Monday, December 29, 2014

एक थी सिंगरौली-15
दरअसल रिहंद बांध की स्थिति गरीब की लुगाई जैसी हो कर रह गई है कि हर कोई उसके साथ मनमानी करता है,जैसा जी चाहता है इस्तेमाल करता है इस मानसिकता के साथ कि बेकार ही तो पड़ा है,जिस तरह से जितना भी इस्तेमाल किया जा सके उतना ही सही।यही वजह रही है कि रिहंद के सभी गुनहगार,खास कर बड़े-एनटीपीसी,एनसीएल,हि्डालको,कनोड़िया केमिकल एक दूसरे पर रिहंद जलाशय को प्रदूषित करने का आरोप लगाकर अपनी जवाबदेही से बचते रहे हैं।यही कारण है कि रिहंद के प्रदूषण की रोकथाम  के लिये एक साझा कार्यक्रम बनाकर सहयोग करने से अब तक ये सभी कतराते रहे हैं।सिंगरौली क्षेत्र का दो अलग अलग राज्यों (उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश)में बंटा होना भी समस्या को अौर भी बढ़ाता है। चर्चा तो बहुत होती रही पूरे क्षेत्र को एक ही प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत लाने की परन्तु राजनीतिक कारणों से यह मामला अब तक खटाई में ही पड़ा  रहा।इसी प्रकार से इस इलाके में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये रिहंद जलाशय को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के सुझाव भी आये पर अमल आज तक नहीं हुआ।
           दिल्ली में विश्व बांध आयोग की एक बैठक चल रही थी।चर्चा के दौरान यह बात भी उठी कि कुछ एेसे बांधों की भी केस स्ट्डीज तैयार की जाय जिनका बहुत कमजोर प्रदर्शन रहा हो अौर जिन्हें असफल बांध कहा जा सकता हैजिससे लोगों को यह स्पष्ट हो कि कैसे डैम बिल्डर्स की लाबीइंग के कारण एेसे बांध बनाने के निर्णय लिये जाते हैं जिनसे न केवल देश के संसाधनों की बरबादी होती है बल्कि तमाम लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ता है,पर्यावरणीय क्षति होती है वह अलग।उस बैठक में  मैने रिहंद बांध पर एक छोटा प्रस्तुतीकरण रखा जिसे सुनकर वहां उपस्थित साथियों को आश्चर्य हुआ।बाद में शायद समय कि कमी,संसाधन की कमी या किसी अन्य किसी कारण से इस प्रकार की केस स्टडीज का विचार त्याग दिया गया था अौर रिहंद बांध का पूरा सच दुनिया के सामने आने से रह गया।
            जनपद सोनभद्र अौर जनपद सिंगरौली अपने अपने राज्यों (उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश) को प्रति वर्ष बाकी अन्य सभी जनपदों के मुकाबले सबसे अधिक राजस्व उपलब्ध कराते हैं।खदानों आदि से प्राप्त होने वाली रायल्टी की रकम काफी बड़ी होती है।दोनो जनपदों के स्थानीय निकायों की गिद्ध दृष्टि हमेशा ही बड़ी बड़ी परियोजना्अों (एनटीपीसी,एनलीएल आदि) से प्राप्त होने वाली आर्थिक सहायता पर ही रहती है जिसका उपयोग नागरिक सुविधाअों,पर्यावरण सुरक्षा आदि के लिये कम ही हो पाता है,ज्यादातर तो दुरूपयोग ही होते दिखता है।यह सही है कि अगर ईमानदारी से इस क्षेत्र से प्राप्त होने वाले राजस्व का छोटा सा भाग भी इस क्षेत्र की दशा सुधारने में खर्च किया गया होता तो रिहंद का पानी जहरीला नहीं होता अौर इस क्षेत्र में गांव के गांव विकलांग नहीं होते ।
                  एक सवाल जेहन में यह भी उठता है कि जो हश्र  रिहंद बांध का हुआ है क्या वही हश्र उन परियोजनाअों का भी तो नहीं होगा जो भेड़चाल से सिंगरौली क्षेत्र में आ रही हैं,कोई लेटेस्ट सुपर क्रिटिकल टेक्नालाजी के नाम पर आ रही हैं तो कोई किसी अौर टेक्नालाजी का राग अलापते हुए।ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते हुए खतरे के कारण कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने की बातें अब हवा हवाइ नहीं रह गईँ।अमेरिका अौर चीन के बीच कार्बन उत्सर्जन में कटौती का एेसा समझौता हो भी चुका है और अब भारत की बारी है। एेसे में कोयला आधारित ऊर्जा के पीछे इस तरह से हांथ धोकर पीछे पड़ना कहां तक उचित है।
       --- अजय
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Sunday, December 28, 2014

यह रचना कई वर्ष पुरानी है,जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी ने सिंगरौली को सिंगापुर बना देने की घोषणा की थी।नेहरू जी ने भी रिहंद बांध के शिलान्यास के समय कहा था कि यह क्षेत्र स्विटजरलैन्ड बनेगा।अभी तक तो एेसा कुछ नहीं हो पाया लेकिन सिंगरौली प्रदूषण के मामले में जरूर नंबर वन हो गया है।इसी संदर्भ में प्रस्तुत है
अवधी रचना----
सिंगरौली से सिंगापुर
होई सिंगरौली सिंगापुर अब देखौ खेल नसीबों का
बिना टिकट घर बइठे बइठे लेव मजा सिंगापुर का

बहुत होइ गवा रोना धोना का है बीती बातन मा
कहां पहुंचिहौ य तो सोचौ घूमौ राजा ख्वाबन मा

बड़ी सोच का जादू देखौ नहीं खेल य बच्चन का
सांय सांय अब उड़ौ कार मा लेव मजा सिंगापुर का

ब्लास्टिंग से दरकी दीवारें छत देखौ न फिर फिर के
सूखे नलके हैंडपम्प सब अोट करो इन नजरों से

बहै देव गंदी नाली अौ रहै देव ढ़ेर कचरों का
काकू बस तुम करौ तैयारी लेव मजा सिंगापुर का

राख धुंआ अौ धूल देखके जी न करौ आपन छोटा
काम आय गा देश के हित म रहा तो य सिक्का खोटा

घी के दिया जलाअो घर घर चमका तारा किस्मत का
चिल्का डांड म टांग पसारे लेव मजा सिंगापुर का

हुआ प्रदूषित डैम तो का कुछ कीमत तो देइन क परी
छुइहौ जो विकास की चोटी दिक्कत कुछ तो होबै करी

आएव न बहकाये म कउनो के राखेव मन पक्का
नाव नेवरिया डैम म खेलौ मजा लेव सिंगापुर का
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Friday, December 26, 2014

आज कल धर्मांतरण पर बहुत हो हल्ला मचा हुआ है,लगता है देश का सबसे बड़ा मुद्दा यही बन गया है अौर देश के हर मर्ज की दवा यही है।तो लीजिये प्रस्तुत है
अवधी रचना---
धर्मांतरण----
बदले से धरम का का होई
बतलाय देव हमका कोई
          चच्चा समझाय देव हमका
           तनी भेद बताय देव हमका
           रहमान से बनके रामानंद
           का बदल देब हम दुनिया का।
का चैन की बंशी बजी सदा
का भेदभाव फिर ना होई
बदले से धरम का का होई
बतलाय देव हमका कोई
             का घूंस न लागी आफिस मा
              गुंडई न होई गांवन मा
              महिलाअों के संग छेड़छाड़
              खुलेआम न होई सड़कन मा
का जल्दी कोर्ट से न्याय मिली
सुनवाई गरिबवन की होई
बदले से धरम का का  होई
बतलाय देव हमका कोई
              का जात पांत अब मिट जाई
                का भूख कुपोषण मिट पाई
              कालाबाजारी लूटपाट से
               मुक्ती का अब मिल पाई
जब एतनौ ना बदली समाज
तो धरमै बदले का होई
बतलाय देव हमका कोई
बदले से धरम का का होई
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Friday, December 19, 2014

पेशावर में स्कूली बच्चों पर आतंकियों द्वारा किये गये वहशियाना हमले पर

जाते जाते दे गया घाव बड़ा यह साल
मासूमों के खून से पेशावर हुआ लाल

यह कैसा बदला लिया बच्चों को यूं मार
दहशतगर्दी कभी भी होगी ना स्वीकार

कीमत बड़ी चुका रहा अब तो पाकिस्तान
दहशतगर्दी झेलता आया हिन्दुस्तान
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Tuesday, December 16, 2014

बचपन पर चंद दोहे---

बचपन के संग ही गया बयपन का वो प्यार
बड़े हुए तो मिल रही डांट डपट फटकार

पल पल होती थी सदा खुशियों की बरसात
खुशियों को हैं दे रही चिंतायें अब मात

यादें बचपन की अभी भी हैं मेरे साथ
ले जाती उस दौर में पकड़े मेरा हाथ

अक्सर याद आता मुझे अपना बिछड़ा गांव
बारिश में जब छोड़ते थे कागज की नाव

बदल गया मेरी तरह अब बचपन का गांव
जाता हूं अजनबी सा आता उल्टे पांव
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Monday, December 15, 2014

अवधी  रचना
बिकाऊ वोट
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
लिख के कागद म धरे जाव
जब जितिहौ तब तुम करिहौ का
         मीडिया क साधेव तुम अच्छा
          पहिराय दिहेव सब का कच्छा
           वादा तुमहू तो किहेव खूब
            जनता देई तुमका सिच्छा
अब लफ्फाजी न काम करी
न लटका झटका पहिले का
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
                 अब जून जमाना बदल गवा
                  होइगा है सब कुछ नवा नवा
                   मैगी अौ कोलगेट शैम्पू
                    गांवन गांवन म पहुंच गवा
अब उल्लू न बनिहैं हरखू
जुग आवा है इंटरनेट का
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
                        केतनौ करिहौ न छिपा रही
                         पानी क हगा उतराय परी
                          हौ ठाढ़ कांच के घर म तुम
                           हरकत हर एक देखाय रही
अब चली न कउनो हथकंडा
अब मूड़ न पइ हौ जनता का
है वोट बिकाऊ लेहौ का
बदले म हमका देहौ का
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Sunday, December 14, 2014

एक थी सिंगरौली-14
पर्यावरण सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर वर्षों से की जा रही लापरवाही का भयानक परिणाम भी सामने  आया है।न केवल रिहंद जलाशय का जल प्रदूषित हुआ है बल्कि आस पास के तमाम गांवों का पानी भी जहरीला हो गया है।गांवों में कुअों के पानी में फ्लोराइड की काफी अधिक मात्रा पाई गई जिसके कारण हड्डियों के रोग से बच्चे,बूढ़े सभी पीड़ित हैं।इतना ही नहीं बल्कि पानी में मरकरी की घातक मात्रा पाई गई ।नब्बे के दशक में ही कराये गये अध्यन में यह तथ्य सामने आया था कि रिहंद के पानी में मरकरी की उपस्थिति सामान्य स्तर से काफी ज्यादा है।इसीलिये रिहंद जलाशय की मछलियों  न खाने की सलाह भी दी गई थी।लेकिन हर तरह की चेतावनियों की अनदेखी ही की गई।अधिक से अधिक उत्पादन करने की धु्न में पर्यावरणीय अौर सामाजिक सरोकारों को हमेशा ताक पर रक्खा गया जिसका नतीजा सामने है।
         सिंगरौली क्षेत्र(उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश)के गावों में प्रदूषित पानी के चलते होनेवाली विकलांगता के मुद्दे को मीड़िया,खासकर प्रिट मीड़िया तो वर्षों से बारबार उठाता आ रहा है,इलेक्ट्रानिक मीड़िया ने भी इस मुद्दे पर फोकस किया है।संसद में भी इस पर चर्चा हुई क्योंकी यह कोई छोटी मोटी फौरी समस्या नहीं है।दर्जनों गांवों में बच्चे बूढ़े विकलांगता के शिकार हुए हैें।स्थिति तो यहां तक पहुंच गई है की इन गांवों में दूसरे गांवों के  लोग शादी संबंध करने से कतराते हैं।स्थानीय डाक्टरों का कहना है कि इसका इलाज दवा से नहीं हो सकता क्योंकी पानी ही प्रदूषित है।इन गांवों के लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे अब अपना गांव,यह इलाका छोड़ कर कहां जांय।इनमें से तमाम गांव एक बार पहले ही रिहंद से उजड़ चुके हैं। किसी तरह से जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर आ रही थी कि यह जानलेवा मुसीबत गले आ पड़ी जिससे छुटकारा पाने की फिलहाल तो कोई उम्मीद नजर नहीं आती।क्या विकास के पीछे लट्ठ लेकर पड़े हमारे योजनाकार कभी सिंगरौली का दर्द महसूस कर पायेंगे।सवाल फिर यह भी उठता है कि यह किसका विकास है अौर कौन इसकी कीमत चुका रहा है।विकास की चर्चा चलने पर लोग झट से यह कह देते हैं कि किसी न किसी को तो इसकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी ही ।अरे भाई, हर बार विकास की कीमत लोक विद्याधरसमाज(किसान,कारीगर,आदिवासी,महिला,छोटा दूकानदार ) ही क्यों चुकाये।एेसा विकास थोपने से पहले क्या कभी कीमत चुकाने वालों की राय भी ली जाती है।
             एक ही भोपाल गैस त्रासदी आंख खोल देने के लिये काफी है।सीधा सा सबक है कि अौद्योगिक विकास के जरिये समाज में खुशहाली लाने का रास्ता कितना जोखिम भरा है।एेसे देशों के लिये तो यह डगर अौर भी कठिन है जहां पर्यावरण कानू्न बहुत कमजोर हैं,उससे भी लचर उनका क्रियान्वयन है।इसके उलट विकसित देशों में न केवल पर्यावरण कानून कड़े हैं,वहां सुुरक्षा के मानक भी ऊंचे हैं,उन पर अमल भी सख्ती से होता है।इसके अलावा नागरिक भी अपेक्षाकृत सतर्क रहते हैं,प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों(डर्टी इंडस्ट्री) को अपने यहां लगने ही नहीं देते। यह भी अनजाने ही नहीं हो रहा है कि प्रदूषण फैलानेवाले उद्योग विकसित देशों से स्थानान्तरित होकर विकासशील देशों में आ रहे हैं,वहां की पुरानी ,बेकार पड़ी टेक्नालाजी आ रही है।नागरिकों के विरोध के चलते यूरोप में कोयला आधारित बिजलीघर लगाना संभव नहीं है लेकिन विकासशील देशों में धड़ाधड़ एेसे बिजलीघर लगाये जा रहे हैं।यही कारण था कि यूनियन कार्बाइड  कारखाना भारत में लगा अौर भीषण लापरवाहियों के चलते इतना बड़ा हादसा हुआ।
               सिंगरौली क्षेत्र की त्रासदी भी भोपाल गैस त्रासदी की तरह ही इस अौद्योगिक सभ्यता की देन है।दोनो ही सुरक्षा मानकों की अनदेखी अौर घोर लापरवाही के कारण हुईं, फर्क बस यही है कि भोपाल त्रासदी अचानक एक रात जहरीली गैस के रिसाव से हुई,आनन फानन में हजारों लोग मरे अौर उससे कई गुना ज्यादा विभिन्न रोगों से पीड़ित हुए।प्रदेश की राजधानी में इतना बड़ा हादसा होने के कारण तुरंत ही मीड़िया,स्वयंसेवी संस्थाओँ के सक्रिय होने से प्रशासन भी हरकत में आया ,जबकी सिंगरौली की त्रासदी धीरे धीरे वर्षों में घटित हुई साथ ही दूर दराज में स्थित होने के कारण काफी समय तक नेशनल मीड़िया  की नजरों से लगभग अोझल ही रहा।इसी वजह से स्थानीय प्रशासन हमेशा कुंभकर्णी नींद में सोता रहा सिवाय बलियरी ब्लास्ट जैसी चंद बड़ी दुर्घटनाअों को छोड़ कर।सिंगरौली क्षेत्र में इससे बड़ी लापरवाही अौर क्या हो सकती है कि कई दशकों से चल रहे अनवरत अौद्योगीकरण के बावजूद कभी भी पूरे इलाके में घर घर जा कर स्वास्थ्य सर्वेक्षण नहीं करवाया गया जबकी सिंगरौली में व्यापक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की मांग स्थानीय जनसंगठन लोकहित समिति सन् 1984 से ही करता रहा जिस पर अगर ध्यान दिया जाता तो समय रहते तमाम लोगों को विकलांगता तथा दूसरे घातक रोगों से बचाया जा सकता था। इसी प्रकार अगर सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन कराया जाता तो रिहंद के पानी को जहरीला होने से बचाया जा सकता था।
           -अजय
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Friday, December 12, 2014

अवधी रचना-
     बलैक  मनी
जय ब्लैक मनी जय ब्लैक मवी
तुम हौ गुलाब हम नागफनी
चिरकुट के पास कहां रइहौ
तुमका पसंद हैं धनी मनी
जय ब्लैक मनी जय ब्लैक मनी
           हल्ला गुल्ला तो खूब सुना
            लउटी कालाधन देश सुना
            है रकम बहुत भारी भइया
             चमकी किस्मत हां एहू सुना
लइ लीना कर्जा हमहू फिर
अब तो बिगरी हर बात बनी
जय ब्लैक मनी जय ब्लैक मनी
तुम हौ गुलाब हम नाग फनी
                बिन बरसेन बादर निकर गये
                  मुंह बाएन हम तो ठाढ़ रहे
                  बहसा बहसी तो खूब भई
                  दिल के अरमां सब धरेन रहे
अब दिल की चोट कही केसे
हमरी गोहार अब कौन सुनी
जय. ब्लैक मनी जय ब्लैकमनी
तुम हौ गुलाब हम नागफनी           
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Wednesday, December 10, 2014

भोपाल गैस त्रासदी को 30 वर्ष हो गये,न तो पीड़ितों को अब तक न्याय मिला न ही जिम्मेदार को सजा।अब तो एण्डरसन इस दुनिया से कूच भी कर गया।इसी संदर्भ में पेश हैं चंद दोहे
1
अब तो हम पर हंस रहा एण्डरसन का भूत
सजा न उसको मिली कुछ रह गये धरे सबूत
2
ताकतवर को मिली है सभी तरह की छूट
एण्डरसन आया गया धर छाती पर बूट
3
गैस त्रासदी से सबक यही मिला है खास
कुर्बानी कमजोर की मांगे सदा विकास
4
सोनभद्र का दर्द भी बहरे सुन ना पांय
बड़ी बड़ी परिययोजना बस लगती ही जांय
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Tuesday, December 9, 2014

एक थी सिंगरौली-- 13
वर्तमान समय में रिहंद बांध का जो उपयोग हो रहा है उसे देख कर समझ में नहीं आता कि हंसा जाये या रोया जाये।दुनिया में शायद ही एेसी कोई दूसरी मिसाल मिलेगी जहां इतने बड़े जलाशय के पानी का इस्तेमाल  सिर्फ कुछ बिजलीघरों की मशीनों को ठंढ़ा करने के लिए किया जाता हो।अब तो जलाशय में पानी का स्तर कम न हो जाय इसकी वजह से बांध की टरबाइनें चालू ही नहीं की जाती हैं इसलिये जल विद्युत बनाई ही नही जाती।अब आइये इसका दुरूपयोग भी देख लिया जाय।इस लिहाज से सबसे पहले नजर जाती है जलाशय के किनारे किनारे बने विशाल राख बांधों पर जिसमें लाखों टन कोयला प्रति दिन जलने पर निकलने वाली राख को इकट्ठा किया जाता है।ताप बिजलीघरों से निकलने वाली राख में पानी मिलाकर बड़े फोर्स से मोटे मोटे लोहे के पाइपों के जरिये राख बांध में बहाया  जाता है।राख बांध में राख सूख जाने पर हवा के साथ उड़े न इसलिये इसमें राख के लेवल से ऊपर हरदम पानी भरा रहना चाहिये।कोयले की राख में तमाम जहरीले तत्व होते हैं।राख बांध का यह बड़ी मात्रा में प्रदूषित पानी रिसाव के जरिये  रिहंद जलाशय में जाता है अौर उसे भी निरंतर प्रदूषित करता रहता है।एनटीपीसी के तीन बिजलीघरों-सिंगरौली सुपर थर्मल पावरस्टेशन शक्तीनगर    विंध्याचल सुपर थर्मल पावर स्टेशन विंध्यनगर,रिहंद सुपर थर्मल पावर स्टेशन बीजपुर तथा उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड के अनपरा सुपर थर्मल पावर स्टेशन,बिड़ला के रेंणू सागर थर्मल पावर स्टेशन के राखबांध रिहंद जलाशय के किनारे ही बने हैं।कई बार राखबांध के टूटने से बहुत बड़ी मात्रा में राख सीधे बह कर रिहंद में जाती है।इसके अलावा चोरी छिपे भी राख रिहंद में बहाई जाती रही है।कुछ वर्ष पूर्व सोनभद्र आई तहलका की टीम ने इस तरह चोरी चोरी रिहंद में राख बहाए जाने की घटना की रिपोर्टिंग की थी।
      रिहंद बांध को प्रदूषित करने की होड़ में एनसीेएल की कोयला खदानें भी किसी से पीछे नहीं हैं।ये बारह कोयला खदानें भी रिहंद के इर्द गिर्द ही हैं  तथा ये सभी खुली खदानें हैं।इन खदानों से निकलने वाला  मलबा(अोवर बर्डेन),कोयले की धूल,वर्कशापों का कचरा एवं कालोनियों का जलमल रिहंद को प्रदूषित करता है।रिहंद के प्रदूषण की कहानी यहीं नहीं खत्म होती है बल्कि ताप बिजलीगरों,कोयला खदानोॆ के साथ साथ हिन्डालको अल्यूमिनियम कारखाना,कनोडिया केमिकल,हाई टेक कार्बन,इंडस्ट्रियल गैसेज जैसे कारखानों का भी रिहंद के पानी को  जहरीला बनाने में बड़ा हाथ है।
       चुर्क अौर डाला की सीमेन्ट फैक्ट्रियां,हिन्डालको,अोबरा बिजलीघर आदि बनने के साथ साथ इस इलाके की आबादी बढ़ने लगी थी।अस्सी के दशक के बाद देश के दूसरे हिस्सों  से रोजी रोटी की तलाश में इधर आने वालों की रफ्तार काफी तेज हो गई।उतनी ही तेजी से नई नई बसाहटें बसीं,पुरानी छोटी बस्तियां बड़े कस्बों में तब्दील हो गईं।अलग अलग परियोजना की अलग अलग कालोनियां,शापिंग काम्प्लेक्स बने।इस बढ़ी हुई आबादी का भी दबाव बढ़ा,छोटे बड़े उद्योग धंधे लगे।इनका कचरा भी बढ़ता गया।
   अब स्थिति यह है कि तमाम छोटे बड़े नाले-बलियरी,सौरा(सूर्या),चटका आदि तथा रेंण की सहायक नदियां-बरन,बिजुल,काचन ,मयार आदि बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं अौर निरंतर अपना जहर रिहंद में डाल रही हैं।यह सब वर्षों से चल रहा है लेकिन सभी अपने अपने में मस्त हैं ,व्यस्त हैं-परियोजना अधिकारी,स्थानीय प्रशासन,प्रदेश सरकार अौर केन्द्र सरकार भी।हां,कागज पर जरूर घोड़े दौड़ाये चाते होंगे,पर्यावरण दिवस,पर्यावरण सप्ताह बहुत धूमधाम से मनाया जाता होगा अगले दिन अखबारों में बड़े बड़े बयान छपते हैं,वृक्षा रोपण करते हुए अधिकारियों की फोटो छपती हैं। बस हो गई  पर्यावरण सुरक्षा।
      - अजय
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Sunday, December 7, 2014

पेंडारी ग्राम(बिलासपुर) के नसबंदी शिविर में हुई 19 महिलाअों का मौत ने परिवार नियोजन कार्यक्रम में बरती जा रही घोर लापरवाही को उजागर कर दिया है जिससे नसबंदी शिविर यातना शिविर बन जाते हैं।इसी पर चंद पंक्तियां पेश हैं
1
प्राइवेट मंहगा बहुत सरकारी बदहाल
शिक्षा स्वास्थ्य मिले उन्हें जो हैं मालामाल
2
महिला अौर गरीब की किसे पड़ी परवाह
पूरा हो बस टारगेट रहती हरदम चाह
3
लापरवाही की नई कायम करें मिसाल
महिला नसबंदी शिविर का है एेसा हाल
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Saturday, December 6, 2014

एक थी सिंगरौली-12
कहा जाता है रिहंद बांध परियोजना उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत का ड्रीम प्रोजेक्ट था।वह चाहते थे कि पंजाब,हरियाणा की तर्ज पर पूर्वी उत्तर प्रदेश का अौद्योगीकरण हो जिसके लिए जरुरी थी बड़े मात्रा में बिजली अौर यह काम रिहंद बांध के जरिये जल विद्युत पैदा कर किया जाना था।इसीलिए यह बांध पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला में पिपरी नामक स्थान पर सोन की सहायक रेंण नदी पर बनाया गया।आज कल के बांधों की तरह यह बहुउद्देशीय बांध नहीं था।सिंचाई,पेयजल आपूर्ति आदि के लिए न होकर यह सिर्फ बिजली उत्पादन के लिए बनाया गया था।300मेगावाट विद्युत उत्पादन इसका लक्ष्य था।आज तो सिंगरौली में4000मेगावाट अौर 6000मेगावाट की विद्युत उत्पादन क्षमता वाले सुपर थर्मल पावर स्टेशन बन गये हैं लेकिन सन् 1960में 300मेगावाट भी बिजली की बड़ी मात्रा थी।रिहंद बांध से बिजली तो पैदा होने लगी थी किन्तु उस समय तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में अौद्योगीकरण के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट न होने के कारण इस बिजली का कोई उपयोग नहीं था।बाद में नेहरू जी की प्ररणा से उद्योगपती बिड़ला ने इस क्षेत्र में अल्युमिनियम का कारखाना हिंडालको लगाया।हिंडालको को बहुत सस्ती दर पर बिजली दी जाती थी।बाद में यहां पर कोयले की भारी उपलब्धि को देखते हुए हिंडालको के लिए रेणू सागर में ताप बिजलीघर बना लिया गया जिसकी उत्पादन क्षमता में बाद के दिनों में काफी वृद्धि की गई।
अक्सर जल विद्युत की जगह ताप विद्युत को ज्यादा पसंद किया जाता रहा जिसका एक बड़ा कारण तो यह था कि जल विद्युत का उत्पादन वर्ष भर एक सा नहीं होता है। गर्मी के दिनों में बांध में पानी का जलस्तर काफी कम हो जाता है इससे विद्युत उत्पादन प्रभावित होता है जबकी ताप विद्युत के साथ एेसी कोई समस्या नहीं होती,पूरे वर्ष एक सा उत्पादन रहता है हालांकि ताप विद्युत की सबसे बड़ी समस्या इससे पैदा होने वाला भारी प्रदूषण  है।रिहंद बांध से भी बरसात के मौसम को छोड़कर विद्युत उत्पादन क्षमता से कम होता रहा।कोयला खदानों के कारण बड़ुी मात्रा में जंगलों की कटाई से जल्द ही रिहंद के जलाशय में काफी गाद भर गई जिससे इसकी जल ग्रहण क्षमता बहुत कम हो गई है।अब तो विद्युत उत्पादन ठप्प पड़ा है।इतनी बड़ी परियोजना इतनी जल्दी बेकार हो गई,है ना आश्चर्य की बात।
      कहते हैं एक अंग्रेज अफसर जब शिकार खेलते हुए उस जगह पहुंचा जहां रेंण नदी दो ऊंची पहाड़ियों के बीच से होकर बहती है तब पहली बार उसके मन में इस स्थान पर नदी को रोक कर एक सुन्दर झील बनाने का विचार आया था उसने इंग्लैंड में इस तरह की मानव निर्मित झील देखी थी पर यह विचार अंग्रजों के समय तक क्रियान्वित नहीं हुआ शायद उन्हें इस परियोजना में खर्च के मुकाबले लाभ ज्यादा न दिखाई पड़ा हो।जनपद सोनभद्र में ही मुख्यालय राबर्ट्सगंज से कुछ दूर धंधरौल नामक स्थान पर एक छोटी सी नदी घाघर पर अंग्रेजों के समय का छोटा सा बांध बना है।एक साल गर्मियों में विजयगढ़ किले पर होने वाले सालाना उर्स में जाते हुए वह बांध देखने का अवसर मिला था।छोटा सा यह खूबसूरत बांध सन् 1913 में बनाया गया था।इस बांध के आसपास का इलाका समतल जमीन वाला है जिसकी सिंचाई इस बांध से निकाली गई नहर से आज भी हो रही है।अंग्रजों ने इस बांध को सिचाई के उद्देश्य से ही बनाया था ताकि ज्यादा भू राजस्व प्राप्त किया जा सके।देखिये एक अोर है सन्1913का बना छोटा सा धंधरौल बंधा जो आज भी खेतों की प्यास बूझा रहा है दूसरी अोर है विशाल जलराशि वाला रिहंद बांध जो खुद एक समस्या बन गया है पूरे इलाके के लिए।रिहंद का प्रदूषित जल सिंगरौली क्षेत्र के भूगर्भीय जल को प्रदूषित कर रहा है।यह बात तो सन् 1990 में ही एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आ गई थी।
          अजय
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नेपाल में हो रहे सार्क सम्मेलन में दोनो प्रधानमंत्रियों-भारत,पाक के बीच अनबोला ही रहा,न दुआ न सलाम।इस पर चंद दोहे पेश हैं
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कभी मिले थे लपक कर अच्छा था आगाज
दूर दूर ही अब रहें देखो नमो नवाज
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सार्क अखाड़ा बन गया हिन्द पाक के बीच
ठुकरायें प्रस्ताव हर वे तो आंखें मीच
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हिन्द विरोधी लहर पर रहता पाक सवार
आतंकी को हर मदद देती हर सरकार
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जनता दोनो अोर की चाहे शान्ति विकास
सरकारों को कभी भी आया ना यह रास
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Wednesday, December 3, 2014

जिस तेजी से चमत्कार को नमस्कार का चलन बढ़ा है उसी रफ्तार से बाबाअों की दूकानदारी चटकी है।धर्म की जगह आडम्बर बढ़ रहा है,उसे बेनकाब होना ही है।आसाराम,रामपाल आदि तो कुछ उदाहरण भर हैं।इसी पर पेश हैं चंद दोहे
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सरल ह्रदय वे संत हैं छल प्रपंच से दूर
प्रेम दया सेवा सदा हो जिनमे भरपूर
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काम क्रोध मद लोध से रहे जो हरदम चूर
एेसे ढ़ोंगी से सदा रहना प्यारे दूर
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नेता- बाबा का बना है कैसा गठजोड़
मिलजुल दोनो लूटते लाज शरम सब छोड़
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हम भी पाना चाहते जल्दी सबकुछ आज
अपनाने से शार्टकट कब आते हैं बाज
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Monday, December 1, 2014

एक थी सिंगरौली--11
आपने मजमेबाजों को देखा होगा किस तरह वे अपनी लच्छेदार बातों से दर्शकों को प्रभावित कर लेते हैं अौर मंजन,तेल,दवाइयां आदि बेंच कर चले जाते हैं।उनके जाने के बाद या फिर घर पहुंच कर हकीकत से दो चार होने पर पता चलता है कि हम तो ठग लिये गये।यही खेल थोड़ा अौर नफासत के साथ विकास परियोजनाअों में खेला जाता है।विकास परियोजना की प्रोजक्ट रिपोर्ट विशेषज्ञ  लोग तैयार करते हैं।प्रोजेक्ट रिपोर्ट मंजूर कर ली जाय इसके लिये लागत अौर लाभ के अनुपात को दुरुस्त रखने के लिये परियोजना से होने वाले फायदों को बढ़ा चढा कर दिखाया जाता है।एेसे एेसे सब्जबाग दिखाये जाते हैं जो कभी पूरे नहीं होते बल्कि बाद में तो येशेखचिल्लियों के सपने लगते हैं।सुनहरे भविष्य का एेसा खाका खींचा जाता है कि मानो देश की बेहतरी के लिये यह परियोजना बहुत जरुरी है वरना देश विकास की दौड़ में बहुत पीछे हो जायेगा।एक अोर तो परियोजना के फायदे बढ़ा चढ़ा कर गिनाये जाते हैं वहीं दूसरी अोर परियोजना की लागत कम कर के दिखाई जाती है।लागत के मद में कई खर्चों को जोड़ा ही नहीं जाता जबकी वे कीमतें तो किसी को चुकानी ही पड़ती हैं।अक्सर देखने में आता है कि परियोजना में पुनर्वास के मद में काफी किफायत से काम लिया जाता है।इसी प्रकार परियोजनाअों की पर्यावरणीयअौर सामाजिक कीमतें स्थानीय लोगों को ही चुकानी पड़ती हैं।
         गरज यह कि परियोजना को लाभदायक दिखाने के लिये पर्दे के पीछे बहुत सारी कवायदें की जाती हैं।इन सारी कवायदों का एक ही उद्देश्य होता है कि परियोजना मंजूर हो जाय जिससे तमाम लोगों के हित सीधे सीधे जुड़े रहते हैं।इनमें वैश्विक वित्तीय संस्थान जो परियोजना को धन उपलब्धकरातेहैं,बड़ेबड़ेकंसलटेंट,रिसर्च इंस्टीट्यूट,बड़ी कंपनियां जो टेक्नोलाजी अौर मशीनरी उपलब्ध कराती हैं,सभी शामिल हैं।इसीलिए विकास परियोजनाअों की तगड़ी लाबीइंग की जाती है जिनमें देशी अौर विदेशी ताकतों की मिली भगत रहती है।परियोजना की मंजूरी के समय गिनाये गये लाभों की असलियत का पता तो तब लगता है जब ये पूरी होकर काम करने लगती हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।अक्सर देखने में अाता रहा कि ये भारी भरकम परियोजनायें घोषित क्षमता से काफी कम पर कार्य करती हैं,कभी कभी तो 40 प्रतिशत या उससे भी कम।इस खराब प्रदर्शन के लिए भी बाद में सफाई के तमाम तर्क गढ़ लिये  जाते हैं।इस तरह की विकास परियोजनाअों से होने वाली देश के संसाधनों की बरबादी,पर्यावरणीय क्षति,विस्थापन की त्रासदी के लिए आखिर कौन जिम्मेदार होगा क्योंकी परियोजना के निर्माण से जिनको मलाई काटनी थी वे तो मलाई काट कर काम पूरा होते ही बंजारों कीतरह कहीं अौर डेरा डालने चले जाते हैं।
           इस तरह की परियोजनाओं का एक उदाहरण सिंगरौली से ही देना चाहूंगा,वह है रिहंद बांध का जो गोविंद वल्लभ पंत सागर के नाम से भी जाना जाता है।सिंगरौली क्षेत्र के अौद्योगीकरण के इतिहास में रिहंद बांध एक मील के पत्थर की तरह है।सन् 1960 में रिहंद बांध के निर्माण के बाद ही यहां एक के बाद एक परियोजनायें आती गईं।उस समयदेश के लिये यह कितनी महत्वपूर्ण परियोजना थी इसका अंदाजा सिर्फ इस घटना से लगाया जा सकता है जिसे इस इलाके के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता,दुद्धी क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक ग्रामवासी जी ने एक मुलाकात के दौरान सुनाया था।बात उस समय की है जब रिहंद बांध के शिलान्यास के लिये प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु यहां आ रहे थे,उनके साथ कांग्रेस के अौर भी दिग्गज नेता थे।ग्रामवासी जी ने बताया कि मैं पं.कमलापति त्रिपाठी जी के बगल में बैठा था उन्होंने मुझसे कहा अरे ग्रामवासी तुम्हारी तो चांदी ही चांदी है,इतनी बड़ी परियोजना तुम्हारे क्षेत्र में लग रही है,अब तुम्हें कौन हरा सकता है,तुम्हारी सीट तो अजर अमर हो गई।पं.नेहरु जी इस इलाके के प्राकृतिक सौंदर्य से इतने प्रभावित हुए थे कि शिलान्यास के अवसर पर भाषण में उन्होंने कहा था कि आगे चलकर यह स्विटजरलैंड बनेगा।उस दौर में एेसी परियोजना के विरोध के बारे में कोई सोच भी कैसे सकता था।
         राजस्व कर्मचारियों द्वारा मुआवजा निर्धारण,वितरण,पुनर्वास-व्यवस्था आदि में की जा रही धांधलियों को लेकर लोगों में काफी असंतोष था जिसने बाद में आंदोलन का रुप भी लिया।सिंगरौली क्षेत्र(म.प्र.)के भूतपूर्व विधायक अौर समाजवादी नेता पं,श्याम कार्तिक जी ने बताया कि उस दौरान डा. राममनोहर लोहिया मिर्जापुर आये हुए थे,उन्हें जब इस बाबत जानकारी मिली तो वे यहां आये अौर आंदोलन का नेतृत्व किया।पर वह दौर पं. नेहरु का था,रिहंद का विरोध नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गया।
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भले ही हमने विज्ञान के क्षेत्र में सफल मंगल अभियान द्वारा सफलता के झंडे गाड़ दिये हों पर समाज विज्ञान के क्षेत्र में अभी भी बहुत पीछे हैं,छुआछूत का कलंक अभी भी माथे पर लगा है।हाल ही में हुए एक राष्ट्रीय अध्ययन ने आइना दिखाया है।इसी संदर्भ में कुछ पंक्तियां प्रस्तुत हैं
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छुआछूत  की अभी भी है बाकी दीवार
मुंह में कुछ मन अौर कुछ गहरी बहुत दरार
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कहते छाती ठोंक कर हम हैं सभ्य समाज
छुआछूत का दाग फिक क्यों माथे पर आज
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फैशन अपनाया मगर बदले नहीं विचार
लाख छिपाये ना छिपे अंदर भरा विकार
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छुआछूत अपराध है संविधान रहा टेर
अब भी जिंदा यह प्रथा हुई बहुत ही देर
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