Saturday, November 8, 2014

एक थी सिंगरौली(भाग-10)
इस तरह हम पाते हैं कि सिंगरौली की ही तरह दुनिया के दूसरे भागों से भी विश्वबैंक समर्थित परियोजनाअों का विरोध अस्सी के दशक के उत्तरार्ध अौर नब्बे के दशक के शुरुआत से ही होने लगा था जिसे अब अौर नजर
अंदाज करना विश्व बैंक के लिए मुश्किल होता जा रहा था क्योंकी विश्व बैंक विरोधियों ने इसके  खिलाफ जोर शोर से अभियान छेड़ रक्खा था। दुनिया  के सामने अपनी अच्छी छवि बनाये रखने अौर आलोचनाअों का मुंह बंद करनेके लियेविश्वबैंक ने कुछ परियोजनाअों में जाांच दल भेजा अौर उनकी सिफारिशों के आधार पर उन परियोजनाअों की आर्थिक मदद से पीछे हटा।भारत में इस तरह का उदाहरण सरदार सरोवर परियोजना थी जिससे मोर्स कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद विश्व बैंक ने हाथ खीचे।
   विश्व बैंक समर्थित परियोजनाअों से आने वाली शिकायतों की जांच के लिए विश्व बैंक की अोर से बाद में एक इंस्पेक्शन पैनेल का ही गठन कर दिया गया।लेकिन यह पैनेल स्वतंत्र न होकर विश्व बैंक के आधीन था अौर इसे शिकायत की जांच कर विश्व बैंक को ही अपने निष्कर्ष,सुझाव देने थे।वास्तव में तो यह एक सेफ्टी वाल्व भर था।फिर भी इसे एक सकारात्मक कदम माना जा रहा था।एक राय यह बन रही थी कि इसे भी आजमाया जाना चाहिए।
    सिंगरौली स्थित,विश्वबैंक द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त एनटीपीसी के रिहंदनगर बिजलीघर के विस्थापित परिवारों की अोर से सामाजिक कार्यकर्ता मधु कोहली ने वाशिंगटन स्थित इस इंश्पेक्शन पैनेल में याचिका दायर की।इसके पूर्व बैंक के अधिकारियों से इन विस्थापितों की समस्याअों को लेकर कई बार वार्तायें हुईं,काफी लिखा पढ़ी की गई पर कोई नतीजा न निकलते देखकर पैनेल का दरवाजा खटखटाया गया था।
प्रारम्भिक जांच में पैनेल ने पाया कि बैंक की गाइड लाइन के उल्लंघन का प्रथम दृष्टया मामला बनता है।पैनेल ने अपनी रिपोर्ट में भारत जाकर विस्तार से मामले की जांच किये जाने की सिफारिश की।विश्व बैंक की सबसे ताकतवर संस्था बोर्ड आफ डायरेक्टर ने पैनेल की भारत जाकर जांच करने की सिफारिश को नामंजूर करते हुए वाशिंगटन में रह कर विश्व बैंक कार्यालय में उपलब्ध दस्तावेजों के अधार पर जांच करने को कहा।मजेदार बात तो यह हुई कि इस सीमित जांच में भी पैनेल ने विश्वबैंक को अपने ही बनाये गये गये नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया।
 विश्वबैंक के लिये यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति थी।अमेरिका के एक प्रमुख अखबार ने चुटकी लेते हुए लिखा था कि-वर्ड बैंक अक्यूजेज इटसेल्फ ।अब यहां से शुरू होता है ड्रामे का दूसरा पार्ट।इस छीछालेदर से बचने के लिये बैंक अधिकारियों को बहुत पापड़ बेलने पड़े जिसकी अलग ही लम्बी दास्तान है।संक्षेप में बैंक के बोर्ड आफ डायरेक्टर ने सिंगरौली में पुनर्वास की समस्या की बात को स्वीकार किया अौरआनन फानन में समस्या के निराकरण के लिये एक एेक्शन प्लान बनाने की घोषणा की डाली। यह सब कुछ एकतरफा मामला था यानी विश्व बैंक की मनमानी क्योंकी एक्शन प्लान बनाने में न तो इंस्पेक्शन पैनेल जिसने पूरे मामले की जांच पड़ताल की थी उसे शामिल किया गया अौर ना ही शिकायत कर्ता विस्थापितों या उनके प्रतिनिधियों को ही।
इस तरह यह डैमेज कंट्रोल की एक चाल भर थी इससे अधिक कुछ नहीं।
     इसी एक्शन प्लान के अंतर्गत सिंगरौली स्थित एनटीपीसी के बिजलीघों के लिये स्वतंत्र मानीटरिंग पैनेल का गठन किया गया था।इस पैनेल के भी हाथ पहले ही बांध दिये गये थे क्योंकी यह भी कोई निर्णय नहीं ले सकता था सिर्फ एनटीपीसी ,विश्वबैंक के समक्ष अपनी सिफारिशें रख सकता था निर्णय तो विश्वबैंक का ही चलना था।एनटीपीसी ने स्वतंत्र मानीटरिंग पैनेल की राय-एक ही परियोजना के विस्थापितों को स्टेज1 अौर स्टेज2 में विभाजन कृत्रिम व असंवैधानिक है तथा सभी विस्थापितों को एक सा पैकेज दिया जाना चाहिये,का विरोध किया।इसीलिये स्वतंत्र मानीटरिंह पैनेल ने बाद में पहले के विस्थापतों(स्टेज1) के संबंध में अपनी रिपोर्ट सीधे भारत सरकार को दी थी जिससे उनके साथ न्याय हो सके लेकिन दुखद सत्य यही है कि वह रिपोर्ट आज भी सरकार के पास धूल खा रही है।
       - अजय
bhonpooo.blogspot.in

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