Tuesday, December 9, 2014

एक थी सिंगरौली-- 13
वर्तमान समय में रिहंद बांध का जो उपयोग हो रहा है उसे देख कर समझ में नहीं आता कि हंसा जाये या रोया जाये।दुनिया में शायद ही एेसी कोई दूसरी मिसाल मिलेगी जहां इतने बड़े जलाशय के पानी का इस्तेमाल  सिर्फ कुछ बिजलीघरों की मशीनों को ठंढ़ा करने के लिए किया जाता हो।अब तो जलाशय में पानी का स्तर कम न हो जाय इसकी वजह से बांध की टरबाइनें चालू ही नहीं की जाती हैं इसलिये जल विद्युत बनाई ही नही जाती।अब आइये इसका दुरूपयोग भी देख लिया जाय।इस लिहाज से सबसे पहले नजर जाती है जलाशय के किनारे किनारे बने विशाल राख बांधों पर जिसमें लाखों टन कोयला प्रति दिन जलने पर निकलने वाली राख को इकट्ठा किया जाता है।ताप बिजलीघरों से निकलने वाली राख में पानी मिलाकर बड़े फोर्स से मोटे मोटे लोहे के पाइपों के जरिये राख बांध में बहाया  जाता है।राख बांध में राख सूख जाने पर हवा के साथ उड़े न इसलिये इसमें राख के लेवल से ऊपर हरदम पानी भरा रहना चाहिये।कोयले की राख में तमाम जहरीले तत्व होते हैं।राख बांध का यह बड़ी मात्रा में प्रदूषित पानी रिसाव के जरिये  रिहंद जलाशय में जाता है अौर उसे भी निरंतर प्रदूषित करता रहता है।एनटीपीसी के तीन बिजलीघरों-सिंगरौली सुपर थर्मल पावरस्टेशन शक्तीनगर    विंध्याचल सुपर थर्मल पावर स्टेशन विंध्यनगर,रिहंद सुपर थर्मल पावर स्टेशन बीजपुर तथा उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड के अनपरा सुपर थर्मल पावर स्टेशन,बिड़ला के रेंणू सागर थर्मल पावर स्टेशन के राखबांध रिहंद जलाशय के किनारे ही बने हैं।कई बार राखबांध के टूटने से बहुत बड़ी मात्रा में राख सीधे बह कर रिहंद में जाती है।इसके अलावा चोरी छिपे भी राख रिहंद में बहाई जाती रही है।कुछ वर्ष पूर्व सोनभद्र आई तहलका की टीम ने इस तरह चोरी चोरी रिहंद में राख बहाए जाने की घटना की रिपोर्टिंग की थी।
      रिहंद बांध को प्रदूषित करने की होड़ में एनसीेएल की कोयला खदानें भी किसी से पीछे नहीं हैं।ये बारह कोयला खदानें भी रिहंद के इर्द गिर्द ही हैं  तथा ये सभी खुली खदानें हैं।इन खदानों से निकलने वाला  मलबा(अोवर बर्डेन),कोयले की धूल,वर्कशापों का कचरा एवं कालोनियों का जलमल रिहंद को प्रदूषित करता है।रिहंद के प्रदूषण की कहानी यहीं नहीं खत्म होती है बल्कि ताप बिजलीगरों,कोयला खदानोॆ के साथ साथ हिन्डालको अल्यूमिनियम कारखाना,कनोडिया केमिकल,हाई टेक कार्बन,इंडस्ट्रियल गैसेज जैसे कारखानों का भी रिहंद के पानी को  जहरीला बनाने में बड़ा हाथ है।
       चुर्क अौर डाला की सीमेन्ट फैक्ट्रियां,हिन्डालको,अोबरा बिजलीघर आदि बनने के साथ साथ इस इलाके की आबादी बढ़ने लगी थी।अस्सी के दशक के बाद देश के दूसरे हिस्सों  से रोजी रोटी की तलाश में इधर आने वालों की रफ्तार काफी तेज हो गई।उतनी ही तेजी से नई नई बसाहटें बसीं,पुरानी छोटी बस्तियां बड़े कस्बों में तब्दील हो गईं।अलग अलग परियोजना की अलग अलग कालोनियां,शापिंग काम्प्लेक्स बने।इस बढ़ी हुई आबादी का भी दबाव बढ़ा,छोटे बड़े उद्योग धंधे लगे।इनका कचरा भी बढ़ता गया।
   अब स्थिति यह है कि तमाम छोटे बड़े नाले-बलियरी,सौरा(सूर्या),चटका आदि तथा रेंण की सहायक नदियां-बरन,बिजुल,काचन ,मयार आदि बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं अौर निरंतर अपना जहर रिहंद में डाल रही हैं।यह सब वर्षों से चल रहा है लेकिन सभी अपने अपने में मस्त हैं ,व्यस्त हैं-परियोजना अधिकारी,स्थानीय प्रशासन,प्रदेश सरकार अौर केन्द्र सरकार भी।हां,कागज पर जरूर घोड़े दौड़ाये चाते होंगे,पर्यावरण दिवस,पर्यावरण सप्ताह बहुत धूमधाम से मनाया जाता होगा अगले दिन अखबारों में बड़े बड़े बयान छपते हैं,वृक्षा रोपण करते हुए अधिकारियों की फोटो छपती हैं। बस हो गई  पर्यावरण सुरक्षा।
      - अजय
bhonpooo.blogspot in

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