Monday, September 8, 2014

ऐनूर तुझे सलाम 


तुमने इंसानियत का औहदा बढ़ाया है।  एक अपराधी को सबक सिखाया है।  समाज में एक मिसाल कायम की है। ऐनूर इसके लिए तुम सदियों तक याद रखी जाओगी। अपने कलेजे के टुकड़े को खुद से दूर करते हुए कितना बड़ा पत्थर रखा होगा कलेजे पर तुमने। कहते हैं बच्चे में सौ ऐब ही क्यों न हो, दुनिया की नज़र में वो गुनहगार क्यों न हो माँ की नज़र में वो बेगुनाह होता है पर सदियों से चली आ रही इस कहावत को तुमने झुठलाया है। अपने गुनहगार बेटे को खुद गिरफ्तार कराया है। मदर इंडिया फिल्म में भी नर्गिस अपने गुनहगार बेटे को सज़ा देती है। वो तो फिल्म थी। तुम तो असल में मदर इंडिया हो।

तुम चाहती तो चुप्पी साध लेती। किसी को क्या पता चलता ? सात साल की वो अधमरी बच्ची भी किसी को क्या बता पाती ? हो सकता है वो उन झाड़ियों में ही दम तोड़ देती जहां तुम्हारा बेटा तीन और दरिंदों के साथ उसे अपनी हवस का शिकार बनाकर मरने के लिए छोड़ आया था। चाहती तो डाल देती उसके गुनाहों पे पर्दा।
पर तुमने ऐसा नहीं किया। तुम पहले तो झाड़ियों में खून से लथपथ पड़ी उस बेदम बच्ची को लेकर अस्पताल भागी फिर पहुंची थाने और कराया अपने बेटे को गिरफ्तार। उस दौरान कितनी कश्मकश में होगी तुम , कितना कुछ चल रहा होगा तुम्हारे भीतर। एक तरफ तुम्हारे बेटे की ज़िन्दगी थी तो दूसरी तरफ उस मासूम बच्ची की। थाने पहुचने के पहले तक तुम बदल सकती थी अपना फैसला। पर तुम डटी रही अपने फैसले पर।

हो सकता है तुम अपने बेटे की नज़रों में एक पत्थर दिल माँ हो, जिसने खुद अपने बेटे को सलाखों के पीछे पहुंचाया। पर हम सबकी नज़र में तुम एक बड़े जिगरे वाली औरत हो जिसने उस वक़्त खुद पर माँ की ममता को हावी न होने दिया। काश तुम्हारी तरह हो जाएं दुनिया की सब माएं, सभी बेटियां, सारी बहने, सबकी बीवियां जो तोड़ें चुप्पी और गुनहगारों को सज़ा दिलवाएं। हम भी तमाशबीन न बने हरकत में आएं। ऐनूर तुझे सलाम। 

भावना पाठक
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