Friday, January 30, 2015

सामयिक दोहे-----
एक तरफ तो दिनोदिन दिल्ली का चुनावी घमासान जोर पकड़ता जा रहा है दूसरी अोर जयन्ती नटराजन के खुलासे ने कांग्रस की हालत और भी पतली कर दी है।इसी संदर्भ में कुछ दोहे पेश हैं

किरण कवच से लैस हो उतरी है मैदान
ब्यूह भाजपा ने रचा लगा दी पूरी जान

बातें लच्छेदार न आये हरदम काम
जनता तो है चाहती सीधा सा परिणाम

तगड़ी टक्कर दे रही देखो पार्टी आप
झोंके ताकत भाजपा कर विकास का जाप

फूट जयन्ती बम गया किया धमाका जोर
कांग्रेस में खलबली मची हुआ जब शोर

कठपुतली बन गई थी कांग्रेस सरकार
निर्णय हाई कमान का सिर पर रहे सवार

घोटालों ने डुबा दी कांग्रेस की नाव
बड़े खुलासे धर रहे चुपके चुपके पांव
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Thursday, January 29, 2015

सामयिक दोहे-----
अोबामा की भारत यात्रा के दौरान यहां पर मीडिया अोबामामय रहा। कोई गा रहा था अमरीका से आया मेरा दोस्त,कोई इसी में मगन था कि अोबामा ने हिन्दी में नमस्ते,धन्यवाद कहा।देखने की बात तो यह है कि सचमुच अोबामा ने दिया क्या और हासिल क्या क्या किया।इसी संदर्भ में चंद दोहे पेश हैं

पकड़ाया है झुनझुना वादों का इस बार
इतने में ही मगन है भारत की सरकार

देना कम लेना बहुत है अमरीकी दांव
मजबूती से रख रहा धीरे धीरे पांव

अोबामा तो ले गये असली बाजी जीत
मीडिया गाता रह गया दोस्ती के ही गीत
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एक थी सिंगरौली------19
परियोजनाअों के आने से इस इलाके में जो ऊपरी तौर पर बदलाव आये हैं उनसे नई पीढ़ी बहुत प्रभावित है।परियोजनाअों की कालोनियों,उनके शापिंंग सेन्टरों की चमक दमक,वहां के रहन सहन,खान पान ने हमारे नौजवानों को चुम्बक की तरह आकर्षित किया है।अब उन्हें अपने घरों का खाना अच्छा नहीं लगता है,हफ्ते में कम से कम एक बार उन्हें होटलबाजी करनी ही करनी है इसके लिये उन्हें चाहे जो कुछ करना पड़े।बाजार में जो देख कर आते हैं उसी तरह के नये नये फैशन के कपड़े चाहिये।लेकिन कमाई धमाई धेला भर की नहीं।खेती बाड़ी उन्हें अच्छी नहीं लगती,दूसरा हुनर कुछ आता नहीं,तो फिर एक ही रास्ता बचता है अपने शौक पूरा करने का झूठ-फरेब,चोरी-चकारी का।इन्हीं बातों को लेकर घर घर में कलह मची रहती है,सिर फुटौव्वल तक की नौबत आ पहुंचती है।अब हम अपना दुखड़ा कहें किससे।न तो सरकार सुनती है न ही पार्टियां।सरकार तक तो हमारी पहुंच ही नहीं है,न भोपल न दिल्ली।यहां का प्रशासन तो यही रटता रहता है कि सिंगरौली में बहुत विकास हो रहा है,कितनी बड़ी बड़ी परियोजनायें लग चुकीं,कितनी अभी आ रही हैं।सिंगरौली तो अब देश की ऊर्जा राजधानी हो गई है,अब और क्या चाहिये।राजनीतिक पार्टियों को हमारे दुख दर्द से भला क्या लेना देना,उन्हें तो सिर्फ वोट से मतलब रहता है,चुनाव के समय ही वे दिखलाई पड़ती हैं।
        समस्या तो यह भी है कि अपनी इस हालत के लिये हम किसे जिम्मेदार ठहरायें,किसका गिरेबान पकड़ें जाकर।परियोजनायें तो टका सा यही जवाब देंगी कि हमने तो आपकी जगह जमीन कुछ लिया ही नहीं इसलिये हमारी कोई भी जवाबदारी नहीं बनती,आप सरकार को अपनी समस्या सुनाइये।यही सब सोच कर हम चुप मारकर बैठे रहते हैं ,अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं।आखिर में तुलसीदास बाबा की इस चौपाई का ही सहारा पकड़ते हैं कि-होइहैं सोइ जो राम रचि राखा को करि तर्क बढ़ावै शाखा।
         यह सब सुनकर कुछ समय के लिये तो हम स्तब्ध  रह गये थे।उस वक्त तो कोई जवाब नहीं सूझा था।कोई रेडीमेड जवाब है भी तो नहीं।क्योंकी यह बड़ा सवाल है व्यवस्था परिवर्तन से जुड़ा।इसके लिये तो व्यापक और बड़ी लड़ाई चाहिये,कुछ उसी तरह जैसी एक समय जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में छेड़ी गई थी जिसे उन्होंने सम्पूर्ण क्रान्ति का नाम दिया था।लेकिन वह आन्दोलन भी अपने अंजाम तक कहां पहुंच सका था।बीच में ही भटक गया था सरकार परिवर्तन तक जा कर।सत्ता लोलुप राजनेताअों ने जनता की आशाअों पर पानी फेरा था।यह सब तो अब इतिहास की बातें हैं जिन पर काफी कुछ लिखा जा चुका है।
      सिंगरौलिया गांव की उस चर्चा में शामिल लोगों को तब कोई आश्वासन नहीं दे सके थे लेकिन विंध्यनगर की वापसी के समय रास्ते भर हल यही बातचीत करते आये कि अब हमें परियोजना क्षेत्र से दूर के गांवों में जा कर युवकों से समपर्क करना चाहिये और उनके बीच संगठनात्मक गतिविधियां शुरू करना चाहिये।लेकिन कुछ समय बाद ही सामाजिक कार्यकर्ता रोमा ने कुछ साथियों के साथ उत्तर प्रदेश के जनपद सोनभद्र में जमीन के मुद्दे पर एक अध्ययन शुरू किया।रोमा ने इस अध्ययन के संबंध में मधु कोहली से संपर्क किया और उन्हें इस कार्य से जोड़ा।इसी अध्ययन को लेकर जनपद सोनभद्र के मुख्यालय राबर्ट्सगंज में हुए एक सम्मेलन में कैमूर क्षेत्र मजदूर किसान संघर्ष समिति का गठन हुआ जिससे मैं भी जुड़ा।
            -----क्रमश;
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Wednesday, January 28, 2015

                              हिन्दी पखवाड़ा

Tuesday, January 27, 2015

                          lagta nahi

सामयिक दोहे----
गणतंत्र दिवस पर अमरीकी राष्ट्रपति के मुख्य अतिथि के रूप में आगमन और भारत अमरीका के बीच बढ़ती नजदीकियों को देख चीन पाकिस्तान बौखला गये हैं।इसी संदर्भ में चंद दोहे पेश हैं

अमरीकी रुख देख कर चीन होरहा लाल
देता हुआ नसीहतें बजा रहा है गाल

अोबामा आगमन पर भारत में उत्साह
चीन पाक बेचैन हैं भरते ठंढ़ी आह

अोबामा से दोस्ती देखें क्या रंग लाय
हुई बड़ी बातें बहुत सच कितनी हो पाय

जाते जाते दे गये अोबामा उपदेश
आजादी जहां धर्म की सफल वही हो देश
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Monday, January 26, 2015

Sunday, January 25, 2015

एक थी सिंगरौली-------18
नेताअों का चीरहरण शायद काफी देर तक अौर चलता अगर उन्हीं में से एक ने यह कह कर चर्चा पर विराम न लगाया होता कि भाई लोगों नेता पुराण पर हम सारी रात बतियाते रहें तो भी इसका कुछ अोर छोर न मिलेगा यह भी हरि कथा की तरह अनंत है।इस तमाम गलचौर से कुछ हासिल  भी नहीं होने वाला है।मजे की बात यह भी है कि जिन नेताअों की यहां हम बैठकर बखिया उधेड़ रहे हैं अगर उनमें से कोई भी अभी आ जाय तो हम सब के सुर बदल जायेंगे अौर तुरंत ही नेता जी के आवभगत में लग जायेंगे।तो एेसी बक बक से क्या लाभ।बेहतर होगा कि हम उस पर सोच विचार करें जिस समस्या से आज तमाम गांव जूझ रहे हैं। अगर कोई हमें इस समस्या का कोई रास्ता बता दे तो हम पर बहुत उपकार होगा।उन्ही सज्जन ने बात को खोलते हुये कहा कि देखने में तो ऊपर ऊपर लगता है कि हम लोग पहले से ठीक ठाक हैं,पक्की सड़कों पर चलते हैं,बस,रेल से यात्रा करते हैं,आसपास तमाम बाजार हो गये हैं।परियोजनाअों के आने के बाद से यह सब तो तेजी से बढ़ा है लेकिन हमारी मुसीबत उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ी है।यह मुसीबत पहले नहीं थी।
        यह सही है कि गावों में हम लोग मोटा खाते थे, मोटा झोटा पहनते थे।खेती- किसानी पशुपालन,बागववानी ही गुजर बसर का जरिया था।इसी में पीढ़ी दर पीढ़ी हम लोग रमे रहते थे।खेत खलिहान से फुरसत मिलती तो नाते रिश्तेदारी में घूम-बाग आते।बहुत हुआ तो साल में इलाके में जो दो चार मेले लगते जैसे शक्तीनगर में ज्वालामुखी देवी का मेला,औड़ी मोड़के हनुमान जी का मेला या फिर कोहरौल या पचौर में शिवरात्री का मेला वहां घूम आते बस इसी के इर्द गिर्द हमारी दुनिया थी,उसी में हम रमे थे।सिंगरौली क्षेत्र के बाहर बड़े शहर तक बहुत ही कम लोग पहुंचपाते थे।परियोजनाअों के आने से नजारा ही बदल गया।अब परिवारों में जो कलह अौर टेंशन है वह अलग ही तरह की है।हम अभी तक विस्थापित तो नहीं हुए अपनी जमीनों,घरों से लेकिन अब हम बहुत परेशान हैं अपने ही घरों के लड़कों,भाई-भतीजों, नाती-पोतों से।यह समस्या सिर्फ कुछ घरों या एक दो गांव की नही है।आस पास के किसी गांव में चले जाइये यही सब सुनने को मिलेगा कि परियोजनाअों के आने से सबसे ज्यादा  हमारी नौजवान पीढ़ी बिगड़ी है।यहां पर गांवों के लड़के इतने पढ़े लिखे तो हैं नहीं कि प्लांट में नौकरी पा जांय।नौकरी जब विस्तापितों के लिये ही नहीं है जिनकी जगह जमीन गई है तो हमारे लड़कों को भला क्या मिलेगी।इन्हें तो ठेका मजगूर के रूप में भी काम नहीं मिल पाता क्योंकी अधिकतर ठेकेदार बाहर से लेबर लाता है जो हर तरह से उसके दबाव में रहते हैं।
        समस्या इतनी ही नहीं है,हम लोग खेतिहर किसान हैं हम लोगों की कारखनिया मजदूरों की तरह रोजाना आठ आठ,दस दस घंटे खटने कीआदत नहीं है,हमारे लड़के भी बिलासपुरिया मजदूरों की तरह हाड़ तोड़ मेहनत नहीं कर सकते इसीलिये ठेकेदारी में कुछ दिन काम कर खुद ही काम छोड़ कर चले आते हैं।इस तरब गांव के इन नौजवानों के पास घरों में बेरोजगार पड़े रहने के अलावा कोई चारा नहीं है।अब दिन भर ये लड़के गांव में इधर से उधर आवारागर्दी करते फिरते हैं या अगर कहीं चार छह इकट्ठे हो गये तो ताश पत्ती खेल कर दिन काटेंगे।अगर बात यहीं तक सीमित रह जाती तो भी गनीमत थी।असली समस्या तो इसके आगे है।अंधेरा होते ही इन्हीं लड़कों में से कुछ गांव के बाहर सड़क के किनारे किसी पुलिया पर या किसी सूनसान जगह पर मुुंह पर अंगौछा बांध कर खड़े हो जाते हैं और छोटी मोटी राहजनी की वारदात करते हैं।कभी कोई बड़ी वारदात होगी तब पकड़े ही जायेंगे तब घर खानदान की सारी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी।अब तो हर समय यही डर लगा रहता है कि पता नहीं कब बहकावे में पड़ कर घर के ही लड़के इस कुकर्म में शामिल हो जांय और परिवार के मुंह पर कालिख पोत दें।सबसे बड़ा सवाल है कि हम क्या करेें।लड़कों को जानवरों की तरह घर में बेड़ कर रख भी तो नहीं सकते।चौबीसो घंटे उनकी निगरानी भी तो नहीं की जा सकती।कितना टोकें,कितना रोकें उन्हें।
..........क्रमश:
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                           neta putr

Saturday, January 24, 2015

एक थी सिंगरौली----17
अपने देश में नौकरी का आकर्षण पहले भी बहुत था अौर आज भी कम नहीं है।यह भी कटु लेकिन सत्य है कि अधिकांश लड़कियों के पिता नौकरीपेशा वाले लड़के को ही अपना दामाद बनाना पसंद करते हैं।छोटे मोटे व्यापार, खेती किसानी करने वाले लड़कों से जल्दी कोई अपनी बेटी नहीं ब्याहना चाहता है।इसीलिए शुरू शुरू में लोगों ने बिजलीघरों के लिये जमीनें दीं क्योंकी नौकरी के साथ साथ परियोजना की कालोनी में सहने के लिये क्वार्टर भी मिल रहा था जहां बिजली ,नल,सड़क,स्कूल,अस्पताल,शापिंग काम्प्लेक्स,खेल के मैदान,सुन्दर पार्क जैसी सारी आधुनिक सुविधायें मौजूद थीं।एेसे में भला कौन इंकार करता।सिंगरौलिया गांव में हुई उस दिन की चर्चा में कुछ लोगों ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि शुरू में तो नौकरी का लालच था लेकिन अब तो साफ कहा जा रहा है कि नौकरी नहीं देंगे सिर्फ मुआवजा भर ही मिलेगा।आप ही बताइये कि मुआवजे की रकम से कब तक पेट पालेंगे परिवार का जब तक कि आमदनी का कोई स्थाई जरिया न हो हमारे पास।जमीन से तो हमारी पुश्त दर पुश्त खाती है।नौकरी  भी तो सिर्फ एक ही पीढ़ी को मिलेगी,बाद वालों का क्या होगा।मुआवजा तो मिलने भर की देर होती है,जैसे ही रकम बैंक खाते में आयी नहीं कि हाथों में खुजली शुरू हो जाती है।एेसे में कौन होगा जो खुशी खुशी जमीन के बदले केवल मुआवजा लेकर हमेशा के लिए अपना हाथ कटवाना चाहेगा।हालत तो यह है कि जब भी जहां कहीं भी प्लांट लगने की खबर उड़ती है वहां आसपास की जमीनों के भाव तुरंत आसमान छूने लगते हैं।जमीनों का हमें जितना मुआवजा मिलता है उस रकम से उतनी जमीन खरीद पाना तो बहुत बड़ी बात है हम उसकी आधी जमीन भी नहीं खरीद पाते हैं।कभी कभी तो एेसा भी देखा गया है कि जब तक हम जमीन ढ़ूंढ़ पायें मुआवजे की सारी रकम ही खुर्द बुर्द हो जाती है। इसीलिये तो लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है।खाते में मुआवजे की रकम आने पहले ही लड़कों की हीरोहोंडा की फरमाइश शुरू हो जाती है।हीरोहोंडा के साथ साथ और भी खर्चे तो आते हैं,पेट्रोल का खर्च,मरम्मत का खर्च वगैरह।फिर इतने भर से ही तो जान नहीं छूटती,पुरनिया सयानों को तीरथ बरत की धुन सवार होती है।नहीं तो देखा देखी में कथा भागवत तो करानी ही पड़ती है।कभी कभी तो नासमझी या अनुभवहीनता के कारण घरके लड़के ,भाई-भतीजे कोई बिजनेस शुरू करने के चक्गकर में काफी रकम डुबा देते हैं।गरज यह कि तमाम नये नये खर्चे निकल आते हैं और देखते ही देखते सारी रकम भाप की तरह उड़ जाती है।इस तरह हमने तो यही देखा है कि प्लांट के लिये जमीन देना घाटे का सौदा ही साबित हुआ है।इसलिये हम तो अपनी जमीन नहीं देना चाहेंगे प्लांट में।
             सिंगरौलिया गांव में यह सब सुनकर हमारा हौसला बढ़ा,यही तो हम भी कहना चाहते थे जो हमने अब तक सिंगरौली में देखा था।तभी हमारे उत्साह पर पानी फेरते हुए एक बुजुर्ग ने कहा कि मन के लड्डू खाना अलग है और हकीकत अलग।क्या आज तक सिंगरौली में कोई प्लांट रुक पाया है।सरकार से भी जबर कोई है क्या।सरकार के पास तो पुलिस है, मिलिट्री है, जो चाहती है जब चाहती है फोर्स लगाकर कर लेती है।देखा नहीं है क्या विंध्याचल प्लांट के लिये किस तरह से  मटवई बाजार खाली करवाया गया था।भूल गये क्या कि इसी प्लांट के लिये एक बार फिर फोर्स बुलाकर शाहपुर गांव खाली करवाया गया था।सुना है कि रिहंद नगर में तो एेसे दबंग को सोच समझकर ठेका दिया गया था जो अपने लठैतों के बल पर गांव वालों से जमीन खाली करवा सके।इसलिये हम तो यही देखते आये हैं कि प्लांट के लिये जमीन तो देनी ही पड़ती है चाहे खुशी से दो या टेसुआ बहाकर।तभी चर्चा का रुख मोड़ते हुए एक अपेक्षाकृत थोड़ा कम उम्र के व्यक्ति ने जो रेडियो,अखबार आदि के जरिये देश-दुनिया की खबरों से वाकिफ थे कहा कि कंपनियों की मनमानी अपने यहां सिंगरौली में कुछ ज्यादा ही चलती है जबकी दूसरे प्रदेश में लोग इनको नाकों चने चबवा देते हैं और मुआवजा भी ज्यादा लेते हैं।सौ बात की एक बात यह है कि हमारे सिंगरौली में ढ़ंग का लड़ने वाला नेता ही नहीं है वरना यह दुर्दशा नहीं होती।अभी तक तो यही देखने में आया है कि ज्यादातर लोग थोड़ा बहुत हो हल्ला मचाकर अपनी गोटी फिट करने में लग जाते हैं,बाकी जनता जाये चूल्हे भाड़ में।इतना सुनते ही वहां उपस्थित सभी लोगों ने अानन फानन में अपनी अपनी तोप का मुंह नेताअों की अोर खोल दिया और शुरू हो गया नेता पुराण।लोग रस ले लेकर नेताअों की बखिया उधेड़ने में लग गये।तमाम गड़े मुर्दे उखाड़े जाने लगे।
......,,,क्रमश:
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Friday, January 23, 2015

Saturday, January 17, 2015

                       ye faisle                             
सामयिक दोहे----
लीजिये साहब, किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने से दिल्ली का दंगल अब और भी दिलचस्प हो गया है।इसी संदर्भ में पेश हैं चंद दोहे
किरण केजरीवाल में जंग देखिये आप
राजनीति में है सगा ना बेटा ना बाप

पट्ठों में ही देखकर जंग हैं अन्ना मौन
कहें तो किससे क्या कहें सुनेगा उनकी कौन

मतदाता चकरा रहा दृष्य देखकर आज
पट्ठे दोनो एक के धरे वह किस पर ताज

दिल्ली का दंगल हुआ मिर्च मसालेदार
होते क्या क्या पैंतरे कैसे कैसे वार
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Wednesday, January 14, 2015

एक थी सिंगरौली-----16
यह बात सन् 1998 या1999 के शुरुआत की है ठीक ठीक याद नहीं।यह जरूर याद है कि वह दौर निराशा का था।विश्वबैंक के इंस्पेक्शन पैनल से हल्की ही सही एक उम्मीद तो जगी थी कि विस्थापितों की समस्याअों की सुनवाई होगी।विस्थापितों के प्रति एनटीपीसी का रवैया शुरू से ही असंतोषजनक था।पुनर्वास और विस्थापित उनके लिए हमेशा ही सिरदर्द रहे हैं।पुनर्वास के मामले में भरसक टालमटोल और कम से कम खर्च में काम निकालने की नीति अपनाई गई।लेकिन विश्वबैंक ने भी इस बार दिखला दिया था कि एेसे ही नहीं एनटीपीसी को विश्व बैक का मानस पुत्र कहा जाता है बल्कि विश्वबैंक सचमुच एनटीपीसी का बाप है।
विश्वबैंक इंसपेक्शन पैनल में सिंगरौली के विस्थापितों की अोर से याचिका दायर किये जाने के बाद जब पैनल ने प्रारम्भिक जांच और बाद में डेस्क इंक्वायरी में भी विश्वबैंक को अपने ही बनाये नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया तब विश्वबैंक अपने असली रूप में आ गया।गल्ती सुधारने के नाम पर विश्वबैंक की अोर से बिना विस्थापितों से कोई परामर्श किये ही कार्यक्रम बनाया गया।इसके क्रियान्वयन की जांच के लिये जो उच्चस्तरीय निगरानी समिति भी बनाई उसमें भी विस्थापितों का प्रतिनिधित्व नहीं रक्खा गया।इस तरह शक्तिहीन इंडिपेंडेंट मानीटरिंग पैनल और मनमानी निगरानी समिति बनाकर जिस तरह से दुनिया की नजरों में विश्वबैंक ने धूल झोंका उससे निराशा ही हुई।इसके बाद ही यह मानस बना कि उन गांवों पर ध्यान दिया जाय जो अभी विस्थापन की चपेट में नहीं आये हैं।तभी मधु कोहली के साथ हिरवाह,सिंगरौलिया गांव जाना हुआ।
विश्वबैंक की अोर से सिंगरौली क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण अध्ययन करवाये गये,यह अलग बात है कि उन अध्ययनों की रिपोर्टें धूल ही खाती रहीं।सिंगरौली क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण अध्ययन एक ब्रिटिश संस्था द्वारा किया गया जो जीएचके स्टडी के नाम से जानी जाती थी।इस अध्ययन की खास बात यह थी कि इसमें काचन-मयार नदी के इलाके में कृषि के विकास पर ध्यान देने की सलाह दी गई थी।इसके पीछे यह तर्क था कि काचन-मयार नदी वाला भूभाग अत्यधिक उपजाऊ है यहां आधुनिक खेती को बढ़ावा देकर अच्छी पैदावार ली जा सकती है।इस प्रकार से सिंगरौली क्षेत्र में परियोजनाअों के कारण बढ़ी हुई आबादी की खाद्य समस्या का स्थानीय हल निकाला जा सकता है।इस उपजाऊ इलाके में कोई ऊर्जा परियोजना न लगाकर सघन खेती को बढ़ावा देने की बात के समर्थन में तर्क यह था कि कृषि क्षेत्र में रोजगार की कहीं ज्यादा संभावनायें हैं जबकी ऊर्जा परियोजना जैसी भारी पूंजीवाली परियोजनाअों में लगने वाली पूंजी के मुकाबले में रोजगार की संभावना कम होती है।
हमें इस रिपोर्ट का ध्यान सिंगरौलिया गांव में बैठकर लोगों से चर्चा करते समय उस वक्त आया जब उन्होंने एक अलग ही समस्या सामने रक्खी जिसका निदान उन्हें उनके बूते के बाहर लग रहा था।हम लोग जब सिंगरौलिया गांव हिरवाह होते हुए पहुंचे तो एक जगह चार-छह लोगों को इकट्ठा देख कर वहीॆ रुक गये।अपना परिचय देने और थोड़ी औपचारिक बातचीत के बाद हमने लोगों के सामने यह प्रश्न रक्खा कि अगर आपके गांव में कोई परियोजना आये तो क्या आप लोग अपनी जमीनें देंगे,इस पर अलग अलग राय सुनने को मिली।कुछ लोगों का कहना था कि प्लांट के लिए जमीन लेते समय तो बहुत वादे किये जाते हैं,बहुत सपने दिखाये जाते हैं।एेसा लगता है कि प्लांट लगने से ही हमारा जीवन खुशहाल होगा,बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा और प्लांट का विरोध करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना है।बाद में यह सब शेखचिल्ली का सपना लगता है। जमीन लेने के बाद तो परियोजना अधिकारियों का नजरिया एकदम बदलजाता है।विस्थापितों को तो वे फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते।शुरू में जिन गांव वालों के गले में बांह डाल कर घूमते हैं,जिनके साथ चाय पीते हैं वही विस्थापित होने के बाद उनके लिए सिरदर्द हो जाता है।शक्तिनगर,अनपरा,रिहंद,विंध्यनगर की यही कहानी रही है,लोग बार बार ठगे गये।सबसे ज्यादा उपेक्षित विस्थापितों की बस्तियां ही रही हैं।  
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                    naye hathiyar

Thursday, January 8, 2015

दोहे---
फिल्म पीके पर मचे बवाल अौर पैगम्बर के अपमान का बदला लेने के नाम पर पेरिस में हुए आतंकी हमले के संदर्भ में पेश हैं चंद दोहे
लोग तो पीके देखकर मजे रहे हैं लूट
धरम के लम्बरदार भर रहे हैं छाती कूट

धरम को धारण कीजिए पाखण्ड पीछे छोड़
प्रेम दया करुणा सहित सेवा उसमें जोड़

जीवन में आनन्द हो सब धर्मों का सार
दुख ही लाता है सदा नफरत का व्यापार

आतंकी करें धर्म की रक्षा कर संहार
नफरत से वे चाहते जग में फैले प्यार
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Sunday, January 4, 2015

Friday, January 2, 2015

हर नये वर्ष का स्वागत बहुत उतसाह,उमंग,खुशी के साथ किया जाता है।उम्मीद रहती है कि आने वाला वर्ष अपनी झोली में हमारे लिये ढ़ेरों सौगात लायेगा।इसलिये नये वर्ष के आगमन पर दिल से यही दुआ निकलती हैकि इंसानियत का मेला चलता रहे,उमंग भरे चेहरों पर हंसी सजती रहे,दुखों,अन्याय,शोषण की काली घटायें मिट जायें।सभी मित्रों को नये वर्ष की शुभकामनाअों के साथ चंद पंक्तियां पेश कर रहा हूं
जश्न जारी ये रहे मांगू दुआएं
हर लबों पर हो हंसी मांगू दुआएं

अब घिरें न जंग की काली घटायें
अमन की बंशी बजे मांगू दुआएं

भेद की दीवार कोई भी रहे न
रहे बस इंसानियत मांगू दुआएं

आसमां के गालों पे ऊषा की लाली
रोज ही सजती रहे मांगू दुआएं

गुलों की मुस्कान अौ भौरों की गुनगुन
ताजगी भरती रहें मांगू दुआएं

शाम अंबर में लगे रंगों का मेला
अनवरत चलता रहे मांगू दुआएं

भोर नित पंछी सुनाते गान सुमधुर
तान ये चलती रहे मांगू दुआएं

सफर लंबा राह भी आसां नही है
हौसला कायम रहे मांगू दुआएं
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