नज़रों में तेरी ये कैसी कशिश मालूम नहीं
क्या खींचे मुझको तेरी ओर मालूम नहीं
है कौन सी वो अनजानी डोर मालूम नहीं।।
बच्चों सा तू निश्छल निर्मल
मुखड़े पे हंसी बहती छल छल
सोचूं तुझको, खोजूं तुझको
पाऊं तो कभी को दूं तुझको
तुझसे ये कैसा नाता है मालूम नहीं
मुझको तू क्युंकर भाता है मालूम नहीं।।
कोई ख्याल, आस या कि कोई प्यास है
है मीलों दूर फिर भी लगता आसपास है
भटकती रूह को रहती तेरी तलाश है
मिलेंगे कहीं किसी मोड़ पर इक आस है
उम्मीद क्यूं है तेरे मिलने की मालूम नहीं
क्यूं समझ नहीं कुछ आता है मालूम नहीं।।
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