Sensible Cinema
Thursday, August 12, 2010
दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
साया आते हुए भी डरता है मेरे कमरे में
गम थका हरा मुसाफिर है चला जाएगा
कुछ दिनों के लिए ठहरा है मेरे कमरे में
सुबह तक देखना अफ़साना बना डालेगा
तुझको एक शक्स ने देखा है मेरे कमरे में॥
शायर
ज़फर गोरखपुरी
1 comment:
अमिताभ मीत
August 12, 2010 at 8:48 AM
सुबह तक देखना अफ़साना बना डालेगा
तुझको एक शक्स ने देखा है मेरे कमरे में॥
बहुत ख़ूब !
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सुबह तक देखना अफ़साना बना डालेगा
ReplyDeleteतुझको एक शक्स ने देखा है मेरे कमरे में॥
बहुत ख़ूब !