फाग----
फागुन का महीना है,फागुनी बयार के साथ कानों में फाग गुनगुनाते हुए प्रकृति भी उमंग में भर कर हमेशा की तरह आज भी खिलखिली,इठलाती,बलखाती हर तरफ लाल,पीले,हरे,नीले विविध रंग जम कर बरसा रही है।प्रकृति का यह मनभावन श्रंगार देखकर न जाने कितने हृदयों में कविता की कोपलें फूट पड़ती हैं।मन फगुनाया हो तो उम्र कब आड़े आती है भला ढ़ोलक की थाप पर थिरक उठने में।तभी तो कोई मन गा ही उठता है – फागुन में बाबा देवर लागैं,फागुन में।फाग के विविध रंग हैं- भक्ति, प्रकृति वर्णन, श्रृगार, मिलन, विरह आदि।बचपन में गांव में सामाजिक विसंगतियों पर हंसते हंसाते गहरी चोट करने वाली फाग भी सुनी।पहले तो होली के इस रंगारंग पर्व पर सभी को बहुत बहुत बधाई साथ ही आज के संदर्भ में यह गुदगुदाती हुई फाग प्रस्तुत है।तर्ज है-होली खेलैं रघुवीरा अवध में होली खेलैं रघुववीरा।
कैसे धरै मन धीरा करेजे बजट दै गयो पीरा
बजट दै गयो पीरा करेजे कैसे धरै मन धीरा
होरी को त्याहार आ गयो होरी को त्योहार आ गयो
निकरै न मुख से कबीरा करेजे बजट दै गयो पीरा
आस लगी थी छूट की दीन्हो आस लगी थी छूट की दीन्हो
सर्विस टैक्स को चीरा करेजे बजट दै गयो पीरा
निफ्टी और सेंसेक्स उछल रहे निफ्टी और सेंसेक्स उछल रहे
बजा के ढ़ोल मजीरा करेजे बजट दै गयो पीरा
कारपोरेट तो ऐसे थिरक रहे कारपोरेट तो ऐसे थिरक रहे
थिरके जैसे शकीरा करेजे बजट दै गयो पीरा
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