फ़िल्म #NOTA की समीक्षा
मिशन #Sensiblecinema के तहत अभी अभी ( 19/04/2020) #Vijaydeverkonda अभिनीत तमिल पॉलिटिकल थ्रिलर मूवी #NOTA देखी। फ़िल्म को निर्देशित किया है आनंद शंकर ने। इस फ़िल्म में वरुण के किरदार में हैं (विजय देवरकोंडा), वरुण के पिता विनोदन सुब्रमण्यम का किरदार निभाया है नसर ने और वरुण के पॉलिटिकल गुरु महेंद्रन की भूमिका में हैं सत्यराज। ये फ़िल्म हमें कई सशक्त संदेश देती है जैसे: राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता, पद, पैसा, पॉवर कोई भी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता, राजनीति में कई तरह के जोड़ तोड़ चलते हैं और उसमें कदम रखने वाले को सभी दांव पेंच आने चाहिए लेकिन फिर भी अगर नियत और इरादे नेक हो अच्छे लोगों का समर्थन ज़रूर मिलता है और गलत करने वाले भी भीतर ही भीतर आपसे खौफ खाते हैं।
ये कहानी है उस युवा वरुण की जो अपने दोस्तों के साथ अपना जन्मदिन मना रहा होता है और तभी अचानक से उसे रात आे रात तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। दरअसल वरुण तमिलनाडु के ही मुख्यमंत्री का बेटा होता है जो अमेरिका में गेम मेकिंग कंपनी में काम करता है और कुछ दिनों के लिए भारत आया है। उसके पिता को धोखाधड़ी के आरोप में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ता है और वो एक साधू के आदेशानुसार तय करते हैं कि उनका बेटा उनकी जगह अगला सीएम बनेगा। वरुण को पॉलिटिक्स का ए बी सी भी नहीं आता। उसके पिता कहते हैं उसे सिर्फ कुछ दिनों तक ही ऐसा करना है और पार्टी के सीनियर लीडर्स उसको गाइड करेंगे। वरुण के पिता पर आरोप साबित हो जाने के कारण उन्हें जेल हो जाती है और इधर पार्टी के कार्यकर्ता अपने लीडर को जेल हो जाने से बौखला उठते हैं और राज्य में अफरा तफरी का माहौल बन जाता है, आगजनी की घटना में एक मां को अपनी बच्ची गंवानी पड़ती है। वरुण पुलिस अधिकारियों को आदेश देता है कि दोषी को सज़ा दी जाए अगर पार्टी के कार्यकर्ताओं को विरोध ज़ाहिर करना है तो वो घर या पार्टी ऑफिस में मौन होकर विरोध करें जबकि वरुण के पिता चाहते हैं कि हिंसक विरोध हो ताकि सरकार पर उन्हें छोड़ने का दबाव बने पर वरुण ऐसा नहीं होने देता। राज्य की जनता को उसका फैसला अच्छा लगता है वो अपने नए सीएम की तारीफ करती है। इधर विपक्ष दल वाले भी वरुण के लिए कई मुश्किलें खड़ी करते हैं जिसमें वरुण के गुरु महेंद्रं उसका साथ देते हैं। वरुण के पिता को बेल मिल जाती है पर रास्ते में ड्रोन एक्सप्लोजन से उन पर जान लेवा हमला होता है और वो कोमा में चले जाते हैं। वरुण दुविधा में पड़ जाता है कि अब वो क्या करे? उसके गुरु माहेंद्रं उसे समझाते हैं कि उसे मिड टर्म इलेक्शन लड़ना चाहिए पर ये ध्यान रखते हुए कि राजनीति वो गेम है जहां असली खून बहता है, दुश्मन कभी भी कहीं भी घात लगाए बैठा मिल सकता है इसलिए उसे हर समय चौकन्ना रहना होगा। वो जब मिड टर्म इलेक्शन लड़ने के लिए कैम्पेनिंग के लिए निकलता है तो उसकी सौतेली बहन का फोन आता है कि उसके पापा के शरीर में हरकत हुई है, उन्हें शायद होश आ रहा है। वरुण ये बात उसे किसी और को नहीं बताने के लिए कहता है ताकि वोटर्स के मन में उसके पिता को लेकर सांत्वना का भाव बना रहे। उधर उसके पिता को जब ये पता चलता है कि उनका बेटा वरुण इलेक्शन जीत गया तो उन्हें झटका लगता है क्यूंकि वो अपने हाथों से सत्ता जाने नहीं देना चाहते थे। वो वरुण से तो उसकी तारीफ करते हैं पर पार्टी के दूसरे लीडर को बुलाकर वरुण के खिलाफ एमएलए द्वारा वोट ऑफ नो कॉन्फिडेंस के ज़रिए वरुण को सीएम पद से हटाने के लिए कहते हैं। इधर वरुण को पता चलता है कि उसके पिता की 100 मिलियन की संपत्ति दूसरे देश में जमा है वो अपने एक हैकर दोस्त की मदद से उस संपत्ति को वापस लाने का प्रयास करता है। इधर वरुण को पकड़ने का आदेश होता है, महेंद्र की बेटी पर कोई जान लेवा हमला करता है। विदेश के बैंकों में जमा बेनामी संपत्ति से और किस किस के तार जुड़े हैं, वरुण के पिता पर हमला किसने कराया, क्या वरुण वापस सीएम बन पाता है, महेन्द्र क्यूं और किसके कहने पर हर वक़्त ढाल बनकर वरुण के साथ खड़े होते हैं और वरुण के पिता को महेन्द्र से नफ़रत क्यूं हैं इन सारे सवालों के जवाब आपको फ़िल्म देखने पर मिल जाएंगे।
फ़िल्म का कॉन्सेप्ट बहुत सटीक है, साथ ही विजय, नसर और सत्यराज तीनों का अभिनय भी ज़बरदस्त है। घाघ पॉलिटीशियन के रोल के साथ नसर ने न्याय किया है। बैकग्राउंड स्कोर, पॉलिटिकल ट्विस्ट फ़िल्म के साथ हमें बांध कर रखता है। अगर ये फ़िल्म आपने नहीं देखी तो राजनीतिक रूप से सजग होने के लिए, राजनीति में होने वाले जोड़ तोड़ को समझने के लिए आपको ये फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए। एक काम कीजिए अभी ही इसे अपनी व्यू लिस्ट में ऐड ऑन कीजिए।
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