Wednesday, July 29, 2015

सामयिक दोहे --- भारत पाक अवाम





  भारत पाकिस्तान की जनता तो अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण आदि से निजात पाकर खुशहाली की राह पर चलना चाहती है। लेकिन आतंकी और उनके आका किसी भी कीमत पर इसे सच होता नहीं देखना चाहते। गुरदासपुर में हुआ आतंकी हमला यही साबित करता है। इस हमले में हुए शहीदों और जिन जांबाज बहादुरों ने सभी आतंकियों का सफाया किया उनको सलाम। इसी संदर्भ में प्रस्तुत हैं चंद पंक्तियां

अमन चैन है चाहती भारत पाक अवाम
शांति प्रयासों को करें आतंकी नाकाम

सेना के सहयोग से हो आतंकी पैठ
किस मुंह मियां शरीफ ने किया वार्ता बैठ

एक हाथ से दोस्ती एक से करती वार
करती आईं आज तक यही पाक सरकार

अमरीका और चीन की शह पर अकड़े पाक
करता आया है सदा हरकत यह नापाक

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Tuesday, July 28, 2015

शत शत प्रणाम



  चाहे जितने भी शब्द इस्तेमाल करूं दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम के प्रेरक व्यक्तित्व को बयान करने के लिए नाकाफी होंगे। बच्चों और युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय, स्वप्नदृष्टा, आदर्श हिंदुस्तानी, जीवन की अंतिम बेला तक सक्रिय रहने वाले कलाम साहब देश की आनेवाली तमाम पीढ़ियों को प्रेरणा देते रहेंगे। वे देश और दुनिया की बेहतरी के लिए शिक्षा को बहुत अहम् मानते थे। इस धरती को जीने लायक कैसे बनाया जाय अंतिम क्षण तक वे चिंतन करते रहे। अंत में दो पंक्तियां –

भारत मां के लाल को बारम्बार प्रणाम
अथक परिश्रम से किया देश का ऊंचा नाम

रहा सदा ही प्रेरणा का अद्भुत भंड़ार
जीवन न्योछावर किया सदा देश को प्यार


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Thursday, July 23, 2015

क्या तुम्हें दिखता नहीं है

बढ़ा है देश आगे क्या तुम्हें दिखता नहीं है
हुए अतिधनिक तिगुने क्या तुम्हें दिखता नहीं है

जलो मत इस तरह तुम देख अच्छे दिन किसी के
बढ़ी है औसत इनकम क्या तुम्हें दिखता नहीं है

चलो माना कि कालाधन नहीं ला पाए अब तक
पर कोशिश में लगे हम क्या तुम्हें दिखता नहीं है

अब मीठी गोली यूं ही चूसते रहिये उम्मीदों की
रहा दस्तूर हरदम क्या तुम्हें दिखता नहीं है

है कब बदली व्यवस्था सिर्फ सत्ता के बदलने से
हैं हम मौसेरे भाई क्या तुम्हें दिखता नहीं है

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Tuesday, July 21, 2015

सामयिक दोहे --- तगड़ी बरसात

लगातार बारिश हो रही है। बादल एक के पीछे एक कतार बना कर ऐसे आ रहे हैं जैसे गणतंत्र दिवस की लंबी परेड चल रही हो। ऐसे में सिवाय घर में कैद होने के और चारा भी क्या है। इसी संदर्भ में हैं ये चंद लाइनें

भीगी खबरें मिल रहीं क्या तगड़ी बरसात
डर से सूरज जा छिपा बादल के उत्पात

बंद मार्निंग वाक है होता ना दीदार
बारिश के उस पार वे फंसे हैं हम इस पार

पानी पानी हो गया शहर दुखी सब लोग
उफनाये नाले नदी और बरसाती रोग

घर में घुस ललकारता पानी बारम्बार
नगरनिगम सोता रहा जनता रही पुकार

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Friday, July 17, 2015

मीडिया


मीडिया हथियार है बाजार का अब देखिये
था कभी जनपक्षधर अब नाम भर का देखिये

यंत्र ताबीजों के विज्ञापन दिखाकर आज यह
अंध विश्वासों को कैसे सींचता यह देखिये

पंच लाइन देख कर गुमराह मत होना कभी
खबरों के पीछे जो सच है गौर करके देखिये

दर्द होरी का अब आये कैसे सबके सामने
फिक्र टी आर पी हरदम रहती इनको देखिये

आया सोशल मीडिया बनकर उम्मीदों की किरन
फायदे नुकसान दोनो हैं सम्भल कर देखिये

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Saturday, July 11, 2015

हास्य व्यंग---- टेस्ट में फेल

 इतवार था, दफ्तर जाने की हड़बड़ी से मुक्त, आलस की हल्की डोज का मजा ले रहा था। पर इस नश्वर संसार के तमाम सुखों  की तरह यह सुख भी क्षण भंगुर साबित हुआ जब एक चिर परिचित खटखटाहट दरवाजे पर हुई। जानता था कि उठ कर दरवाजा खोलने और बत्तीसी दिखाकर स्वागत करने के अलावा कोई विकल्प है नहीं, इसलिए आज्ञाकारी बच्चे की तरह दो कुर्सियां ले कर बाहर आया, साथ ही श्रीमती जी से दो चाय बाहर भिजवाने का विनम्र निवेदन भी कर दिया।
 बाहर पर्यावरण प्रेमी महेन्द्र पाल साहब खड़े थे। आमतौर पर मार्निंग वाक के बाद उनका चेहरा हमेशा खिला खिला रहता था। आज चिंतित दिख रहे थे। कुर्सी पर बैठते ही उनके मुंह से निकला, टेस्ट में गंगा फेल हो गई। मैं जानता था उनकी दोनो बेटियां गंगा, सरस्वती हमेशा ही अव्वल आती थीं पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद में भी। इसलिए मैने सहानुभूति का मल्हम लगाते हुए कहा कोई बात नहीं पाल साहब कभी कभी ऐसा हो जाता है। हर बार परफारमेंस अच्छी ही हो जरूरी तो नहीं। हो सकता है अगले टेस्ट में अच्छा करे। हां अगर लगातार प्रदर्शन खराब हो तब जरूर चिंता की बात है। लेकिन अब इसका भी हल निकल आया है, अपने शहर में भी अच्छे कोचिंग सेन्टर खुल गये हैं, किसी में डाल दीजिए। मैं कुछ और कहता कि पाल जी तैश में आकर बोले क्या बकवास करते हैं आप भी। मैं बेटी गंगा की बात नहीं कर रहा वह तो अभी भी अव्वल ही आ रही है, मैं तो अपनी, आपकी बल्की हम सभी की गंगा मइया  की बात कर रहा हूं जो अब इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि हाल ही में सात शहरों में गंगा के पानी के लिए गये सभी नमूने जांच में फेल पाए गए। कहीं पर भी गंगा का पानी न पीने लायक है, न नहाने लायक और ना ही खेती में इस्तेमाल के लायक रह गया है। बताइये सौ मिली ग्राम पानी में कहीं कहीं तो एक लाख से अधिक बैक्टीरिया मिले हैं, मोक्षदायिनी गंगा अब रोगदायिनी बन कर रह गई है। पहले यही गंगाजल सालोंसाल रखने पर भी स्वच्छ रहता था, मजाल था कि उसमें कीड़े पड़ जांय। गंगा मइया की इन्ही खूबियों के कारण उन्हें पूजनीय माना गया।
  मेरे पास सिवाय पाल जी का लंबा लेक्चर सिर झुका कर सुनने के अलावा कोई चारा न था क्योंकी चूक तो मुझसे हो ही गई थी। अचानक मेरी नजर निगम जी पर पड़ी जो नजदीक ही खड़े होकर मंद मंद मुस्करा रहे थे, पता नहीं वे कितनी देर से चर्चा सुन रहे थे। मैं अंदर से एक कुर्सी और ले आया। आज तो निगम जी मेरे लिए संकटमोचन बनकर आए थे। कुर्सी पर आसीन होते ही बोले वाह पाल जी कैसी बातें कर रहे हैं आप भी। टेस्ट में गंगा फेल नहीं हुई, फेल तो हुए हैं हम और आप, फेल हुई हैं सरकारें, फेल हुआ है यह सिस्टम, फेल हुआ है विकास का यह आयातित माडल जिसे तमाम नुकसान के बावजूद छाती से चिपकाये हुए हैं। अब तक कितनी बड़ी बड़ी कार्य योजनाएं बनीं, कितना धन झोंका गया गंगा सफाई अभियानों पर, लेकिन परिणाम क्या निकला सिफर। गंगा की सफाई पूरे सिस्टम की सफाई से जुड़ी हुई है। गोद में बेटी को लेकर सेल्फी खींचना और फेसबुक पर पोस्ट करना आसान है लोग धड़ाधड़ ऐसा करने लगे लेकिन घर की महिलाओं को बराबरी का अधिकार देना, निर्णय लेने में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना कठिन होता है, इसके लिए लोग उतावलापन नहीं दिखाते वरना महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा गुलामी प्रथा, सती प्रथा की तरह इतिहास की बात होती।
  इतना कह कर निगम जी तो चले गये लेकिन हम सभी के लिए बड़ी चुनौती छोड़ गये। अब कहने के लिए कुछ शेष न था अतएव पाल जी ने भी विदा ली।
           --- अजय


Tuesday, July 7, 2015

सामयिक दोहे--- आम

माझम बारिश हो रही हो और सामने आम हों तो क्या कहने। सर्वसुलभ होने के कारण ही इसका ऩाम आम पड़ा होगा। मौसम आते ही अलग अलग स्वाद, रंग, रूप वाले आम गली चौराहों पर ठेलों, दूकानों पर सज जाते हैं। इसी संदर्भ में हैं ये पंक्तियां

पीले पीले रस भरे ललचाते हैं आम
कुदरत के उपहार को लाखों लाख सलाम

लंगड़ा दशहरी केसर जाने कितने नाम
रूप रंग और स्वाद में जुदा ये पर हैं आम

कैसे भूलूं खाए जो अमराई में आम
ना अब वो अमराइयां ना दिखते वे आम

भरी दुपहरी लू चले पेड़ से टपकें आम
दौड़ दौड़ सीकल बिनें कौन करे आराम

शब्दों में करना कठिन आमों का गुंणगान
गूंगा गुड़ के स्वाद का जैसे करे बखान

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Thursday, July 2, 2015

सामयिक दोहे------ छोटा सा ब्रेक

जी हां बड़ी आफत बन गया है यह छोटा सा ब्रेक। टी वी न्यूज चैनलों पर चाहे जितनी गम्भीर चर्चा क्यों न चल रही हो, वक्ता अपना वाक्य पूरा कर भी न पाया हो, अचानक बीच बहस यह कूद पड़ता है और शुरू कर देता है विज्ञापनों की झड़ी। बैठे रहिये तब तक आप मन मारे। इसी संदर्भ में हैं ये चंद लाइनें

छोटा सा ब्रेक कर रहा भारी अत्याचार
श्रोता वक्ता ऐंकर सभी दिखें लाचार

आधी अंदर रह गई बाहर आधी बात
तभी पीठ पर पड़ी आ ब्रेक की जमकर लात

डूबे थे हम बहस में चर्चा अति गंभीर
तभी कलेजे आ धंसे विज्ञापर के तीर

घर घर घुस घुस मारता विज्ञापन के बांण
सीना छलनी होगया पाएं कैसे त्रांण

ब्रेक जरूरी कहें वे है मंहगा यह खेल
बिना ब्रेक के मीडिया हो जायेगा फेल

ब्रेक के पीछे खड़ा है ताकतवर बाजार
लगा ठहाका जोर का रहा हमें ललकार

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