Friday, February 27, 2015

सामयिक दोहे----
दिल्ली की जनता ने आप को सिर्फ किये गये तमाम वायदों के कारण इतने प्रचंड बहुमत से नहीं जिताया है बल्कि अपेक्षा है स्वस्थ राजनीति की जिसमें आमजन की भागीदारी ज्यादा हो।इसी संदर्भ में पेश हैं कुछ दोहे

जो मांगा वो दे दिया जनता ने इस बार
अब बारी है आप की उसकी सुने पुकार

राजनीति में आमजन का हो  जब सम्मान
उनकी विद्या को उचित मिले देश में मान

कांग्रेस और भाजपा दोनो ही हैं एक
जनता ने बाहर किया दोनो को ही फेंक

अच्छे दिन की ले रहे थे वे बस आलाप
दिल्ली में ले आई है अच्छे दिन अब आप

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Tuesday, February 24, 2015

सामयिक दोहे-----
खबर है कि राहुल बाबा मुंह फुलाकर छुट्टी पर चले गये हैं।कांग्रेस के लगातार खराब प्रदर्शन से वैसे ही मूड खराब चल रहा था ऊपर से उनकी ताजपोशी का विरोध होने लगे तो गुस्सा तो आयेगा ही।लीजिये चंद दोहे पेश हैं
अब विरोध के हो रहे स्वर पहले से तेज
बार बार की हार ने दिया बैकफुट भेज

छुट्टी पर राहुल गये होकर के नाराज
तुनुक मिजाजी से कहो कब आयेंगे बाज

राजनीति में है कहां कोई भी आवकाश
खुली आंख हरदम रहे वरना सत्यानाश

गाड़ी अब  बढ़नी नहीं लाये बिन बदलाव
रेत पे अब ना चलेगी पहले जैसी नाव

सीख समय देता बड़ी सीखे वही सुजान
कांग्रस पर सो रही अब भी चादर तान
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Monday, February 23, 2015



आज बहुत दिनों बाद भावना की मीडिया क्लास में आपसे चर्चा कर रही हूँ। थोड़ी व्यस्त थी , व्यस्तता के कारण क्रमबद्धता टूटी उसके लिए माफ़ी चाहूंगी। आज हम मीडिया क्लास में चर्चा करेंगे मीडिया का बच्चों की सृजनात्मकता पर होने वाले असर के बारे में तो शुरू की जाए मीडिया क्लास …
मीडिया के मकड़ जाल में बच्चों की सृजनात्मकता
लुंगी डांस, गन्दी बात, बेबी डॉल मैं सोने दी, चीटियाँ कलाइयां वे … ये मेरी सवा दो साल की बेटी के पसंदीदा गाने हैं। वो बिना टीवी ऑन किये खाना नहीं खाती और जब तक टैब पर अपनी पसंद का वीडियो न देख ले तब तक सोती नहीं और तो और अब तो वो सुने हुए डायलॉग भी रिपीट करने की कोशिश करती है, चॉक्लेट का ऐड देखकर उसकी डिमांड करती है, मैगी मांगती है। मेरे टच स्क्रीन फ़ोन पर वीडियो खुद देख लेती है, यहां तक की मेरे फेसबुक प्रोफाइल की फोटो तक टच कर-करके बदल डालती है। ये है मीडिया का असर बच्चों पर। बहुत से लोग बड़े खुश होते हैं की उनका छोटा सा बच्चा स्मार्टली फ़ोन और लैपटॉप चलता है, ऐसा बताते हुए उन्हें फक्र होता है। पर हम ये भूल जाते हैं की वो जो देख रहा है या सुन रहा है उसका उस पर असर भी होता है।
आजकल बच्चों का ज़्यादा वक़्त टीवी देखते, वीडियो गेम्स और प्लेस्टेशन पर खेलते, सोशल साइट्स, व्हाट्अप, हाईक जैसे सोशल एप्प पर दोस्तों से बातें करते बीतता है। बच्चों में किताबें पढ़ने की आदत छूटती जा रही है। किताबों से दूरी और मीडिया से दोस्ती का असर बच्चों की सृजनात्मकता पर दिखाई पड़ने लगा है। उनकी कल्पनाशीलता कुंद होती जा रही है। उनसे कुछ लिखने या अभिव्यक्त करने को कहो तो वो अपनी बात बड़ी मुश्किल से रख पाते हैं , बार बार अटकते हैं। सवालों के जवाब आते हुए भी वो उन्हें ढंग से लिख नहीं पाते नतीजा खराब रिजल्ट। यही वजह है की अब कई स्कूलों में बच्चों को प्रतियोगिताओं के पुरस्कार के रूप में किताबें दी जाने लगी हैं ताकि बच्चे किताबें पढ़ने पर ध्यान दें।
हमारी भी ये जवाबदारी बनती है की हम अपने बच्चों को अपना ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त देने की कोशिश करें। स्कूली पढ़ाई के अलावा उनसे देश दुनिया में घट रही घटनाओ के बारे में चर्चा करें। उनके नज़रिये को सही दिशा दें। उन्हें खुद को अभिव्यक्त करने का अधिक से अधिक मौका दें। उनकी राय को तवज्जो दें। अपने मोहल्ले और सोसाइटी में बच्चों के लिए स्टोरी टेलिंग, एक्सटेम्पोर स्पीच (आशु भाषण ), कविता जैसी प्रतियोगिता रखें और इनाम में बच्चों को किताबें दें। कम्युनिटी लाइब्रेरी बनाएं और बच्चों को वहाँ जाने के लिए प्रेरित करें। अगर आपके बच्चे के किसी दोस्त का जन्मदिन हो तो उसको भी किताब भेंट करें। खाली वक्त में फेसबुक और व्हाट्अप पर टाइम पास करने के बजाये वो टाइम अपने बच्चों को दें। उनके साथ कुछ क्रिएटिव करें। खाली वक़्त में बच्चे क्या कर रहे हैं, टीवी और इंटरनेट क्या देख रहे हैं, फोन पर किससे क्या बातें कर रहे हैं उस पर निगरानी रखें। अगर वो गलत दिशा में जा रहे हों तो उन्हें फटकारने के बजाय उनको सही गलत का फ़र्क़ बताएं, उसके परिणाम से उनको वाक़िफ़ कराएं ताकि मीडिया का नकारात्मक प्रभाव आपके बच्चों पर न पड़े। इंटरनेट का सही इस्तेमाल उन्हें सिखाएं, उनके स्कूल के प्रोजेक्ट में आप भी रूचि लें और उनका सहयोग करें। बच्चों के साथ साथ आप भी किताबों से दोस्ती कर लें। बच्चा आपको पढ़ते देखेगा तो खुद भी पढ़ने में रूचि लेगा। खुद को और बच्चों को एक्टिव मीडिया यूजर बनाइये पैसिव मीडिया यूजर नहीं। इसी के साथ आज की चर्चा यहीं ख़त्म करते हैं इस उम्मीद के साथ की आप भी खुद में बदलाव लाएंगे बच्चों को सिर्फ स्कूल के भरोसे नहीं छोड़ेंगे। खुद भी कुछ नया सीखेंगे और उनको भी कुछ नया सिखाएंगे।
भावना पाठक
कविता-----
आए दिन अखबार में मां द्वारा नवजात शिशु को लावारिस छोड़ दिये जाने की घटनायें छपती हैं।इसी संदर्भ में चंद लाइनें पेश हैं

क्यूं मुझे फेंक दिया कोख में रखकर नौ माह
क्यूं आके सपनों में मुखड़ा मुझे दिखाती हो

बनाया क्यूं था दिल को सख्त तुमने पत्थर सा
क्यूं आके ख्वाबों में मां तुम मुझे हंसाती हो

नरम नरम था जिस्म छोड़ा था जब तूने मुझे
लगी थी चोट अनगिनत जिन्हें सहलाती हो

था एेसा कौन सा डर कौन सी मजबूरी मां
कि जिसके खौफ से तुम अब भी सहम जाती हो

क्या याद आता है तुमको कभी चेहरा मेरा
गर आया याद कैसे दिल को तब बहलाती हो

क्यूं छीना मेरे हक का प्यार तुमने मुझसे मां
क्यूं मुझको अपनी ही नजरों में यूं गिराती हो
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Sunday, February 22, 2015

सामयिक दोहे......

जनाब, पेट्रोलियम मंत्रालय जासूसी कांड ने यह साफ कर दिया कि कारपोरेट हाउसों की पहुंच बड़ी लम्बी है,हर फाइल अौर दस्तावेज तक।इसी संदर्भ में पेश हैं कुछ दोहे

लंबे  कितने देखिये कारपोरेटी हाथ
कितनी लंबी पहुंच है कौन कौन दे साथ

कारपोरेटी लूट की यह तो एक मिसाल
जांच ठीक से चली तो होगा बिकट धमाल

संसाधन पर देश के जनता का अधिकार
बड़े घराने लूटते छल से बारम्बार

कारपोरेट ही देश की चला रहे सरकार
कठपुतली नेता हुए जुड़े हैं इनके तार
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सामयिक दोहे----
देखा आपने बिहार का हाई प्रोफाइल सियासी ड्रामा जिसका अंत मुख्यमंत्री जीतन मांझी के इस्तीफे अौर नीतीश कुमार की ताजपोशी से हुआ।इसी बावत चंद दोहे पेश हैं

राजनीति में किसी का करिये मत विश्वास
हाल होय नीतीश सा करे जगत उपहास

मांझी खुद मझधार में फंसा देखिये हाल
राजनीति की डगर यह रखिये कदम सम्हाल

मांझी ने लो मानली आखिर अपनी हार
भाजपा से ना हो सकी नैया उनकी पार

दलित अल्पसंख्यक किये जाते इस्तेमाल
जीतन मांझी का सभी ने देखा यह हाल
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Monday, February 16, 2015

कुंडलियां----
आज भोले बाबा और माता पार्वती की शादी की रात्रि यानी महाशिवरात्रि है,इस अवसर पर सभी को बधाई।आज तो सुबह से होड़ लगी है टीवी चैनलों में शिव भक्ति दिखाने की।कोई महाशिवरात्रि पर महाकवरेज दिखा रहा है तो कोई महादेव की महादेव की महाभक्ति,कोई शिवधमाल मचाये हुए है तो कोई महाशिवरात्रि पर महामंत्र का जाप किये डाल रहा है।कोई बहुत अधिक तारीफ करे तो संदेह होने लगता है,इसी संदर्भ में प्रस्तुत है एक कुंडली

भोले भौंचक्के हुए देख चैनली प्रेम
कवरेज ज्यादा क्यों मिले शिवरात्री तो सेम
शिवरात्री तो सेम बात कुछ समझ न आई
सोच सोच के बहुत बुद्धि उनकी चकराई
पारवती बोलीं बिहंसि सुनिये भोलेनाथ
सत्ता में शिवभक्त जब क्यों ना दें सब साथ
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एक थी सिंगरौली----20
सिंगरौलिया गांव में हुई चर्चा ने परियोजनाअों के नजदीक के गांवों के युवाअों पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभावों पर रोशनी डाली।परियोजनाअों की चमक दमक ने इन युवाअों के अंदर लालसाअों का तूफान तो पैदा कर दिया लेकिन इनकी पूर्ति कैसे हो इसका रास्ता न दिखने पर वे कुंठित अौर गुमराह हो रहे थे।पर स्थिति वहां भी अच्छी नहीं थी जिनको इन ऊर्जा परियोजनाअों से विस्थापित होने पर परियोजना में नौकरी मिल गई थी।हालांकि नौकरी भी बहुत कम विस्थापितों को ही मिल सकी थी,अधिकांश तो बार बार इंटरव्यू दे दे कर थक गये क्योंकी इंटरव्यू देने के लिये भी काफी भाग दौड़ अौर पैसा खर्च कर के कई तरह के कागज बनवाने पड़ते थे।एेसे भी तमाम लोग थे जो इंटरव्यू देने के बाद काल लेटर का इंतजार करते करते अोवर एज हो गये थे।फिर भी जिनको नौकरी मिली प्लांट में उनकी किस्मत से उस समय तो बाकी लोग ईर्ष्या करते थे,खासकर उन्ही के परिवार के वे लोग जिन्हे नौकरी नहीं मिल पाई थी क्योंकी परिवार से एक व्यक्ति को ही नौकरी देने का नियम बनाया गया था।इस नियम के चलते विस्थापित परिवारों में बहुत सिर फुटौव्वल हुई जिसकी अलग ही लंबी दास्तान है।
                             कई साल हो गये चिल्काडांड के सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश गुप्ता ने एक बार बातचीत के दौरान बताया था कि यह मत समझिये कि जिन विस्थापित लोगों को प्लांट में नौकरी मिल गई वे बड़े मजे में हैं।शुरू में तो सब कुछ अच्छा था,जिसकी नौकरी लगी उसके तो मानो भाग्य खुल गये थे।समस्याएं तो अब सामने आ रही हैं, जैसे जैसे उनके रिटायरमेंट का समय नजदीक आता जा रहा है।बड़े होते बच्चे उनके सामने सवालिया निशान बन कर खड़े हो रहे हैं।विस्थापितों को नौकरी उनकी पढ़ाई लिखाई के आधार पर नहीं बल्कि परियोजना में उनकी जमीन लिये जाने के कारण मिली है।ज्यादातर विस्थापितों को प्लांट में अटेंडेंट का ही काम मिला है।चलिये नौकरी से घर में चार पैसे तो आने लगे,देखा देखी ताम झाम भी बढ़ा लेकिन घर का माहौल नहीं बदल पाया,अौर बदलता भी कैसे जब किसी किसी परिवार में मां बाप दोनो ही नहीं पढ़े लिखे या फिर नाम मात्र को पढ़े हैं।इसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है।बच्चा स्कूल में पढ़ता है या मटरगस्ती करता है या स्कूल ही न जाकर इधर उधर आवारागर्दी करता है गलत सोहबत में पड़कर,इसकी फिकर ज्यादातर इन मां बाप को नहीं रहती।परिणाम भी सामने है,कुछ अपवादों को अगर छोड़ दिया जाय तो अधिकांश ये लड़के लड़कियां दसवीं ,बारहवीं या फिर किसी तरह से ग्रेजुएशन की डिग्री लेकर बेरोजगार घूम रहे हैं।अभी तो ठीक है कि बाप कमा रहे हैं,बेटे उड़ा रहे हैं,मोटरसाइकिल पर मुफ्त के पेट्रोल से तफरी कर रहे हैं,शापिंग सेंटर अौर कालोनियों के चक्कर काट रहे हैं,लेकिन कब तक।कल के इनकी शादी होगी ,बाल बच्चे होंगे अौर तब तक इनके बाप रिटायर्ड हो चुके होंगे  फिर तो शुरू होगी रोज रोज की गृह कलह।एेसा इक्का दुक्का दिखने भी लगा है।
                         लगभग दो वर्ष पहले विंध्यनगर में सृजन लोकहित समिति के कार्यालय में युवाअों की एक कार्यशाला में चिल्काडांड के ही सामाजिक कार्यकर्ता रामसुभग शुक्ला ने विस्थापित परिवारों के युवकों की मौजूदा त्रासद स्थिति का अपने अलग अंदाज में बयान किया।उन्होंने कहा कि चलिये हमने तो जैसे तैसे काट लिया,चाहे रो कर कहिये या हंस कर,लेकिन इस नई पीढ़ी के सामने बड़ी विकट स्थिति अा गई है।हमारे माता-पिता मुख्य रूप से खेती किसानी ही जानते थे,हम भी उसी में लगे लपटे रहते थे, बाद में अौर दूसरा हुनर भी सीखा।आज की नौजवान पीढ़ी कई मायने में हमसे अलग है।इसने अपने बाबा-आजी, नाना-नानी से गुजरे जमाने के बारे में सिर्फ किस्से कहानियां ही सुनीं,देखा तो अलग ही दुनिया को।इसके सामने दो तरह की दुनिया है,एक तो वह जहां वह रहता है-चिल्काडांड,नवजीवन विहार जैसी उपेक्षित,अभावग्रस्त,समस्याअों से घिरी विस्थापितों की बस्तियां,दूसरी दुनिया है परियोजना की कालोनियों की जहां हर तरह की सुविधायें मौजूद हैं।
.......क्रमश:
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Sunday, February 15, 2015

बतकही---
आप की जीत के मायने---2
दिल्ली चुनाव के तीन-चार दिन पहले मैं सिंगरौली  में अपने मित्र गहना कोठी वाले वर्मा जी के पास बैठा था,बात घूम फिर कर दिल्ली चुनाव पर आ गयी।वर्मा जी ने कहा कि साहब,दिल्ली में तो केजरीवाल की सरकार बनना तय है।मैने कहा वे किस आधार पर इतने दावे के साथ एेसा कह रहे हैं ,क्योंकी मीडिया तो दोनो के बीच कड़ी टक्कर बता रहा है और यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं फिर खंडित जनादेश न आ जाये।उन्होंने बताया कि वे एक शादी में गये थे जहां दिल्ली में रहने वाले उनके कुछ रिश्तेदार भी आये हुए थे उनसे बातचीत करके यह मालुम हुआ कि दिल्ली के गरीब तबकों के बीच केजरीवाल का जबरदस्त क्रेज है।ये गरीब लोग उत्तर प्रदेश,बिहार, झारखण्ड आदि राज्यों से रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आने वाले प्रवासी है जो दिहाड़ी मजदूरी ,घरों में झाड़ू-पोंछा से लेकर हर तरह के छोटे छोटे काम जैस फेरी लगाना,पटरी पर दूकानदारी कर किसी तरह गुजर बसर करते हैं।यह तबका दिल्ली में सबसे असुरक्षित और झुग्गी-झोपड़ी,गन्दी बस्तियों में रहता है।कुछ को तो फुटपाथ का ही सहारा लेना पड़ता है रात को सोने के लिए।फुटपाथ पर सोने के लिए भी इन्हें इलाके के गुण्डे तथा पुलिस को हफ्ता देना पड़ता है।इसी तरह फेरी वालों,पटरी केे दूकानदारों से भी पुलिस अवैध वसूली करती है।नगर पालिका,कोर्ट-कचहरी आदि सभी जगहों पर छोटे छोटे कामों के लिए इन्हें लूटा जाता है।आप पार्टी के कार्यकर्ताअों ने इनके बीच जा जा कर काफी काम किया है।केजरीवाल की दिल्ली में सरकार आने के बाद तो निचले स्तर के भ्रष्टाचार में काफी कमी आने से इस तबके को बड़ी राहत मिली थी।इसी प्रकार आटो वालों के बीच भी आप की गहरी पैठ है। इस तरह से केजरीवाल गरीब तबके में यह विश्वास जमाने में सफल हो गये कि गरीबों को आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर राहत मिलेगी।
               अब जब प्रचण्ड बहुमत से आप की सरकार बन गई है तो चाहे समर्थक हों या फिर विरोधी सभी की नजरें एक ही अोर लगी हैं कि देखें यह सरकार चनावी घोषणापत्र में किये तमाम वादों को किस तरह से पूरा करती है जब की इसके हाथ में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा न होनो से बहुत कुछ है नहीं।दिल्ली पुलिस को ही लीजिए यह केन्द्र सरकार के आधीन है,बुनियादी ढ़ांचे का विकास केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के हांथ में है,इसी प्रकार वित्तीय मामलों से संबंधित कानूनों पर निर्णय लेने का अधिकार दिल्ली के उप राज्यपाल को है,यानी केन्द्र सरकार का पूरा सहयोग मिले तब कहीं जाकर बात बनेगी।वैसे तो केजरीवाल सरकार के साथ सहयोग करना केन्द्र सरकार के लिए भी हितकर होगा क्योंकी एेसा न होने पर आप मोदी सरकार को बेनकाब करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देगी।टकराव की राजनीति में पलड़ा केजरीवाल का ही भारी पड़ने वाला है,खुद
मोदी केजरीवाल को धरना मास्टर का खिताब दे भी चुके हैं।
                      चुनावों में लोक लुभावन वायदे कोई नई बात नहीं है।राष्ट्रीय दलों से लेकर क्षेत्रीय दलों तक सभी तरह तरह के वायदे मतदाता को अपनी अोर आकर्षित करने के लिए चुनाव के समय करते आए हैं-कोई जीतने पर गरीबों को बहुत सस्ती दर पर राशन दिलाने का वायदा करता तो कोई विद्यार्थियों को लैपटाप बंटवाने का,बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिलाने का।हाल ही में हुये लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भी विदेशों में जमा कालाधन देश में वापस लाने को जोरदार वायदा किया था जो अब उन्ही के गले की फांस बन गया है।सवाल तो यही है कि आखिर दिल्ली के लोगों ने आम आदमी पार्टी के वायदों पर इतना ज्यादा यकीन क्यों कर लिया जो अभी शैशवावस्था में ही है,अभी जिसकी न तो विचारधारा का लोगों को पता है,न ही आर्थिक नीतियों का। आखिर एेसे कौन से सुनहरे भविष्य की झलक देख ली जनता नें जो आप के जरिये पूरा होते दिख रहा है।इस सवाल का जवाब पाने के लिए बेहतर होगा अगर हम हाल ही के इतिहास के कुछ पन्ने पलटें।
   .......क्रमश:
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Thursday, February 12, 2015

बतकही----

आप की जीत के मायने--1
लाजवाब,गजब,कमाल कर दिया,बस  बार बार एेसा ही कुछ सुनने को मिल रहा था जहां भी दो-तीन आदमी खड़े होकर बतिया रहे थे जब मैं 10 फरवरी को शक्तिपुंज से सिंगरौली से वापस आ रहा था।आश्चर्य तो सभी को हो रहा था क्योंकी दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी की इतनी बम्पर जीत की तो किसी को भी उम्मीद नहीं थी,खुद आप पार्टी वालों को भी नहीं ।प्री पोल अोपिनियन,एक्जिट पोल अोपिनियन सारे के सारे औंधे मुंह गिरे।कोई भी सटीक अनुमान न लगा सका भारतीय मतदाता के दिलो-दिमाग की।वैसे एेसा कोई पहली बार नहीं हुआ है मतदाता ने चुनाव पंड़ितों को चौंकाया हो।ज्यादा दूर क्या जाना,2014 के लोकसभा के चुनाव को ही देखिये,यह तो सब को पता था कि इस बार सत्ता से कांग्रस की बिदाई होनी है और भाजपा की सरकार आनी है लेकिन मोदी की आंधी में बाकी दल तिनकों की तरह उड़ जायेंगे और मोदी सरकार को स्पष्ट बहुमत मिलेगा यह अनुमान दिग्गज चुनाव विशेषज्ञ भी नहीं लगा पाये थे।पिछले कई चुनावों से मतदाता बहुत सूझ-बूझ का परिचय दे रहा है,बहुत नाप-तौल कर वोटिंग कर रहा है।वो दिन लद गये जब गांव के ब्योहर के कहने पर लोग वोट डाल आते  थे,या फिर दारू ,मुर्गा पैसे पर वोट दे  आते थे।अब भारतीय मतदाता कहीं अधिक परिपक्व हुआ है दुनिया के किसी भी लोकतंत्र की तुलना में।पिछले कई चुनावों से, जीतकर आने वाले बाहुबलियों की संख्या घटी है।इसी तरह पिछले चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों को भी मतदाता ने नकारा है जो अधिकतर थाली के बैगन ही साबित होते थे।और तो और अब मतदाता के दिल दिमाग की थाह लगा पाना भी पहले के मुकाबले बहुत कठिन  हो गया है क्योंकी वह भी नेताअों की तरह कुशल अभिनेता हो गया है।जिस पार्टी के लोग उसके दरवाजे पहुंचते हैं,मतदाता उसी के हिसाब से अपना रंग बदल लेता है,साथ ही यह भी विश्वास दिला देता है कि भले ही कुछ मजबूरीवश वह खुलकर उनके साथ प्रचार में शामिल नहीं हैलेकिन वह अंदर ही अंदर काम उन्हीं की जीत पक्की करने के लिये कर रहा है।
                       चलिये मतदाता तो फिर भी मतदाता है,हंसी तो आती है मीडिया के इस तरह यू टर्न को देखकर।दिल्ली चुनाव के कुछ समय पहले तक मीडिया मोदीमय ही था।चैनलों में जैसे होड़ सी लगी थी कि कौन प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ी खबरें ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करता है।जैसे जैसे चुनाव निकट आ रहा था ज्यादातर यही दिखाया जाता था कि कैसे भाजपा  दिल्ली फतह करने के लिये एड़ी चोटी का पसीना एक कर रही है,कितने तेज तर्रार मुख्यमंत्रियों,केन्द्रीय मंत्रियों,दूसरे प्रदेशों से कार्यकर्ताअों की बड़ी फौज को इस मिशन पर लगाया गया है।दूसरी तरफ आप पार्टी और केजरीवाल की खिंचाई ही ज्यादा होती थी।टीवी चैनलों पर चलने वाली डिबेटों का भी यही हाल था।लेकिन चुनाव के बाद तो नजारा ही बदल गया।फिर तो जैसे खोज खोज कर केजरीवाल से जुड़ी खबरें और पुराने फुटेज दिखाये जाने लगे,क्यों नहीं,केजरीवाल हीरो जो बन गये थे।
                  ट्रेन में मेरे सामने एक युवा दम्पति बैठे हुए थे जिन्हें भोपाल उतरना था,दोनो ही कुछ ज्यादा व्यग्र थे दिल्ली चुनाव परिणामों की   ताजा स्थिति जानने के बारे में।इसलिये वे बार बार भोपाल में टीवी के सामने बैठे हुए अपने मामा जी को फोन कर रहे थे ।उनके मामा जी आप पार्टी के समर्थक थे जबकी मामी जी भाजपा समर्थक ,अब मामाजी चुनाव परिणामों के साथ साथ बगल में बैठी हुई मामी जी के चेहरे की बदलने वाली रंगत का भी आंखों देखा हाल चटखारे ले ले कर पेश कर रहे थे जिसे सुन सुन कर ये दोनो हंसते हुए दोहरे हुए जा रहे थे।पूरे परिणाम आने के बाद दोनो के मुंह से यही निकला  कि दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी की जीत बहुत जरूरी थी।जिस तरह से भाजपा एक के बाद एक राज्यों में चुनाव जीतती जा रही थी उसके तेवर ही बदल गये थे और वह बेपटरी होती जा रही थी इसलिये इस तरह का जोर का झटका लगना ही चाहिये।तभी मेरे फोन की भी घंटी बजी और अचरज भरे शब्दों में सूचना दी गई कि आर पार्टी ने तो चुनाव में जीत के सारे रिकार्ड ही तोड़ दिये,कांग्रस का तो पूरी तरह से सफाया हुआ ही,भाजपा भी सिर्फ तीन सीट पर ही सिमट कर रह गयी है। दरअसल आम धारणा के अनुरूप वे भी आप पार्टी को पटाखा पार्टी मानते थे जो बहुत थोड़े समय के लिये चमक बिखेर कर फुस्स हो गई थी,जिसकी सारी हवा लोक सभा चुनाव में निकल गई और अब जिसका फिर से उभर पाना निकट भविष्य में नहीं दिखता।
........क्रमश
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Wednesday, February 11, 2015

सामयिक दोहे-----
एक बार फिर जनता ने चुनावी पंडितों को दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर कर दिया आप को अभूतपूर्व समर्थन देकर।इसी संदर्भ में चंद दोहे पेश हैं

चक्रव्यूह को तोड़कर रचा नया इतिहास
अभिमन्यू की जीत पर गदगद आम-अो-खास

राजनीति में देश को झाड़ू की दरकार
कूड़ा करकट साफ हो जनता कहे पुकार

कांग्रेस तो रेस से बाहर पहुंची जाय
देखें तारनहार बन करता कौन सहाय

दिल्ली दंगल ने दिया सबक बड़ा ही खास
अति का भला न गर्जना कहे मीडियादास
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