ये आंधिया, ये तूफ़ान, ये तेज़ धारे
कड़कते तमाशे, गरजते नज़ारे
अँधेरी फ़ज़ा (माहौल ) सांस लेता समंदर
मुसाफिर खडा रह अभी जी को मारे
उसी का है साहिल, उसी के कगारे
तलातुम (बाढ़) में फसकर जो दो हाथ मारे
अँधेरी फ़ज़ा सांस लेता समंदर
यूँ ही सर पटकते रहेंगे ये धारे
कहाँ तक चलेगा किनारे किनारे॥
शायर
कैफ़ी आज़मी
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