Monday, September 29, 2014

… हाय टूट गया 


मैं शाम को टहलने के लिए घर से निकल कर कुछ दूर गया ही था कि बाजू वाली गली से कमल जी प्रगट हुए। पूरा नाम तो कमलेश कुंमार कमल है पर मित्रों के बीच उपनाम कमल से ही जाने जाते हैं। कवि ह्रदय हैं, कमल से बहुत लगाव है, शायद इसीलिए कमल वाली पार्टी के प्रति आंशिक झुकाव भी है। आजकल थोड़ा प्रसन्न दिखते हैं जिससे कई मित्रों को भ्रम भी हो जाता है की शायद कमल जी के अच्छे दिन आ गए हैं। पर ऐसी कोई बात नहीं है। मेरे अभिन्न मित्र हैं इसलिए मैं जानता हूँ। मित्रवर डाक घर में बाबू हैं। साहित्य से उनका लगाव है और यह साहित्य से प्रेम भी डाक से आने वाली पत्र-पत्रिकाओं की देन है। अब तो  डाक घर का काम बहुत कम हो गया है फिर भी यदा-कदा जो भी पत्रिकाएं आती हैं कमल जी उनका पहले स्वयं रसपान करने के बाद ही ईमानदारी से उसे गंतव्य तक पहुचाते हैं। 

रोज़ के विपरीत आज उनके चेहरे पर खिन्नता थी। मुझे लगा शायद सुबह ही सुबह भाभी जी से हलकी फुलकी नोंक-झोंक हो गयी है। जैसे अक्सर सीमाओं पर दो देशों के सैनिकों के बीच होती रहती है। मैं तो यह सोचकर चुप था कि अभी थोड़ी दूर चलने पर सुबह की ताज़ी हवा के झोंकों से कमल जी खिल जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ उलटे कुछ देर मौन रहने के बाद भारी आवाज़ में वे मुझसे मुखातिब हुए बोले- भाई साहब खबर तो आपको लग ही गयी होगी कि इतना पुराना गठबंधन टूट गया बताइये यह भी कोई बात हुयी ? मैं भारी पशो-पेश में पड़ गया कि क्या कहूँ , कहीं कुछ गलत न निकल जाए मुंह से क्यूंकि मैं कोई राजनीतिक चिंत्तक और विश्लेषक तो हूँ नहीं, न ही राजनीत के दलदल में मेरी कोई दिलचस्पी है। इसलिए घबराकर नौसिखिये बल्लेबाज की तरह अपनी तरफ आती हुयी फिरकी गेंद को बमुश्किल किसी तरह बल्ले से दूर धकेलने की कोशिश करते हुए कहा -कमल जी जो हो गया उसके लिए क्या सोचना ? गठबंधन है तो एक न एक दिन तो टूटेगा ही। अगर गठबंधन है ही नहीं तो क्या ख़ाक टूटेगा ?

इतिहास के पन्ने बताते हैं गठबंधन तो साहब बहादुर अँगरेज़ करते थे जिसे वे संधि कहते थे। वे पहले ही दिन से जानते थे कि देर सबेर संधि टूटेगी ही। इसीलिए वे  शुरू से ही सतर्क रहते थे। सच पूछिए तो वे संधि तोड़ने के लिए ही करते थे। लेकिन तोड़ते तब थे समय उनके अनुकूल हो। कोई भी उलटे सीधे आरोप लगाकर संधि तोड़ देते और विपक्षी को दबोच लेते थे। इधर हमारे देश के अधिकांश राजा और नवाब संधि करने के बाद एकदम लापरवाह और निश्चिन्त हो जाते थे। वे बेचारे गठबंधन धर्म का पालन करते रहते इधर अचानक एक दिन साहब बहादुर लोग गठबंधन तोड़ कर उन्हें मटियामेट कर देते। 

कमल जी यह तो इतिहास की बात थी अब तो ज़माना उससे बहुत आगे निकल चुका है। आजकल तो लडकियां भी दूर तक की सोच कर अच्छी तरह से जांच-पड़ताल करने एक बाद ही गठबंधन अर्थात शादी करती हैं। उन्हें पता होता है कि तलाक़ के बाद उनके हाथ कितनी प्रॉपर्टी लगने वाली है ? ख़बरों में हम लोग पढ़ते ही रहते हैं कि कोई कोई तो तलाक़ के बाद करोडो अरबों की संपत्ति पर हाथ मारती हैं। मेरा तो मतलब यह है कि मित्रवर गठबंधन करने वाले को पहले ही दिन से सतर्क रहना चाहिए और जैसे ही अच्छा अवसर आये गठबंधन तोड़कर फायदा उठा लेना चाहिए ठीक उसी तरह जैसे कंपनियों के शेयर खरीदने वाले जब अच्छा भाव मिलता है तो तुरंत फायदा उठा लेते हैं। 

मैं इसी तर्ज़ पर कुछ और जुमलेबाजी करता उसके पहले ही कमल जी हाथ जोड़, सजल नयन, भावविभोर होकर मेरे सामने खड़े होकर बोले - बस बस भाई साहब आपने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए। मैं मतिमंद व्यर्थ ही दुःख के सिंधु में गोते लगाता रहा और अकारण ही बात-बात पर पत्नी और बच्चों की देह को दण्डित करता रहा। आपने मुझ अकिंचन को गठबंधन की महिमा बताकर बहुत ही उपकार किया। अब तो लग रहा है कि कितनी जल्दी मैं कोई गठबंधन सही अवसर पर तोड़ने के लिए कर ही लूं और लाभान्वित हूँ, यह कह कर कमल जी तेजी से दूसरी गली की ओर बढ़कर शायद किसी नए गठबंधन की तलाश में निकल पड़े। 

अजय कुमार
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Tuesday, September 23, 2014

भावना की मीडिया क्लास : २. सोशल मीडिया…दो धारी तलवार 

पिछली मीडिया क्लास में हमने सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज के बारे में चर्चा की थी। आज हम सोशल मीडिया के बढ़ते दुरूपयोग के बारे में बात करेंगे जो समाज को नुक्सान पहुंचा रहे हैं और इसी वजह से सोशल मीडिया आजकल न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में सुर्खियों की वजह बना हुआ है। फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट  पर कोई भी फ़र्ज़ी आई. डी. बनाकर आपसे जुड़ सकता है। इसमें ये भी पता नहीं चलता कि सामने वाला लड़का है या लड़की ? वो आसानी से अपने जेंडर को छुपा सकता है। आपसे दोस्ती करके, आपको विश्वास में लेकर, मिलने की रिक्वेस्ट करके आपको धोखा दे सकता है। ऐसे कई केस सामने आये हैं जहाँ फेसबुक पर दोस्त बने लड़के ने लड़की से मिलने का अनुरोध कर उसका अश्लील एम. एम. एस.बना लिया या फिर उसका शारीरिक शोषण किया और ये कहते हुए ब्लैकमेल करता रहा कि अगर उसने किसी से कुछ कहा तो वो उसकी आपत्तिजनक फोटो या वीडियो फेसबुक और व्हाट्स-अप पर डाल देगा। बदनामी के डर से लड़की उसके शोषण का शिकार होती रही और जब पानी सर से ऊपर गया तब उसने पुलिस में शिकायत की। इसी तरह एक महिला एक लड़के को फेसबुक पर लड़की समझकर उससे अपनी हर बात शेयर करती रही, उसने उसे अपनी ज़िन्दगी के कई राज़ भी बताये और बाद में वो लड़का उसे धमकाने लगा और महिला के सारे राज़ उसके रिश्तेदारों को बता देने की धमकी देने लगा। इसी तरह फेसबुक पर मिले एक लड़के से १०वीं में पढ़ने वाली लड़की को मोहब्बत हो गयी, पर वो लड़का उससे फ़्लर्ट कर रहा था, जब उसने लड़की को डिच किया तो लड़की ने आत्महत्या कर ली। अमेरिका जैसे देश में तो फेसबुक जैसी सोशल साइट्स अपहरण, हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों का जरिया बनती जा रही है। वहाँ मिशन बेबी ब्लैक आउट  चलाया जा रहा है जिसके तहत लोग अपने फेसबुक अकाउंट से अपने बच्चों की तस्वीरों और वीडियो को तेज़ी से डिलीट कर रहे हैं ताकि उनके बच्चे किसी अपराध का शिकार न बने। 
सोशल मीडिया के ज़रिये सांप्रदायिक ताक़तें दंगे भड़काने का भी काम कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर दंगे के पीछे फेसबुक पर अपलोड किया गया एक फ़र्ज़ी वीडियो था जिसकी वजह से ५० लोगों की जान गयी और कई बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। जो इस दंगे में मरे नहीं और ज़ख़्मी नहीं हुए वो ख़ौफ़ज़दा थे और ऐसे ख़ौफ़ज़दा लोगों की संख्या मरने वाले और ज़ख़्मी होने वाले लोगों से भी बहुत ज़्यादा थी। मध्य प्रदेश के खंडवा में किसी ने फेसबुक पर किसी सम्प्रदाय के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट कर दिया तो वहाँ उठी सांप्रदायिक लपटों को शांत करने के लिए प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा इतने के बावजूद भी एक  युवक की मौत हो गयी। 
आजकल १२-१३ साल के बच्चों के हाथ में भी स्मार्टफोन होता है जिसके ज़रिये वो फेसबुक पर एक्टिव रहते हैं।  हालांकि १३ साल से कम उम्र के बच्चे फेसबुक पर अकाउंट नहीं बना सकते पर बच्चे अपनी उम्र अधिक बताकर फेसबुक पर अपना अकाउंट बना रहे हैं और फेसबुक के नियमों को धता बता रहे हैं। बच्चों और युवाओं का अच्छा खासा वक़्त सोशल साइट पर बर्वाद हो जाता है।  वो इस वर्चुअल दुनिया से जुड़ते और असल दुनिया से दूर होते जा रहे हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है की जो लोग सोशल मीडिया पर घंटो एक्टिव रहते हैं वो धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। 
ये तो सोशल मीडिया के कुछ दुरूपयोग है जो इसलिए सामने आये क्यूंकि इनसे सम्बंधित घटनाएं हो चुकी हैं। सोशल मीडिया आगे हमें और कौन कौन सी दिक्कतों का सामना करायेगा ये देखना बाकी है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए हमें बहुत सतर्क रहने की ज़रुरत है ताकि हम इसका शिकार न हों। 
उम्मीद है आपको आज की क्लास अच्छी लगी होगी। अगर सोशल मीडिया के दुरूपयोग से जुड़ा हुआ आपका या फिर आपके मित्र का कोई अनुभव हो तो ज़रूर शेयर करें। दूसरों की गलतियों से सबक लेके आगे सचेत रहने में मदद मिलेगी। ये क्लास आपको कैसी लगी बताइयेगा ज़रूर। आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में …

भावना पाठक 
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Monday, September 22, 2014

भावना की मीडिया क्लास :  १. सोशल मीडिया का बढ़ता क्रेज़ 


आज की मीडिया क्लास में हम बात करेंगे सोशल मीडिया की जिसकी चर्चा आजकल हर आम और ख़ास की ज़ुबान पर है। सवाल ये उठता है की आखिर सोशल मीडिया में ऐसा क्या है जो ये लोगों के बीच इतना ख़ास हो गया है ? पहला कारण ये बदलती जीवन शैली के अनुरूप है जो की लोगों की ज़रूरतों को पूरा करता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वो समाज के बिना नहीं रह सकता लेकिन आजकल की ज़िन्दगी में लोगों के पास अपने दोस्तों, नाते-रिश्तेदारों से मिलने और साथ बैठकर बात करने का वक़्त नहीं इसलिए हम अपनी इस ज़रुरत को सोशल मीडिया के ज़रिये पूरी करने की कोशिश करते है, वर्चुअल दुनिया से जुड़कर। दूसरा कारण हर नयी चीज़ के प्रति लोगों में आकर्षण होता है इसलिए भी सोशल मीडिया बच्चों, युवाओं और बड़ों के बीच चर्चित होता जा रहा है। तीसरा कारण स्मार्टफोन एंड्रॉयड फ़ोन्स ने सोशल मीडिया को आम आदमी की पहुँच में ला दिया है। अब इंटरनेट से जुड़ने के लिए आपको कंप्यूटर या लैपटॉप की ज़रुरत नहीं आप ४०००-५००० हज़ार से शुरू होने वाले स्मार्टफोन के ज़रिये भी ऑनलाइन एक्टिव रह सकते हैं। बस अपनी सिम में इंटरनेट रिचार्ज कराइये और जुड़ जाइए इस वर्चुअल दुनिया से और अगर किसी ओपन वाई-फाई ज़ोन में हो तो आपके फ़ोन में इंटरनेट खुद-ब-खुद काम करने लगेगा। सोशल मीडिया के ज़रिये आप न केवल नए लोगों से जुड़ सकते हैं बल्कि अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों के बिछड़े दोस्तों को यहां ढूंढ कर अपनी पुरानी यादों को ताज़ा कर सकते हैं। अब दूरी कोई बाधा नहीं रही। आप अपने वर्चुअल दोस्तों से ऑडियो, वीडियो, टेक्स्ट किसी भी फॉर्मेट में बात कर सकते हैं। इसके लिए बहुत पढ़ा लिखा होना ज़रूरी नहीं है बस आपको इंटरनेट इस्तेमाल करना आना चाहिए और स्मार्टफोन के फंक्शन्स पता होने चाहिए जो कि बहुत आसान है, आप अपने बच्चों से भी सीख सकते हैं क्यूंकि आजकल की जनरेशन टेक-सैवी जो हो गयी है। फेसबुक पर शायरी, साहित्य, म्यूजिक, मीडिया, थिएटर, आदि से सम्बंधित ढेरों ग्रुप बने हैं आप अपनी पसंद के ग्रुप से जुड़ सकते हैं और अपना भी ग्रुप बना सकते हैं। साथ ही अपना पेज भी। इस तरह वाट्स-अप पर भी आप अपने दोस्तों से चैटिंग कर सकते हैं उन्हें ऑडियो और वीडियो भेज सकते हैं। अगर आप घर वालों से दूर रहते हैं और वहां से उनके लिए कुछ लाना चाहते हैं तो उसकी फोटो व्हाट्स-अप पर भेज कर उसके बारे में उनसे राय ले सकते हैं। ट्विटर पर अपने पसंदीदा फ़िल्मी हस्तियों, क्रिकेट खिलाडियों, नेता, बिजनेसमैन आदि से जुड़ सकते हैं उन्हें फॉलो कर सकते हैं।
ये सिक्के का वो पहलू है जो हम सबको लुभाता है लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू को भी हमें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। इस सिक्के के दूसरे पहलू के बारे में हम मीडिया क्लास में अगले दिन बात करेंगे। इस क्लास में मज़ा तभी आएगा जब आप भी सवाल जवाब करें, अपनी राय मुझे भेजें की आपको ये क्लास कैसी लग रही है और इसमें और किस किस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए। आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में ....

भावना पाठक
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Sunday, September 21, 2014

चुनावों की घोषणा के साथ महाराष्ट्र मेंसीटों को लेकर घमासान शुरू हो गया।इस खींच तान में एक ओर शिवसेना,भाजपा की पुरानी दोस्ती दांव पर लगी है तो दूसरी ओर एनसीपी कांग्रेसका गठबंधन टूटने की कगार पर पहुंच गया है।तो लीजिये चंद दोहे पेश हैं
1
सीटों को लेतर मची है भारी तकरार
लगी दांव पर दोस्ती गठबंधन में दरार
2
महाराष्ट्र में मचा है सीटों पर घमासान
दांता किटकिट देख यह जनता है हैरान
3
राजनीति में ना सगा ना ही कोई गैर
सभी पकड़ते स्वार्थ के दौड़ दौड़ कर पैर

Saturday, September 20, 2014

देखा अापने अारएलडी वालों का हंगामा।लीजिए चंद दोहे पेश हैं
1
बंगले को लेकर मचा है भारी तूफान
स्मृति भवन का अागया इसी बहाने ध्यान
2
पहले भी बंगले कहां खाली करते लोग
अंतिम क्षण तक चाहते सत्ता सुख का भोग
3
कमजोरों के लिए हैं नियम अौर कानून
ताकतवर कानून का करते रहते खून

Thursday, September 18, 2014

तुमने ऐसा क्यूँ किया माँ 


मुझे किस बात की सज़ा दी, मेरा क्या कसूर था माँ ? मैंने ऐसा क्या किया था जो तुम मुझे नाले में बहा आई माँ ? क्या वाक़ई तुमने मुझे इसलिए मारा क्यूंकि मेरी वजह से तुम भाई की ढ़ंग से परवरिश नहीं कर पा रही थी ? अगर तुम मुझे और भाई को एक साथ नहीं संभाल पा रही थी तो मदद के लिए किसी को बुला लिया होता माँ ? और फिर भी मुझे मारना ही था तो कोख में ही मार दिया होता मुझे जन्म क्यों दिया माँ ? कहीं तुमने इस उम्मीद में तो मुझे नौ महीने अपनी कोख में नहीं रखा की भाई की तरह मैं भी लड़का होऊंगी ? अगर मेरी जगह तुमने लड़के को जन्म दिया होता तो क्या उसे भी मेरी तरह मरने के लिए छोड़ आती माँ ? देखो लोग तुम्हारे बारे में क्या क्या कह रहे हैं , तुम्हे मेरा क़ातिल बता रहे हैं माँ। नहीं नहीं तुम मुझे नहीं मार सकती , तुम मुझे खुद से जुदा कैसे कर सकती हो, मैं तो तुम्हारा हिस्सा हूँ न माँ ?

माना कि मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया होगा पर बच्चे तो परेशान करते ही हैं न माँ ? भाई ने भी तो किया होगा और अभी भी करता होगा। वो भी बड़ा कहाँ हुआ है और इस बात की क्या गारंटी की बड़ा होकर वो तुम्हे और पापा को परेशान नहीं करेगा ? मनमानियां नहीं करेगा ? तुम्हारा दिल नहीं दुखाएगा ? जिस बेटे को तुम इतने नाज़ों से पाल रही हो, जिसकी परवरिश की खातिर तुमने मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर कर दिया वो बड़ा होकर तुम्हारा सहारा बनेगा, तुम्हारे कुल को तारेगा क्या इस बात का तुम्हे पक्का भरोसा है माँ ? विश्वास तो उन हज़ारों माँ- बाप को भी अपने बेटों पर भी रहा होगा जो आज वृद्धाश्रम में वक़्त गुज़ार रहे हैं। उन्होंने भी तुम्हारी तरह ढेरों सपने देखे होंगे - बेटे को ऊंचाईयों पर देखने के , पोते-पोतियों के साथ खेलने के , बुढ़ापे में आराम से बहू के हाथ का बना गरमा-गरम खाना खाने के, पर उनके सपनो की दुनिया तो रेत की मानिंद ढह गयी। डरती हूँ कहीं तुम्हारे सपने भी चकनाचूर ना हो जाएं माँ। ये सोचकर सहम जाती हूँ कि अगर ज़िन्दगी के सफर में पापा तुम्हे बीच रास्ते में छोड़ के चले गए तो कहीं तुम्हारा हश्र भी मथुरा-वृंदावन की उन हज़ारों विधवाओं की तरह न हो जिन्हे उनके बेटे खुद वहाँ दर -दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ आते हैं। वो विधवाएं भी तो बेटों वाली होती हैं। क्या उन्होंने अपने बेटों की परवरिश तुम्हारी तरह नहीं की थी माँ ?

कल को जब मैं बड़ी होती तो तुम्हारे काम में तुम्हारा हाथ बटाती , अपने दुःख-सुख तुम मुझसे दोस्तों की तरह साझा कर पाती,  मेरे रहते तुम कभी तन्हा न होती माँ। मैं बड़ी होकर बछेंद्री पाल की तरह एवरेस्ट फ़तेह कर सकती थी, सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला की तरह आकाश में उड़ सकती थी। ज्योतिबा फूले, मदर टेरेसा, सरोजनी नायडू, इंदिरा गांधी जैसी बन सकती थी माँ। एक मौक़ा तो दिया होता, मैं भी तुम्हारा नाम रोशन करती माँ।

अगर तुमने मुझे अपनी कोख में ही मार दिया होता तो इस बात का भरम रह जाता कि तुम पापा और घर के दूसरे लोगों की वजह से ऐसा कर रही हो, ये फैसला तुम्हारा नहीं उनका है, तुम मजबूर थी माँ।  पर तुमने तो मुझे अपने हाथों से मार दिया, क्यूँ माँ ? मैं अभी भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही कि ये फैसला तुम्हारा था माँ क्यूंकि अब तक तो केवल तुम्हारी खुशियों, सपनो और फैसलों पर ही पितृसत्ता का पहरा था पर अब तो तुम्हारी सोच भी उसी रंग में रंग गयी है। तुम भी उनकी तरह सोचने लगी माँ। आखिर तुमने ऐसा क्यूँ किया माँ ?

भावना पाठक
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Wednesday, September 17, 2014

नई सरकार ने अाते ही कड़वी दवा पिलाई थी,जनता अब सरकार को कड़वी दवा पिला रही है।इसी पर चंद दोहे पेश हैं
1
कड़वी दवा पिला रही जनता बारम्बार
उप चुनाव में कमल को मिली हार पर हार
2
मोदी मैजिक न चला साइकिल जीती रेस
उपचुनाव से साफ है जनता को है क्लेश
3
सिग्नल जनता दे रही लगातार हर बार
मुद्दे से भटके नहीं मोदी की सरकार
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Saturday, September 13, 2014

हिन्दी दिवस पर प्रस्ततुत है कविता-

हिन्दी पखवाड़ा

यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
हिन्दी जा कोने में दुबकी
अंगरेजी का बजे नगाड़ा
  यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
गिटपिट गिटपिट हरदम बोलें
अंगरेजी टपके मुंह खोलें
गली गली में उगे हुए
इन कान्वेन्टों ने किया कबाड़ा
  यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
हिन्दी की बिन्दी न जाने
भाषण से फिरभी नमाने
नेता जीने हिन्दी दिवस पर
अंगरेजी में खूब दहाड़ा
     यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा
रोमन लिपि में हिन्दी चलती
कहते इससे सुविधा रहती
सुविधाओं की राजनीति ने
धीरे धीरे खेल बिगाड़ा
    यह कैसा हिन्दी पखवाड़ा

Friday, September 12, 2014

एक समय -गोरे रंग पे इतना गुमां न कर.....गीत ने खूब धूम मचाई थी।सांवले रंग वाले यह गाकर गोरे रंग वालों पर तंज करते थे।बुरा हो इन फेयरनेस क्रीम वाली कंपनियों का जिन्होंने विज्ञापनबाजी के बल पर गोरेपन का ऐसा जादू चलाया किआज युवा गोरेपन वाली क्रीमों पर पानी की तरह पैसा बहा रहा है।हाल ही में केन्द्रीय सूचनाप्रसारण मंत्रालय ने सभी चैनलों को हिदायत दी है किवे रंग गोरा करने की गारंटी देने वा्ले भ्रामक और झूठे विज्ञापनों का प्रसारण नहीं करें।आज इसी परइन दोहों का आनंद लीजिए
1
गोरेपन के ब्यूह में फंसे हुए हम आज
कंपनियां भी लूटने से कब आतीं बाज
2
विज्ञापन तो बेंचते सपनों का संसार
छल फरेब पर है टिका कास्मेटिक बाजार
3
मोटी रकमें लेकरें इनका खूब प्रचार
दिलों पे करते राज जो बालीवुड स्टार
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Thursday, September 11, 2014

सब्र तो करना ही होगा 

जम्मू कश्मीर में आई भारी बाढ़ में फंसे लोगों को अभी सेना और आपदा प्रबंधन के लोग निकाल भी नहीं पाये थे की गुजरात के कई शहरों में भी पानी ने कहर बरपा दिया। अभी भी धरती के स्वर्ग में ५ लाख लोग फंसे हैं और इधर गुजरात में २ लाख लोगों को पानी ने और अपना कैदी लिया। विश्वामित्र नदी समेत कई नदियां उफान पर हैं। सेना को अब ७ लाख लोगों को निकालना है। 

मौत का खौफ क्या होता है ये उससे बेहतर कोई और नहीं बता सकता जिसे बस छूकर मौत गुज़र गयी हो या जिसने अपनी आँखों के सामने  कई लोगों को मौत के मुंह में जाते देखा हो। जो कई दिनों से भूखा-प्यासा पानी में फंसा होगा उसे गुस्सा तो आएगा ही सही पर सेना और आपदा प्रबंधन के लोगों पर गुस्सा दिखाना ठीक नहीं है, जो  आपको बचाने की भरसक कोशिश कर रहा है अपनी ज़िन्दगी की परवाह किये बगैर उनपर हमला करना सरासर ग़लत है। जम्मू कश्मीर में पानी में फंसे कई लोगों ने सेना और आपदा प्रबंधन बल पर पत्थरों से हमला किया जिसमें आपदा प्रबंधन बल के दो लोग ज़ख़्मी हो गए। नेता सिर्फ हवाई यात्रायें कर सकते हैं और वही कर रहे हैं वो आपको सेना के जाबांज़ सिपाहियों की तरह मौत के मुंह से बाहर नहीं निकाल सकते इसलिए आपको खुदा का वास्ता उन्हें ज़ख़्मी न करो जो आपके ज़ख्मों पर मरहम लगा रहे हैं। आपको आपकी ज़िन्दगी प्यारी होगी पर सेना को आप जैसे लाखों लोगों को बचाना है। आपको सब्र करना ही होगा। ये सब्र का इम्तेहान हैं दोस्तों उम्मीद है आप इसमें पास होंगे। 

- भावना पाठक 

आज दिल की कलम से … 

तुम्हारी याद के जब ज़ख्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
हर अजनबी हमें महरम (जानने वाला ) दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली से गुजरने लगते हैं।
                                         - फैज़ अहमद फैज़ 

Wednesday, September 10, 2014

आज दिल की कलम से …… 


कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए
जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा
बहुत से लोग वहीँ  छटपटा के बैठ गए
खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को
वो अपनी अपनी हथेली जलके बैठ गए
दुकानदार तो मेले में लुट गए यारों
तमाशबीन दुकाने लगा के बैठे गए
लहूलुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ लोग उठे दूर जाके बैठ गए
ये सोच कर की दरख्तों की छाँव होती है
यहां बबूल की छाँव में आके बैठ गए।

दुष्यंत कुमार साहब की कलम से 

हम और आप क्या कर सकते हैं …  

धरती के स्वर्ग पर प्रकृति का कहर बरपा है। उत्तराखण्ड के खौफ़नाक मंज़र को अभी हम भूल भी ना पाये थे कि एक और भयावह मंज़र हमारे सामने है। अख़बारों के आंकड़ों के अनुसार जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ में अब तक २२५ लोगों की मौत हो चुकी है, ये संख्या और भी बढ़ सकती है। अलग अलग इलाकों में ६ लाख लोग अब भी फंसे हैं। हालांकि सेना और राष्ट्रीय आपदा राहत बल ने मंगलवार शाम तक ४२,५८७ लोगों को  सुरक्षित बचा लिया है। यहां के स्थानीय लोग भी अपनी जान को जोखिम में डालकर पानी में फंसे लोगों को बचाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए सबसे सेना, राष्ट्रिय आपदा राहत बल और वहाँ के लोगों को सलाम।
बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे लोगों को बचाने में व्हाट्स-अप, फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया भी सक्रीय हुआ है। सोशल मीडिया के ज़रिये भी लोगों को बचाने की कोशिश की जा रही है। श्रीनगर के फारूक इलाके के जवाहर नगर में तीसरी मंज़िल पर नौ माह की गर्भवती फंसी थी। बिल्डिंग के सामने १३ फ़ीट पानी था। उस गर्भवती महिला की बहन ने सेना को फेसबुक और व्हाट्स-अप पर अपील की कि बहन को बचा लो और सेना के जाबांज़ सैनिकों ने उसे बचा लिया। राष्ट्रीय आपदा राहत बल के प्रमुख ओ. पी. सिंह ने कहा अब तक हमें फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स-अप और ई-मेल के ज़रिये ४५३ सन्देश मिल चुके हैं जिसमें कई लोगों ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे अपने सगे-सम्बन्धियों को बचाने और ढूंढने की अपील की है। इतना ही नहीं लोग फेसबुक और ट्विटर पर JKFloodRelief.org वेबसाइट के बारे में भी पोस्ट कर रहे हैं जिसके ज़रिये लोग जम्मू-कश्मीर में फंसे लोगों तक दवाईयां और ज़रुरत का सामान पंहुचा सकते हैं। Donatehere नाम के पेज पर आप जो लोग जम्मू कश्मीर में ज़रूरतमंद लोगों के लिए अलग अलग शहर से काम कर रहे हैं उन लोगों से भी संपर्क कर सकते हैं और अपनी शक्ति अनुसार उनकी मदद कर सकते हैं। ट्विटर पर इस वेबसाइट का एक हैंडल भी है JKFloodRelief नाम से जहां पर आप ये पता लगा सकते हैं की कौन कौन से लोग अभी लापता हैं और किसको बाढ़ से सुरक्षित निकाल लिया गया है। उम्मीद हैं जिन लोगों के सगे-सम्बन्धी वहाँ फंसे हैं उन्हें इस हैंडल पर क्लिक करने से उनका पता चल जाएगा और वो राहत की सांस ले सकेंगे। इसके अलावा भी आप NDRF ke no 011-26107953, 097110-77372 पर कॉल और ndrfq@nic.in पर मेल करके भी वहां फंसे लोगों की जानकारी दे सकते हैं ताकि उन्हें बचाया जा सके।
सोशल मीडिया पर इस मुहीम की सक्रियता देख कर अच्छा लगा। यूँ तो हम फेसबुक, ट्विटर पर घंटों बिताते हैं, अपने दोस्तों से बातें करने के लिए, अपना स्टेटस अपडेट करने के लिए, नयी फोटो अपलोड करने के लिए, उन पर लोगों के लाइक्स और कमेंट्स देखने के लिए। एक गुज़ारिश है थोड़ा सा वक़्त http://jkfloodrelief.org/ इस वेबसाइट को देखने के लिए ज़रूर दें। आप इसे देखेंगे तो पता चलेगा की वहाँ लोगों को किन किन छोटी चीज़ों की ज़रूरत  है जिसे हम और आप आसानी से उन्हें मुहैया करा सकते हैं जैसे टॉर्च, बैटरी, रस्सी, रबर के जूते, बच्चों के कपडे, खाने पीने की चीज़ें आदि लिस्ट बहुत लम्बी है। ज़रूरी नहीं की हम सरकार की तरह रूपए से उन ज़रूरतमंद लोगों की मदद करें पर चीज़ों से तो कर ही सकते हैं। सेना, सरकार, आपदा प्रबंधन और वहाँ के लोग तो अपने स्तर पर बहुत कुछ कर ही रहे हैं आइये हम और आप भी उनकी मदद की ओर एक कदम बढ़ाते हैं।

- भावना पाठक 

Tuesday, September 9, 2014

आज दिल की कलम से … 

मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था
उसी के हाथ का खंज़र मेरी तलाश में है।
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नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद।
मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता खुद को
किसी की चाह न थी दिल में तेरी चाह के बाद।
ज़मीर काँप तो जाता है आप कुछ भी कहें
वो हो गुनाह से पहले के हो गुनाह के बाद।
गवाह चाह रहे थे वो बेगुनाही का
ज़बां से कह न सका खुद खुद गवाह के बाद।
खतूत कर दिए वापस, मगर मेरी नींदें
इन्हें भी छोड़ दो इक रहम की निगाह के बाद।।
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इक ग़ज़ल उसपे लिखूं दिल का तक़ाज़ा है बहुत
इन दिनों खुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत
रात हो, दिन हो, गफलत हो की बेदारी हो
उसको देखा तो नहीं है उसे सोचा है बहुत।
तश्नगी के भी मुक़ामात हैं क्या क्या यानी
कभी दरिया नहीं काफी कभी कतरा है बहुत।
मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े हैं गवाह
मैंने पत्थर की तरह खुद को तराशा है बहुत।
कोई आया है ज़रूर और यहां ठहरा भी है
घर की दहलीज़ पा-ए नूर उजाला है बहुत।
                                             
                                                - कृष्ण बिहारी नूर 





Monday, September 8, 2014

ऐनूर तुझे सलाम 


तुमने इंसानियत का औहदा बढ़ाया है।  एक अपराधी को सबक सिखाया है।  समाज में एक मिसाल कायम की है। ऐनूर इसके लिए तुम सदियों तक याद रखी जाओगी। अपने कलेजे के टुकड़े को खुद से दूर करते हुए कितना बड़ा पत्थर रखा होगा कलेजे पर तुमने। कहते हैं बच्चे में सौ ऐब ही क्यों न हो, दुनिया की नज़र में वो गुनहगार क्यों न हो माँ की नज़र में वो बेगुनाह होता है पर सदियों से चली आ रही इस कहावत को तुमने झुठलाया है। अपने गुनहगार बेटे को खुद गिरफ्तार कराया है। मदर इंडिया फिल्म में भी नर्गिस अपने गुनहगार बेटे को सज़ा देती है। वो तो फिल्म थी। तुम तो असल में मदर इंडिया हो।

तुम चाहती तो चुप्पी साध लेती। किसी को क्या पता चलता ? सात साल की वो अधमरी बच्ची भी किसी को क्या बता पाती ? हो सकता है वो उन झाड़ियों में ही दम तोड़ देती जहां तुम्हारा बेटा तीन और दरिंदों के साथ उसे अपनी हवस का शिकार बनाकर मरने के लिए छोड़ आया था। चाहती तो डाल देती उसके गुनाहों पे पर्दा।
पर तुमने ऐसा नहीं किया। तुम पहले तो झाड़ियों में खून से लथपथ पड़ी उस बेदम बच्ची को लेकर अस्पताल भागी फिर पहुंची थाने और कराया अपने बेटे को गिरफ्तार। उस दौरान कितनी कश्मकश में होगी तुम , कितना कुछ चल रहा होगा तुम्हारे भीतर। एक तरफ तुम्हारे बेटे की ज़िन्दगी थी तो दूसरी तरफ उस मासूम बच्ची की। थाने पहुचने के पहले तक तुम बदल सकती थी अपना फैसला। पर तुम डटी रही अपने फैसले पर।

हो सकता है तुम अपने बेटे की नज़रों में एक पत्थर दिल माँ हो, जिसने खुद अपने बेटे को सलाखों के पीछे पहुंचाया। पर हम सबकी नज़र में तुम एक बड़े जिगरे वाली औरत हो जिसने उस वक़्त खुद पर माँ की ममता को हावी न होने दिया। काश तुम्हारी तरह हो जाएं दुनिया की सब माएं, सभी बेटियां, सारी बहने, सबकी बीवियां जो तोड़ें चुप्पी और गुनहगारों को सज़ा दिलवाएं। हम भी तमाशबीन न बने हरकत में आएं। ऐनूर तुझे सलाम। 

भावना पाठक
http://dilkeekalamse.blogspot.in/
http://bhonpooo.blogspot.in/


सुलगती रहती है ये भावना 


गुस्से में कितनी बार
तुमने क्या क्या कहा है
और मैंने चुपचाप
वो सब सुना है।

बदचलन, बेहया
बेशरम, बेग़ैरत
तुम्हारे लिए
ये गालियां
होंगी महज़ जुगालियां
पर मेरे लिए
मेरे वजूद पर उठाए गए
सवालिया निशान हैं
तुम्हारे कहे
एक एक शब्द।

जिनके तले मैं
दबती ही जाती हूँ
तुम्हारे इस रवैये से
मैं सिहर जाती हूँ।

तुम तो फिर से
पहले जैसे हो जाते हो
पर भीतर तक सुलगती रहती है
ये भावना। 

भावना पाठक
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Sunday, September 7, 2014

ऐ दोस्त तुम भड़कना नहीं 

वो कभी भटकायेंगे
कभी भड़काएंगे 
ग़लतफ़हमी फैलाकर 
आपस में लड़ाएंगे। 

नहीं चाहते हैं वो 
एक होकर रहे हम 
जो एक हो गए हम 
तो वो हार जाएंगे। 

मज़हब और औरतों को
मुद्दा बनाकर 
दुखती रगों पे ही 
वार करते जाएंगे। 

सोशल मीडिया को 
बनाके हथियार   
इससे साम्प्रदायिकता की 
आग वो लगाएंगे। 

प्रेम करने वालों पर 
होगा शिकंजा 
लव-जेहाद होगा 
उनका नया खूनी पंजा
असली मुद्दे तो बहुत  
पीछे छूट जाएंगे 
अफवाहों पर ही 
हम पंजा लड़ाएंगे। 

पर ऐ दोस्त 
तुम न होना
उनकी साज़िश का शिकार 
तुम भटकना नहीं 
तुम भड़कना नहीं। 

भावना पाठक 
bhonpooo.blogspot.in
dilkeekalamse.blogspot.in

अर्ज़ किया है .... 

बहुत दिल भर चुका है , खूब रोना चाहता हूँ 
मैं माँ की गोद में सर रखके सोना चाहता हूँ 
जिसे दौलत या शौहरत से नहीं मतलब कोई भी 
वही मासूम बच्चा फिर से होना चाहता हूँ।।

- सागर सूद 

मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ 

मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ
पर्दा नहीं करती
चुप्पी नहीं ओढ़ती
बराबरी से तुमसे
सवाल जवाब करती हूँ
मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ।

मैं भी पढूंगी, आगे बढूँगी
सपनो को अपने
मैं पंख दूंगी
तुमसे इन सारे हक़ के लिए लड़ती हूँ
मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ।

ज़ुल्म नहीं सहती
खामोश नहीं रहती
हाथ जो उठाओ तो हाथ पकड़ लेती हूँ
मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ।

फब्तियां कसे कोई
पीछा करे कोई
बीच राह में आके हाथ पकड़ ले कोई
ऐसे सिरफिरों को वहीँ शर्मशार करती हूँ
मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ।

भावना पाठक

Saturday, September 6, 2014


बकेट-बकेट

मैं सुबह कि चाय बिस्कुट के साथ मोदी सरकार के सौ दिनों के काम काज का लेखा जोखा अख़बार में पढ़कर अपने दिल को अच्छे दिन आने कि तसल्ली दे रहा था,कि तभी बिना किसी पूर्व सूचना के अचनाक इनकमटैक्स के छापामारों कि तरह बैठक में निरमोही जी ने प्रवेश किया..इसके पूर्व मेरे मुंह से रश्मितौर पर ही सही स्वागत के कुछ शब्द निकलते उन्होनें कुर्सी पर बिना बैठे ही मुझे चलेंज दे ड़ाला भाई साहब में आपको ओपन चेलैंज करता हूं अगर दम है तो मेरा चेलैंज स्वीकार किजीए,वरना अपनी हार मान लिजीए...आपतो जानते हि है..हारे हुए को विजेता कि शर्त कबूल करनी पड़ती है.. सच मानिए बुढापे कि कमस खाकर कहता हूंजवानी कि कसम तो खा नहीं सकता जो छोड़कर चली जाए उस बेवफा को क्या याद करना कि चाय का गिलास हाथ से छूटते छूटते रह गया...दूसरे हाथ ने प्लेट में रखे बिस्कुट को छुआ भर था कि वह उसी मुद्रा में स्टैचू हो गया..शरतंज में भी शह पड़ने के बाद जब राजा के बचने के की कोई अम्मीद नहीं रहती तो खेल खत्म हो जाता है...पर निरमोही जी ने तो ऐसी शह दी थी कि हारने के बाद भी मुझे छुटकारा नहीं मिलता यानी दुहूं भांति भई मृत्यु हमारी....
मैं निरमोही जी को अरसे से और निरमोही जी मुझे जानते है...बल्कि यह कहना अधिक ठीक होगा कि नरिमोही जी मेरी सारी कमियों से और मैं अनकी सारी अच्छाईयों से बाखूबी वाकिफ था...डर तो इसीबात का था कि चुनौती देने वाला पूरी तैयारी के साथ सामने वाले कि पूरी क्षमता का अंदजा लगाकर ही चुनौती देता है, यह अलग बात है कि भूल चूक से आंकलन ग़लत हो गया और चुनौतीकर्ता हार भी जाता है, लेकिन यहां तो इसकी भी गुंजाईश नहीं थी...वे मेरी रग रग से वाकिफ थे...राहत बस इतनी ही थी कि मित्र निरमोही जी हाडकोर सामाजिक कार्यकर्ता है वे सिर्फ और सिर्फ समाज सेवा के लिए ही जी रहे है...यह भी कहा जा सकता है कि समाज सेवा ने निरमोही जी के रुप में मनुष्य का अवतार लिया है, हांलाकि लोगों कि ग़लतफहमी का शिकार हो कर कई बार वे समाज सेवा के चक्कर में पीटे भी है...पर हर बार हंस कर यही कहा गिरते है सह सवार ही मैदाने जंग में वो तिफ्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले निरमोही जी कि समाज सेवा के चलते उनका भाभी जी से अनबोला भी हुआ और हर बार मैने ही निरमोही जी कि पैरवी कर उन्है संकट से उबारा था... इसलिये इतना तो विश्वास था कि इस चुनौती पिछे भी कोई ना कोई समाज सेवा का भाव ही होगा...दूसरे चुनोति स्वीकार ना कर हार मानना और भी मंहगा पड़ता...यह तो वहीं होता कि रोजा छुड़ाने गए थे..नमाज गले पड़ गई..अत: हलाल किये जाने वाले बकरे कि तरह बचने कि कोई राह ना देखकर मैने उनसे चुनौती बयान करने कि प्रार्थना की
निरमोही जी ने कुशल मजमेंबाज कि तरह भूमिका बनाते हुए कहा भाई साहब मेरी चुनौती बहोत सरल है इसमें आपकि एक पाई भी खर्च नही होगी..फिर रंग चोखा होगा..सारी दुनिया आपको देखेगी और आपकी खुशकिस्मती से जलेगी...यह सुनकर एक बार तो पूरे बदनमें झुरझुरी दौड़ गई पता नहीं इसतरह गोल गोलबाते करके निरमोही जी मुझसे क्या कुर्बानी चाहते है....मैने सुन रखा था कि फिदाईनों को भी इसी तरह बहोत ऊंचे ऊंचे सपने दिखाकर हंसते हंसते ज़िंदगी कुर्बान करने के लिए आतंकवादी कैंम्पो में तैयार किया है...अब तो मेरे सब्र का बांध टुट ही गया निरमोही जी कुछ भूमिका बांधते इसके पहले ही मैने लगभग गिड़गिड़ाते हुए निरमोही जी से कहा आप बताईये तो मुझे करना क्या है...उन्होने मेरी घबराहट भांप कर मोहक मुस्कान के साथ कहा भाई साहब आपकों सिर्फ एक बकैट भर कचरा देना होगा...चाहे आप अपने घर की सफाई कर के दे या अड़ोस पड़ोस कि....
यह चेलैंज आप इसके बाद दूसरे को देंगे इस तरह यह श्रंखला बढ़ती जाएगी घर अड़ोस पड़ोस और देश का वातावरण स्वच्छ होता जाएगा महिलाओं पर भी बोझ कम होगा...मै कल सुबह आऊंगा...एक बकेट कचरा कचरा पेटी में डालते हुए आपकी फोटो फेसबुक पर डाल दी जाएगी...इतना कह कर निरमोही जी कमान से छुटे तीर कि तरह निकल गए..और मैं वही बैठा कोस रहा था..कि बेड़ा गर्क हो इन आईस बकेट, राईस बकेट,व्हीट बकेट जैसे किस्म किस्म के बकेट वालों का जिनसे प्रेरणा लेकर निरमोही जी ने कचरा बकेट का मुझे बकरा बनाया...


                                         अजय 

Friday, September 5, 2014

आज शिक्षक दिवस है ,इसी बहाने  गुरूजी के साथ साथ शिक्षा व्यवस्था पर भी एक नजर डाल  ली जाय ।

गुरु की महिमा थी बड़ी जब देता था ज्ञान
शिक्षा अब व्यवसाय है नहीं रहा वह मान

शिक्षाकर्मी आज के हैं ठेका मजदूर
कम वेतन पर काम हर करने को मजबूर

शिक्षा के मंदिर नहीं विद्यालय हैं आज
गढ़ हैं भ्र्ष्टाचार के जानत सकल समाज
 ४
दो रंगी शिक्षा करे दो रंग का यह देश
थोड़े को  सम्पन्नता बाकि को है क्लेश

शिक्षा पैदा कर रही कंपनी हेतु गुलाम
ना खुद के न समाज के आते हैं ये काम

Wednesday, September 3, 2014

एक थी सिंगरौली : भाग ५ 

आपको लग सकता है कि मैं भी उन अतीतजीवियों में से हूँ जो हर पुरानी चीज़ को  ओल्ड इस गोल्ड की तर्ज पर महिमामंडित करते हैं। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि नया कुछ करने की चाह में कितना कुछ हम खो रहे हैं इसका भी ख्याल रखा जाये। क्यूंकि बहुत सी चीज़ों को खोने के बाद हम चाह कर भी दोबारा हांसिल नहीं कर सकते। यह भी देखा जाता है कि कोई भी नयी चीज़ एक और जहाँ ढेरों सुविधाएं लाती है तो दूसरी ओर अपने पीछे समस्याओं की लम्बी कतार भी लाती है। मोबाइल, इंटरनेट देखते देखते दुनिया में छा गए क्यूंकि इन्होने सुविधाओं के अम्बार लगा दिए लेकिन इसके साथ साइबर क्राइम की सुनामी भी आई। अश्लीस एम. एम. एस., फेक आई. डी. आदि के चलते कितनी लडकियां प्रताड़ित हो रही हैं , कितनी ही लड़कियों ने आत्महत्याएं की हैं।  सीधी सी बात है कि भेड़ चाल में शामिल बजाय किसी भी निर्णय पर पहुँचने के पहले उनसे होने वाले फायदे और नुक्सान पर बिना किसी हड़बड़ी के अच्छी तरह से  विचार किया जाना चाहिए वरना देश और दुनिया में और भी सिंगरौली जैसी त्रासदियां होंगी. 

आइये सिंगरौली की बात करूँ।  संभवतः अगस्त १९८४ में हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार स्वर्गीय निर्मल वर्मा सिंगरौली की संक्षिप्त यात्रा पर लोकायन और लोकहित की पहल पर आये थे। उन्होंने परियोजना क्षेत्र- कोयला खदान, बिजलीघर , पुनर्वास बस्ती के साथ साथ माडा के जंगल, ऐतिहासिक गुफाएं और गांवों का भी भ्रमण किया। गांव में धान की रोपाई चल रही थी, घुटनो तक पानी में घुसी, सिरों पर वियतनामी खेतिहर महिलाओं की तरह पत्तियों और बांस से बना लम्बा हैट लगाए, गीत गाते धान की रोपाई करती हुयी महिलाओं को देखकर निर्मल वर्मा जी बहुत प्रभावित हुए थे। दिल्ली जाकर उन्होंने सिंगरौली जहां कोई वापसी नहीं शीर्षक से एक लेख लिखा था। उनकी अनुभवी आँखो ने सिंगरौली का भविष्य उसी समय पढ़ लिया था जिसे हम लोग आज ३० सालों बाद देख रहे हैं। उस लेख में निर्मल वर्मा ने एक घटना का ज़िक्र किया था कि कई वर्ष पहले 
जब वे एक इतालवी कहानी का अनुवाद कर रहे थे तब उन्हें एक शब्द मोलोक का हिंदी समानार्थी शब्द नहीं 
सूझ रहा था। मोलोक ऐसा दैत्य था जो अंधिया उडाता चलता, जो देखते देखते हरी भरी पहाड़ियों और गांव के गांव निगल जाता था। जब  उन्होंने सिंगरौली की कोयला खदान क्षेत्रों में चीखते चिल्लाते मिटटी का पहाड़ उठाये, दौड़ते , धूल भरी आँधियाँ उड़ाते विशाल काय डम्परों, मिटटी काटने की बड़ी बड़ी ड्रग लाइनों, बिजलीघरों से बड़ी मात्र में निकलने वाली कोयले की राख के लिए बनाये गए बड़े-बड़े राख बांधों जिन्होंने गांव के गांव निगल लिया था , पहाड़ों को निगल जाने वाले तमाम स्टोन क्रशरों से उठने वाली पत्थर की धूल को जब उन्होंने देखा तब उन्हें उस इतालवी दानव मोलोक का चेहरा सिंगरौली में दिखाई दिया था। 

निर्मल वर्मा जी का लेख सिंगरौली जहाँ कोई वापसी नहीं उस समय मुझे और कुछ साथियों को छाती पर रक्खी  भारी शिला  जैसा लगा था क्यूंकि उस समय हम सभी उत्साह से लबालब भरे थे लग रहा था विश्व बैंक का  बढ़ता चक्का सिंगरौली में रोक देंगे।  वह तो सिंगरौली में विस्थापन के खिलाफ चले लम्बे संघर्षोंके बाद साफ़ हुआ कि वैश्विक पूँजी के आगे अब तक के ये प्रयास नाकाफी थे। यह सही है की संघर्षों से विस्थापितों को तात्कालिक लाभ हुए लेकिन विश्वबैंक अपने मक़सद में कामयाब रहा। यानि सिंगरौली क्षेत्र में उसने वैश्विक पूँजी के हरावल दस्ते के रूप में निजीकरण के लिए राह बनायीं।  इसीलिए हम सन २००० के बाद से सिंगरौली में ऊर्जा के क्षेत्र में निजी कम्पनिओं आमद देखते हैं जो साल दरसाल  तेज होती गयी। निजी कम्पनिओं के आने के बाद सिंगरौली क्षेत्र मे  विस्थापन का यह तीसरा दौर सबसे भयावह है। निजी कंपनियों के गुंडों की फ़ौज, गांव गाँव में उनके पैदा किये गए दलालों, मूक दर्शक  बने अथवा कंपनियों से सहानुभूति रखने वाले प्रशासन ने स्थानीय लोगों की विरोध की आवाज़ों को उनके हलक में ही घुटने को  मजबूर कर दिया है। 

- अजय 
bhonpooo.blogspot.in 

बरसों बाद...

यादों का एक झोंका आया, हमसे मिलने बरसों बाद 
पहले  इतना रोये न थे, जितना रोये बरसों बाद 

आज हमारी खाक़ पे दुनिया रोने धोने बैठी है 
फूल हुए हैं इतने सस्ते, जाने कितने बरसों बाद 

दस्तक की उम्मीद लगाए, कब तक यारों जीते हम 
कल का वादा करने वाले , मिलने आये बरसों बाद।।

Monday, September 1, 2014

नेता पुत्र पहले भी चर्चा का विषय रहे हैं ,आज भी हैं। रेल मंत्री के पुत्र के बारे में चैनलों ने चटखारेदार खबर दी। नेतापुत्रों  पर चंद लाइनें पेश हैं

नेतापुत्र अगर मैं होता
सुख सुविधाओं के सागर में
खूब लगता गोता
      नेतापुत्र  अगर मैं होता
राजनीति घुट्टी में मिलती
हर दिन शाम सबेरे
झूठ कपट पाखण्ड द्वेष
सब सहचर होते मेरे
देख मुझे नैतिकता डरती
सदाचार तो रोता
     नेतापुत्र अगर मैं होता
गुंडे चलते आगे पीछे
देख सभी भय खाते
 बड़ेबड़े अफसर सब मेरे
घर पर आते जाते
एक इशारे पर ही मेरे
काम खटाखट होता
       नेतापुत्र अगर मैं होता
गिरगिट जैसा रंग बदलता
जब चुनाव आ जाता
गांव गरीब तभी सब भाते
सबको गले लगता
पंद्रह दिन की खेती करके
पांच साल फिर सोता
      नेतापुत्र अगर मैं होता
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