सामयिक दोहे-----
बड़ी हसरत से जनाब इंतजार था इस आम बजट का,सरकार ने तो आते ही कड़वी दवा पिला दी थी लेकिन......।इसी संदर्भ में प्रस्तुत हैं चंद दोहे
हमको तो बंधवा रहे अच्छे कल की आस
कारपोरेट को दे रहे हैं वे च्यवनप्राश
अच्छे दिन सपने हुए मंहगाई की मार
वे कहते थोड़ा अभी और करो इंतजार
अंधे को आंखें मिलें तब ही वह पतियाय
अच्छे दिन के बोल अब देते आग लगाय
अच्छे दिन का बजट भी करता कड़वी बात
सर्विस टैक्स बढ़ाय के मारी कमर पे लात
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