Saturday, March 7, 2015

सामयिक दोहे----
जी हां,बहुत हाथ-पैर पटकने के बाद भी सरकार रोक न पाई समाज का नंगा सच सामने आने से कि महिलाओं के प्रति अभी भी सोच में बदलाव नहीं आया है,कि पुरूष पढ़ालिखा हो या अनपढ़  आज भी महिला उसके लिये उपभोग की एक वस्तु ही है,कि महिला के उकसाने पर ही पुरूष गलती कर बैठता है आदि आदि।इस बीमार मानसिकता से मुक्त स्वस्थ समाज के लिये बड़े पैमाने पर घर-परिवार से शुरू कर प्रयास करना जरूरी है।इसी संदर्भ में चंद दोहे प्रस्तुत हैं

सच को करना चाहते दफन इस तरह आप
खाई मुंह की इस दफा बैन हो गया फ्लाप

सच आया है सामने देखो आंखें फाड़
मर्दों वाली सोच को दो जमीन में गाड़

कोख से ही करते विदा देते बेटी मार
बच जातीं उन पर सदा होते अत्याचार

गहरी है जड़ भेद की जड़ पर करो प्रहार
नई नई कोपल निकल आती है हर बार

Bhonpooo.blogspot.in

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