फ़िल्म "महर्षि" की समीक्षा
तेलुगू सिनेमा के सुपर स्टार महेश बाबू अभिनीत फ़िल्म "महर्षि" डायरेक्शन, ऐक्शन, ऐक्टिंग, स्टोरी लाइन, म्यूज़िक, समाज को दिए जाने वाले सशक्त संदेश, हर दृष्टि से एक अविस्मरणीय फ़िल्म है। आज ((17/04/2020) मिशन #SensibleCinema के तहत वामशी पैडिपैली द्वारा निर्देशित "महर्षि" फ़िल्म सजेस्ट करने के लिए छोटे भाई चंदन का दिल से आभार। पहले तो फ़िल्म का नाम "महर्षि" सुनकर लगा किसी साधु संत पर आधारित फ़िल्म होगी। सच कहूं तो नाम सुनकर इस फ़िल्म को देखने के लिए बहुत उत्सुक नहीं थी पर क्यूंकि चंदन ने सजेस्ट की थी तो यकीन था फ़िल्म में कुछ तो ख़ास होगा क्यूंकि वो ख़ुद बहुत #SensibleCinema देखता है, शुक्रिया भाई फ़िल्म ज़बरदस्त थी। दूसरा कारण ये भी था कि आज साउथ के ही उम्दा #ActorVikram का जन्मदिन था तो सोचा था उनकी कोई फ़िल्म देखूं क्यूंकि विक्रम के अभिनय का लोहा मैं #pithamagan फ़िल्म से मान गई थी जिसमें वो पूरी फ़िल्म में एक भी डायलॉग नहीं बोलते पर अपने अभिनय की ऐसी छाप छोड़ते हैं जिसे भुलाया नहीं जा सकता। खैर वापस फ़िल्म "महर्षि" पर आते हैं। ये फ़िल्म अमेजॉन प्राइम पर आपको मिल जाएगी।
महर्षि" कहानी है उस ऋषी (महेश बाबू) की जो अपनी किस्मत अपनी मेहनत के दम पर खुद लिखता है। जब उसके इंस्टीट्यूट में बड़ी बड़ी कंपनियां सभी स्टूडेंट्स को जॉब ऑफर कर रही थीं तो ऋषी उन कंपनियों से ऑफर लेटर लेने के बजाए एक नए प्रोजेक्ट के लिए ख़ुद उन्हें ऑफर देता है, विजनरी होने के कारण वो एक बड़ी अमेरिकन कंपनी का सीईओ बन जाता है पर उसकी उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, उसका सबसे अच्छा दोस्त और उससे बेइंतहां मोहब्बत करने वाली पूजा को भी वो पीछे छोड़ आता है। अपने गोल को हासिल करने का जुनून ऋषी पर इस कदर हावी रहता है कि उसे अपनी मोहब्बत दिल पर बोझ लगने लगती है। उसने करियर में वो मुकाम हासिल कर लिया था जिसकी उसे चाहत थी पर तभी कहानी में ट्विस्ट आता है और वहां से उसकी पूरी ज़िन्दगी और जीवन जीने का नज़रिया ही बदल जाता है। उसकी सेक्रेटरी ने ऋषी के लिए एक सरप्राइज पार्टी प्लान की होती है जिसमें उसके सभी बैचमेट्स और उसके फेवरेट टीचर को वो इन्वाइट करती है पर उस गैदरिंग में ऋषी का प्यारा दोस्त और उसका रूम पार्टनर रवि नहीं दिखता। ऋषी अपने सर से रवि के बारे में पूछता है, पहले तो वो नजरअंदाज करते हैं पर फिर बार बार ऋषी के आग्रह करने पर बताते हैं कि रवि को इंस्टीट्यूट से रस्टीकेट कर दिया गया क्यूंकि रवि ने ऋषी पर लगे पेपर चोरी के इल्ज़ाम को अपने सर ले लिया था ताकि ऋषी आगे बढ़ सके। ऋषी को यह सुनकर आत्मग्लानि होती है और वो रवि को अपने साथ ले जाने अमेरिका से भारत आता है पर रवि अपने माता पिता के घर गांव को छोड़कर अमेरिका जाने से मना कर देता है और वो अपने गांव को बड़ी कॉरपोरेट कंपनी के चंगुल से बचाने के लिए अकेले धरने पर बैठा रहता है।। ऋषी भी ज़िद में अपनी कंपनी का इंडिया में ऑफिस उसी गांव में खोल लेता है। कहानी फिर एक नया मोड़ लेती है। एक बड़ी कंपनी कई गांव की ज़मीन हथियाकर वहां कोई प्रोजेक्ट शुरू करना चाहती है और उन्हीं गांवों में से एक रवि का गांव भी होता है। खूब राजनीति होती है, रवि पर हमला भी होता है, इस बीच ऋषी को किसानों के दर्द का एहसास होता है, वो खुद खेती में जुट जाता है, दूसरों को भी प्रेरित करता है, शहर के युवा भी वीकेंड पर इस खेती के मिशन से जुड़ जाते हैं। ऋषी अपनी कमाई का नब्बे प्रतिशत किसानों की भलाई के लिए से देता है, प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी चालीस वर्षों बाद एक किसान का बेटा होने पर गर्व होता है। अंत में ऋषी एक संत की तरह बंजर ज़मीन पर हरे भरे खेत लहलहाते और लोगों के दिलों में फिर से अपनी जड़ों की ओर लौटने का संदेश दे जाता है। एक सच्चे संत की तरह वह लोगों के चेहरे पर खुशी लाया। यकीनन असली तरक्की महज़ खुद आगे बढ़ना ही नहीं बल्कि औरों को भी साथ लेकर चलना है। महर्षि वही है जो लोगों में खुशियां बाटे। इस फिल्म में कई बेहतरीन डायलॉग्स हैं पर मुझे तीन डायलॉग्स बहुत ही अच्छे लगे:"सक्सेज इस नॉट ए डेस्टिनेशन, इट इज़ ए जर्नी और दूसरा " सक्सेज हैज़ नो डेफिनिशन, व्हेन यू बिकम सक्सेसफुल, दैट बिकम डेफिनिशन ऑफ इट। " तीसरा जब सीएम ऋषी कुमार से कहते हैं कि "लोग सोचते हैं असली पॉवर नेताओं के पास है पर ऐसा नहीं है देश को चलाते हैं बड़े बड़े कॉरपोरेट्स, असली ताकत उनके पास है, हमारे पास नहीं।
महेश बाबू ने इमोशनल, रोमांटिक, एंग्री यंग मैन हर किरदार को बख़ूबी निभाया है। इस फ़िल्म को देखकर अच्छे दोस्तों का साथ नसीब होने पर आपको अपनी किस्मत पर भी ऋषी और रवि की ही तरह नाज़ ज़रूर होगा। अच्छा दोस्त हमारी ज़िन्दगी बदल देता है। लाजवाब फिल्म है, पहली फुर्सत में ये फ़िल्म ज़रूर देखिए। आपको लगेगा आपका दिन बन गया।
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