Friday, October 31, 2014

एक थी सिंगरौली- भाग-8
स्वतंत्र मानीटरिग पैनेल के गठन का किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है।इसे बनाया तो गया था मुसीबत से गला छुड़ाने के लिए लेकिन उल्टे यह विश्वबैंक अौर एनटीपीसी के गले की फांस बन गया था।आइये देखें कि यह पूरा माजरा क्या था।
  वैसे तो ब्रेटनवुड-ट्विन्स के नाम विख्यात इन वैश्विक संस्थाअों-विश्व बैंक अौर आई एम एफ  का जन्म दूसरे विश्व युद्ध से जर्जर यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए हुआ था पर ये यूरोप के बाहर दूसरे देशों को भारी पूंजी आधारित विकास के लिए आर्थिक सहायता देती रही हैं।विश्व बैंक ने ऊर्जा परियोजनाअों-विशोषकर बड़े बांधों, बिजलीघरों,कोयला खदानों के लिए लैटिन अमेरिका,एशिया,अफ्रीका महाद्वीप के देशों में कर्जे दिये। यह भी दिलचस्प बात है कि भारत में विद्युत उत्पादन क्षेत्र की अग्रणी संस्था एनटीपीसी का जन्म भी विश्व बैंक की पहल पर हुआ था।एक समय तो एनटीपीसी विश्वबैंक का इकलौता चहेता संस्थान था जिसे उसने दुनिया में सबसे अधिक आर्थिक सहायता दी थी।
  विश्वबैंक ने कर्ज देने के लिए लम्बी चौड़ी गाइड लाइन्स बना रक्खी है।कर्ज देने के पहले ही संबंधित परियोजना का पर्यावरणीय,सामाजिक आर्थिक आदि कई प्रकार का सर्वेक्षण करवाया जाता है।इन गाइड लाइनों का पालन करते हुए तमाम शर्तों के साथ किस्तों में रिण दिया जाता है।पहली किस्त के साथ ही निगरानी भी शुरू हो जाती है,सबकुछ ठीक ठाक होने पर ही परियोजना को अगली किस्त दी जाती है।यानी गड़बड़ी की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं दिखती,सबकुछ चाक चोबन्द।अगर आप एेसा सोच रहे हैं तो माफ करियेगा आप गल्ती पर हैं।आपने सुना तो होगा ही कि हाथी के दांत खाने के अौर,दिखाने केअौर होते हैं,जी हां,यह कहावत विश्वबैंक पर बिलकुल फिट बैठती है।विश्वबैंक की कलई तब खुली जब सिंगरौली के विस्थापितों की अोर से विश्वबैंक के खिलफ वाशिंगटन में पिटीशन दायर की गई उन्हीं के द्वारा बनाये गये इंस्पेक्शन पैनेल में।है न मजेदार कहानी।बालीवुड फिल्मों की तरह इसमें भी कम ट्विस्ट अौर टर्न नहीं हैं,बस,देकते चलिये।
    आपने देखा होगा जिस तरह दूकानों में लिखा रहता है-एक दाम-उधार मांग कर शर्मिन्दा ना करें आदि पर मोल भाव भी चलता है अौर उधारी भी।कई दूकानों में नीति वचन या संतों के अनमोल वचन के स्टिकर लगे तो रहते हैं पर उनका पालन ना तो खुद कभी दूकानदार करता है अौर ना ही आने वाले ग्रहक से एेसी कोई अपेक्षा रखता है।बस समझ लीजिये एेसा ही कुछ हाल विश्वबैंक का भी हैं।यहां भी रिण मंजूर करने की आपाधापी में बहुत सी बातों की अनदेखी की जाती है। रिण मंजूर होने के बाद फिर भला कौन देखता हैं कि शर्तों का पालन हो रहा है या नहीं।कर्ज देनेवाला भी मस्त अौर लेनेवाला भी क्योंकी पिसना तो स्थानीय लोगों को पड़ता है जिनका विकास के नाम पर सब कुछ छिन जाता है।अब इस बात का अच्छा उदाहरण सिंगरौली बढ़कर अौर कहां मिलेगा।
   सिंगरौली में ए्नटीपीसी का पहला बिजलीघर विश्वबैंक की मदद से शक्तीनगर में लगा।इस बिजलीघर की शुरुआत सन् 1978 में हुई अौर इससे विस्थापित कई गांव के लोगों को चिल्काडांड विस्थापित बस्ती में बसाया गया।इस बस्ती से  एक अोर तो रेलवे लाइन है दूसरी अोर कोयला खदान जिसके कारण यहां रहनेवालों का जीवन नर्क बन गया।अब तक इनके तमाम मवशी रेलवे लाइन से कट कर मर गये।खदान में होने वाली ब्लास्टिंग से घरों में दरारें पड़ गईं।लंबे समय तक बस्ती में बुनियादी नागरिक सुविधाअों का अभाव रहा।विश्वबैंक का जांच दल दिल्ली आकर फाइलों की जांच से संतुष्ट होकर चला जाता था।एक बार  भी सिंगरौली आकर मौके का मुआयना करना उन्होंने कभी भी उचित नहीं समझा जब तक की वाशिंगटन में हल्ला गुल्ला नहीं मचा.

वाह साहब कालेधन पर क्या पैंतरेबाजियां हुईं हैं।इसी पर पेश हैं चंद दोहे
1
ब्लैक मनी पर आपने खूब बजाई बीन
हो हल्ला के बाद ही नाम बताये तीन
2
कालेधन पर मिली जब कड़ी कोर्ट फटकार
अगर मगर तब छोड़कर नरम हुई सरकार
3
पर्दा कब उठ पायेगा यह तो जानें राम
बंद लिफाफे में अभी तो हैं सारे नाम
4
कालाधन कब आयेगा अब भी बड़ा सवाल
कहीं ठोंकते रहें ना बस यों ही सब ताल
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Thursday, October 30, 2014

आज दिल की कलम से  …
अहमद नदीम क़ासमी 


कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊंगा
मैं तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाऊंगा

तेरा दर छोड़के मैं और किधर जाऊंगा
घर में घिर जाऊंगा, सहरा ( जंगल) में बिखर जाऊंगा।


Tuesday, October 28, 2014

खबर है बड़बोले मियां बिलावल को लंदन मिलियन मार्च में बहुत बेआबरू होना पड़ा।मार्च तो फ्लाप था ही,मियां पर सड़े अंड़े,टमाटर फेंके गये।इसी पर चंद दोहे पेश हैं
1
काश्मीर पर हो गया मिलियन मार्च शो फ्लाप
सच्चाई से भागते रहेंगे कब तक आप
2
शहजादे का कर दिया पब्लिक ने सम्मान
लंदन में अंड़े सड़े पड़े हुआ कुछ ज्ञान
3
मियां बिलावल बन रहे थे अगिया बैताल
पब्लिक ने दिखला दिया आइना तत्काल
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Sunday, October 26, 2014

 बचपन दोबारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
चला गया था दूर यह मुझसे करके मुझको बेचारा
               सपनों के पीछे भागा हूं
                अपनों के पीछे भागा हूं
                परछांई के पीछे दौड़ा
                 बहुत तेज सरपट भागा हूं
छलती रही सफलता अब तक हुए कभी न पौ बारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
                  टिमटिम संग घूमा करता हूं
                   झूले पर झूला करता हूं
                    पेड़ों के नीचे जा करके
                    चिड़ियों के गाने सुनता हूं
कभी चूम लेती गालों को चंचल हवा ये अावारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
                     कंकड़ पत्थर बने खिलौने
                     मंहगे ट्वाय हुए लो बौने
                      भरें चौकड़ी एेसे बच्चे
                       जैसे हों कोई मृग छौने
बच्चों के संग खेल बुढ़ापे को अब मैने ललकारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
                      छुपी छुपौवल,आंख मिचौनी
                       कभी गीत तो कभी कहानी
                       अक्कड़ बक्कड़ कभी खेलते
                        कभी हैं गाते पानी पानी
नजर लगे ना बचपन को हो जाये फिर नौ दो ग्यारा
देखो तो पाया है मैने अपना बचपन दोबारा
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Saturday, October 25, 2014

भाई जी मैं कासे कहूं.....   (भाग-2)
अगर कोई तत्काल मुझसे पूछे कि शांति के क्षेत्र में मैने एेसा कौन सा उल्लेखनीय कार्य किया है तो मेरे पास कहने लायक एेसी कोई बड़ी उपलब्धी तो नहीं है सिवा इसके कि एक बार मुहल्ले में दो लड़ते हुए सांड़ों को अपनी जान जोॆखिम में डाल बड़ी मुश्किल से अलग कर उनके बीच शांति स्थापित की थी।इसके बाद अगर याद करूं तो कम से कम दो बार अौर अपने मुहल्ले की दो झगड़ालू महिलाअों मेंअपनी इज्जत का फलूदा बनवाकर भी बीचबचाव कर मुहल्ले में शांति स्थापित की।बचपन की ज्यादा याद तो मुझे है नहीं पर मां बताती हैं कि कभी कभार जब पिता जी बहुत गुस्से में मां से गाली गलौज करते तो मैं मां से लिपट कर जोर जोर से रोते हुए आसमान सिर पर उठा लेता था अौर मां पिटने से बच जाती थीं।इसी प्रकार के शांति स्थापना के मेरे बचपन के कुछ अौर किस्से हो सकता है मेरे मुहल्ले के लोग बता सकें।
  पर मेरी समस्या तो कुछ अौर ही है जिस वजह से मैं अपना भोर का सपना किसी से बताने में डर रहा हूं।अब एक वजह तो यही है कि यह भनक लगते ही कि नोबल पुरस्कार मिलने वाला है मेरे सारे नये पुराने उधारदाता अपना खाता बही बगल में दबाये बधाई देने के बहाने आ धमकेंगे।यह भी हो सकता है कि मेरे गोलोकवासी पिता जी को कर्ज देने वाले भी मुझे लायक बेटे का सम्मान दे्ने के लिए मय सूद अपना कर्ज वापस ले्ने आ जांय।पूज्य पिता जी ने हमेशा चार्वाक दर्शन-रिणम् कृत्वा घृतम् पिबेत-का सम्मा्न किया अौर भारत सरकार की तर्ज पर उधार पर उधार ले कर अपना जीवन तो नबाबी ठाठ से बिताया अौर जाते जाते बाकी परिवार को भगवान भरोसे सड़क पर खड़ा कर गये।
    डर की दूसरी वजह तो मेरे पड़ोसी ,मुहल्लेवाले ही हैं जिन्होंने वक्त बे वक्त कभी माचिस की दो तीली देकर,तो कभी एक दो चम्मच चीनी,कभी दो चार आलू प्याज,कभी थोड़ी सी चाय पत्ती देकर उस वक्त तो बेशक हमारी लाज बचाई पर बाद में पूरे मुहल्ले में अपनी इस उदारता का बारम्बार बखान कर हमारी पगड़ी उछाली।जैसे ही उन्हें पता लगेगा कि मुझे बड़ी पुरस्कार राशि मिलने वाली है,बस शुरू हो जायेगा अपनी बरसों पुरानी उदारता की याद दिला कर मुझसे सहयोग मांगने का सिलसिला।किसी के लड़के का इंजीनियरिंग में एडमीशन बिना मेरे सहयोग के रुक रहा होगा,तो किसी का अधूरा बना पड़ा माकान मेरे सहयोग की बाट जोह रहा होगा,वगैरह वगैरह।इसके बाद नंबर आता है रिश्ते-नातेदारों का।पूज्य पिता जी के साथ ही उनके नबाबी दौर के जाते ही जिन रिश्तेदारो ने तोते की तरह नजरें फेर ली थीं वे सब के सब नोबल पुरस्कार की खबर पाते ही प्रवासी पंछियों की तरह घर पर आना शुरू कर देंगे अौर बार बार पिता जी की नवाबी ठाठ,दरियादिली का बखान शुरू कर देंगे।यहां भी किसी की ब्याह योग्य लाड़ली के लिए सुयोग्य वर खोजने से लेकर उसकी शादी तक का सारा दायित्व मेरे ही कन्धों पर होगा क्योंकी अगर पूज्य पिता जी होते तो भला उनके बहनोई साहब को किस बात की चिन्ता होती।भगवान ने अगर मुझ पर इतनी कृपाकी है तो फूफा जी का मुझ पर इतना हक तो बनता  है।
      अगर इतने भर से छुटकारा मिल जाय तो भी बड़ी गनीमत समझिये दरअसल पिक्चर तो अभी बाकी ही है,यानी मुसीबत तो सिर्फ शुरू हुई है।जरा सोचिये चैनलों में जैसे ही मुझे नोबल पुरस्कार मिलने की खबर आयेगी चंदा मांगनेवालों,इण्टरव्यू लेने वालों का तांता घर पर लग जायेगा जिन्हें सादा चाय पिलाने में ही अपना तो जनाजा निकल जायेगा।इसके बाद भी इन्वेस्टमेंट कंपनियों के एजेन्ट,बीमा एजेन्ट भला कब छोड़ने वाले हैं ये तो गुड़ में चींटों की तरह चिपटते हैं।खुदा न खास्ता किसी तरह इनसे बच भी गया तो भी सिर पर एक तलवार तो लटकती ही रहेगी।माना कि अपहरण विशषज्ञ,चक्रवर्ती दस्यु सम्राट ददुआ स्वर्ग में सुख भोग रहा है लेकिन उसके योग्य उत्तराधिकारियों की कमी नहीं है जो भनक लगते ही फोन पर धमकी देंगे कि पुरस्कार पूरी राशि अमुक जगह चुपचाप अमुक व्यक्ति को दे दी जाय वरना.....।अब आप ही बताइये भाई जी कि यह नोबल पुरस्कार मेरे जीवन में हुदहुद चक्रवात बन कर आने वाला है या नहीं।मेरी तो नीली छतरी वाले से यही प्रार्थना है कि हे प्रभू कम से कम इस बार यह भोर का सपना सच न होने देना।

Friday, October 24, 2014

भाई जी, मैं कासे कहूं...    ( भाग -1)
सपनों पर अपना कोई अख्तियार तो होता नहीं कि जैसा हम चाहें वैसा ही सपना आये।सपने तो ट्रेन के डेली पैसेन्जरों की तरह होते हैं जो बेरोकटोक धड़धड़ाते हुए स्लीपर कोच में घुस आतेहैं अौर धम्म से आपकी सीट पर बैठ जाते हैं।फिर, जनाब सपने भी कैसे कैसे बेसिर पैर के आते हैं।एेसी एेसी जगहों पर आप सपने में पहुंच जाते हैं,एेसे एेसे लोगों से मिलते हैं,एेसी एेसी घटनायें घटती हैं जिनके बारे में आपने कभी सोचा तक नहीं।देखिये,विज्ञान चाहे जितना तरक्की क्यों न कर गया हो पर सपनों के संसार के बारे में निश्चयपूर्वक वह भी कुछ नहीं कह पाता।सपने तो बस सपने ही हैं।
सीधे अपनी बात पर आता हूं,अब क्या कहूं कभी कभी तो सपने में अपने को एेसी असहज स्थिति में पाता हूं कि बिस्तर से उठकर किसी से कह भी नहीं सकता, यहां तक की अपनी पत्नी से भी नहीं।कई बार मुझे बहुत खुश मू़ड में बिस्तर से उठते देख पत्नी पूछ बैठती है-क्या बात है,बहुत खुश मूड में उठे हैं,कोई सुन्दर सपना देखा क्या,बताइये न सपने में एेसा क्या देखा।अब कैसे सच सच बता दूं कि मैं एक आइटम सांग पर कैटरीना के साथ डांस कर रहा था या आलिया भट्ट के साथ ट्रक चलाते हुए किसी हाइवे पर जा रहा था।अगर सच बता दूं तो पत्नी का पारा सातवें आसमान पर होगा यह कहते हुए कि सारे बाल सफेद होगये,मुंह में एक भी दांत सलामत नहीं हैं,ठीक से दिखाई सुनाई तक नहीं पड़ता फिर भी सपने देखते हैं हीरोइनों से इश्क लड़ाने के।पूजा पाठ में तो मन लगता नहीं,हनुमान चालीसा,रामायण कुछ तो कभी पढ़ते नहीं तो होगा क्या,मन में दिन भर जो बुरे विचार आयेंगे वही न रात को सपने बनकर  दिखाई देंगे वगैरह वगैरह।इस मुसीबत से बचने के लिए मुझे हमेशा कुछ इस प्रकार वेजीटेरियन झूठ का सहारा लेना पड़ता है जैसेकि सपने में देख रहा था कि हम लोग किराये का माकान छोड़कर अपने खुद के फ्लैट में आगये हैं अौर तुम फिरोजी साड़ी में बहुत जंच रही हो।इस पर पत्नी खुश होकर कहती है तुम्हारे मुंह में घी शक्कर, भगवान करे जल्दी यह सपना सच हो।
   विषयान्तर न हो जाय इसलिए सीधे असली बात पर आता हूं।आपने भी जरूर सुना होगा,मैं तो बचपन से सुनता आ रहा हूं कि भोर का सपना सच होता है।पर मेरी एेसी किस्मत कहां जो मैं भोर में सपने देखने की एेयाशी करूं।कारण सुबह जितनी जल्दी हैंड पम्प पर पहुंच जाअो उतनी जल्दी पानी के लिए नंबर आ जाता है,मुंह अंधेरे ही पास वाले नाले में निपटान करना ज्यादा सुरक्षित रहता है अादि आदि।पर कहावत है न कि जब खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान।बस साहब ऊपर वाले की मेहरबानी ही कहिये कि पता नहीं कैसे आज भोर होने से पहले बिस्तर से उठ नहीं सका अौर भोर का सपना आ ही तो गया।सपना भी कोई एेसा वैसा नहीं कि पत्नी से भी न बता सकूं बल्कि पत्नी से सपने का जिक्र इस डर से नहीं किया कि अगर वह इतनी खुशी बर्दाश्त न कर पाई तो।चलिये आप को बताए दे रहा हूं कि आज सपने में देखा कि इस वर्ष के नोबल पुरस्कार के लिए नोबल पुरस्कार कमेटी ने मेरे नाम का चयन किया।जाहिर सी बात है कि मेरे नाम का चयन विज्ञान,समाजविज्ञान, साहित्य आदि के लिए तो किया न जायेगा क्योंकि विज्ञान का मेरा ज्ञान आक्सीजन अौर हाइड्रोजन के मेल से बने पानी के सूत्र तक तथा साहित्य का ज्ञान मात्र रसखान के कुछ सवैयों तथा तीनों दासों-कबीर दास,तुलसी दास,रहीम दास के कुछ दोहों तक सीमित है।अब ले देकर बचता है शांति का नोबल पुरस्कार इसी में गुंजाइश बनती है क्योंकी यह एेसा क्षेत्र है जिसमें पढ़ा,अनपढ़,बूढ़ा,जवान हर कोई दावा ठोंक सकता है।अब जिसपर चयन समिति की नजरे इनायत हो जाय वही शांति का पुजारी हो जायेगा,उसी की शान में कसीदे पढ़ जाने लगेंगे।एक बार घोषणा हुई नहीं की सारी दुनिया को उसमें गुंण ही गुंण दिखाई देने लगेगा।वह एक शब्द भी बोल दे तो भाई लोग उसकी हजार पेज की व्याख्या कर डालेंगे।यहां तक कि अगर किसी कारणवश वह न भी बोले तो भी उसके मां-बाप,पत्नी,मित्रों,पड़ोसियों आदि सेउसके बारे में पूछ पूछ कर अच्छा खासा साहित्य तैयार कर लिया जाता है।
हम नहीं सुधरेंगे, लगता है कांगरेसियों का मूलमंत्र बन गया है तभी तो हार पर हार मिलने के बाद भी उन्हें अभी भी प्रियंका गांधी में अपना तारनहार दिखाई देता है।लीजिये चंद दोहे पेश हैं
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कांग्रेस को मिले अब जब जब तगड़ी हार
तभी प्रियंका के लिए मचती चीख पुकार
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जनता दे कांग्रस को फिर फिर ठोकर मार
दिल दिमाग पर है अभी भी लूली सरकार
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वंशवाद से लगेगी अब ना नैया पार
लाअो सपने नये हों जनमन को स्वीकार
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Wednesday, October 22, 2014

विद्या विवेक के साथ जीवन में सुख समृद्धि की शुभकामना के साथ दीपोत्सव पर्व पर बधाई।पेश हैं चंद दोहे
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धन तेरस दीपावली सजा हुअा बाजार
नचा रहा उंगलियों पर अपना सिरजनहार
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लाभ लाभ ही रट रहे शुभ को दिया भुलाय
बिन गणेश के लक्ष्मी संकट ही ले आय
3
थाली से गायब हुई अब तो सब्जी दाल
नमक छिड़कते जले पर ऊंचे शापिंग माल
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Sunday, October 19, 2014

देखा अापने काले धन वालों का नाम खोलने में इस सरकार का भी पसीना छूटने लगा और बहानेबाजी शुरू।लीजिए चंद दोहे पेश हैं
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कालेधन पर देखिये दोनो ही हैं एक
नीयत न उनकी सही न ही इनकी नेक
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गरजे थे जोभी बहुत कालेधन पर तेज
नाम बताने से हुआ अब क्यों उन्हें गुरेज
3
नाम बताने से इन्होंने भी की इन्कार
इसी बात पर यूपीए पर करते थे वार
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