बकेट-बकेट
मैं सुबह कि चाय बिस्कुट के साथ मोदी सरकार के सौ दिनों के काम काज का लेखा जोखा अख़बार में पढ़कर अपने दिल को अच्छे दिन आने कि तसल्ली दे रहा था,कि तभी बिना किसी पूर्व सूचना के अचनाक इनकमटैक्स के छापामारों कि तरह बैठक में निरमोही जी ने प्रवेश किया..इसके पूर्व मेरे मुंह से रश्मितौर पर ही सही स्वागत के कुछ शब्द निकलते उन्होनें कुर्सी पर बिना बैठे ही मुझे चलेंज दे ड़ाला “भाई साहब में आपको ओपन चेलैंज करता हूं अगर दम है तो मेरा चेलैंज स्वीकार किजीए,वरना अपनी हार मान लिजीए...आपतो जानते हि है..हारे हुए को विजेता कि शर्त कबूल करनी पड़ती है”.. सच मानिए बुढापे कि कमस खाकर कहता हूं“जवानी कि कसम तो खा नहीं सकता जो छोड़कर चली जाए उस बेवफा को क्या याद करना” कि चाय का गिलास हाथ से छूटते छूटते रह गया...दूसरे हाथ ने प्लेट में रखे बिस्कुट को छुआ भर था कि वह उसी मुद्रा में स्टैचू हो गया..शरतंज में भी शह पड़ने के बाद जब राजा के बचने के की कोई अम्मीद नहीं रहती तो खेल खत्म हो जाता है...पर निरमोही जी ने तो ऐसी शह दी थी कि हारने के बाद भी मुझे छुटकारा नहीं मिलता यानी दुहूं भांति भई मृत्यु हमारी....
मैं निरमोही जी को अरसे से और निरमोही जी मुझे जानते है...बल्कि यह कहना अधिक ठीक होगा कि नरिमोही जी मेरी सारी कमियों से और मैं अनकी सारी अच्छाईयों से बाखूबी वाकिफ था...डर तो इसीबात का था कि चुनौती देने वाला पूरी तैयारी के साथ सामने वाले कि पूरी क्षमता का अंदजा लगाकर ही चुनौती देता है, यह अलग बात है कि भूल चूक से आंकलन ग़लत हो गया और चुनौतीकर्ता हार भी जाता है, लेकिन यहां तो इसकी भी गुंजाईश नहीं थी...वे मेरी रग रग से वाकिफ थे...राहत बस इतनी ही थी कि मित्र निरमोही जी हाडकोर सामाजिक कार्यकर्ता है वे सिर्फ और सिर्फ समाज सेवा के लिए ही जी रहे है...यह भी कहा जा सकता है कि समाज सेवा ने निरमोही जी के रुप में मनुष्य का अवतार लिया है, हांलाकि लोगों कि ग़लतफहमी का शिकार हो कर कई बार वे समाज सेवा के चक्कर में पीटे भी है...पर हर बार हंस कर यही कहा “गिरते है सह सवार ही मैदाने जंग में वो तिफ्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले” निरमोही जी कि समाज सेवा के चलते उनका भाभी जी से अनबोला भी हुआ और हर बार मैने ही निरमोही जी कि पैरवी कर उन्है संकट से उबारा था... इसलिये इतना तो विश्वास था कि इस चुनौती पिछे भी कोई ना कोई समाज सेवा का भाव ही होगा...दूसरे चुनोति स्वीकार ना कर हार मानना और भी मंहगा पड़ता...यह तो वहीं होता कि रोजा छुड़ाने गए थे..नमाज गले पड़ गई..अत: हलाल किये जाने वाले बकरे कि तरह बचने कि कोई राह ना देखकर मैने उनसे चुनौती बयान करने कि प्रार्थना की
निरमोही जी ने कुशल मजमेंबाज कि तरह भूमिका बनाते हुए कहा भाई साहब मेरी चुनौती बहोत सरल है इसमें आपकि एक पाई भी खर्च नही होगी..फिर रंग चोखा होगा..सारी दुनिया आपको देखेगी और आपकी खुशकिस्मती से जलेगी...यह सुनकर एक बार तो पूरे बदनमें झुरझुरी दौड़ गई पता नहीं इसतरह गोल गोलबाते करके निरमोही जी मुझसे क्या कुर्बानी चाहते है....मैने सुन रखा था कि फिदाईनों को भी इसी तरह बहोत ऊंचे ऊंचे सपने दिखाकर हंसते हंसते ज़िंदगी कुर्बान करने के लिए आतंकवादी कैंम्पो में तैयार किया है...अब तो मेरे सब्र का बांध टुट ही गया निरमोही जी कुछ भूमिका बांधते इसके पहले ही मैने लगभग गिड़गिड़ाते हुए निरमोही जी से कहा आप बताईये तो मुझे करना क्या है...उन्होने मेरी घबराहट भांप कर मोहक मुस्कान के साथ कहा भाई साहब आपकों सिर्फ एक बकैट भर कचरा देना होगा...चाहे आप अपने घर की सफाई कर के दे या अड़ोस पड़ोस कि....
यह चेलैंज आप इसके बाद दूसरे को देंगे इस तरह यह श्रंखला बढ़ती जाएगी घर अड़ोस पड़ोस और देश का वातावरण स्वच्छ होता जाएगा महिलाओं पर भी बोझ कम होगा...मै कल सुबह आऊंगा...एक बकेट कचरा कचरा पेटी में डालते हुए आपकी फोटो फेसबुक पर डाल दी जाएगी...इतना कह कर निरमोही जी कमान से छुटे तीर कि तरह निकल गए..और मैं वही बैठा कोस रहा था..कि बेड़ा गर्क हो इन आईस बकेट, राईस बकेट,व्हीट बकेट जैसे किस्म किस्म के बकेट वालों का जिनसे प्रेरणा लेकर निरमोही जी ने कचरा बकेट का मुझे बकरा बनाया...
अजय
No comments:
Post a Comment