Sunday, August 8, 2010

दोस्त भी दिल ही दुखाने आये

तेरी बातें ही सुनाने आये

दोस्त भी दिल ही दुखाने आये

फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं

तेरे आने के ज़माने आये

अब तो रोने से भी दिल दुखता है

शायद अब होश ठिकाने आये

क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी

लोग क्यूँ जश्न मनाने आये॥

शायर

अहमद फ़राज़

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