बतकही-----
आप की जीत के मायने----5
देखा जाय तो आम आदमी पार्टी अभी शंकर जी की बारात ज्यादा है पार्टी कम।एकदम अलग अलग विचारधारा के लोग इसमें शामिल हैं।एक तरफ दक्षिणपंथी रूझान वाले कुमार विश्वास हैं तो दूसरी तरफ डा. लोहिया को मानने वाले समाजवादी विचारधारा के योगेन्द्र यादव, अरविंद केजरीवाल वामपंथी रुझान वाले माने जाते हैं।जिस प्रकार शुरूआत के दिनों में कांग्रस पार्टी में भी विभिन्न विचारधारा वाले लोग शामिल थे लेकिन सभी का मकसद एक था भारत की आजादी उसी प्रकार अलग विचारधारा के बावजूद अन्ना आन्दोलन में शामिल युवा, बाद में आम आदमी पार्टी बनानेवाले आन्दोलनकारी नई तरह की,स्वच्छ,पारदर्शी राजनीति के मकसद से एकजुट हुए थे।सब कुछ हवा हवाई, फरेब तो नहीं था। कम से कम दिल्ली में आप के कार्यकर्ताओं ने शहरी गरीबों के बीच जो काम किया,मुहल्ले मुहल्ले जाकर संवाद किया,उनकी मांगों को घोषणापत्र में शामिल किया, इन सब से लोगों का विश्वास बढ़ा क्योंकी लोगों के लिये यह सब नया नया था।
ऐसा नहीं था कि दिल्ली में जो कुछ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने किया वह दूसरी पार्टियां नहीं कर सकती थीं।देखा जाय तो पहले समाजवादी और कम्युनिस्ट पार्टियों की जनता के बीच पहचान ही इसी तरह के कामों से थी।वे समाज के कमजोर तबकों की आवाज थीं।इन पार्टियों के कार्यकर्ता गांवों, शहरों के शोषित,पीड़ितों के संघर्ष में उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ते थे।आन्दोलन,संघर्ष के अलावा कार्यकर्ता को मांजने के लिये प्रशिक्षण शिविर, सम्मेलन, कार्यशालाओ आदि का आयोजन किया जाता था।समाजवादियों के बीच यह खूब प्रचलित था कि एक पांव जेल में और एक पांव रेल में होना चाहिए।मुझे याद है जब मैं इलाहाबाद में पढ़ रहा था समाजवादियों के संपर्क में आया और समता संगठन की युवा शाखा समता युवजन सभा का कार्यकर्ता बना।शिवचरन लाल रोड पर विनय सिन्हा,अवधेश प्रताप सिंह के साथ रहने के दौरान अक्सर लोहियाविचार मंच,वनवासी पंचायत के साथियों साथ भी खूब चर्चा बहस होती थी।आसपास होने वाले सम्मेलनों, कार्यशालाओं में हम लोग चंदा इकट्ठा करके जाते थे और इस तरह के कार्यक्रमों में साथियों को भी भेजते थे।किताबें पढ़ने का भी खूब चलन था।डाक्टर राम मनोहर लोहिया,आचार्य नरेन्द्र देव,जयप्रकाश नारायण,राहुल सांकृत्यायन,टाल्सटाय,मैक्जिम गोर्की,महात्मा गांधी आदि तमाम लोगों की किताबें,लेख पढ़े जाते थे,साथियों से इन पर चर्चा होती थी।इसी संदर्भ में समता युवजन सभा के कुछ साथियों ने मिलकर सौ से अधिक किताबों की एक लिस्ट भी बनाई थी।इस तरह से कार्यकर्ताओं को गढ़ने,संवारने का काम भी होता था।धीरे धीरे यह परम्परा दम तोड़ती गई।
बड़े नेताओं की परिक्रमा करने का कांग्रेस पार्टी का कल्चर देखते ही देखते अधिकांश राजनीतिक दलों में छा गया।तहसील या जिला स्तर पर कार्यक्रम भी ऊपर के आदेश,निर्देश पर ही होते। थाने,कलेक्ट्रेट आदि तक सिफारिशें करने,तबादले रूकवाने-करवाने तक ही राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सक्रियता सिमट कर रह गई।इसके बाद ही शुरू हुई भ्रष्टाचार को शिष्टाचार और घूस को सुविधा शुल्क कहने की परम्परा।परिणाम सामने आया ऊपर मे नीचे तक हर ओर व्याप्त भ्रष्टाचार के रूप में। इसी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अन्ना ने जनलोकपाल की मांग की,आन्दोलन किया। खुद अन्ना जी ने भी कहा कि सिर्फ जनलोकपाल भर से भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता है।बात भी सही है क्योंकी भ्रष्टाचार तो केवल लक्षण मात्र है रोग का कि मौजूदा व्यवस्था में गड़बड़ी है।आम आदमी पार्टी जिस नई राजनीति की बात करती है उसके लिए यही तो चुनौती है कि वह रोग की पहचान करे फिर उसके निदान के लिये कदम उठाए। तभी तो यह सवाल उठता है कि आम आदमी पार्टी की राजनीतिक सोच क्या है, उसका आर्थिक दर्शन क्या है। अभी तक तो इसका खुलासा नहीं हुआ उल्टे पार्टी में व्याप्त अंतर्कलह खुलकर दुनिया के सामने आ गया।
........क्रमश:
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