Sunday, April 19, 2020

फ़िल्म #Trapped की समीक्षा

फ़िल्म #Trapped की  समीक्षा

मिशन #SensibleCinema के तहत आज (19/04/2020) राजकुमार राव अभिनीत फ़िल्म #Trapped देखी। इस फ़िल्म को डायरेक्ट किया है विक्रमादित्य मोटवाने ने जिन्होंने देव डी, उड़ान, दे दना दन गोल और अनुराग कश्यप के साथ सैक्रेड गेम्स डायरेक्ट की थी। ये फ़िल्म इंस्पायर्ड है फ़िल्म 127 ऑवर्स से।बहुत ही छोटे बजट (5 करोड़) में बनी ये एक उम्दा फ़िल्म है जिसे काफी सराहना भी मिली पर अफसोस फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पाई। ये सब देखकर दुःख होता है कि बे सिर पैर वाली फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई करती हैं पर सेंसिबल फिल्में दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पातीं। हम बतौर एक दर्शक कब सिक्स पैक एब्स, विदेशी शूटिंग लोकेशन, फ़िल्म में कभी भी कहीं भी अचानक से टपक पड़ने वालेआइटम सॉन्ग्स, ओवर एक्सपोज्ड बॉडी, हीरो मतलब सुपर मैन जैसी चीज़ों से बाहर आकर अच्छे सिनेमा को देखना शुरू करेंगे? 
फ़िल्म #Trapped  कहानी है बूंद बूंद रिस्ती उम्मीदों को बचाने की। ज़िन्दगी को बचाने के लिए उम्मीद और नाउमीद के बीच झूलते शौर्य (राजकुमार राव) के अथक प्रयासों की। रोज़ इस आस में उठने की कि शायद आज कोई आकर ज़िन्दगी के दरवाज़े खोल दे पर अफसोस हर संभव कोशिश करने के बावजूद नाउम्मीदी के काले बादल उम्मीद की नन्ही किरण को निगल लेना चाहता है, त्रास से आस को बचाने के जद्दोजेहद की कहानी है #Trapped. फ़िल्म की कहानी कुछ इस कदर है कि शौर्य (राजकुमार राव) एक मध्यमवर्गीय परिवार से है जो शहर में एक अदद नौकरी करता है उसे अपने ऑफिस में ही काम करने वाली नूरी (गीतांजलि थापा)से प्रेम हो जाता है पर नूरी की दो महीने बाद शादी है। वो नूरी से खुद शादी करने के लिए कहता है और उसके लिए एक इंडिपेंडेंट फ्लैट की तलाश करता है। शौर्य का जो बजट है उतने कम के कोई फ्लैट रेंट पर देने के लिए तैयार नहीं होता। जब वो फ्लैट के लिए एक ब्रोकर से बात कर रहा होता है तब एक लड़का उसकी बात सुन रहा था। वो जैसे ही बाहर निकलता है वो लड़का कहता है कि वो उसे उसके है बजट में पास की ही एक मल्टी में फर्निश्ड फ्लैट दिला सकता है। शौर्य उसके साथ फ्लैट देखने जाता है, उसके यह पूछने पर कि कोई उस मल्टी में रहता क्यूं नहीं, वो कहता है कि कुछ लीगल इश्यूज़ हैं पर नीचे चौकीदार है। शौर्य बार बार उससे पूछता है कोई प्राब्लम तो नहीं होगी, वो कहता है नहीं, और अगर होगी तो वो सब सॉल्व कर देगा। शौर्य फ्लैट में शिफ्ट हो जाता है और इस उम्मीद में जैसे तैसे रात काट लेता है कि कल से तो उसकी नूरी भी होगी उसके साथ। दूसरे दिन जब वो उठता है तो ना बिजली, ना पानी कुछ भी नहीं मिलता उसे फ्लैट में। वो जल्दी जल्दी में फोन रूम पर ही छोड़ कर नूरी को लाने के लिए दरवाज़ा लॉक कर रहा होता है कि अचानक फोन की याद आती है उसे। वो दरवाज़े पर ही चाबी लगी छोड़ फोन लेने कमरे में आता है और बाहर से दरवाज़ा लॉक हो जाता है। इधर फोन की बैटरी भी चली जाती है। उस गगनचुंबी इमारत में बहुत ऊंचाई पर था उसका फ्लैट, रूम पर ना बिजली है, ना पानी है और खाने के नाम पर महज़ बिस्कट का एक पैकेट होता है। वो वॉचमैन को खूब आवाज़ लगाता है, पैन बजाता है, हेल्प हेल्प चिल्लाते चिल्लाते उसका गला बैठ जाता है पर कोई उसकी मदद के लिए नहीं आता। किसी का भी ध्यान उस पर नहीं जाता। वो इस फ्लैट में #Trapped  है। वो किस किस तरह से मदद की गुहार लगाता है, कितने दिनों तक उस फ्लैट में कैद रहता है, कोई उसकी मदद के लिए आता है या नहीं, वो वहां से कैसे निकलता है उस पूरे संघर्ष को फ़िल्म में बख़ूबी दिखाया गया है। बिना डायलॉग प्रभावी ढंग से अभिनय की ज़बरदस्त बारीकियों को राजकुमार राव ने बख़ूबी निभाया है। एक कमरे में कैद ज़िन्दगी की बेबसी को राव ने अपने अभिनय से जीवंत कर दिया है। उनकी बेबसी और बीच बीच में उम्मीद की लौ जलती देख बच्चाें की सी खुशी को आप महसूस कर सकते हैं। तिल तिल मरती उम्मीद इस कदर आपको बेचैन कर देगी कि हर वक़्त आप ईश्वर से उसकी मदद के लिए किसी के आने की प्रार्थना करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे। उम्दा अदाकारी के लिए राव को साधुवाद, साथ ही इस फ़िल्म के डायरेक्टर विक्रमादित्य को भी बधाई लीक से अलग फिल्म बनाने का रिस्क उठाने के लिए। अगर ये फ़िल्म नहीं देखी तो इसे अपनी व्यू लिस्ट में शामिल कर सकते हैं।

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