगा।
   सिंगरौली में ए्नटीपीसी का पहला बिजलीघर विश्वबैंक की मदद से शक्तीनगर में लगा।इस बिजलीघर की शुरुआत सन् 1978 में हुई अौर इससे विस्थापित कई गांव के लोगों को चिल्काडांड विस्थापित बस्ती में बसाया गया।इस बस्ती से  एक अोर तो रेलवे लाइन है दूसरी अोर कोयला खदान जिसके कारण यहां रहनेवालों का जीवन नर्क बन गया।अब तक इनके तमाम मवशी रेलवे लाइन से कट कर मर गये।खदान में होने वाली ब्लास्टिंग से घरों में दरारें पड़ गईं।लंबे समय तक बस्ती में बुनियादी नागरिक सुविधाअों का अभाव रहा।विश्वबैंक का जांच दल दिल्ली आकर फाइलों की जांच से संतुष्ट होकर चला जाता था।एक बार  भी सिंगरौली आकर मौके का मुआयना करना उन्होंने कभी भी उचित नहीं समझा जब तक की वाशिंगटन में हल्ला गुल्ला नहीं मचा.

वाह साहब कालेधन पर क्या पैंतरेबाजियां हुईं हैं।इसी पर पेश हैं चंद दोहे
1
ब्लैक मनी पर आपने खूब बजाई बीन
हो हल्ला के बाद ही नाम बताये तीन
2
कालेधन पर मिली जब कड़ी कोर्ट फटकार
अगर मगर तब छोड़कर नरम हुई सरकार
3
पर्दा कब उठ पायेगा यह तो जानें राम
बंद लिफाफे में अभी तो हैं सारे नाम
4
कालाधन कब आयेगा अब भी बड़ा सवाल
कहीं ठोंकते रहें ना बस यों ही सब ताल
bhonpooo.blogspot.in 

Thursday, October 30, 2014

आज दिल की कलम से  …
अहमद नदीम क़ासमी 


कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊंगा
मैं तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाऊंगा

तेरा दर छोड़के मैं और किधर जाऊंगा
घर में घिर जाऊंगा, सहरा ( जंगल) में बिखर जाऊंगा।


Tuesday, October 28, 2014

खबर है बड़बोले मियां बिलावल को लंदन मिलियन मार्च में बहुत बेआबरू होना पड़ा।मार्च तो फ्लाप था ही,मियां पर सड़े अंड़े,टमाटर फेंके गये।इसी पर चंद दोहे पेश हैं
1
काश्मीर पर हो गया मिलियन मार्च शो फ्लाप
सच्चाई से भागते रहेंगे कब तक आप
2
शहजादे का कर दिया पब्लिक ने सम्मान
लंदन में अंड़े सड़े पड़े हुआ कुछ ज्ञान
3
मियां बिलावल बन रहे थे अगिया बैताल
पब्लिक ने दिखला दिया आइना तत्काल
bhonpooo.blogspot.im

Sunday, October 26, 2014

 बचपन दोबारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
चला गया था दूर यह मुझसे करके मुझको बेचारा
               सपनों के पीछे भागा हूं
                अपनों के पीछे भागा हूं
                परछांई के पीछे दौड़ा
                 बहुत तेज सरपट भागा हूं
छलती रही सफलता अब तक हुए कभी न पौ बारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
                  टिमटिम संग घूमा करता हूं
                   झूले पर झूला करता हूं
                    पेड़ों के नीचे जा करके
                    चिड़ियों के गाने सुनता हूं
कभी चूम लेती गालों को चंचल हवा ये अावारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
                     कंकड़ पत्थर बने खिलौने
                     मंहगे ट्वाय हुए लो बौने
                      भरें चौकड़ी एेसे बच्चे
                       जैसे हों कोई मृग छौने
बच्चों के संग खेल बुढ़ापे को अब मैने ललकारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
                      छुपी छुपौवल,आंख मिचौनी
                       कभी गीत तो कभी कहानी
                       अक्कड़ बक्कड़ कभी खेलते
                        कभी हैं गाते पानी पानी
नजर लगे ना बचपन को हो जाये फिर नौ दो ग्यारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
bhonpooo.blogspot.in     

Saturday, October 25, 2014

भाई जी मैं कासे कहूं.....   (भाग-2)
अगर कोई तत्काल मुझसे पूछे कि शांति के क्षेत्र में मैने एेसा कौन सा उल्लेखनीय कार्य किया है तो मेरे पास कहने लायक एेसी कोई बड़ी उपलब्धी तो नहीं है सिवा इसके कि एक बार मुहल्ले में दो लड़ते हुए सांड़ों को अपनी जान जोॆखिम में डाल बड़ी मुश्किल से अलग कर उनके बीच शांति स्थापित की थी।इसके बाद अगर याद करूं तो कम से कम दो बार अौर अपने मुहल्ले की दो झगड़ालू महिलाअों मेंअपनी इज्जत का फलूदा बनवाकर भी बीचबचाव कर मुहल्ले में शांति स्थापित की।बचपन की ज्यादा याद तो मुझे है नहीं पर मां बताती हैं कि कभी कभार जब पिता जी बहुत गुस्से में मां से गाली गलौज करते तो मैं मां से लिपट कर जोर जोर से रोते हुए आसमान सिर पर उठा लेता था अौर मां पिटने से बच जाती थीं।इसी प्रकार के शांति स्थापना के मेरे बचपन के कुछ अौर किस्से हो सकता है मेरे मुहल्ले के लोग बता सकें।
  पर मेरी समस्या तो कुछ अौर ही है जिस वजह से मैं अपना भोर का सपना किसी से बताने में डर रहा हूं।अब एक वजह तो यही है कि यह भनक लगते ही कि नोबल पुरस्कार मिलने वाला है मेरे सारे नये पुराने उधारदाता अपना खाता बही बगल में दबाये बधाई देने के बहाने आ धमकेंगे।यह भी हो सकता है कि मेरे गोलोकवासी पिता जी को कर्ज देने वाले भी मुझे लायक बेटे का सम्मान दे्ने के लिए मय सूद अपना कर्ज वापस ले्ने आ जांय।पूज्य पिता जी ने हमेशा चार्वाक दर्शन-रिणम् कृत्वा घृतम् पिबेत-का सम्मा्न किया अौर भारत सरकार की तर्ज पर उधार पर उधार ले कर अपना जीवन तो नबाबी ठाठ से बिताया अौर जाते जाते बाकी परिवार को भगवान भरोसे सड़क पर खड़ा कर गये।
    डर की दूसरी वजह तो मेरे पड़ोसी ,मुहल्लेवाले ही हैं जिन्होंने वक्त बे वक्त कभी माचिस की दो तीली देकर,तो कभी एक दो चम्मच चीनी,कभी दो चार आलू प्याज,कभी थोड़ी सी चाय पत्ती देकर उस वक्त तो बेशक हमारी लाज बचाई पर बाद में पूरे मुहल्ले में अपनी इस उदारता का बारम्बार बखान कर हमारी पगड़ी उछाली।जैसे ही उन्हें पता लगेगा कि मुझे बड़ी पुरस्कार राशि मिलने वाली है,बस शुरू हो जायेगा अपनी बरसों पुरानी उदारता की याद दिला कर मुझसे सहयोग मांगने का सिलसिला।किसी के लड़के का इंजीनियरिंग में एडमीशन बिना मेरे सहयोग के रुक रहा होगा,तो किसी का अधूरा बना पड़ा माकान मेरे सहयोग की बाट जोह रहा होगा,वगैरह वगैरह।इसके बाद नंबर आता है रिश्ते-नातेदारों का।पूज्य पिता जी के साथ ही उनके नबाबी दौर के जाते ही जिन रिश्तेदारो ने तोते की तरह नजरें फेर ली थीं वे सब के सब नोबल पुरस्कार की खबर पाते ही प्रवासी पंछियों की तरह घर पर आना शुरू कर देंगे अौर बार बार पिता जी की नवाबी ठाठ,दरियादिली का बखान शुरू कर देंगे।यहां भी किसी की ब्याह योग्य लाड़ली के लिए सुयोग्य वर खोजने से लेकर उसकी शादी तक का सारा दायित्व मेरे ही कन्धों पर होगा क्योंकी अगर पूज्य पिता जी होते तो भला उनके बहनोई साहब को किस बात की चिन्ता होती।भगवान ने अगर मुझ पर इतनी कृपाकी है तो फूफा जी का मुझ पर इतना हक तो बनता  है।
      अगर इतने भर से छुटकारा मिल जाय तो भी बड़ी गनीमत समझिये दरअसल पिक्चर तो अभी बाकी ही है,यानी मुसीबत तो सिर्फ शुरू हुई है।जरा सोचिये चैनलों में जैसे ही मुझे नोबल पुरस्कार मिलने की खबर आयेगी चंदा मांगनेवालों,इण्टरव्यू लेने वालों का तांता घर पर लग जायेगा जिन्हें सादा चाय पिलाने में ही अपना तो जनाजा निकल जायेगा।इसके बाद भी इन्वेस्टमेंट कंपनियों के एजेन्ट,बीमा एजेन्ट भला कब छोड़ने वाले हैं ये तो गुड़ में चींटों की तरह चिपटते हैं।खुदा न खास्ता किसी तरह इनसे बच भी गया तो भी सिर पर एक तलवार तो लटकती ही रहेगी।माना कि अपहरण विशषज्ञ,चक्रवर्ती दस्यु सम्राट ददुआ स्वर्ग में सुख भोग रहा है लेकिन उसके योग्य उत्तराधिकारियों की कमी नहीं है जो भनक लगते ही फोन पर धमकी देंगे कि पुरस्कार पूरी राशि अमुक जगह चुपचाप अमुक व्यक्ति को दे दी जाय वरना.....।अब आप ही बताइये भाई जी कि यह नोबल पुरस्कार मेरे जीवन में हुदहुद चक्रवात बन कर आने वाला है या नहीं।मेरी तो नीली छतरी वाले से यही प्रार्थना है कि हे प्रभू कम से कम इस बार यह भोर का सपना सच न होने देना।

Friday, October 24, 2014

भाई जी, मैं कासे कहूं...    ( भाग -1)
सपनों पर अपना कोई अख्तियार तो होता नहीं कि जैसा हम चाहें वैसा ही सपना आये।सपने तो ट्रेन के डेली पैसेन्जरों की तरह होते हैं जो बेरोकटोक धड़धड़ाते हुए स्लीपर कोच में घुस आतेहैं अौर धम्म से आपकी सीट पर बैठ जाते हैं।फिर, जनाब सपने भी कैसे कैसे बेसिर पैर के आते हैं।एेसी एेसी जगहों पर आप सपने में पहुंच जाते हैं,एेसे एेसे लोगों से मिलते हैं,एेसी एेसी घटनायें घटती हैं जिनके बारे में आपने कभी सोचा तक नहीं।देखिये,विज्ञान चाहे जितना तरक्की क्यों न कर गया हो पर सपनों के संसार के बारे में निश्चयपूर्वक वह भी कुछ नहीं कह पाता।सपने तो बस सपने ही हैं।
सीधे अपनी बात पर आता हूं,अब क्या कहूं कभी कभी तो सपने में अपने को एेसी असहज स्थिति में पाता हूं कि बिस्तर से उठकर किसी से कह भी नहीं सकता, यहां तक की अपनी पत्नी से भी नहीं।कई बार मुझे बहुत खुश मू़ड में बिस्तर से उठते देख पत्नी पूछ बैठती है-क्या बात है,बहुत खुश मूड में उठे हैं,कोई सुन्दर सपना देखा क्या,बताइये न सपने में एेसा क्या देखा।अब कैसे सच सच बता दूं कि मैं एक आइटम सांग पर कैटरीना के साथ डांस कर रहा था या आलिया भट्ट के साथ ट्रक चलाते हुए किसी हाइवे पर जा रहा था।अगर सच बता दूं तो पत्नी का पारा सातवें आसमान पर होगा यह कहते हुए कि सारे बाल सफेद होगये,मुंह में एक भी दांत सलामत नहीं हैं,ठीक से दिखाई सुनाई तक नहीं पड़ता फिर भी सपने देखते हैं हीरोइनों से इश्क लड़ाने के।पूजा पाठ में तो मन लगता नहीं,हनुमान चालीसा,रामायण कुछ तो कभी पढ़ते नहीं तो होगा क्या,मन में दिन भर जो बुरे विचार आयेंगे वही न रात को सपने बनकर  दिखाई देंगे वगैरह वगैरह।इस मुसीबत से बचने के लिए मुझे हमेशा कुछ इस प्रकार वेजीटेरियन झूठ का सहारा लेना पड़ता है जैसेकि सपने में देख रहा था कि हम लोग किराये का माकान छोड़कर अपने खुद के फ्लैट में आगये हैं अौर तुम फिरोजी साड़ी में बहुत जंच रही हो।इस पर पत्नी खुश होकर कहती है तुम्हारे मुंह में घी शक्कर, भगवान करे जल्दी यह सपना सच हो।
   विषयान्तर न हो जाय इसलिए सीधे असली बात पर आता हूं।आपने भी जरूर सुना होगा,मैं तो बचपन से सुनता आ रहा हूं कि भोर का सपना सच होता है।पर मेरी एेसी किस्मत कहां जो मैं भोर में सपने देखने की एेयाशी करूं।कारण सुबह जितनी जल्दी हैंड पम्प पर पहुंच जाअो उतनी जल्दी पानी के लिए नंबर आ जाता है,मुंह अंधेरे ही पास वाले नाले में निपटान करना ज्यादा सुरक्षित रहता है अादि आदि।पर कहावत है न कि जब खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान।बस साहब ऊपर वाले की मेहरबानी ही कहिये कि पता नहीं कैसे आज भोर होने से पहले बिस्तर से उठ नहीं सका अौर भोर का सपना आ ही तो गया।सपना भी कोई एेसा वैसा नहीं कि पत्नी से भी न बता सकूं बल्कि पत्नी से सपने का जिक्र इस डर से नहीं किया कि अगर वह इतनी खुशी बर्दाश्त न कर पाई तो।चलिये आप को बताए दे रहा हूं कि आज सपने में देखा कि इस वर्ष के नोबल पुरस्कार के लिए नोबल पुरस्कार कमेटी ने मेरे नाम का चयन किया।जाहिर सी बात है कि मेरे नाम का चयन विज्ञान,समाजविज्ञान, साहित्य आदि के लिए तो किया न जायेगा क्योंकि विज्ञान का मेरा ज्ञान आक्सीजन अौर हाइड्रोजन के मेल से बने पानी के सूत्र तक तथा साहित्य का ज्ञान मात्र रसखान के कुछ सवैयों तथा तीनों दासों-कबीर दास,तुलसी दास,रहीम दास के कुछ दोहों तक सीमित है।अब ले देकर बचता है शांति का नोबल पुरस्कार इसी में गुंजाइश बनती है क्योंकी यह एेसा क्षेत्र है जिसमें पढ़ा,अनपढ़,बूढ़ा,जवान हर कोई दावा ठोंक सकता है।अब जिसपर चयन समिति की नजरे इनायत हो जाय वही शांति का पुजारी हो जायेगा,उसी की शान में कसीदे पढ़ जाने लगेंगे।एक बार घोषणा हुई नहीं की सारी दुनिया को उसमें गुंण ही गुंण दिखाई देने लगेगा।वह एक शब्द भी बोल दे तो भाई लोग उसकी हजार पेज की व्याख्या कर डालेंगे।यहां तक कि अगर किसी कारणवश वह न भी बोले तो भी उसके मां-बाप,पत्नी,मित्रों,पड़ोसियों आदि सेउसके बारे में पूछ पूछ कर अच्छा खासा साहित्य तैयार कर लिया जाता है।
हम नहीं सुधरेंगे, लगता है कांगरेसियों का मूलमंत्र बन गया है तभी तो हार पर हार मिलने के बाद भी उन्हें अभी भी प्रियंका गांधी में अपना तारनहार दिखाई देता है।लीजिये चंद दोहे पेश हैं
1
कांग्रेस को मिले अब जब जब तगड़ी हार
तभी प्रियंका के लिए मचती चीख पुकार
2
जनता दे कांग्रस को फिर फिर ठोकर मार
दिल दिमाग पर है अभी भी लूली सरकार
3
वंशवाद से लगेगी अब ना नैया पार
लाअो सपने नये हों जनमन को स्वीकार
bhonpooo.blogspot.in

Wednesday, October 22, 2014

विद्या विवेक के साथ जीवन में सुख समृद्धि की शुभकामना के साथ दीपोत्सव पर्व पर बधाई।पेश हैं चंद दोहे
1
धन तेरस दीपावली सजा हुअा बाजार
नचा रहा उंगलियों पर अपना सिरजनहार
2
लाभ लाभ ही रट रहे शुभ को दिया भुलाय
बिन गणेश के लक्ष्मी संकट ही ले आय
3
थाली से गायब हुई अब तो सब्जी दाल
नमक छिड़कते जले पर ऊंचे शापिंग माल
bhonpooo.blogspot.in

Sunday, October 19, 2014

देखा अापने काले धन वालों का नाम खोलने में इस सरकार का भी पसीना छूटने लगा और बहानेबाजी शुरू।लीजिए चंद दोहे पेश हैं
1
कालेधन पर देखिये दोनो ही हैं एक
नीयत न उनकी सही न ही इनकी नेक
2
गरजे थे जोभी बहुत कालेधन पर तेज
नाम बताने से हुआ अब क्यों उन्हें गुरेज
3
नाम बताने से इन्होंने भी की इन्कार
इसी बात पर यूपीए पर करते थे वार
bhonpooo.blogspot.in

Monday, September 29, 2014

… हाय टूट गया 


मैं शाम को टहलने के लिए घर से निकल कर कुछ दूर गया ही था कि बाजू वाली गली से कमल जी प्रगट हुए। पूरा नाम तो कमलेश कुंमार कमल है पर मित्रों के बीच उपनाम कमल से ही जाने जाते हैं। कवि ह्रदय हैं, कमल से बहुत लगाव है, शायद इसीलिए कमल वाली पार्टी के प्रति आंशिक झुकाव भी है। आजकल थोड़ा प्रसन्न दिखते हैं जिससे कई मित्रों को भ्रम भी हो जाता है की शायद कमल जी के अच्छे दिन आ गए हैं। पर ऐसी कोई बात नहीं है। मेरे अभिन्न मित्र हैं इसलिए मैं जानता हूँ। मित्रवर डाक घर में बाबू हैं। साहित्य से उनका लगाव है और यह साहित्य से प्रेम भी डाक से आने वाली पत्र-पत्रिकाओं की देन है। अब तो  डाक घर का काम बहुत कम हो गया है फिर भी यदा-कदा जो भी पत्रिकाएं आती हैं कमल जी उनका पहले स्वयं रसपान करने के बाद ही ईमानदारी से उसे गंतव्य तक पहुचाते हैं। 

रोज़ के विपरीत आज उनके चेहरे पर खिन्नता थी। मुझे लगा शायद सुबह ही सुबह भाभी जी से हलकी फुलकी नोंक-झोंक हो गयी है। जैसे अक्सर सीमाओं पर दो देशों के सैनिकों के बीच होती रहती है। मैं तो यह सोचकर चुप था कि अभी थोड़ी दूर चलने पर सुबह की ताज़ी हवा के झोंकों से कमल जी खिल जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ उलटे कुछ देर मौन रहने के बाद भारी आवाज़ में वे मुझसे मुखातिब हुए बोले- भाई साहब खबर तो आपको लग ही गयी होगी कि इतना पुराना गठबंधन टूट गया बताइये यह भी कोई बात हुयी ? मैं भारी पशो-पेश में पड़ गया कि क्या कहूँ , कहीं कुछ गलत न निकल जाए मुंह से क्यूंकि मैं कोई राजनीतिक चिंत्तक और विश्लेषक तो हूँ नहीं, न ही राजनीत के दलदल में मेरी कोई दिलचस्पी है। इसलिए घबराकर नौसिखिये बल्लेबाज की तरह अपनी तरफ आती हुयी फिरकी गेंद को बमुश्किल किसी तरह बल्ले से दूर धकेलने की कोशिश करते हुए कहा -कमल जी जो हो गया उसके लिए क्या सोचना ? गठबंधन है तो एक न एक दिन तो टूटेगा ही। अगर गठबंधन है ही नहीं तो क्या ख़ाक टूटेगा ?

इतिहास के पन्ने बताते हैं गठबंधन तो साहब बहादुर अँगरेज़ करते थे जिसे वे संधि कहते थे। वे पहले ही दिन से जानते थे कि देर सबेर संधि टूटेगी ही। इसीलिए वे  शुरू से ही सतर्क रहते थे। सच पूछिए तो वे संधि तोड़ने के लिए ही करते थे। लेकिन तोड़ते तब थे समय उनके अनुकूल हो। कोई भी उलटे सीधे आरोप लगाकर संधि तोड़ देते और विपक्षी को दबोच लेते थे। इधर हमारे देश के अधिकांश राजा और नवाब संधि करने के बाद एकदम लापरवाह और निश्चिन्त हो जाते थे। वे बेचारे गठबंधन धर्म का पालन करते रहते इधर अचानक एक दिन साहब बहादुर लोग गठबंधन तोड़ कर उन्हें मटियामेट कर देते। 

कमल जी यह तो इतिहास की बात थी अब तो ज़माना उससे बहुत आगे निकल चुका है। आजकल तो लडकियां भी दूर तक की सोच कर अच्छी तरह से जांच-पड़ताल करने एक बाद ही गठबंधन अर्थात शादी करती हैं। उन्हें पता होता है कि तलाक़ के बाद उनके हाथ कितनी प्रॉपर्टी लगने वाली है ? ख़बरों में हम लोग पढ़ते ही रहते हैं कि कोई कोई तो तलाक़ के बाद करोडो अरबों की संपत्ति पर हाथ मारती हैं। मेरा तो मतलब यह है कि मित्रवर गठबंधन करने वाले को पहले ही दिन से सतर्क रहना चाहिए और जैसे ही अच्छा अवसर आये गठबंधन तोड़कर फायदा उठा लेना चाहिए ठीक उसी तरह जैसे कंपनियों के शेयर खरीदने वाले जब अच्छा भाव मिलता है तो तुरंत फायदा उठा लेते हैं। 

मैं इसी तर्ज़ पर कुछ और जुमलेबाजी करता उसके पहले ही कमल जी हाथ जोड़, सजल नयन, भावविभोर होकर मेरे सामने खड़े होकर बोले - बस बस भाई साहब आपने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए। मैं मतिमंद व्यर्थ ही दुःख के सिंधु में गोते लगाता रहा और अकारण ही बात-बात पर पत्नी और बच्चों की देह को दण्डित करता रहा। आपने मुझ अकिंचन को गठबंधन की महिमा बताकर बहुत ही उपकार किया। अब तो लग रहा है कि कितनी जल्दी मैं कोई गठबंधन सही अवसर पर तोड़ने के लिए कर ही लूं और लाभान्वित हूँ, यह कह कर कमल जी तेजी से दूसरी गली की ओर बढ़कर शायद किसी नए गठबंधन की तलाश में निकल पड़े। 

अजय कुमार
http://bhonpooo.blogspot.in/


Tuesday, September 23, 2014

भावना की मीडिया क्लास : २. सोशल मीडिया…दो धारी तलवार 

पिछली मीडिया क्लास में हमने सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज के बारे में चर्चा की थी। आज हम सोशल मीडिया के बढ़ते दुरूपयोग के बारे में बात करेंगे जो समाज को नुक्सान पहुंचा रहे हैं और इसी वजह से सोशल मीडिया आजकल न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में सुर्खियों की वजह बना हुआ है। फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट  पर कोई भी फ़र्ज़ी आई. डी. बनाकर आपसे जुड़ सकता है। इसमें ये भी पता नहीं चलता कि सामने वाला लड़का है या लड़की ? वो आसानी से अपने जेंडर को छुपा सकता है। आपसे दोस्ती करके, आपको विश्वास में लेकर, मिलने की रिक्वेस्ट करके आपको धोखा दे सकता है। ऐसे कई केस सामने आये हैं जहाँ फेसबुक पर दोस्त बने लड़के ने लड़की से मिलने का अनुरोध कर उसका अश्लील एम. एम. एस.बना लिया या फिर उसका शारीरिक शोषण किया और ये कहते हुए ब्लैकमेल करता रहा कि अगर उसने किसी से कुछ कहा तो वो उसकी आपत्तिजनक फोटो या वीडियो फेसबुक और व्हाट्स-अप पर डाल देगा। बदनामी के डर से लड़की उसके शोषण का शिकार होती रही और जब पानी सर से ऊपर गया तब उसने पुलिस में शिकायत की। इसी तरह एक महिला एक लड़के को फेसबुक पर लड़की समझकर उससे अपनी हर बात शेयर करती रही, उसने उसे अपनी ज़िन्दगी के कई राज़ भी बताये और बाद में वो लड़का उसे धमकाने लगा और महिला के सारे राज़ उसके रिश्तेदारों को बता देने की धमकी देने लगा। इसी तरह फेसबुक पर मिले एक लड़के से १०वीं में पढ़ने वाली लड़की को मोहब्बत हो गयी, पर वो लड़का उससे फ़्लर्ट कर रहा था, जब उसने लड़की को डिच किया तो लड़की ने आत्महत्या कर ली। अमेरिका जैसे देश में तो फेसबुक जैसी सोशल साइट्स अपहरण, हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों का जरिया बनती जा रही है। वहाँ मिशन बेबी ब्लैक आउट  चलाया जा रहा है जिसके तहत लोग अपने फेसबुक अकाउंट से अपने बच्चों की तस्वीरों और वीडियो को तेज़ी से डिलीट कर रहे हैं ताकि उनके बच्चे किसी अपराध का शिकार न बने। 
सोशल मीडिया के ज़रिये सांप्रदायिक ताक़तें दंगे भड़काने का भी काम कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर दंगे के पीछे फेसबुक पर अपलोड किया गया एक फ़र्ज़ी वीडियो था जिसकी वजह से ५० लोगों की जान गयी और कई बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। जो इस दंगे में मरे नहीं और ज़ख़्मी नहीं हुए वो ख़ौफ़ज़दा थे और ऐसे ख़ौफ़ज़दा लोगों की संख्या मरने वाले और ज़ख़्मी होने वाले लोगों से भी बहुत ज़्यादा थी। मध्य प्रदेश के खंडवा में किसी ने फेसबुक पर किसी सम्प्रदाय के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट कर दिया तो वहाँ उठी सांप्रदायिक लपटों को शांत करने के लिए प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा इतने के बावजूद भी एक  युवक की मौत हो गयी। 
आजकल १२-१३ साल के बच्चों के हाथ में भी स्मार्टफोन होता है जिसके ज़रिये वो फेसबुक पर एक्टिव रहते हैं।  हालांकि १३ साल से कम उम्र के बच्चे फेसबुक पर अकाउंट नहीं बना सकते पर बच्चे अपनी उम्र अधिक बताकर फेसबुक पर अपना अकाउंट बना रहे हैं और फेसबुक के नियमों को धता बता रहे हैं। बच्चों और युवाओं का अच्छा खासा वक़्त सोशल साइट पर बर्वाद हो जाता है।  वो इस वर्चुअल दुनिया से जुड़ते और असल दुनिया से दूर होते जा रहे हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है की जो लोग सोशल मीडिया पर घंटो एक्टिव रहते हैं वो धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। 
ये तो सोशल मीडिया के कुछ दुरूपयोग है जो इसलिए सामने आये क्यूंकि इनसे सम्बंधित घटनाएं हो चुकी हैं। सोशल मीडिया आगे हमें और कौन कौन सी दिक्कतों का सामना करायेगा ये देखना बाकी है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए हमें बहुत सतर्क रहने की ज़रुरत है ताकि हम इसका शिकार न हों। 
उम्मीद है आपको आज की क्लास अच्छी लगी होगी। अगर सोशल मीडिया के दुरूपयोग से जुड़ा हुआ आपका या फिर आपके मित्र का कोई अनुभव हो तो ज़रूर शेयर करें। दूसरों की गलतियों से सबक लेके आगे सचेत रहने में मदद मिलेगी। ये क्लास आपको कैसी लगी बताइयेगा ज़रूर। आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में …

भावना पाठक 
http://bhonpooo.blogspot.in/

Monday, September 22, 2014

भावना की मीडिया क्लास :  १. सोशल मीडिया का बढ़ता क्रेज़ 


आज की मीडिया क्लास में हम बात करेंगे सोशल मीडिया की जिसकी चर्चा आजकल हर आम और ख़ास की ज़ुबान पर है। सवाल ये उठता है की आखिर सोशल मीडिया में ऐसा क्या है जो ये लोगों के बीच इतना ख़ास हो गया है ? पहला कारण ये बदलती जीवन शैली के अनुरूप है जो की लोगों की ज़रूरतों को पूरा करता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वो समाज के बिना नहीं रह सकता लेकिन आजकल की ज़िन्दगी में लोगों के पास अपने दोस्तों, नाते-रिश्तेदारों से मिलने और साथ बैठकर बात करने का वक़्त नहीं इसलिए हम अपनी इस ज़रुरत को सोशल मीडिया के ज़रिये पूरी करने की कोशिश करते है, वर्चुअल दुनिया से जुड़कर। दूसरा कारण हर नयी चीज़ के प्रति लोगों में आकर्षण होता है इसलिए भी सोशल मीडिया बच्चों, युवाओं और बड़ों के बीच चर्चित होता जा रहा है। तीसरा कारण स्मार्टफोन एंड्रॉयड फ़ोन्स ने सोशल मीडिया को आम आदमी की पहुँच में ला दिया है। अब इंटरनेट से जुड़ने के लिए आपको कंप्यूटर या लैपटॉप की ज़रुरत नहीं आप ४०००-५००० हज़ार से शुरू होने वाले स्मार्टफोन के ज़रिये भी ऑनलाइन एक्टिव रह सकते हैं। बस अपनी सिम में इंटरनेट रिचार्ज कराइये और जुड़ जाइए इस वर्चुअल दुनिया से और अगर किसी ओपन वाई-फाई ज़ोन में हो तो आपके फ़ोन में इंटरनेट खुद-ब-खुद काम करने लगेगा। सोशल मीडिया के ज़रिये आप न केवल नए लोगों से जुड़ सकते हैं बल्कि अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों के बिछड़े दोस्तों को यहां ढूंढ कर अपनी पुरानी यादों को ताज़ा कर सकते हैं। अब दूरी कोई बाधा नहीं रही। आप अपने वर्चुअल दोस्तों से ऑडियो, वीडियो, टेक्स्ट किसी भी फॉर्मेट में बात कर सकते हैं। इसके लिए बहुत पढ़ा लिखा होना ज़रूरी नहीं है बस आपको इंटरनेट इस्तेमाल करना आना चाहिए और स्मार्टफोन के फंक्शन्स पता होने चाहिए जो कि बहुत आसान है, आप अपने बच्चों से भी सीख सकते हैं क्यूंकि आजकल की जनरेशन टेक-सैवी जो हो गयी है। फेसबुक पर शायरी, साहित्य, म्यूजिक, मीडिया, थिएटर, आदि से सम्बंधित ढेरों ग्रुप बने हैं आप अपनी पसंद के ग्रुप से जुड़ सकते हैं और अपना भी ग्रुप बना सकते हैं। साथ ही अपना पेज भी। इस तरह वाट्स-अप पर भी आप अपने दोस्तों से चैटिंग कर सकते हैं उन्हें ऑडियो और वीडियो भेज सकते हैं। अगर आप घर वालों से दूर रहते हैं और वहां से उनके लिए कुछ लाना चाहते हैं तो उसकी फोटो व्हाट्स-अप पर भेज कर उसके बारे में उनसे राय ले सकते हैं। ट्विटर पर अपने पसंदीदा फ़िल्मी हस्तियों, क्रिकेट खिलाडियों, नेता, बिजनेसमैन आदि से जुड़ सकते हैं उन्हें फॉलो कर सकते हैं।
ये सिक्के का वो पहलू है जो हम सबको लुभाता है लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू को भी हमें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। इस सिक्के के दूसरे पहलू के बारे में हम मीडिया क्लास में अगले दिन बात करेंगे। इस क्लास में मज़ा तभी आएगा जब आप भी सवाल जवाब करें, अपनी राय मुझे भेजें की आपको ये क्लास कैसी लग रही है और इसमें और किस किस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए। आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में ....

भावना पाठक
http://bhonpooo.blogspot.in/

Sunday, September 21, 2014

चुनावों की घोषणा के साथ महाराष्ट्र मेंसीटों को लेकर घमासान शुरू हो गया।इस खींच तान में एक ओर शिवसेना,भाजपा की पुरानी दोस्ती दांव पर लगी है तो दूसरी ओर एनसीपी कांग्रेसका गठबंधन टूटने की कगार पर पहुंच गया है।तो लीजिये चंद दोहे पेश हैं
1
सीटों को लेतर मची है भारी तकरार
लगी दांव पर दोस्ती गठबंधन में दरार
2
महाराष्ट्र में मचा है सीटों पर घमासान
दांता किटकिट देख यह जनता है हैरान
3
राजनीति में ना सगा ना ही कोई गैर
सभी पकड़ते स्वार्थ के दौड़ दौड़ कर पैर

Saturday, September 20, 2014

देखा अापने अारएलडी वालों का हंगामा।लीजिए चंद दोहे पेश हैं
1
बंगले को लेकर मचा है भारी तूफान
स्मृति भवन का अागया इसी बहाने ध्यान
2
पहले भी बंगले कहां खाली करते लोग
अंतिम क्षण तक चाहते सत्ता सुख का भोग
3
कमजोरों के लिए हैं नियम अौर कानून
ताकतवर कानून का करते रहते खून

Thursday, September 18, 2014

तुमने ऐसा क्यूँ किया माँ 


मुझे किस बात की सज़ा दी, मेरा क्या कसूर था माँ ? मैंने ऐसा क्या किया था जो तुम मुझे नाले में बहा आई माँ ? क्या वाक़ई तुमने मुझे इसलिए मारा क्यूंकि मेरी वजह से तुम भाई की ढ़ंग से परवरिश नहीं कर पा रही थी ? अगर तुम मुझे और भाई को एक साथ नहीं संभाल पा रही थी तो मदद के लिए किसी को बुला लिया होता माँ ? और फिर भी मुझे मारना ही था तो कोख में ही मार दिया होता मुझे जन्म क्यों दिया माँ ? कहीं तुमने इस उम्मीद में तो मुझे नौ महीने अपनी कोख में नहीं रखा की भाई की तरह मैं भी लड़का होऊंगी ? अगर मेरी जगह तुमने लड़के को जन्म दिया होता तो क्या उसे भी मेरी तरह मरने के लिए छोड़ आती माँ ? देखो लोग तुम्हारे बारे में क्या क्या कह रहे हैं , तुम्हे मेरा क़ातिल बता रहे हैं माँ। नहीं नहीं तुम मुझे नहीं मार सकती , तुम मुझे खुद से जुदा कैसे कर सकती हो, मैं तो तुम्हारा हिस्सा हूँ न माँ ?

माना कि मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया होगा पर बच्चे तो परेशान करते ही हैं न माँ ? भाई ने भी तो किया होगा और अभी भी करता होगा। वो भी बड़ा कहाँ हुआ है और इस बात की क्या गारंटी की बड़ा होकर वो तुम्हे और पापा को परेशान नहीं करेगा ? मनमानियां नहीं करेगा ? तुम्हारा दिल नहीं दुखाएगा ? जिस बेटे को तुम इतने नाज़ों से पाल रही हो, जिसकी परवरिश की खातिर तुमने मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर कर दिया वो बड़ा होकर तुम्हारा सहारा बनेगा, तुम्हारे कुल को तारेगा क्या इस बात का तुम्हे पक्का भरोसा है माँ ? विश्वास तो उन हज़ारों माँ- बाप को भी अपने बेटों पर भी रहा होगा जो आज वृद्धाश्रम में वक़्त गुज़ार रहे हैं। उन्होंने भी तुम्हारी तरह ढेरों सपने देखे होंगे - बेटे को ऊंचाईयों पर देखने के , पोते-पोतियों के साथ खेलने के , बुढ़ापे में आराम से बहू के हाथ का बना गरमा-गरम खाना खाने के, पर उनके सपनो की दुनिया तो रेत की मानिंद ढह गयी। डरती हूँ कहीं तुम्हारे सपने भी चकनाचूर ना हो जाएं माँ। ये सोचकर सहम जाती हूँ कि अगर ज़िन्दगी के सफर में पापा तुम्हे बीच रास्ते में छोड़ के चले गए तो कहीं तुम्हारा हश्र भी मथुरा-वृंदावन की उन हज़ारों विधवाओं की तरह न हो जिन्हे उनके बेटे खुद वहाँ दर -दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ आते हैं। वो विधवाएं भी तो बेटों वाली होती हैं। क्या उन्होंने अपने बेटों की परवरिश तुम्हारी तरह नहीं की थी माँ ?

कल को जब मैं बड़ी होती तो तुम्हारे काम में तुम्हारा हाथ बटाती , अपने दुःख-सुख तुम मुझसे दोस्तों की तरह साझा कर पाती,  मेरे रहते तुम कभी तन्हा न होती माँ। मैं बड़ी होकर बछेंद्री पाल की तरह एवरेस्ट फ़तेह कर सकती थी, सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला की तरह आकाश में उड़ सकती थी। ज्योतिबा फूले, मदर टेरेसा, सरोजनी नायडू, इंदिरा गांधी जैसी बन सकती थी माँ। एक मौक़ा तो दिया होता, मैं भी तुम्हारा नाम रोशन करती माँ।

अगर तुमने मुझे अपनी कोख में ही मार दिया होता तो इस बात का भरम रह जाता कि तुम पापा और घर के दूसरे लोगों की वजह से ऐसा कर रही हो, ये फैसला तुम्हारा नहीं उनका है, तुम मजबूर थी माँ।  पर तुमने तो मुझे अपने हाथों से मार दिया, क्यूँ माँ ? मैं अभी भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही कि ये फैसला तुम्हारा था माँ क्यूंकि अब तक तो केवल तुम्हारी खुशियों, सपनो और फैसलों पर ही पितृसत्ता का पहरा था पर अब तो तुम्हारी सोच भी उसी रंग में रंग गयी है। तुम भी उनकी तरह सोचने लगी माँ। आखिर तुमने ऐसा क्यूँ किया माँ ?

भावना पाठक
http://bhonpooo.blogspot.in/

Wednesday, September 17, 2014

नई सरकार ने अाते ही कड़वी दवा पिलाई थी,जनता अब सरकार को कड़वी दवा पिला रही है।इसी पर चंद दोहे पेश हैं
1
कड़वी दवा पिला रही जनता बारम्बार
उप चुनाव में कमल को मिली हार पर हार
2
मोदी मैजिक न चला साइकिल जीती रेस
उपचुनाव से साफ है जनता को है क्लेश
3
सिग्नल जनता दे रही लगातार हर बार
मुद्दे से भटके नहीं मोदी की सरकार
bhonpooo.blogspot.in

Saturday, September 13, 2014

हिन्दी दिवस पर प्रस्ततुत है कविता-

हिन्दी पखवाड़ा

यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
हिन्दी जा कोने में दुबकी
अंगरेजी का बजे नगाड़ा
  यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
गिटपिट गिटपिट हरदम बोलें
अंगरेजी टपके मुंह खोलें
गली गली में उगे हुए
इन कान्वेन्टों ने किया कबाड़ा
  यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
हिन्दी की बिन्दी न जाने
भाषण से फिरभी नमाने
नेता जीने हिन्दी दिवस पर
अंगरेजी में खूब दहाड़ा
     यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
रोमन लिपि में हिन्दी चलती
कहते इससे सुविधा रहती
सुविधाओं की राजनीति ने
धीरे धीरे खेल बिगाड़ा
    यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा

Friday, September 12, 2014

एक समय -गोरे रंग पे इतना गुमां न कर.....गीत ने खूब धूम मचाई थी।सांवले रंग वाले यह गाकर गोरे रंग वालों पर तंज करते थे।बुरा हो इन फेयरनेस क्रीम वाली कंपनियों का जिन्होंने विज्ञापनबाजी के बल पर गोरेपन का ऐसा जादू चलाया किआज युवा गोरेपन वाली क्रीमों पर पानी की तरह पैसा बहा रहा है।हाल ही में केन्द्रीय सूचनाप्रसारण मंत्रालय ने सभी चैनलों को हिदायत दी है किवे रंग गोरा करने की गारंटी देने वा्ले भ्रामक और झूठे विज्ञापनों का प्रसारण नहीं करें।आज इसी परइन दोहों का आनंद लीजिए
1
गोरेपन के ब्यूह में फंसे हुए हम आज
कंपनियां भी लूटने से कब आतीं बाज
2
विज्ञापन तो बेंचते सपनों का संसार
छल फरेब पर है टिका कास्मेटिक बाजार
3
मोटी रकमें लेकरें इनका खूब प्रचार
दिलों पे करते राज जो बालीवुड स्टार
bhonpooo.blogspot.in

Thursday, September 11, 2014

सब्र तो करना ही होगा 

जम्मू कश्मीर में आई भारी बाढ़ में फंसे लोगों को अभी सेना और आपदा प्रबंधन के लोग निकाल भी नहीं पाये थे की गुजरात के कई शहरों में भी पानी ने कहर बरपा दिया। अभी भी धरती के स्वर्ग में ५ लाख लोग फंसे हैं और इधर गुजरात में २ लाख लोगों को पानी ने और अपना कैदी लिया। विश्वामित्र नदी समेत कई नदियां उफान पर हैं। सेना को अब ७ लाख लोगों को निकालना है। 

मौत का खौफ क्या होता है ये उससे बेहतर कोई और नहीं बता सकता जिसे बस छूकर मौत गुज़र गयी हो या जिसने अपनी आँखों के सामने  कई लोगों को मौत के मुंह में जाते देखा हो। जो कई दिनों से भूखा-प्यासा पानी में फंसा होगा उसे गुस्सा तो आएगा ही सही पर सेना और आपदा प्रबंधन के लोगों पर गुस्सा दिखाना ठीक नहीं है, जो  आपको बचाने की भरसक कोशिश कर रहा है अपनी ज़िन्दगी की परवाह किये बगैर उनपर हमला करना सरासर ग़लत है। जम्मू कश्मीर में पानी में फंसे कई लोगों ने सेना और आपदा प्रबंधन बल पर पत्थरों से हमला किया जिसमें आपदा प्रबंधन बल के दो लोग ज़ख़्मी हो गए। नेता सिर्फ हवाई यात्रायें कर सकते हैं और वही कर रहे हैं वो आपको सेना के जाबांज़ सिपाहियों की तरह मौत के मुंह से बाहर नहीं निकाल सकते इसलिए आपको खुदा का वास्ता उन्हें ज़ख़्मी न करो जो आपके ज़ख्मों पर मरहम लगा रहे हैं। आपको आपकी ज़िन्दगी प्यारी होगी पर सेना को आप जैसे लाखों लोगों को बचाना है। आपको सब्र करना ही होगा। ये सब्र का इम्तेहान हैं दोस्तों उम्मीद है आप इसमें पास होंगे। 

- भावना पाठक 

आज दिल की कलम से … 

तुम्हारी याद के जब ज़ख्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
हर अजनबी हमें महरम (जानने वाला ) दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली से गुजरने लगते हैं।
                                         - फैज़ अहमद फैज़ 

Wednesday, September 10, 2014

आज दिल की कलम से …… 


कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए
जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा
बहुत से लोग वहीँ  छटपटा के बैठ गए
खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को
वो अपनी अपनी हथेली जलके बैठ गए
दुकानदार तो मेले में लुट गए यारों
तमाशबीन दुकाने लगा के बैठे गए
लहूलुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ लोग उठे दूर जाके बैठ गए
ये सोच कर की दरख्तों की छाँव होती है
यहां बबूल की छाँव में आके बैठ गए।

दुष्यंत कुमार साहब की कलम से 

हम और आप क्या कर सकते हैं …  

धरती के स्वर्ग पर प्रकृति का कहर बरपा है। उत्तराखण्ड के खौफ़नाक मंज़र को अभी हम भूल भी ना पाये थे कि एक और भयावह मंज़र हमारे सामने है। अख़बारों के आंकड़ों के अनुसार जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ में अब तक २२५ लोगों की मौत हो चुकी है, ये संख्या और भी बढ़ सकती है। अलग अलग इलाकों में ६ लाख लोग अब भी फंसे हैं। हालांकि सेना और राष्ट्रीय आपदा राहत बल ने मंगलवार शाम तक ४२,५८७ लोगों को  सुरक्षित बचा लिया है। यहां के स्थानीय लोग भी अपनी जान को जोखिम में डालकर पानी में फंसे लोगों को बचाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए सबसे सेना, राष्ट्रिय आपदा राहत बल और वहाँ के लोगों को सलाम।
बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे लोगों को बचाने में व्हाट्स-अप, फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया भी सक्रीय हुआ है। सोशल मीडिया के ज़रिये भी लोगों को बचाने की कोशिश की जा रही है। श्रीनगर के फारूक इलाके के जवाहर नगर में तीसरी मंज़िल पर नौ माह की गर्भवती फंसी थी। बिल्डिंग के सामने १३ फ़ीट पानी था। उस गर्भवती महिला की बहन ने सेना को फेसबुक और व्हाट्स-अप पर अपील की कि बहन को बचा लो और सेना के जाबांज़ सैनिकों ने उसे बचा लिया। राष्ट्रीय आपदा राहत बल के प्रमुख ओ. पी. सिंह ने कहा अब तक हमें फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स-अप और ई-मेल के ज़रिये ४५३ सन्देश मिल चुके हैं जिसमें कई लोगों ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे अपने सगे-सम्बन्धियों को बचाने और ढूंढने की अपील की है। इतना ही नहीं लोग फेसबुक और ट्विटर पर JKFloodRelief.org वेबसाइट के बारे में भी पोस्ट कर रहे हैं जिसके ज़रिये लोग जम्मू-कश्मीर में फंसे लोगों तक दवाईयां और ज़रुरत का सामान पंहुचा सकते हैं। Donatehere नाम के पेज पर आप जो लोग जम्मू कश्मीर में ज़रूरतमंद लोगों के लिए अलग अलग शहर से काम कर रहे हैं उन लोगों से भी संपर्क कर सकते हैं और अपनी शक्ति अनुसार उनकी मदद कर सकते हैं। ट्विटर पर इस वेबसाइट का एक हैंडल भी है JKFloodRelief नाम से जहां पर आप ये पता लगा सकते हैं की कौन कौन से लोग अभी लापता हैं और किसको बाढ़ से सुरक्षित निकाल लिया गया है। उम्मीद हैं जिन लोगों के सगे-सम्बन्धी वहाँ फंसे हैं उन्हें इस हैंडल पर क्लिक करने से उनका पता चल जाएगा और वो राहत की सांस ले सकेंगे। इसके अलावा भी आप NDRF ke no 011-26107953, 097110-77372 पर कॉल और ndrfq@nic.in पर मेल करके भी वहां फंसे लोगों की जानकारी दे सकते हैं ताकि उन्हें बचाया जा सके।
सोशल मीडिया पर इस मुहीम की सक्रियता देख कर अच्छा लगा। यूँ तो हम फेसबुक, ट्विटर पर घंटों बिताते हैं, अपने दोस्तों से बातें करने के लिए, अपना स्टेटस अपडेट करने के लिए, नयी फोटो अपलोड करने के लिए, उन पर लोगों के लाइक्स और कमेंट्स देखने के लिए। एक गुज़ारिश है थोड़ा सा वक़्त http://jkfloodrelief.org/ इस वेबसाइट को देखने के लिए ज़रूर दें। आप इसे देखेंगे तो पता चलेगा की वहाँ लोगों को किन किन छोटी चीज़ों की ज़रूरत  है जिसे हम और आप आसानी से उन्हें मुहैया करा सकते हैं जैसे टॉर्च, बैटरी, रस्सी, रबर के जूते, बच्चों के कपडे, खाने पीने की चीज़ें आदि लिस्ट बहुत लम्बी है। ज़रूरी नहीं की हम सरकार की तरह रूपए से उन ज़रूरतमंद लोगों की मदद करें पर चीज़ों से तो कर ही सकते हैं। सेना, सरकार, आपदा प्रबंधन और वहाँ के लोग तो अपने स्तर पर बहुत कुछ कर ही रहे हैं आइये हम और आप भी उनकी मदद की ओर एक कदम बढ़ाते हैं।

- भावना पाठक 

Tuesday, September 9, 2014

आज दिल की कलम से … 

मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था
उसी के हाथ का खंज़र मेरी तलाश में है।
..........................................................................
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद।
मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता खुद को
किसी की चाह न थी दिल में तेरी चाह के बाद।
ज़मीर काँप तो जाता है आप कुछ भी कहें
वो हो गुनाह से पहले के हो गुनाह के बाद।
गवाह चाह रहे थे वो बेगुनाही का
ज़बां से कह न सका खुद खुद गवाह के बाद।
खतूत कर दिए वापस, मगर मेरी नींदें
इन्हें भी छोड़ दो इक रहम की निगाह के बाद।।
...........................................................................
इक ग़ज़ल उसपे लिखूं दिल का तक़ाज़ा है बहुत
इन दिनों खुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत
रात हो, दिन हो, गफलत हो की बेदारी हो
उसको देखा तो नहीं है उसे सोचा है बहुत।
तश्नगी के भी मुक़ामात हैं क्या क्या यानी
कभी दरिया नहीं काफी कभी कतरा है बहुत।
मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े हैं गवाह
मैंने पत्थर की तरह खुद को तराशा है बहुत।
कोई आया है ज़रूर और यहां ठहरा भी है
घर की दहलीज़ पा-ए नूर उजाला है बहुत।
                                             
                                                - कृष्ण बिहारी नूर