बतकही----
आप की जीत के मायने--1
लाजवाब,गजब,कमाल कर दिया,बस बार बार एेसा ही कुछ सुनने को मिल रहा था जहां भी दो-तीन आदमी खड़े होकर बतिया रहे थे जब मैं 10 फरवरी को शक्तिपुंज से सिंगरौली से वापस आ रहा था।आश्चर्य तो सभी को हो रहा था क्योंकी दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी की इतनी बम्पर जीत की तो किसी को भी उम्मीद नहीं थी,खुद आप पार्टी वालों को भी नहीं ।प्री पोल अोपिनियन,एक्जिट पोल अोपिनियन सारे के सारे औंधे मुंह गिरे।कोई भी सटीक अनुमान न लगा सका भारतीय मतदाता के दिलो-दिमाग की।वैसे एेसा कोई पहली बार नहीं हुआ है मतदाता ने चुनाव पंड़ितों को चौंकाया हो।ज्यादा दूर क्या जाना,2014 के लोकसभा के चुनाव को ही देखिये,यह तो सब को पता था कि इस बार सत्ता से कांग्रस की बिदाई होनी है और भाजपा की सरकार आनी है लेकिन मोदी की आंधी में बाकी दल तिनकों की तरह उड़ जायेंगे और मोदी सरकार को स्पष्ट बहुमत मिलेगा यह अनुमान दिग्गज चुनाव विशेषज्ञ भी नहीं लगा पाये थे।पिछले कई चुनावों से मतदाता बहुत सूझ-बूझ का परिचय दे रहा है,बहुत नाप-तौल कर वोटिंग कर रहा है।वो दिन लद गये जब गांव के ब्योहर के कहने पर लोग वोट डाल आते थे,या फिर दारू ,मुर्गा पैसे पर वोट दे आते थे।अब भारतीय मतदाता कहीं अधिक परिपक्व हुआ है दुनिया के किसी भी लोकतंत्र की तुलना में।पिछले कई चुनावों से, जीतकर आने वाले बाहुबलियों की संख्या घटी है।इसी तरह पिछले चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों को भी मतदाता ने नकारा है जो अधिकतर थाली के बैगन ही साबित होते थे।और तो और अब मतदाता के दिल दिमाग की थाह लगा पाना भी पहले के मुकाबले बहुत कठिन हो गया है क्योंकी वह भी नेताअों की तरह कुशल अभिनेता हो गया है।जिस पार्टी के लोग उसके दरवाजे पहुंचते हैं,मतदाता उसी के हिसाब से अपना रंग बदल लेता है,साथ ही यह भी विश्वास दिला देता है कि भले ही कुछ मजबूरीवश वह खुलकर उनके साथ प्रचार में शामिल नहीं हैलेकिन वह अंदर ही अंदर काम उन्हीं की जीत पक्की करने के लिये कर रहा है।
चलिये मतदाता तो फिर भी मतदाता है,हंसी तो आती है मीडिया के इस तरह यू टर्न को देखकर।दिल्ली चुनाव के कुछ समय पहले तक मीडिया मोदीमय ही था।चैनलों में जैसे होड़ सी लगी थी कि कौन प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ी खबरें ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करता है।जैसे जैसे चुनाव निकट आ रहा था ज्यादातर यही दिखाया जाता था कि कैसे भाजपा दिल्ली फतह करने के लिये एड़ी चोटी का पसीना एक कर रही है,कितने तेज तर्रार मुख्यमंत्रियों,केन्द्रीय मंत्रियों,दूसरे प्रदेशों से कार्यकर्ताअों की बड़ी फौज को इस मिशन पर लगाया गया है।दूसरी तरफ आप पार्टी और केजरीवाल की खिंचाई ही ज्यादा होती थी।टीवी चैनलों पर चलने वाली डिबेटों का भी यही हाल था।लेकिन चुनाव के बाद तो नजारा ही बदल गया।फिर तो जैसे खोज खोज कर केजरीवाल से जुड़ी खबरें और पुराने फुटेज दिखाये जाने लगे,क्यों नहीं,केजरीवाल हीरो जो बन गये थे।
ट्रेन में मेरे सामने एक युवा दम्पति बैठे हुए थे जिन्हें भोपाल उतरना था,दोनो ही कुछ ज्यादा व्यग्र थे दिल्ली चुनाव परिणामों की ताजा स्थिति जानने के बारे में।इसलिये वे बार बार भोपाल में टीवी के सामने बैठे हुए अपने मामा जी को फोन कर रहे थे ।उनके मामा जी आप पार्टी के समर्थक थे जबकी मामी जी भाजपा समर्थक ,अब मामाजी चुनाव परिणामों के साथ साथ बगल में बैठी हुई मामी जी के चेहरे की बदलने वाली रंगत का भी आंखों देखा हाल चटखारे ले ले कर पेश कर रहे थे जिसे सुन सुन कर ये दोनो हंसते हुए दोहरे हुए जा रहे थे।पूरे परिणाम आने के बाद दोनो के मुंह से यही निकला कि दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी की जीत बहुत जरूरी थी।जिस तरह से भाजपा एक के बाद एक राज्यों में चुनाव जीतती जा रही थी उसके तेवर ही बदल गये थे और वह बेपटरी होती जा रही थी इसलिये इस तरह का जोर का झटका लगना ही चाहिये।तभी मेरे फोन की भी घंटी बजी और अचरज भरे शब्दों में सूचना दी गई कि आर पार्टी ने तो चुनाव में जीत के सारे रिकार्ड ही तोड़ दिये,कांग्रस का तो पूरी तरह से सफाया हुआ ही,भाजपा भी सिर्फ तीन सीट पर ही सिमट कर रह गयी है। दरअसल आम धारणा के अनुरूप वे भी आप पार्टी को पटाखा पार्टी मानते थे जो बहुत थोड़े समय के लिये चमक बिखेर कर फुस्स हो गई थी,जिसकी सारी हवा लोक सभा चुनाव में निकल गई और अब जिसका फिर से उभर पाना निकट भविष्य में नहीं दिखता।
........क्रमश
bhonpooo.blogspot.in
आप की जीत के मायने--1
लाजवाब,गजब,कमाल कर दिया,बस बार बार एेसा ही कुछ सुनने को मिल रहा था जहां भी दो-तीन आदमी खड़े होकर बतिया रहे थे जब मैं 10 फरवरी को शक्तिपुंज से सिंगरौली से वापस आ रहा था।आश्चर्य तो सभी को हो रहा था क्योंकी दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी की इतनी बम्पर जीत की तो किसी को भी उम्मीद नहीं थी,खुद आप पार्टी वालों को भी नहीं ।प्री पोल अोपिनियन,एक्जिट पोल अोपिनियन सारे के सारे औंधे मुंह गिरे।कोई भी सटीक अनुमान न लगा सका भारतीय मतदाता के दिलो-दिमाग की।वैसे एेसा कोई पहली बार नहीं हुआ है मतदाता ने चुनाव पंड़ितों को चौंकाया हो।ज्यादा दूर क्या जाना,2014 के लोकसभा के चुनाव को ही देखिये,यह तो सब को पता था कि इस बार सत्ता से कांग्रस की बिदाई होनी है और भाजपा की सरकार आनी है लेकिन मोदी की आंधी में बाकी दल तिनकों की तरह उड़ जायेंगे और मोदी सरकार को स्पष्ट बहुमत मिलेगा यह अनुमान दिग्गज चुनाव विशेषज्ञ भी नहीं लगा पाये थे।पिछले कई चुनावों से मतदाता बहुत सूझ-बूझ का परिचय दे रहा है,बहुत नाप-तौल कर वोटिंग कर रहा है।वो दिन लद गये जब गांव के ब्योहर के कहने पर लोग वोट डाल आते थे,या फिर दारू ,मुर्गा पैसे पर वोट दे आते थे।अब भारतीय मतदाता कहीं अधिक परिपक्व हुआ है दुनिया के किसी भी लोकतंत्र की तुलना में।पिछले कई चुनावों से, जीतकर आने वाले बाहुबलियों की संख्या घटी है।इसी तरह पिछले चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों को भी मतदाता ने नकारा है जो अधिकतर थाली के बैगन ही साबित होते थे।और तो और अब मतदाता के दिल दिमाग की थाह लगा पाना भी पहले के मुकाबले बहुत कठिन हो गया है क्योंकी वह भी नेताअों की तरह कुशल अभिनेता हो गया है।जिस पार्टी के लोग उसके दरवाजे पहुंचते हैं,मतदाता उसी के हिसाब से अपना रंग बदल लेता है,साथ ही यह भी विश्वास दिला देता है कि भले ही कुछ मजबूरीवश वह खुलकर उनके साथ प्रचार में शामिल नहीं हैलेकिन वह अंदर ही अंदर काम उन्हीं की जीत पक्की करने के लिये कर रहा है।
चलिये मतदाता तो फिर भी मतदाता है,हंसी तो आती है मीडिया के इस तरह यू टर्न को देखकर।दिल्ली चुनाव के कुछ समय पहले तक मीडिया मोदीमय ही था।चैनलों में जैसे होड़ सी लगी थी कि कौन प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ी खबरें ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करता है।जैसे जैसे चुनाव निकट आ रहा था ज्यादातर यही दिखाया जाता था कि कैसे भाजपा दिल्ली फतह करने के लिये एड़ी चोटी का पसीना एक कर रही है,कितने तेज तर्रार मुख्यमंत्रियों,केन्द्रीय मंत्रियों,दूसरे प्रदेशों से कार्यकर्ताअों की बड़ी फौज को इस मिशन पर लगाया गया है।दूसरी तरफ आप पार्टी और केजरीवाल की खिंचाई ही ज्यादा होती थी।टीवी चैनलों पर चलने वाली डिबेटों का भी यही हाल था।लेकिन चुनाव के बाद तो नजारा ही बदल गया।फिर तो जैसे खोज खोज कर केजरीवाल से जुड़ी खबरें और पुराने फुटेज दिखाये जाने लगे,क्यों नहीं,केजरीवाल हीरो जो बन गये थे।
ट्रेन में मेरे सामने एक युवा दम्पति बैठे हुए थे जिन्हें भोपाल उतरना था,दोनो ही कुछ ज्यादा व्यग्र थे दिल्ली चुनाव परिणामों की ताजा स्थिति जानने के बारे में।इसलिये वे बार बार भोपाल में टीवी के सामने बैठे हुए अपने मामा जी को फोन कर रहे थे ।उनके मामा जी आप पार्टी के समर्थक थे जबकी मामी जी भाजपा समर्थक ,अब मामाजी चुनाव परिणामों के साथ साथ बगल में बैठी हुई मामी जी के चेहरे की बदलने वाली रंगत का भी आंखों देखा हाल चटखारे ले ले कर पेश कर रहे थे जिसे सुन सुन कर ये दोनो हंसते हुए दोहरे हुए जा रहे थे।पूरे परिणाम आने के बाद दोनो के मुंह से यही निकला कि दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी की जीत बहुत जरूरी थी।जिस तरह से भाजपा एक के बाद एक राज्यों में चुनाव जीतती जा रही थी उसके तेवर ही बदल गये थे और वह बेपटरी होती जा रही थी इसलिये इस तरह का जोर का झटका लगना ही चाहिये।तभी मेरे फोन की भी घंटी बजी और अचरज भरे शब्दों में सूचना दी गई कि आर पार्टी ने तो चुनाव में जीत के सारे रिकार्ड ही तोड़ दिये,कांग्रस का तो पूरी तरह से सफाया हुआ ही,भाजपा भी सिर्फ तीन सीट पर ही सिमट कर रह गयी है। दरअसल आम धारणा के अनुरूप वे भी आप पार्टी को पटाखा पार्टी मानते थे जो बहुत थोड़े समय के लिये चमक बिखेर कर फुस्स हो गई थी,जिसकी सारी हवा लोक सभा चुनाव में निकल गई और अब जिसका फिर से उभर पाना निकट भविष्य में नहीं दिखता।
........क्रमश
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