सुलगती रहती है ये भावना
गुस्से में कितनी बार
तुमने क्या क्या कहा है
और मैंने चुपचाप
वो सब सुना है।
बदचलन, बेहया
बेशरम, बेग़ैरत
तुम्हारे लिए
ये गालियां
होंगी महज़ जुगालियां
पर मेरे लिए
मेरे वजूद पर उठाए गए
सवालिया निशान हैं
तुम्हारे कहे
एक एक शब्द।
जिनके तले मैं
दबती ही जाती हूँ
तुम्हारे इस रवैये से
मैं सिहर जाती हूँ।
तुम तो फिर से
पहले जैसे हो जाते हो
पर भीतर तक सुलगती रहती है
ये भावना।
भावना पाठक
http://dilkeekalamse.blogspot.in/
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