Saturday, August 7, 2010

कैसे गुजरेगा ये सफ़र तनहा

कैसे गुजरेगा ये सफ़र तन्हा
है गली और रहगुज़र तन्हा
आग फिर आरज़ू की भड़की है
दिन सुलगता है रात भर तन्हा
ज़िन्दगी से जुदा तो होना है
हाय निकले न दम मगर तन्हा
जब कभी भी कदम बढ़ाये हैं
खुद को पाया है बेखबर तन्हा
सुन रहा हूँ फ़क़त ये शोर-ओ-गुल
है तो ये ज़िन्दगी मगर तन्हा
है शिकायत हज़ार होठों पर
ज़िन्दगी क्यूँ हुयी बसर तन्हा
रंजिशे दिल है और गम-ये-दुनिया
रहबर दो हैं पर सफ़र तन्हा ॥

शायर
???

1 comment:

  1. bahoot achhaa kalaam hai, aakhri misre meN rehbar naheeN raah bar aaye gaa

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