Monday, September 29, 2014

… हाय टूट गया 


मैं शाम को टहलने के लिए घर से निकल कर कुछ दूर गया ही था कि बाजू वाली गली से कमल जी प्रगट हुए। पूरा नाम तो कमलेश कुंमार कमल है पर मित्रों के बीच उपनाम कमल से ही जाने जाते हैं। कवि ह्रदय हैं, कमल से बहुत लगाव है, शायद इसीलिए कमल वाली पार्टी के प्रति आंशिक झुकाव भी है। आजकल थोड़ा प्रसन्न दिखते हैं जिससे कई मित्रों को भ्रम भी हो जाता है की शायद कमल जी के अच्छे दिन आ गए हैं। पर ऐसी कोई बात नहीं है। मेरे अभिन्न मित्र हैं इसलिए मैं जानता हूँ। मित्रवर डाक घर में बाबू हैं। साहित्य से उनका लगाव है और यह साहित्य से प्रेम भी डाक से आने वाली पत्र-पत्रिकाओं की देन है। अब तो  डाक घर का काम बहुत कम हो गया है फिर भी यदा-कदा जो भी पत्रिकाएं आती हैं कमल जी उनका पहले स्वयं रसपान करने के बाद ही ईमानदारी से उसे गंतव्य तक पहुचाते हैं। 

रोज़ के विपरीत आज उनके चेहरे पर खिन्नता थी। मुझे लगा शायद सुबह ही सुबह भाभी जी से हलकी फुलकी नोंक-झोंक हो गयी है। जैसे अक्सर सीमाओं पर दो देशों के सैनिकों के बीच होती रहती है। मैं तो यह सोचकर चुप था कि अभी थोड़ी दूर चलने पर सुबह की ताज़ी हवा के झोंकों से कमल जी खिल जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ उलटे कुछ देर मौन रहने के बाद भारी आवाज़ में वे मुझसे मुखातिब हुए बोले- भाई साहब खबर तो आपको लग ही गयी होगी कि इतना पुराना गठबंधन टूट गया बताइये यह भी कोई बात हुयी ? मैं भारी पशो-पेश में पड़ गया कि क्या कहूँ , कहीं कुछ गलत न निकल जाए मुंह से क्यूंकि मैं कोई राजनीतिक चिंत्तक और विश्लेषक तो हूँ नहीं, न ही राजनीत के दलदल में मेरी कोई दिलचस्पी है। इसलिए घबराकर नौसिखिये बल्लेबाज की तरह अपनी तरफ आती हुयी फिरकी गेंद को बमुश्किल किसी तरह बल्ले से दूर धकेलने की कोशिश करते हुए कहा -कमल जी जो हो गया उसके लिए क्या सोचना ? गठबंधन है तो एक न एक दिन तो टूटेगा ही। अगर गठबंधन है ही नहीं तो क्या ख़ाक टूटेगा ?

इतिहास के पन्ने बताते हैं गठबंधन तो साहब बहादुर अँगरेज़ करते थे जिसे वे संधि कहते थे। वे पहले ही दिन से जानते थे कि देर सबेर संधि टूटेगी ही। इसीलिए वे  शुरू से ही सतर्क रहते थे। सच पूछिए तो वे संधि तोड़ने के लिए ही करते थे। लेकिन तोड़ते तब थे समय उनके अनुकूल हो। कोई भी उलटे सीधे आरोप लगाकर संधि तोड़ देते और विपक्षी को दबोच लेते थे। इधर हमारे देश के अधिकांश राजा और नवाब संधि करने के बाद एकदम लापरवाह और निश्चिन्त हो जाते थे। वे बेचारे गठबंधन धर्म का पालन करते रहते इधर अचानक एक दिन साहब बहादुर लोग गठबंधन तोड़ कर उन्हें मटियामेट कर देते। 

कमल जी यह तो इतिहास की बात थी अब तो ज़माना उससे बहुत आगे निकल चुका है। आजकल तो लडकियां भी दूर तक की सोच कर अच्छी तरह से जांच-पड़ताल करने एक बाद ही गठबंधन अर्थात शादी करती हैं। उन्हें पता होता है कि तलाक़ के बाद उनके हाथ कितनी प्रॉपर्टी लगने वाली है ? ख़बरों में हम लोग पढ़ते ही रहते हैं कि कोई कोई तो तलाक़ के बाद करोडो अरबों की संपत्ति पर हाथ मारती हैं। मेरा तो मतलब यह है कि मित्रवर गठबंधन करने वाले को पहले ही दिन से सतर्क रहना चाहिए और जैसे ही अच्छा अवसर आये गठबंधन तोड़कर फायदा उठा लेना चाहिए ठीक उसी तरह जैसे कंपनियों के शेयर खरीदने वाले जब अच्छा भाव मिलता है तो तुरंत फायदा उठा लेते हैं। 

मैं इसी तर्ज़ पर कुछ और जुमलेबाजी करता उसके पहले ही कमल जी हाथ जोड़, सजल नयन, भावविभोर होकर मेरे सामने खड़े होकर बोले - बस बस भाई साहब आपने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए। मैं मतिमंद व्यर्थ ही दुःख के सिंधु में गोते लगाता रहा और अकारण ही बात-बात पर पत्नी और बच्चों की देह को दण्डित करता रहा। आपने मुझ अकिंचन को गठबंधन की महिमा बताकर बहुत ही उपकार किया। अब तो लग रहा है कि कितनी जल्दी मैं कोई गठबंधन सही अवसर पर तोड़ने के लिए कर ही लूं और लाभान्वित हूँ, यह कह कर कमल जी तेजी से दूसरी गली की ओर बढ़कर शायद किसी नए गठबंधन की तलाश में निकल पड़े। 

अजय कुमार
http://bhonpooo.blogspot.in/


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