Sunday, August 8, 2010

वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला
तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तनहा हूँ तो कोई नहीं आने वाला
मुन्तजिर किसका हूँ टूटी हुयी दहलीज़ पे मैं
कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला
मैंने देखा है बहारों में चमन को झलते
है कोई खाब की ताबीर बताने वाला?
........................................................
..........................................................
शायर
अहमद फ़राज़ साहब

No comments:

Post a Comment