बतकही-----
आप की जीत के मायने---4
जब देश में भ्रष्टाचार का यह आलम था इंडिया अगेन्स्ट करप्शन से जुड़े युवकों ने गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे जी की अगुवाई में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनान्दोलन छेड़ा जिसे भ्रष्टाचार से त्रस्त पूरे देश की जनता का जोरदार समर्थन मिला।निश्चित रूप से इस आन्दोलन के इतने कम समय में देशव्यापी प्रचार प्रसार में मीडिया-विशेषकर सोशल मीडिया का बड़ा हाथ रहा।इसी प्रकार युवा वर्ग,विशेषकर शहरी पढ़े लिखे युवाओं ने न केवल इस आन्दोलन को जबरदस्त समर्थन दिया बल्कि बढ़ चढ़कर इस आन्दोलन मे अभूतपूर्व भागीदारी की जिससे युवा वर्ग पर अब तक कैरियरिस्ट, सामाजिक दायित्वों के प्रति उदासीनता आदि के लगने वाले तमाम आरोप एक ही झटके में गलत साबित हुए।
जन लोकपाल पर संसद में हुई चर्चा में सभी राजनीतिक दलों के सांसद बेनकाब हुए थे।जब सांसदों द्वारा आन्दोलनकारियों को चुनाव लड़ कर संसद में आने की चुनौतियां दी गईं तब आन्दोलन के कुछ साथियों ने आम आदमी पार्टी का गठन कर यह चुनौती स्वीकार की। उस समय तरह तरह के कयास लगाये जारहे थे कि ये आन्दोलनकारी राह से भटक गये हैं,कि घाघ राजनीतिज्ञों से चुनावों में इन्हें मुंह की खानी पड़ेगी, कि इतने मंहगे चुनावों के लिए ये पैसे कहां से जुटाएंगे वगैरह वगैरह। लेकिन राजनीति मे गुणात्मक बदलाव लाने के मजबूत इरादों के साथ राजनीति में उतरे युवाओं ने इस तरह के सारे अनुमानों को गलत साबित करके दिखा दिया।
राजनीति में वंशवाद,परिवारवाद,जातिवाद,धनबल,बाहुबल की गहरी पैठ के कारण अब तक राजनीति के नाम मात्र से बिदकने वाले युवा वर्ग ने पिछले कुछ वर्षों से राजनीति में दिलचस्पी लेना शुरू किया। भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना आन्दोलन ने ऐसे युवाओं को मंच प्रदान किया।इसके बाद जो कुछ हुआ वह सारी दुनिया ने देखा।आम आदमी पार्टी के गठन के बाद अन्ना आन्दोलन के साथ राजनीति में आई इस युवा शक्ति को अपने राजनैतिक आदर्शों को वास्तविकता के धरातल पर उतारने का अवसर मिला क्योंकी इस पार्टी का नेतृत्व पूरी तरह से युवा हांथों में था।बड़ी तादाद में युवकों ने अपनी पढ़ाई,नौकरी से अवकाश ले लेकर आम आदमी पार्टी के लिए स्वयं-सेवी भाव से काम किया जिसके चमत्कारी परिणाम भी आये।ऐसा नहीं है कि दूसरी राजनीतिक पार्टियों में युवा नहीं हैं।राष्ट्रीय लेकर क्षेत्रीय सभी पर्टियों के अपने अपने युवा मोर्चा,महिला मोर्चा हैं लेकिन उनकी नकेल पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर कुंडली मारे,तथाकथित अनुभवों से लबालब भरे यथास्थितिवादी बुजुर्ग नेताओं के हांथ में होती है।कुछ ही वर्षों में इन पार्टियों के युवा भी उसी रंग में रंग जाते है और किसी तरह से पार्टी के किसी बड़े नेता का कृपापात्र बनने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
क्रमश:……
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