सामयिक दोहे----
प्रकृति की चेतावनियों की अनदेखी कर विकास की अंधी दौड़ के दुष्परिणाम तो होंगे ही।देश के अधिकांश भागों में असमय हो रही बरसात,ओलावृष्टि क्या इसी ओर संकेत नहीं है।इसी संदर्भ में हैं ये चंद दोहे
मौसम भी चलने लगा कैसी टेढ़ी चाल
हमने भी रक्खा कहां प्रकृति का कोई ख्याल
आसमान से मुश्किलें बरसें हैं दिन रात
दुर्दिन बैठा राह में छिपा लगाये घात
ओला पानी इस कदर है मौसम की मार
टूटी कमर किसान की मचा है हाहाकार
मौसम की टेढ़ी नजर सहमा देख किसान
राह नहीं दिखती कोई सांसत में है जान
Bhonpooo.blogspott.in
No comments:
Post a Comment