Sensible Cinema
Saturday, August 14, 2010
दुःख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
दुःख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
इस नगरी में क्यूँ मिलती है रोटी सपनो के बदले
जिनकी नगरी है वो जाने, हम ठहरे बंजारे लोग॥
शायर
जावेद अख्तर साहब
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