Monday, August 9, 2010

साफ़ नियत है तुम्हारी तो मेरे पास आओ

साफ़ नियत है तुम्हारी तो मेरे पास आओ
रूह से रूह मिलाओ तो मेरे पास आओ
लगता नहीं अच्छा परदे में आके मिलना
आग चिलमन में लगाओ तो मेरे पास आओ
जीते हो किस तरह कुछ हाल तो बताओ
बात दिल की सुनाओ तो मेरे पास आओ
बंदिशों में आखिर कैसे मिलोगे हमसे
कोई दीवार गिराओ तो मेरे पास आओ
करते हो तुम मोहब्बत कैसे करें यकीं
प्यार परवान चढ़ाव तो मेरे पास आओ
बहते देखे हैं हजारों सलाबे सागर
प्यार अश्कों की बुझाओ तो मेरे पास आओ॥
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सामने धुँआ धुँआ मगर पर्दा नहीं था
पत्थरों को पूजा मगर खुदा नहीं था
राahat तो मिली मेरे बीमारे दिल को
जाने क्या पिलाया मगर दावा नहीं था
आँखों में नशा और सर पे जुनू उसके
होश उड़ रहे थे मगर मैकदा नहीं था
एहसासे नज़र से उसे ढूंढता रहा
जाने कौन था मगर गुम्सुदा नहीं था
सलामे इश्क कर बैठे नादानियों में
दूर जा रहे थे मगर अलविदा नहीं था॥
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शायर
सागर सुमार अज्ञानी
असली नाम
राम लखन मिस्त्री
पता --
एम् पी सेन गर्ल इंटर कोलेज रोड
सहयोग नगर, के के सी
चारबाग लखनऊ
राधा आंटी के जस्ट बगल में
०९५६५७७०१६३

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई।

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  2. saaf niyat hai tumhaari tau mere paas aao\

    kahaaN se milaa ye kalaam aap ko??? matlaa vaakean kamaal kaa hai baad meN har sher ke pehlaa misraa be vazn hai aur dusraa misraa vazn par bhi hai aur khoob surat bhi ghaaleban

    ye kalaam kahiiN sunaa sunaa saa lagtaa hai,

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