कैसे गुजरेगा ये सफ़र तन्हा
है गली और रहगुज़र तन्हा
आग फिर आरज़ू की भड़की है
दिन सुलगता है रात भर तन्हा
ज़िन्दगी से जुदा तो होना है
हाय निकले न दम मगर तन्हा
जब कभी भी कदम बढ़ाये हैं
खुद को पाया है बेखबर तन्हा
सुन रहा हूँ फ़क़त ये शोर-ओ-गुल
है तो ये ज़िन्दगी मगर तन्हा
है शिकायत हज़ार होठों पर
ज़िन्दगी क्यूँ हुयी बसर तन्हा
रंजिशे दिल है और गम-ये-दुनिया
रहबर दो हैं पर सफ़र तन्हा ॥
शायर
???
bahoot achhaa kalaam hai, aakhri misre meN rehbar naheeN raah bar aaye gaa
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