Saturday, March 21, 2015

हास्यव्यंग-----
टीवी पे ब्रेकिंग.....हाय रे मेरा झाड़ू
साहब, सुनता तो आ रहा हूं तब से जब मुझे अपने कच्छे का नाड़ा बांधना भी नहीं आता था कि कभी न कभी घूरे के दिन भी बहुरते हैं यानी कि घूरे के भी अच्छे दिन आते हैं। लेकिन इसका सटीक उदाहरण तो अब सन् 2015 में देखने को मिला जब उम्र का साठवां शुरू हो गया। खैर देर आयद दुरूस्त आयद आखिरकार झाड़ू को उसका उचित सम्मान मिल ही गया वरना मैने हमेशा से इसे घर के किसी उपेक्षित कोने में ही पड़ा पाया है। हालांकि घर को स्वच्छ रखने में प्रतिदिन काम आने वाला यह उपकरण उपयोगिता की दृष्टि से अव्वल है। ठीक उसी तरह जैसे गली मुहल्ले को साफ-सुथरा रखने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले सफाई कर्मियों का स्थान समाज में सबसे निचले पायदान पर होता है। पर वाह रे झाड़ू की किस्मत, राजनीति का स्पर्श पाकर कहां से कहां जा पहुंची। हो भी क्यों न जब राजनीति के पवित्र जल में डुबकी लगा विधायक, सांसद, बनकर एक से बढ़कर एक अपराधी,लुच्चे,लफंगे माननीय बन जाते हैं।
जी करता है अब से बच्चों को यही आशिर्वाद दिया करूं कि तुम सब झाड़ू की तरह तरक्की करो ,देश दुनिया में छा जाओ।यूं तो झाड़ू को सन् 2013 में ही शोहरत मिल गई थी जब कांग्रेस का हाथ मरोड़ कर उसे कुर्सी से उतार दिया और बाद मे उसी हाथ के सहयोग से कुर्सी पर काबिज भी हो गई। समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टीवी चैनलों हर जगह झाड़ू का बोलबाला देखकर ही तो प्रधानमंत्री मोदी ने झाड़ू को अपने हाथ में लिया और नारा दिया स्वच्छ भारत का।अब भारत कितना स्वच्छ हो पाता है इस नारे से यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा लेकिन सन् 2015 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के साथ साथ भाजपा पर भी झाड़ू फिर गई। अब तो झाड़ू की बल्ले बल्ले थी। यहां तक की शपथ ग्रहण समारोह में कोई कोई समर्थक तो अनते गले में झाड़ू की माला पहन कर नाचे थे पग घुंघरू बांध मीरा नाची की तर्ज पर। अब झाड़ू ता इससे ज्यादा भला और क्या सम्मान हो सकता था।
      पर झाड़ू तो झाड़ू ही है अपने धुन की पक्की, सिर्फ सफाई करना जानती है वह, चुप बैठना नहीं।उसने शुरू कर दिया अपना काम। जीत के जश्न को अभी महीने भर भी नहीं बीते थे कि आम आदमी पार्टी के नेताओं में आपस में ही झाड़ू चलने लगी। योगेन्द्र यादव, प्रशान्त भूषण जैसे वरिष्ठ नेताओं को झाड़-बुहार कर पीएसी से बाहर कर दिया गया। जिस तरह से एक के बाद एक खुलासे हो रहे थे लग रहा था आप कार्यकर्ताओं के सारे किये कराये पर ही न कहीं झाड़ू फिर जाय। शुक्र है कि आप कार्यकर्ताओं का आक्रोश देख नेताओं को सदबुद्धि आई और अब सुलह सफाई की बातें की जा रही है। लेकिन अभी आल इज वेल भी नहीं कहा जा सकता।
  यह तो अब सारी दुनिया मानने लगी है कि झटपट नकल करने और मौके का फायदा उठाने में हम हिंदुस्तानियों का कोई सानी नहीं है। बालीवुड की फिल्मों ने इस क्षेत्र में बहुत नाम कमाया है। हो सकता है कि झाड़ू पर ताबड़तोड़ कुछ सस्पेंस थ्रिलर,रोमैंटिक या कमेडी फिल्में आ जायें। ऐसे में विज्ञापन वाले भला कब पीछे रहेगें, बहुत संभव है जल्द ही आपको कार,बाइक,बंदूक या फिर तमाम घरेलू उत्पादों तक का प्रचार सुंदर माडल एक हाथ में कलात्मक ढंग से झाड़ू लेकर करती मिलें। चौंकियेगा मत अगर किसी हाई फाई रेस्टोरेंट में आपको झाड़ू की शेप में कोई नई डिश सर्व की जाये। जी हां जरा दिमाग पर जोर डालिये और याद करिये कि खाड़ी युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन की स्कड मिसाइलें बहुत फेमस हुईं तो कई रेस्टोरेंट में उसी शेप की डिश ग्राहकों को पेश की जिन्हें बहुत पसंद भी किया गया। अब सफलता को दुनिया सलाम करती है तो माएं क्यों पीछे रहेंगी, इम्तहान अच्छा जाये इसके लिए बच्चे को जाते समय थोड़ा सा दही चिनी जरूर खिलाती हैं अब अगर इसके साथ साथ ही वे उसके पाकेट में छोटा सा जेबी झाड़ू भी रख दें तो क्या आश्चर्य। कहते हैं जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि,तब तो फिर साहब पूरी संभावना है कि झाड़ू चालीसा, झाड़ू पच्चीसी जैसी रचनायें साहित्य के प्रतिष्ठित पुरस्कारों का दरवाजा खटखटाने के लिये जन्म ले लें क्योंकी कहा ही गया है समय होत बलवान।
           --- अजय

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