भावना की मीडिया क्लास : २. सोशल मीडिया…दो धारी तलवार
पिछली मीडिया क्लास में हमने सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज के बारे में चर्चा की थी। आज हम सोशल मीडिया के बढ़ते दुरूपयोग के बारे में बात करेंगे जो समाज को नुक्सान पहुंचा रहे हैं और इसी वजह से सोशल मीडिया आजकल न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में सुर्खियों की वजह बना हुआ है। फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट पर कोई भी फ़र्ज़ी आई. डी. बनाकर आपसे जुड़ सकता है। इसमें ये भी पता नहीं चलता कि सामने वाला लड़का है या लड़की ? वो आसानी से अपने जेंडर को छुपा सकता है। आपसे दोस्ती करके, आपको विश्वास में लेकर, मिलने की रिक्वेस्ट करके आपको धोखा दे सकता है। ऐसे कई केस सामने आये हैं जहाँ फेसबुक पर दोस्त बने लड़के ने लड़की से मिलने का अनुरोध कर उसका अश्लील एम. एम. एस.बना लिया या फिर उसका शारीरिक शोषण किया और ये कहते हुए ब्लैकमेल करता रहा कि अगर उसने किसी से कुछ कहा तो वो उसकी आपत्तिजनक फोटो या वीडियो फेसबुक और व्हाट्स-अप पर डाल देगा। बदनामी के डर से लड़की उसके शोषण का शिकार होती रही और जब पानी सर से ऊपर गया तब उसने पुलिस में शिकायत की। इसी तरह एक महिला एक लड़के को फेसबुक पर लड़की समझकर उससे अपनी हर बात शेयर करती रही, उसने उसे अपनी ज़िन्दगी के कई राज़ भी बताये और बाद में वो लड़का उसे धमकाने लगा और महिला के सारे राज़ उसके रिश्तेदारों को बता देने की धमकी देने लगा। इसी तरह फेसबुक पर मिले एक लड़के से १०वीं में पढ़ने वाली लड़की को मोहब्बत हो गयी, पर वो लड़का उससे फ़्लर्ट कर रहा था, जब उसने लड़की को डिच किया तो लड़की ने आत्महत्या कर ली। अमेरिका जैसे देश में तो फेसबुक जैसी सोशल साइट्स अपहरण, हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों का जरिया बनती जा रही है। वहाँ मिशन बेबी ब्लैक आउट चलाया जा रहा है जिसके तहत लोग अपने फेसबुक अकाउंट से अपने बच्चों की तस्वीरों और वीडियो को तेज़ी से डिलीट कर रहे हैं ताकि उनके बच्चे किसी अपराध का शिकार न बने।
सोशल मीडिया के ज़रिये सांप्रदायिक ताक़तें दंगे भड़काने का भी काम कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर दंगे के पीछे फेसबुक पर अपलोड किया गया एक फ़र्ज़ी वीडियो था जिसकी वजह से ५० लोगों की जान गयी और कई बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। जो इस दंगे में मरे नहीं और ज़ख़्मी नहीं हुए वो ख़ौफ़ज़दा थे और ऐसे ख़ौफ़ज़दा लोगों की संख्या मरने वाले और ज़ख़्मी होने वाले लोगों से भी बहुत ज़्यादा थी। मध्य प्रदेश के खंडवा में किसी ने फेसबुक पर किसी सम्प्रदाय के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट कर दिया तो वहाँ उठी सांप्रदायिक लपटों को शांत करने के लिए प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा इतने के बावजूद भी एक युवक की मौत हो गयी।
आजकल १२-१३ साल के बच्चों के हाथ में भी स्मार्टफोन होता है जिसके ज़रिये वो फेसबुक पर एक्टिव रहते हैं। हालांकि १३ साल से कम उम्र के बच्चे फेसबुक पर अकाउंट नहीं बना सकते पर बच्चे अपनी उम्र अधिक बताकर फेसबुक पर अपना अकाउंट बना रहे हैं और फेसबुक के नियमों को धता बता रहे हैं। बच्चों और युवाओं का अच्छा खासा वक़्त सोशल साइट पर बर्वाद हो जाता है। वो इस वर्चुअल दुनिया से जुड़ते और असल दुनिया से दूर होते जा रहे हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है की जो लोग सोशल मीडिया पर घंटो एक्टिव रहते हैं वो धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।
ये तो सोशल मीडिया के कुछ दुरूपयोग है जो इसलिए सामने आये क्यूंकि इनसे सम्बंधित घटनाएं हो चुकी हैं। सोशल मीडिया आगे हमें और कौन कौन सी दिक्कतों का सामना करायेगा ये देखना बाकी है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए हमें बहुत सतर्क रहने की ज़रुरत है ताकि हम इसका शिकार न हों।
उम्मीद है आपको आज की क्लास अच्छी लगी होगी। अगर सोशल मीडिया के दुरूपयोग से जुड़ा हुआ आपका या फिर आपके मित्र का कोई अनुभव हो तो ज़रूर शेयर करें। दूसरों की गलतियों से सबक लेके आगे सचेत रहने में मदद मिलेगी। ये क्लास आपको कैसी लगी बताइयेगा ज़रूर। आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में …
भावना पाठक
http://bhonpooo.blogspot.in/
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