रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
माना की मोहब्बत का छिपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफा है तो ज़माने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
वैसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ ॥
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शायर
अहमद फ़राज़ साहब
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