Saturday, August 7, 2010

गुलज़ार की त्रिवेणी उनकी खुद की इजाद की हुयी विधा

कुछ इस तरह ख़याल तेरा जल उठा की बस
जैसे दिया-सलाई जले हो अँधेरे में ।
अब फूक भी दो वरना ये उंगलियाँ जलाएगा॥
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तेरी सूरत जो भरी रहती है आँखों में सदा
अजनबी लोग भी पहचाने से लगते हैं मुझे।
तेरे रिश्ते में तो दुनिया ही पिरो ली मैंने॥
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आओ सारे पहन लें आईना
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
रूह अपनी भी किसने देखी है॥
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